September 27, 2019
September 26, 2019
September 20, 2019
साहित्यिक समाचार
आज दिनाँक 19सितम्बर,2019 को रामपुर(उ0प्र0) में दर्जा मंत्री उ0प्र0 सरकार श्री सूर्य प्रकाश पाल के निवास पर उनके जन्म दिन के अवसर पर पल्लव काव्य मंच के बैनर तले एक शानदार विचार एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।सर्वप्रथम दीप प्रज्ज्वलन कर माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण किया गया।कार्यक्रम का शुभारंभ शिव कुमार शर्मा चंदन की सरस्वती वंदना से हुआ।सर्वप्रथम देश के वर्तमान परिदृश्य एवं कश्मीर के संदर्भ में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा उठाये गए साहसिक क़दमों पर परिचर्चा हुई। परिचर्चा में रज़ा कॉलेज के अवकाशप्राप्त प्रोफेसर राधेश्याम शर्मा वासन्तेय, भारतीय जनता पार्टी के श्री भारत भूषण गुप्ता,दर्जा मंत्री श्री सूर्य प्रकाश पाल, डॉक्टर रघुवीर शरण शर्मा सहित अन्य बुद्धिजीवियों एवं कवियों ने अपने विचार रखते हुए श्री मोदी के साहसिक निर्णय की भूरि भूरि प्रशंसा की।परिचर्चा के उपरांत कवि गोष्ठी में श्री सूर्य प्रकाश पाल, डॉक्टर रघुवीर शरण शर्मा, डॉक्टर चंद्र प्रकाश,ओंकार सिंह विवेक,जावेद रहीम,इफ्तेखार
ताहिर,कँवल नोमानी,अशफ़ाक़ ज़ैदी, सचिन सिंह,शिव कुमार शर्मा चंदन ,राम सागर शर्मा आदि द्वारा काव्य पाठ किया गया।अंत में रात्रि भोज के उपरांत कार्यक्रम का समापन करते हुए श्री सूर्य प्रकाश पाल जी द्वारा सभी का आभार व्यक्त किया गया।
ताहिर,कँवल नोमानी,अशफ़ाक़ ज़ैदी, सचिन सिंह,शिव कुमार शर्मा चंदन ,राम सागर शर्मा आदि द्वारा काव्य पाठ किया गया।अंत में रात्रि भोज के उपरांत कार्यक्रम का समापन करते हुए श्री सूर्य प्रकाश पाल जी द्वारा सभी का आभार व्यक्त किया गया।
August 27, 2019
August 25, 2019
मेरा मुक़द्दर
ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
क़द यहाँ औलाद का जब उनसे बढ़कर हो गया,
फ़ख़्र से ऊँचा तभी माँ-बाप का सर हो गया।
जब भरोसा मुझको अपने बाज़ुओं पर हो गया,
साथ मेरे फिर खड़ा मेरा मुक़द्दर हो गया।
मुब्तिला इस ग़म में अब रहने लगा वो रात-दिन,
क्यों किसी का क़द यहाँ उसके बराबर हो गया।
बाँध रक्खी थीं उमीदें सबने जिससे जीत की,
दौड़ से वो शख़्स जाने कैसे बाहर हो गया।
ख़ून है सड़कों पे हर सू और फ़ज़ा में ज़ह्र है,
देखते ही देखते यह कैसा मंज़र हो गया।
----------ओंकार सिंह'विवेक'
क़द यहाँ औलाद का जब उनसे बढ़कर हो गया,
फ़ख़्र से ऊँचा तभी माँ-बाप का सर हो गया।
जब भरोसा मुझको अपने बाज़ुओं पर हो गया,
साथ मेरे फिर खड़ा मेरा मुक़द्दर हो गया।
मुब्तिला इस ग़म में अब रहने लगा वो रात-दिन,
क्यों किसी का क़द यहाँ उसके बराबर हो गया।
बाँध रक्खी थीं उमीदें सबने जिससे जीत की,
दौड़ से वो शख़्स जाने कैसे बाहर हो गया।
ख़ून है सड़कों पे हर सू और फ़ज़ा में ज़ह्र है,
देखते ही देखते यह कैसा मंज़र हो गया।
----------ओंकार सिंह'विवेक'
August 23, 2019
August 20, 2019
पहचान
दोहे
अलग बनाने के लिए , औरों से पहचान।
कथनी करनी कीजिए, अपनी एक समान।।
यह जीवन भगवान का, है सुन्दर उपहार।
अरे गँवाता क्यों इसे, मानव तू बेकार।।
सोचेगा संसार क्या, मत करिए परवाह।
लेकर ख़ुद ही फ़ैसले , चुनिए अपनी राह।।
मन को भी संतोष हो, रहे सुखद परिणाम।
पूरी क्षमता से अगर, करें सतत हम काम।।
---------ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
अलग बनाने के लिए , औरों से पहचान।
कथनी करनी कीजिए, अपनी एक समान।।
यह जीवन भगवान का, है सुन्दर उपहार।
अरे गँवाता क्यों इसे, मानव तू बेकार।।
सोचेगा संसार क्या, मत करिए परवाह।
लेकर ख़ुद ही फ़ैसले , चुनिए अपनी राह।।
मन को भी संतोष हो, रहे सुखद परिणाम।
पूरी क्षमता से अगर, करें सतत हम काम।।
---------ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
चित्र:गूगल से साभार
August 19, 2019
दिल धोते हुए
ग़ज़ल - ओंकार सिंह विवेक
आँसुओं से ज़ख्मे दिल धोते हुए,
ज़िन्दगी अपनी कटी रोते हुए।
दिल की नादानी नहीं तो और क्या,
है परेशां आपके होते हुए।
ख़्वाब से आँखें हों कैसे आशना ,
जागते रहते हैं हम सोते हुए।
मुद्दतें गुजरीं ज़माना हो गया ,
बोझ अहसानात का ढोते हुए।
कर रहे हैं मंज़िलों की जुस्तजू ,
लोग अपना हौसला खोते हुए।
----------------ओंकार सिंह विवेक
चित्र:गूगल से साभार
आँसुओं से ज़ख्मे दिल धोते हुए,
ज़िन्दगी अपनी कटी रोते हुए।
दिल की नादानी नहीं तो और क्या,
है परेशां आपके होते हुए।
ख़्वाब से आँखें हों कैसे आशना ,
जागते रहते हैं हम सोते हुए।
मुद्दतें गुजरीं ज़माना हो गया ,
बोझ अहसानात का ढोते हुए।
कर रहे हैं मंज़िलों की जुस्तजू ,
लोग अपना हौसला खोते हुए।
----------------ओंकार सिंह विवेक
चित्र:गूगल से साभार
August 18, 2019
ज़िन्दगी का सफ़र
ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
चढ़ गया सबकी नज़र में,
बात है कुछ उस बशर में।
सच का हो कैसे गुज़ारा,
छल,कपट के इस नगर में।
पाँव के छाले न देखो ,
आप मंज़िल की डगर में।
हमसफ़र भी है ज़रुरी,
ज़िन्दगानी के सफ़र में।
रौशनी की कौन सुनता,
थे सभी तम के असर में।
है कहाँ कोई मुकम्मल,
कुछ कमी है हर बशर में।
---------ओंकार सिंह विवेक
चढ़ गया सबकी नज़र में,
बात है कुछ उस बशर में।
सच का हो कैसे गुज़ारा,
छल,कपट के इस नगर में।
पाँव के छाले न देखो ,
आप मंज़िल की डगर में।
हमसफ़र भी है ज़रुरी,
ज़िन्दगानी के सफ़र में।
रौशनी की कौन सुनता,
थे सभी तम के असर में।
है कहाँ कोई मुकम्मल,
कुछ कमी है हर बशर में।
---------ओंकार सिंह विवेक
August 15, 2019
रक्षा बंधन
💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
बहिना को कब चाहिए, दूूूजा कुछ उपहार।
वह तो हर पल चाहती, बस भाई का प्यार।।
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
भाई-बहिनों की यही, है असली पहचान।
एक दूसरे पर सदा, छिड़कें अपनी जान।।
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
-----------------ओंकार सिंह विवेक
बहिना को कब चाहिए, दूूूजा कुछ उपहार।
वह तो हर पल चाहती, बस भाई का प्यार।।
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भाई-बहिनों की यही, है असली पहचान।
एक दूसरे पर सदा, छिड़कें अपनी जान।।
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-----------------ओंकार सिंह विवेक
August 14, 2019
घाटी की तस्वीर
दोहे:बड़ा फ़ैसला
बहुत पुरानी भूल में , आख़िर किया सुधार ।
धन्यवाद की पात्र है , यह मोदी सरकार।।
मिटी आज अलगाव की , जड़ से ही पहचान ।
हुआ प्रभावी देश में , एक विधान-निशान।।
अब बदलेगी देखना , घाटी की तस्वीर ।
फिर विकास की राह पर , लौटेगा कश्मीर।।
जिन लोगों नें ख़ौफ़ में , छोड़ा था कश्मीर ।
बदलेगा यह फ़ैसला , उनकी भी तक़दीर।।
लोगों में कश्मीर के , हो विश्वास बहाल ।
इसी मिशन पर आजकल , हैं अजीत डोभाल।।
---------ओंकार सिंह विवेक(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बहुत पुरानी भूल में , आख़िर किया सुधार ।
धन्यवाद की पात्र है , यह मोदी सरकार।।
मिटी आज अलगाव की , जड़ से ही पहचान ।
हुआ प्रभावी देश में , एक विधान-निशान।।
अब बदलेगी देखना , घाटी की तस्वीर ।
फिर विकास की राह पर , लौटेगा कश्मीर।।
जिन लोगों नें ख़ौफ़ में , छोड़ा था कश्मीर ।
बदलेगा यह फ़ैसला , उनकी भी तक़दीर।।
लोगों में कश्मीर के , हो विश्वास बहाल ।
इसी मिशन पर आजकल , हैं अजीत डोभाल।।
---------ओंकार सिंह विवेक(सर्वाधिकार सुरक्षित)
August 13, 2019
रौशनी
ग़ज़ल- ओंकार सिंह विवेक
आप हर पल रौशनी के वार से ,
तीरगी करिये फ़ना संसार से ।
कितने ही राजा भिखारी हो गये,
कौन बच पाया समय की मार से।
टूटने दीजे न मन का हौसला,
हार हो जाती है मन की हार से।
अपना ही दुखड़ा सुनाने लग गये,
हाल कुछ पूछा नहीं बीमार से।
हो गये दिन जाने उनकी खैरियत
कोई तो आये ख़बर उस पार से।
हौसले से वे सभी तय हो गये,
रासते जो थे बड़े दुश्वार से।
-----------ओंकार सिंह विवेक
आप हर पल रौशनी के वार से ,
तीरगी करिये फ़ना संसार से ।
कितने ही राजा भिखारी हो गये,
कौन बच पाया समय की मार से।
टूटने दीजे न मन का हौसला,
हार हो जाती है मन की हार से।
अपना ही दुखड़ा सुनाने लग गये,
हाल कुछ पूछा नहीं बीमार से।
हो गये दिन जाने उनकी खैरियत
कोई तो आये ख़बर उस पार से।
हौसले से वे सभी तय हो गये,
रासते जो थे बड़े दुश्वार से।
-----------ओंकार सिंह विवेक
August 6, 2019
सीधी सच्ची बात
दोहे
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
पहले मुझको झिड़कियाँ , फिर थोड़ी मनुहार,
यार समझ पाया नहीं , मैं तेरा व्यवहार।
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
जिससे मिलकर बाँटते , अपने मन की पीर,
मिला नहीं ऐसा हमें , कोई भी गंभीर।
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
बिगड़ेगी कैसे भला , जग में मेरी बात,
जब माता मेरे लिये , दुआ करे दिन रात।
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
गर्म सूट में सेठ का , जीना हुआ मुहाल,
पर नौकर नें शर्ट में , जाड़े दिये निकाल।
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
इक दिन होगी आपकी , मुश्किल भी आसान,
वक़्त किसी का भी सदा , रहता नहीं समान।
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
धन दौलत की ढेरियाँ , कोठी बँगला कार,
अगर नहीं मन शांत तो , यह सब हैं बेकार।
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
-------ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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पहले मुझको झिड़कियाँ , फिर थोड़ी मनुहार,
यार समझ पाया नहीं , मैं तेरा व्यवहार।
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जिससे मिलकर बाँटते , अपने मन की पीर,
मिला नहीं ऐसा हमें , कोई भी गंभीर।
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बिगड़ेगी कैसे भला , जग में मेरी बात,
जब माता मेरे लिये , दुआ करे दिन रात।
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गर्म सूट में सेठ का , जीना हुआ मुहाल,
पर नौकर नें शर्ट में , जाड़े दिये निकाल।
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इक दिन होगी आपकी , मुश्किल भी आसान,
वक़्त किसी का भी सदा , रहता नहीं समान।
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धन दौलत की ढेरियाँ , कोठी बँगला कार,
अगर नहीं मन शांत तो , यह सब हैं बेकार।
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-------ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
August 5, 2019
दिये जलाना
ग़ज़ल-ओंकार सिंह 'विवेक'
आँधियों में दिये जलाना है,
कुछ नया करके अब दिखाना है।
बात क्या कीजिये उसूलों की,
जोड़ औ तोड़ का ज़माना है।
फिर से पसरा है इतना सन्नाटा,
फिर से तूफ़ान कोई आना है।
झूठ कब पायदार है इतना,
दो क़दम चल के गिर ही जाना है।
ज़िन्दगी दायमी नहीं प्यारे,
एक दिन मौत सबको आना है।
इस क़दर बेहिसी के आलम में,
हाल दिल का किसे सुनाना है।
बज़्म में और भी तो बैठे हैं,
सिर्फ़ हम पर ही क्यों निशाना है।
------------ओंकार सिंह 'विवेक'
आँधियों में दिये जलाना है,
कुछ नया करके अब दिखाना है।
बात क्या कीजिये उसूलों की,
जोड़ औ तोड़ का ज़माना है।
फिर से पसरा है इतना सन्नाटा,
फिर से तूफ़ान कोई आना है।
झूठ कब पायदार है इतना,
दो क़दम चल के गिर ही जाना है।
ज़िन्दगी दायमी नहीं प्यारे,
एक दिन मौत सबको आना है।
इस क़दर बेहिसी के आलम में,
हाल दिल का किसे सुनाना है।
बज़्म में और भी तो बैठे हैं,
सिर्फ़ हम पर ही क्यों निशाना है।
------------ओंकार सिंह 'विवेक'
August 4, 2019
August 3, 2019
उपकार कर
हो सके जितना भी तुझसे उम्र भर उपकार कर,
बाँट कर दुख दर्द बन्दे हर किसी से प्यार कर।
छल,कपट और द्वेष ही करते हैं मन को स्वारथी,
हो तनिक यदि इनकी आहट बंद मन के द्वार कर।
जिसको सुनते ही ख़ुशी से सब के तन-मन खिल उठें,
ऐसी वाणी से सदा व्यक्तित्व का शृंगार कर।
चीर कर पत्थर का सीना बह रही जो शान से,
प्रेरणा ले उस नदी से संकटों को पार कर।
विश्व के कल्याण की जिनसे प्रबल हो भावना,
उन विचारों का ही तू मष्तिष्क में संचार कर।
नफरतों की चोट से इंसानियत घायल हुई,
ज़िन्दगी इसकी बचे ऐसा कोई उपचार कर।
@सर्वाधिकार सुरक्षित ----ओंकार सिंह'विवेक'
July 31, 2019
मुन्शी प्रेमचंद जयंती पर
मुन्शी प्रेमचंद को समर्पित कुछ दोहे-
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
लिखकर सदा समाज का,सीधा सच्चा हाल,
मुन्शी जी की लेखनी,करती रही कमाल।
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
'हल्कू' 'बुधिया' से सरल, 'होरी' से लाचार,
इस समाज में आज भी,जीवित हैं किरदार।
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
पढ़ते हैं हम जब कभी, 'ग़बन'और 'गोदान',
आ जाता है सामने, असली हिन्दुस्तान।
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
किये अदब के वासते, बड़े बड़े सब काम,
मुन्शी जी हम आपको, करते आज प्रणाम।
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-----ओंकार सिंह विवेक
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लिखकर सदा समाज का,सीधा सच्चा हाल,
मुन्शी जी की लेखनी,करती रही कमाल।
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'हल्कू' 'बुधिया' से सरल, 'होरी' से लाचार,
इस समाज में आज भी,जीवित हैं किरदार।
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पढ़ते हैं हम जब कभी, 'ग़बन'और 'गोदान',
आ जाता है सामने, असली हिन्दुस्तान।
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किये अदब के वासते, बड़े बड़े सब काम,
मुन्शी जी हम आपको, करते आज प्रणाम।
💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷
-----ओंकार सिंह विवेक
July 30, 2019
दोहे:आओ करें विचार
💐💐💐💐💐💐💐
बढ़ चढ़ कर इस दौर में,माँगें सब अधिकार,
फ़र्ज़ निभाने के लिये, मगर नहीं तैयार।
💐💐💐💐💐💐💐💐
सच मानो संसार में, जीना है बेकार,
अगर कसौटी पर खरा, नहीं रहा किरदार।
💐💐💐💐💐💐💐💐
मिली नहीं हमको कभी, विश्वासों की छाँव,
छल छदमों की धूप में,झुलसा मन का गाँव।
💐💐💐💐💐💐💐💐
रहना है संसार में, अगर ख़ुशी के साथ,
विपदाओं से कीजिये, बढ़कर दो दो हाथ।
💐💐💐💐💐💐💐💐
रखता है जो आदमी, सच्चाई का मान,
उसके दिल में ही सदा, बसते हैं भगवान।
💐💐💐💐💐💐💐💐
---------ओंकार सिंह 'विवेक'
रामपुर(उ0प्र0)
July 27, 2019
स्मृति शेष
आज दिनाँक 27 जुलाई,2019 को हिंदी के महान साहित्यकार डॉक्टर छोटे लाल शर्मा नागेन्द्र जी की पुण्य तिथि पर मेरे निवास पर डॉक्टर रघुवीर शरण शर्मा जी की अध्यक्षता में 'पल्लव काव्य मंच' के तत्वावधान में एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।
कवि गोष्ठी में सर्वप्रथम सभी साहित्यकारों द्वारा नागेन्द्र जी के चित्र पर पुष्प अर्पित करके उनकी स्मृति को नमन किया गया।काव्य गोष्ठी का शुभारम्भ करते हुए कवि शिवकुमार चन्दन द्वारा सुंदर कंठ से सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गयी।इस अवसर पर डॉक्टर नागेन्द्र के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विचार व्यक्त करते हुए साहित्यकारों ने कहा कि नागेन्द्र जी बहुत बड़े साहित्यकार थे।उनकी रचनाओं में कथ्य और शिल्प की श्रेष्ठता देखने को मिलती है।छंद शास्त्र में उन्हें महारथ हासिल थी।उनका सम्पूर्ण सृजन समाज को नई दिशा देता रहेगा।इस अवसर पर काव्य पाठ करते हुए डॉक्टर रघुवीर शरणं शर्मा,सीता राम शर्मा,शिव कुमार चन्दन, जितेन्द्र कमल आनंद,रामसागर शर्मा, कमल नोमानी,जितेंद्र नंदा और ओंकार सिंह विवेक द्वारा अपनी रचनाओं के माध्यम से नागेन्द्र जी की स्मृतियों को नमन किया गया।कवि ओंकार सिंह विवेक द्वारा नागेन्द्र जी को अपने तीन दोहों के माध्यम से याद करते हुए श्रद्धा सुमन अर्पित किए गये-
1. कविता में जो आपने , दिल को रखा निकाल,
उसकी ढूँढे से कहीं, मिलती नहीं मिसाल।
कवि गोष्ठी में सर्वप्रथम सभी साहित्यकारों द्वारा नागेन्द्र जी के चित्र पर पुष्प अर्पित करके उनकी स्मृति को नमन किया गया।काव्य गोष्ठी का शुभारम्भ करते हुए कवि शिवकुमार चन्दन द्वारा सुंदर कंठ से सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गयी।इस अवसर पर डॉक्टर नागेन्द्र के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विचार व्यक्त करते हुए साहित्यकारों ने कहा कि नागेन्द्र जी बहुत बड़े साहित्यकार थे।उनकी रचनाओं में कथ्य और शिल्प की श्रेष्ठता देखने को मिलती है।छंद शास्त्र में उन्हें महारथ हासिल थी।उनका सम्पूर्ण सृजन समाज को नई दिशा देता रहेगा।इस अवसर पर काव्य पाठ करते हुए डॉक्टर रघुवीर शरणं शर्मा,सीता राम शर्मा,शिव कुमार चन्दन, जितेन्द्र कमल आनंद,रामसागर शर्मा, कमल नोमानी,जितेंद्र नंदा और ओंकार सिंह विवेक द्वारा अपनी रचनाओं के माध्यम से नागेन्द्र जी की स्मृतियों को नमन किया गया।कवि ओंकार सिंह विवेक द्वारा नागेन्द्र जी को अपने तीन दोहों के माध्यम से याद करते हुए श्रद्धा सुमन अर्पित किए गये-
1. कविता में जो आपने , दिल को रखा निकाल,
उसकी ढूँढे से कहीं, मिलती नहीं मिसाल।
2. रचनाओं में फिर वही, लेकर नये कमाल,
आ जाओ इस मंच पर, कविवर छोटे लाल।
आ जाओ इस मंच पर, कविवर छोटे लाल।
3. कवि गण 'पल्लव मंच' के, लेकर प्रभु का नाम,
आज आपकी याद को, शत शत करें प्रणाम।
आज आपकी याद को, शत शत करें प्रणाम।
कार्यक्रम में विचार विमर्श के मध्य इस बात पर भी
सहमति बनी की नागेन्द्र जी की याद में रामपुर में
किसी ऐसे काम को अंजाम दिया जाये जिससे लोग उनके साहित्यिक योगदान का सदैव स्मरण करते रहें।इस विषय में विस्तार से चर्चा अभी अपेक्षित है।
कार्यक्रम समापन पर मेज़बान ओंकार सिंह विवेक द्वारा सभी का धन्यवाद किया गया।कार्यक्रम में श्रीमती रेखा सैनी,आदित्य सैनी और प्यारे लाल सैनी भी उपस्थित रहे।
सहमति बनी की नागेन्द्र जी की याद में रामपुर में
किसी ऐसे काम को अंजाम दिया जाये जिससे लोग उनके साहित्यिक योगदान का सदैव स्मरण करते रहें।इस विषय में विस्तार से चर्चा अभी अपेक्षित है।
कार्यक्रम समापन पर मेज़बान ओंकार सिंह विवेक द्वारा सभी का धन्यवाद किया गया।कार्यक्रम में श्रीमती रेखा सैनी,आदित्य सैनी और प्यारे लाल सैनी भी उपस्थित रहे।
July 26, 2019
अच्छे लगते हैं
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
हाथों में चाकू औ पत्थर अच्छे लगते हैं,
कुछ लोगों को ऐसे मंज़र अच्छे लगते हैं।
झूठ यहाँ जब बोल रहा है सबके सर चढ़कर,
हमको सच्चे बोल लबों पर अच्छे लगते हैं।
यूँ तो हर मीठे का ठहरा अपना एक मज़ा,
पर सावन में फैनी , घेवर अच्छे लगते हैं।
चाँद-सितारे कौन यहाँ ला पाया है नभ से,
फिर भी उनके वादे अक्सर अच्छे लगते हैं।
देते हैं हर पल ही सबको सीख उड़ानों की,
तब ही तो ये चिड़ियों के पर अच्छे लगते हैं।
हर मुश्किल से आँख मिलाना,ग़म से लड़ जाना,
जिसमें भी हों ऐसे तेवर अच्छे लगते हैं।
---ओंकार सिंह 'विवेक'(सर्वाधिकार सुरक्षित)
मोबाइल 9897214710
हाथों में चाकू औ पत्थर अच्छे लगते हैं,
कुछ लोगों को ऐसे मंज़र अच्छे लगते हैं।
झूठ यहाँ जब बोल रहा है सबके सर चढ़कर,
हमको सच्चे बोल लबों पर अच्छे लगते हैं।
यूँ तो हर मीठे का ठहरा अपना एक मज़ा,
पर सावन में फैनी , घेवर अच्छे लगते हैं।
चाँद-सितारे कौन यहाँ ला पाया है नभ से,
फिर भी उनके वादे अक्सर अच्छे लगते हैं।
देते हैं हर पल ही सबको सीख उड़ानों की,
तब ही तो ये चिड़ियों के पर अच्छे लगते हैं।
हर मुश्किल से आँख मिलाना,ग़म से लड़ जाना,
जिसमें भी हों ऐसे तेवर अच्छे लगते हैं।
---ओंकार सिंह 'विवेक'(सर्वाधिकार सुरक्षित)
July 25, 2019
पुस्तक : स्पंदन (कृतिकार : अशोक विश्नोई -- समीक्षक : ओंकार सिंह विवेक)
पुस्तक समीक्षा
काव्य कृति: स्पंदन (गद्य कविता-संग्रह )
काव्य कृति: स्पंदन (गद्य कविता-संग्रह )
कृतिकार-अशोक विश्नोई
प्रकाशक - विश्व पुस्तक प्रकाशन, नई दिल्ली
प्रकाशन वर्ष -- 2018
पृष्ठ -- 128 मूल्य रुo150/-
समीक्षक-ओंकार सिंह 'विवेक'
श्री अशोक विश्नोई जी से मैं एम आई टी , मुरादाबाद में आयोजित अखिल भारतीय साहित्य परिषद के एक कार्यक्रम में जनवरी,2019 में पहली बार रूबरू हुआ।उस समय विश्नोई जी कार्यक्रम के आयोजकों में से एक थे।उस कर्यक्रम में उनसे मिलकर मैं उनकी सह्रदयता,विनम्रता और मेज़बानी से बहुत प्रभावित हुआ। यूँ तो इससे पूर्व से ही मैं श्री मनोज रस्तोगी द्वारा संचालित व्हाट्सएप्प ग्रुप "साहित्यिक मुरादाबाद" में विश्नोई जी की रचनाओं के द्वारा उनके विचारों से अवगत होता रहा हूँ परंतु पहली बार व्यक्तिगत संपर्क उनसे उक्त कार्यक्रम में ही हुआ था। अवसर मिला है तो यहाँ विश्नोई जी की विनोदप्रियता का भी मैं उल्लेख करता चलूँ ।इसी वर्ष जून में मुझे एक फोन कॉल आई। दूसरी और से बोल रहे सज्जन का नम्बर मेरे फोन में सुरक्षित नहीं था । जब मैंने फोन उठाया तो उस तरफ से आवाज़ आई कि कौन बोल रहा है।मैंने कहा कि आप कौन साहब बोल रहे हैं। उधर से आवाज़ आई कि क्या आप ओंकार सिंह विवेक जी बोल रहे हैं।मैंने कहा जी हाँ बोल रहा हूँ पर आप कौन बोल रहे हैँ।इस पर उधर से आवाज़ आयी कि मैं आपका छोटा भाई अशोक विश्नोई बोल रहा हूँ।यह सुनकर मैं अपनी हँसी न रोक सका क्योंकि श्री अशोक विश्नोई जी लगभग मेरे पिताजी की आयु के ही होंगे।उनकी इस विनोदप्रियता ने मुझे अंदर तक गुदगुदा दिया । जीवन के चंद पलों को हल्का-फुल्का बनाये रखने के लिये ऐसी विनोदप्रियता कितनी ज़रूरी है यह मैंने विश्नोई जी से सीखा।दरअस्ल यह वार्तालाप तब हुआ जब उन्होंने मुझे मुरादाबाद के युवा कवि श्री प्रवीण कुमार राही की प्रथम काव्य कृति "अंजुमन"के विमोचन के अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में निमंत्रण हेतु फोन किया था।
आदरणीय विश्नोई जी के साथ अपने इन व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करने के उपरांत मैं उनकी रचना धर्मिता की ओर आता हूँ। श्री अशोक विश्नोई जी के गद्य कविता संग्रह "स्पंदन"को पढ़ने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ अतः उनकी रचनाओं का रसास्वादन करने के उपरांत इस कृति पर कुछ कहना तो बनता ही है।
"स्पंदन"में संकलित रचनाओं में पारिवारिक,सामाजिक और राजनैतिक विसंगतियों पर व्यंग्य बाण चलाते हुए जहाँ एक ओर विश्नोई जी ने समाज को आईना दिखाया है वहीं दूसरी ओर जीवन के हर क्षेत्र में दिखाई देने वाले विरोधाभासों पर आक्रोश व्यक्त करते हुए उचित मार्ग दिखाने की भी कोशिश की है।एक सह्रदय कवि को सभ्यता और संस्कृति का निरन्तर पतन कितना कचोटता है,देखिये-
क्या
आप भी वही देख रहे हैं
जो मैं देख रहा हूँ
सभ्यता असभ्यता में विलय होते हुए
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एक रचना में नेताओं के चरित्र के दोगलेपन को इशारों में रेखांकित किया है-
शहर में दंगा हो गया
लोग अपनी जान बचाने को
इधर उधर भाग रहे थे
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अफवाह है
इस दंगे मे अमुक व्यक्ति का हाथ है
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अगर ऐसा होता तो
वह 'महिला कल्याण 'समिति
के उदघाटन पर
कबूतर नहीं उड़ा रहा होता-----
एक तरफ कवि जहाँ जीवन के हर क्षेत्र में दिखाई दे रहे विरोधाभासों से चिंतित दिखाई देता है वहीं दूसरी ओर
एक सकारात्मक और आशावादी दृष्टिकोण रखते हुए इस प्रकार भी अपने भाव व्यक्त करता है-
विश्वास जागता है
विचार पनपते हैं
क्षमता जागृत होती है
एक नया सपना-
जो छोड़ जाता है मीठी यादें
कुछ करने हेतु
फिर से-एक प्रयास------
'स्पंदन' रूपी गुलदस्ते में सजी हर रचना के भावों से स्पष्ट है की कवि समाज में मौजूद विसंगतियों से विचलित है और नैतिकता तथा सद्चरित्रता का प्रबल पक्षधर है-
सच्ची अनुभूति
हाथों से
किसी के बदन को
स्पर्श करके नहीं
किसी
विवश लाचार की
सेवा से होती है-------
कवि ने अपनी रचनाओं में सामाजिक सरोकार, वर्तमान परिदृश्य एवम मानव जीवन के लगभग हर पहलू पर गहन दृष्टि डाली है।सभी रचनाएं भाव प्रधान हैं तथा इनकी भाषा बहुत सहज एवम सरल है।रचनाओं में कई स्थानों पर मुहावरों का प्रयोग भी सुंदर बन पड़ा है।प्रयोग किये गये कुछ मुहावरे देखें--
ज़ख़्मों पर नमक छिड़कना,चिकने घड़े,साहस बटोरना तथा कंधे से कंधा मिलाकर चलना आदि।
स्वाभिमानी कवि ने अपनी ख़ास शैली में रचनाओं का सृजन किया है जो हर ख़ासो-आम की समझ में आने वाली है। कुछ रचनाओं में 'महाभारत' के प्रसंग और दृष्टांत देकर भी कुशलता से अपनी बात कही गयी है।
सार रूप में यह कहना उचित होगा कि इस संग्रह की प्रत्येक रचना कवि अशोक विश्नोई के गहन चिंतन और मनन का एक बड़ा सरमाया है।'स्पंदन' में अपने नाम के अनुरूप विचारों की हलचल है, भावों की गहराई है तथा संवेदनाओं का ज्वार है।मुझे आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है की विश्नोई जी की यह काव्य कृति समाज को दिशा देने में कामयाब होगी।अंत में अपने दो दोहों के माध्यम से मैं कवि के प्रति आदर भाव प्रकट करते हुए उनके शतायु होने की कामना करता हूँ ताकि वह आगे भी इसी तरह और अधिक श्रेष्ठ कृतियों का सृजन कर सकें-
रचनाओं में हो रहे, मुखरित सच्चे बोल।
विश्नोई जी आपकी,पुस्तक है अनमोल।।
आशा के अनुरूप ही, होगा इसका मान।
दिलवाएगी आपको,यह पुस्तक पहचान।।
--ओंकार सिंह विवेक
कवि/स्वतंत्र लेखक,
समीक्षक तथा ब्लॉगर
सदस्य-एस.डब्ल्यू.ए.मुम्बई
मोबाइल 9897214710
ईमेल oksrmp@gmail.com
Blog Address
www.vivekoks.blospot.com
July 23, 2019
चन्द्रयान-3 : मिशन मून
कुछ दोहे-मिशन मून : चंद्रयान-3 पर
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@
पूरे करने के लिये, दिल के सब अरमान।
चन्द्रलोक की सैर को,निकला अपना यान।।
@
पूरे करने के लिये, दिल के सब अरमान।
चन्द्रलोक की सैर को,निकला अपना यान।।
लिया नहीं तकनीक का,किसी और से ज्ञान।
अपने दम पर ही भरी, हमने नई उड़ान।।
किसी देश का भी जहाँ, उतरा नहीं विमान।
चंदा के उस पोल* पर, होगा "चंदायान"।।
क्या-क्या कुछ है चाँद पर,जीने का सामान।
चन्द्रयान के उपकरण, देंगे इसका ज्ञान।।
भेजेंगे जो चाँद से, रोवर* जी तस्वीर।
उसे देखने के लिये, मन है बड़ा अधीर।।
"मिशन मून" पर रात-दिन,किया श्रेष्ठतम काम।
है इसरो* की टीम को, सौ-सौ बार प्रणाम।।
@-------ओंकार सिंह विवेक(अधिकार सुरक्षित)
अपने दम पर ही भरी, हमने नई उड़ान।।
किसी देश का भी जहाँ, उतरा नहीं विमान।
चंदा के उस पोल* पर, होगा "चंदायान"।।
क्या-क्या कुछ है चाँद पर,जीने का सामान।
चन्द्रयान के उपकरण, देंगे इसका ज्ञान।।
भेजेंगे जो चाँद से, रोवर* जी तस्वीर।
उसे देखने के लिये, मन है बड़ा अधीर।।
"मिशन मून" पर रात-दिन,किया श्रेष्ठतम काम।
है इसरो* की टीम को, सौ-सौ बार प्रणाम।।
@-------ओंकार सिंह विवेक(अधिकार सुरक्षित)
#मिशनमून#चंद्रयान
. (चित्र : गूगल से साभार)
पोल-ध्रुव(दक्षिणी ध्रुव पर ही उतरना है यान को)
रोवर- यान में लगा एक डिवाइस
इसरो ISRO-Indian Space Research Organisation
पोल-ध्रुव(दक्षिणी ध्रुव पर ही उतरना है यान को)
रोवर- यान में लगा एक डिवाइस
इसरो ISRO-Indian Space Research Organisation
July 22, 2019
July 21, 2019
मन की पीर
दोहे -ओंकार सिंह विवेक
जिससे मिलकर बाँटते,अपने मन की पीर,
मिला नहीं ऐसा हमें, कोई भी गम्भीर।
भाषण की हद तक रही,सच्ची-अच्छी बात,
नहीं धरातल पर कभी,बदले कुछ हालात।
और अधिक मजबूत हो,रिश्तों की बुनियाद,
समय समय पर हो अगर,आपस में संवाद।
पहले चुभती थी सदा,जिनकी हर इक बात,
अब उनका ही मौन क्यों,खलता है दिन-रात।
जिसने भी झेले यहाँ, ग़म के झंझावात,
मिली उसी को अंत में, ख़ुशियों की सौग़ात।
------ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
जिससे मिलकर बाँटते,अपने मन की पीर,
मिला नहीं ऐसा हमें, कोई भी गम्भीर।
भाषण की हद तक रही,सच्ची-अच्छी बात,
नहीं धरातल पर कभी,बदले कुछ हालात।
और अधिक मजबूत हो,रिश्तों की बुनियाद,
समय समय पर हो अगर,आपस में संवाद।
पहले चुभती थी सदा,जिनकी हर इक बात,
अब उनका ही मौन क्यों,खलता है दिन-रात।
जिसने भी झेले यहाँ, ग़म के झंझावात,
मिली उसी को अंत में, ख़ुशियों की सौग़ात।
------ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
July 18, 2019
July 14, 2019
अश्क
हमें अश्कों को पीना आ गया है,
ग़रज़ यह है कि जीना आ गया है।
कठिन कब तक न हों सूरज की राहें,
दिसम्बर का महीना आ गया है।
करो कुछ फ़िक्र इसके संतुलन की,
भँवर में अब सफीना आ गया है।
हमारी तशनगी को देखकर क्यों,
समुंदर को पसीना आ गया है।
अगर है उनकी फ़ितरत ज़ख्म देना,
हमें भी ज़ख्म सीना आ गया है।
---ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
ग़रज़ यह है कि जीना आ गया है।
कठिन कब तक न हों सूरज की राहें,
दिसम्बर का महीना आ गया है।
करो कुछ फ़िक्र इसके संतुलन की,
भँवर में अब सफीना आ गया है।
हमारी तशनगी को देखकर क्यों,
समुंदर को पसीना आ गया है।
अगर है उनकी फ़ितरत ज़ख्म देना,
हमें भी ज़ख्म सीना आ गया है।
---ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
July 6, 2019
दोहे: लो आयी बरसात
दोहे: लो आयी बरसात
सूर्य देव के ताप को, देकर आखिर मात,
मन हरषाने आ गयी, लो रिमझिम बरसात।
पुरवाई के साथ में, जब आयी बरसात,
फसलें मुस्काने लगीं, हँसे पेड़ के पात।
मेंढ़क टर- टर बोलते, भरे तलैया - कूप,
सबके मन को भा गया, वर्षा का यह रूप।
खेतों में जल देखकर, छोटे - बड़े किसान,
चर्चा यह करने लगे, चलो लगायें धान।
कभी-कभी वर्षा यहाँ, धरे रूप विकराल,
कोप दिखाकर बाढ़ का, जीना करे मुहाल।
---(सर्वाधिकार सुरक्षित)ओंकार सिंह'विवेक'
सूर्य देव के ताप को, देकर आखिर मात,
मन हरषाने आ गयी, लो रिमझिम बरसात।
पुरवाई के साथ में, जब आयी बरसात,
फसलें मुस्काने लगीं, हँसे पेड़ के पात।
मेंढ़क टर- टर बोलते, भरे तलैया - कूप,
सबके मन को भा गया, वर्षा का यह रूप।
खेतों में जल देखकर, छोटे - बड़े किसान,
चर्चा यह करने लगे, चलो लगायें धान।
कभी-कभी वर्षा यहाँ, धरे रूप विकराल,
कोप दिखाकर बाढ़ का, जीना करे मुहाल।
---(सर्वाधिकार सुरक्षित)ओंकार सिंह'विवेक'
July 4, 2019
दोहे: जल संकट की बात
जल संसाधन घट रहे, संकट है विकराल,
हल कुछ इसका खोजिये,है यह बड़ा सवाल।
झूठ नहीं इनमें तनिक, सच्चे हैं यह बोल,
बूँद-बूँद में ज़िन्दगी, पानी है अनमोल।
मोदी जी ने बोल दी, अपने मन की बात,
जल संरक्षण के लिये, एक करें दिन-रात।
क़ुदरत ने जो जल दिया, है पारस का रूप,
घिर आयी इस पर मगर, अब संकट की धूप।
पेड़ों का हर रोज़ ही, अंधाधुंध कटान,
जल संकट का इक बड़ा,कारण है श्रीमान।
रखना है भू पर अगर, अपना जीवन शाद,
पानी को मत कीजिये, हरगिज़ भी बरबाद।
वर्षा जल का संचयन, वाटर शेड विकास
करें अगर मिलकर सभी, तो जागे कुछ आस।
खपत अधिक जल की सदा,जिन फसलों में होय,
कह दो अभी किसान से, उनको कम ही बोय।
झीलें - पोखर - बावड़ी, सबका करें विकास,
पूरी हो पाये तभी, जल संचय की आस।
बोरिंग के उपयोग पर, नीति बने गंभीर,
नहीं मिलेगा अन्यथा, गहरे मे भी नीर ।
चेरापूँजी में बहुत , है वर्षा का नीर ,
उसके भी उपयोग को, हो शासन गंभीर ।
(सर्वाधिकार सुरक्षित) ओंकार सिंह विवेक
हल कुछ इसका खोजिये,है यह बड़ा सवाल।
झूठ नहीं इनमें तनिक, सच्चे हैं यह बोल,
बूँद-बूँद में ज़िन्दगी, पानी है अनमोल।
मोदी जी ने बोल दी, अपने मन की बात,
जल संरक्षण के लिये, एक करें दिन-रात।
क़ुदरत ने जो जल दिया, है पारस का रूप,
घिर आयी इस पर मगर, अब संकट की धूप।
पेड़ों का हर रोज़ ही, अंधाधुंध कटान,
जल संकट का इक बड़ा,कारण है श्रीमान।
रखना है भू पर अगर, अपना जीवन शाद,
पानी को मत कीजिये, हरगिज़ भी बरबाद।
वर्षा जल का संचयन, वाटर शेड विकास
करें अगर मिलकर सभी, तो जागे कुछ आस।
खपत अधिक जल की सदा,जिन फसलों में होय,
कह दो अभी किसान से, उनको कम ही बोय।
झीलें - पोखर - बावड़ी, सबका करें विकास,
पूरी हो पाये तभी, जल संचय की आस।
बोरिंग के उपयोग पर, नीति बने गंभीर,
नहीं मिलेगा अन्यथा, गहरे मे भी नीर ।
चेरापूँजी में बहुत , है वर्षा का नीर ,
उसके भी उपयोग को, हो शासन गंभीर ।
(सर्वाधिकार सुरक्षित) ओंकार सिंह विवेक
July 3, 2019
माँ
दूर रंजोअलम् और सदमात हैं ,
माँ है तो खुशनुमा घर के हालात हैं।
अपने ढंग से उसे सब सताते रहे ,
यह न सोचा कि माँ के भी जज़्बात हैं।
दुख ही दुख वो उठाती है सब के लिये ,
माँ के हिस्से में कब सुख के लम्हात हैं।
लौट भी आ मिरे लाल परदेस से ,
मुन्तज़िर माँ की आँखे ये दिन रात हैँ ।
दौर मुश्किल भी आखिर गुज़र जायेगा,
मेरी माँ की दुआएं मेरे साथ हैं ।
(सर्वाधिकार सुरक्षित)-ओंकार सिंह विवेक
माँ है तो खुशनुमा घर के हालात हैं।
अपने ढंग से उसे सब सताते रहे ,
यह न सोचा कि माँ के भी जज़्बात हैं।
दुख ही दुख वो उठाती है सब के लिये ,
माँ के हिस्से में कब सुख के लम्हात हैं।
लौट भी आ मिरे लाल परदेस से ,
मुन्तज़िर माँ की आँखे ये दिन रात हैँ ।
दौर मुश्किल भी आखिर गुज़र जायेगा,
मेरी माँ की दुआएं मेरे साथ हैं ।
(सर्वाधिकार सुरक्षित)-ओंकार सिंह विवेक
(चित्र:गूगल से साभार)
June 30, 2019
ज़िन्दगी से
ग़ज़ल-ओंकार सिंह'विवेक'
शिकायत कुछ नहीं है ज़िन्दगी से,
मिला जितना मुझे हूँ ख़ुश उसी से।
ज़रूरत और मजबूरी जहाँ मैं,
करा लेती हैं सब कुछ आदमी से।
रखें उजला सदा किरदार अपना,
सबक़ लेंगे ये बच्चे आप ही से।
न छोड़ेगा जो उम्मीदों का दामन,
वो होगा आशना इक दिन ख़ुशी से।
उसे अफ़सोस है अपने किये पर,
पता चलता है आँखों की नमी से।
-ओंकार सिंह 'विवेक'(सर्वाधिकार सुरक्षित)
शिकायत कुछ नहीं है ज़िन्दगी से,
मिला जितना मुझे हूँ ख़ुश उसी से।
ज़रूरत और मजबूरी जहाँ मैं,
करा लेती हैं सब कुछ आदमी से।
रखें उजला सदा किरदार अपना,
सबक़ लेंगे ये बच्चे आप ही से।
न छोड़ेगा जो उम्मीदों का दामन,
वो होगा आशना इक दिन ख़ुशी से।
उसे अफ़सोस है अपने किये पर,
पता चलता है आँखों की नमी से।
-ओंकार सिंह 'विवेक'(सर्वाधिकार सुरक्षित)
June 29, 2019
दोहे: अब तो हो बरसात
मिलकर सब करते विनय,जमकर बरसो आज,
अपनी ज़िद को छोड़ दो, हे बादल महाराज।
आज बहुत प्यासी धरा, मेघ बरस दिल खोल,
यदि बरसेगा बाद में, तो क्या होगा मोल।
सबके होठों पर यहाँ, सिर्फ़ यही है बात,
गरमी की हद हो गयी, भगवन कर बरसात।
उमड़ पड़े आकाश में, जब बादल दो- चार,
सबकी आशा को लगे, जग में पंख हज़ार।
पशु-पक्षी, मानव जगत, पौधों सजी क़तार,
सब को ही राहत मिले, जब कुछ पड़े फ़ुहार।
----(सर्वाधिकार सुरक्षित) ओंकार सिंह'विवेक'
अपनी ज़िद को छोड़ दो, हे बादल महाराज।
आज बहुत प्यासी धरा, मेघ बरस दिल खोल,
यदि बरसेगा बाद में, तो क्या होगा मोल।
सबके होठों पर यहाँ, सिर्फ़ यही है बात,
गरमी की हद हो गयी, भगवन कर बरसात।
उमड़ पड़े आकाश में, जब बादल दो- चार,
सबकी आशा को लगे, जग में पंख हज़ार।
पशु-पक्षी, मानव जगत, पौधों सजी क़तार,
सब को ही राहत मिले, जब कुछ पड़े फ़ुहार।
----(सर्वाधिकार सुरक्षित) ओंकार सिंह'विवेक'
June 25, 2019
June 21, 2019
Yoga Day
आज अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर कुछ विषयगत दोहे प्रस्तुत हैं-
तन मन दोनों स्वस्थ हों,दूर रहें सब रोग,
आओ इसके वासते, करें साथियो योग।
जब से शामिल कर लिया ,दिन चर्या में योग,
मुझसे घबराने लगे,सभी तरह के रोग।
औषधियों से तो हुआ,सिर्फ क्षणिक उपचार,
मिटा दिये पर योग ने,जड़ से रोग विकार।
घोर निराशा,क्रोध,भय,उलझन और तनाव,
योग शक्ति से हो गये, ग़ायब सभी दबाव।
योग साधना से मिटे, मन के सब अवसाद,
जीवन मेरा हो गया,ख़ुशियों से आबाद।
रामकिशन,गुरमीत सिंह, या जोज़फ़, रहमान,
सजी योग से सभी के,चेहरों पर मुसकान।
एक दिवस नहिं योग का,प्रतिदिन हो अभ्यास,
सबके जीवन में तभी,आयेगा उल्लास।
------ओंकार सिंह विवेक (सर्वाधिकार सुरक्षित)
तन मन दोनों स्वस्थ हों,दूर रहें सब रोग,
आओ इसके वासते, करें साथियो योग।
जब से शामिल कर लिया ,दिन चर्या में योग,
मुझसे घबराने लगे,सभी तरह के रोग।
औषधियों से तो हुआ,सिर्फ क्षणिक उपचार,
मिटा दिये पर योग ने,जड़ से रोग विकार।
घोर निराशा,क्रोध,भय,उलझन और तनाव,
योग शक्ति से हो गये, ग़ायब सभी दबाव।
योग साधना से मिटे, मन के सब अवसाद,
जीवन मेरा हो गया,ख़ुशियों से आबाद।
रामकिशन,गुरमीत सिंह, या जोज़फ़, रहमान,
सजी योग से सभी के,चेहरों पर मुसकान।
एक दिवस नहिं योग का,प्रतिदिन हो अभ्यास,
सबके जीवन में तभी,आयेगा उल्लास।
------ओंकार सिंह विवेक (सर्वाधिकार सुरक्षित)
June 2, 2019
हक़ीक़त
ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल9897214710
क़द यहाँ औलाद का जब उनसे बढ़कर हो गया,
फ़ख़्र से ऊँचा तभी माँ-बाप का सर हो गया।
जब भरोसा मुझको अपने बाज़ुओं पर हो गया,
साथ मेरे फिर खड़ा मेरा मुक़द्दर हो गया।
मुब्तिला इस ग़म में अब रहने लगा वो रात-दिन,
क्यों किसी का क़द यहाँ उसके बराबर हो गया।
बाँध रक्खी थीं उमीदें सबने जिससे जीत की,
दौड़ से वो शख़्स जाने कैसे बाहर हो गया।
ख़ून है सड़कों पे हर सू और फ़ज़ा में ज़ह्र है,
देखते ही देखते यह कैसा मंज़र हो गया।
----------ओंकार सिंह'विवेक'(सर्वाधिकार सुरक्षित)
मोबाइल9897214710
क़द यहाँ औलाद का जब उनसे बढ़कर हो गया,
फ़ख़्र से ऊँचा तभी माँ-बाप का सर हो गया।
जब भरोसा मुझको अपने बाज़ुओं पर हो गया,
साथ मेरे फिर खड़ा मेरा मुक़द्दर हो गया।
मुब्तिला इस ग़म में अब रहने लगा वो रात-दिन,
क्यों किसी का क़द यहाँ उसके बराबर हो गया।
बाँध रक्खी थीं उमीदें सबने जिससे जीत की,
दौड़ से वो शख़्स जाने कैसे बाहर हो गया।
ख़ून है सड़कों पे हर सू और फ़ज़ा में ज़ह्र है,
देखते ही देखते यह कैसा मंज़र हो गया।
----------ओंकार सिंह'विवेक'(सर्वाधिकार सुरक्षित)
May 28, 2019
May 27, 2019
हमदर्द
मुक्तक
कभी सदमात देकर ख़ून के आँसू रुलाता है,
कभी ज़ख़्मों पे मेरे आप ही मरहम लगाता है।
उसे दुश्मन कहूँ या फिर कहूँ हमदर्द है मेरा,
बड़ी उलझन में हूँ मेरी समझ में कुछ न आता है।
-----------ओंकार सिंह'विवेक'
@सर्वाधिकार सुरक्षित
May 24, 2019
दोहे
ओंकार सिंह'विवेक'
मोबाइल9897214710
@सर्वाधिकार सुरक्षित
शब्दों ने हमको दिये, ऐसे ऐसे घाव,
जीवन में संभव नहीं ,जिनका कभी भराव।
औरों के दिल को सदा, देते हैं जो घाव।
वे ढोते हैं उम्र भर ,अपराधों के भाव।
अपनी कमियों की करें,पहले ख़ुद पहचान,
करें नसीहत बाद में , औरों को श्रीमान।
पहले मुझको झिड़कियां, फिर थोड़ी मनुहार,
यार समझ पाया नहीं , मैं तेरा व्यवहार।
जिससे मिलकर बाँटते ,अपने मन की पीर,
मिला नहीं ऐसा हमें, कोई भी गंभीर।
बिगड़ेगी कैसे भला , जग में मेरी बात,
जब माँ मेरे वासते, दुआ करे दिन रात।
गर्म सूट में सेठ का जीना हुआ मुहाल,
पर नौकर ने शर्ट में जाड़े दिये निकाल।
इक दिन होगी आपकी,मुश्किल भी आसान,
वक़्त किसी का भी सदा, रहता नहीं समान।
धन-दौलत की ढेरियां , कोठी-बंगला-कार,
अगर नहीं मन शांत तो, यह सब है बेकार।
- -----------ओंकार सिंह'विवेक'
मोबाइल9897214710
@सर्वाधिकार सुरक्षित
शब्दों ने हमको दिये, ऐसे ऐसे घाव,
जीवन में संभव नहीं ,जिनका कभी भराव।
औरों के दिल को सदा, देते हैं जो घाव।
वे ढोते हैं उम्र भर ,अपराधों के भाव।
अपनी कमियों की करें,पहले ख़ुद पहचान,
करें नसीहत बाद में , औरों को श्रीमान।
पहले मुझको झिड़कियां, फिर थोड़ी मनुहार,
यार समझ पाया नहीं , मैं तेरा व्यवहार।
जिससे मिलकर बाँटते ,अपने मन की पीर,
मिला नहीं ऐसा हमें, कोई भी गंभीर।
बिगड़ेगी कैसे भला , जग में मेरी बात,
जब माँ मेरे वासते, दुआ करे दिन रात।
गर्म सूट में सेठ का जीना हुआ मुहाल,
पर नौकर ने शर्ट में जाड़े दिये निकाल।
इक दिन होगी आपकी,मुश्किल भी आसान,
वक़्त किसी का भी सदा, रहता नहीं समान।
धन-दौलत की ढेरियां , कोठी-बंगला-कार,
अगर नहीं मन शांत तो, यह सब है बेकार।
- -----------ओंकार सिंह'विवेक'
May 22, 2019
ख़ुशगवार
ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल9897214710
हर हाल में ख़िज़ाँ पर ग़ालिब बहार होगी,
फिर से फ़ज़ा गुलिस्तां की ख़ुशगवार होगी।
केवल यहाँ बुराई ही लोग सब गिनेंगे,
अच्छाई मेरी कोई भी कब शुमार होगी।
इंसानियत-मुहब्बत-तहज़ीब की हिमायत,
शिद्दत से मेरी ग़ज़लों में बार बार होगी।
केवल ख़िज़ाँ मकीं है मुद्दत से इसमें यारो,
कब मेरे दिल के हिस्से में भी बहार होगी।
दिल को लुभाने वाले सब रंग उसमें होंगे,
जब उनकी बज़्म है तो फिर शानदार होगी।
(सर्वाधिकार सुरक्षित)-ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल9897214710
हर हाल में ख़िज़ाँ पर ग़ालिब बहार होगी,
फिर से फ़ज़ा गुलिस्तां की ख़ुशगवार होगी।
केवल यहाँ बुराई ही लोग सब गिनेंगे,
अच्छाई मेरी कोई भी कब शुमार होगी।
इंसानियत-मुहब्बत-तहज़ीब की हिमायत,
शिद्दत से मेरी ग़ज़लों में बार बार होगी।
केवल ख़िज़ाँ मकीं है मुद्दत से इसमें यारो,
कब मेरे दिल के हिस्से में भी बहार होगी।
दिल को लुभाने वाले सब रंग उसमें होंगे,
जब उनकी बज़्म है तो फिर शानदार होगी।
(सर्वाधिकार सुरक्षित)-ओंकार सिंह विवेक
चित्र:गूगल से साभार
May 19, 2019
व्यक्तित्व विकास
मानव स्वास्थ्य
जब हम व्यक्ति के स्वास्थ्य की बात करते हैं तो मन में प्राय: शारीरिक स्वास्थ्य का भाव ही उत्पन्न होता है |स्वास्थ्य शब्द का प्रसंग आने या चर्चा होने पर हम किसी व्यक्ति के शरीर की संरचना या उसके मोटे अथवा पतले होने की दशा तक ही सीमित हो जाते हैं |वास्तव में जब हम किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य की बात करते हैं तो इसका अर्थ बहुत व्यापकता लिए हुए होता है |व्यक्ति के सम्पूर्ण स्वास्थ्य के दो पहलू होते हैं ,पहला शारीरिक स्वास्थ्य और दूसरा मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य| किसी व्यक्ति को स्वस्थ तभी कहा जा सकता है जब वह व्यक्ति भौतिक शरीर से स्वस्थ होने के साथ ही मानसिक और आत्मिक रूप से भी पूरी तरह स्वस्थ हो| यदि कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से बहुत बलिष्ठ है परन्तु मानसिक रूप से बीमार है तो हम उसे स्वस्थ व्यक्ति की श्रेणी में नहीं रख सकते |इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति अपनी मानसिक स्थिति का तो विकास कर चुका हो परन्तु शारीरिक द्रष्टि से कमज़ोर हो तो भी हम उसे पूरी तरह स्वस्थ नहीं कह सकते |
व्यक्ति को अपने स्थूल शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अच्छे खान-पान ,व्यायाम अथवा शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है |यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो उसका शरीर दुर्बल हो जायेगा और उसकी प्रतिरोधक क्षमता भी शिथिल पड़ जाएगी|परिणामस्वरूप व्यक्ति शारीरिक रूप से असक्त हो जायेगा |इस अवस्था से बचने के लिए उसे अपने शरीर को चलाने के लिए अपने शरीर की खुराक पर ध्यान देना होगा |शरीर को स्वस्थ रखने के लिए सभी मौसमी फल,सब्जियां, दूध,घी या जो भी प्रकृति ने हमें सुपाच्य खाद्य उपलब्ध कराया है उसका सेवन करना चाहिए एवं किसी भी रोग से ग्रस्त होने की दशा में चिकित्सीय परामर्श लेना चाहिए|
व्यक्ति को पूर्ण रूप से स्वस्थ होने के लिए स्थूल शरीर के साथ साथ अपने आत्मिक स्वास्थ्य की चिंता करना भी परम आवश्यक है |यदि व्यक्ति शारीरिक रूप से बलशाली है परन्तु उसकी आत्मा और मन बीमार और कमजोर हैं तो भी व्यक्ति का समग्र विकास संभव नहीं है | अत :व्यक्ति को अपने तन के स्वास्थ्य के साथ मन और आत्मा के स्वास्थ्य की चिंता करना भी उतना ही आवश्यक है| जिस प्रकार स्थूल शरीर के स्वास्थ्य के लिए अच्छा व्यायाम और भोजन आवश्यक है उसी प्रकार मन और आत्मा के अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्यक्ति का अच्छे लोगों की संगत में बैठना और अच्छा साहित्य पढ़ना भी अति आवश्यक है | जिस प्रकार अच्छा भोजन स्थूल शरीर की खुराक है उसी प्रकार अच्छे लोगों की संगत एवं अच्छे साहित्य का पठन-पाठन व्यक्ति के मन और आत्मा की खुराक है |
मन और आत्मा को स्वस्थ रखने के लिए सदैव सकारात्मक सोच ,सत्संग् और अच्छे साहित्य को पढ़ते रहना अति आवश्यक है |अत : यदि व्यक्ति शारीरिक और मानसिक दोनों ही रूप से स्वस्थ होगा तभी उसका चारित्रिक विकास संभव है :
तन तेरा मज़बूत हो मन भी हो बलवान,
अपने इस व्यक्तित्व को सफल तभी तू मान।
@सर्वाधिकार सुरक्षित------ओंकार सिंह विवेक
May 18, 2019
इज़हार-ए-ख़्याल
ग़ज़ल-ओंकार सिंह'विवेक'
मोबाइल9897214710
चाहे कैसी भी महफ़िल हो रास न हरगिज़ आती है,
इस दिल का क्या कीजे इसको तनहाई ही भाती है।
दिल से दिल के रिश्ते कितने पाकीज़ा हैं सच्चे हैं,
उनको मेरी हर मुश्किल की आप ख़बर हो जाती है।
मेल हुआ तो है उनमें कुछ लोगों के समझाने पर ,
देखें अब यह आपसदारी कितने दिन रह पाती है।
शौक उड़ानों का रखना कोई इतना आसान नहीं,
पंछी के घायल पंखों की पीड़ा यह बतलाती है।
पूछ रहे हो आप सियासत के बारे में,तो सुन लो,
यह वो शय है जो हर रोज़ मसाइल को उलझाती है।
---------------ओंकार सिंह'विवेक'
मोबाइल9897214710
चाहे कैसी भी महफ़िल हो रास न हरगिज़ आती है,
इस दिल का क्या कीजे इसको तनहाई ही भाती है।
दिल से दिल के रिश्ते कितने पाकीज़ा हैं सच्चे हैं,
उनको मेरी हर मुश्किल की आप ख़बर हो जाती है।
मेल हुआ तो है उनमें कुछ लोगों के समझाने पर ,
देखें अब यह आपसदारी कितने दिन रह पाती है।
शौक उड़ानों का रखना कोई इतना आसान नहीं,
पंछी के घायल पंखों की पीड़ा यह बतलाती है।
पूछ रहे हो आप सियासत के बारे में,तो सुन लो,
यह वो शय है जो हर रोज़ मसाइल को उलझाती है।
---------------ओंकार सिंह'विवेक'
May 17, 2019
फ़िक्र की परवाज़
ग़ज़ल-ओंकार सिंह'विवेक'
कभी तो चाहता है यह बुलंदी आसमानों की,
कभी दिल माँग करता है मुसलसल ही ढलानों की।
अभी भी सैकड़ों मज़दूर हैं फुटपाथ पर सोते,
अगरचे बात की थी आपने सबको मकानों की।
उसूलों की पज़ीरायी, वफ़ा-अख़लाक़ के जज़्बे,
इन्हें बतला रहें हैं लोग बातें दास्तानों की।
चला आयेगा कोई फिर नया इक ज़ख्म देने को,
कमी कब है ज़माने में हमारे मेहरबानों की।
नदी को क्या रवानी, सोचिये हासिल हुयी होती,
ग़ुलामी वो अगर तसलीम कर लेती चटानों की।
-------------ओंकार सिंह'विवेक'
@सर्वाधिकार सुरक्षित
कभी तो चाहता है यह बुलंदी आसमानों की,
कभी दिल माँग करता है मुसलसल ही ढलानों की।
अभी भी सैकड़ों मज़दूर हैं फुटपाथ पर सोते,
अगरचे बात की थी आपने सबको मकानों की।
उसूलों की पज़ीरायी, वफ़ा-अख़लाक़ के जज़्बे,
इन्हें बतला रहें हैं लोग बातें दास्तानों की।
चला आयेगा कोई फिर नया इक ज़ख्म देने को,
कमी कब है ज़माने में हमारे मेहरबानों की।
नदी को क्या रवानी, सोचिये हासिल हुयी होती,
ग़ुलामी वो अगर तसलीम कर लेती चटानों की।
-------------ओंकार सिंह'विवेक'
@सर्वाधिकार सुरक्षित
चित्र गूगल से साभार
May 15, 2019
May 14, 2019
April 29, 2019
सियासत
ग़ज़ल
उसूलों की तिजारत हो रही है,
मुसलसल यह हिमाकत हो रही है।
इधर हैं झुग्गियों में लोग भूखे,
उधर महलों में दावत हो रही है।
जवानों की शहादत पर भी देखो,
यहाँ हर पल सियासत हो रही है।
धरम, ईमान, तहज़ीब-ओ-तमद्दुन,
कहाँ इनकी हिफ़ाज़त हो रही है।
न बन पाया मैं इस दुनिया के जैसा,
तभी तो मुझ को दिक़्क़त हो रही है।
----------ओंकार सिंह 'विवेक'
उसूलों की तिजारत हो रही है,
मुसलसल यह हिमाकत हो रही है।
इधर हैं झुग्गियों में लोग भूखे,
उधर महलों में दावत हो रही है।
जवानों की शहादत पर भी देखो,
यहाँ हर पल सियासत हो रही है।
धरम, ईमान, तहज़ीब-ओ-तमद्दुन,
कहाँ इनकी हिफ़ाज़त हो रही है।
न बन पाया मैं इस दुनिया के जैसा,
तभी तो मुझ को दिक़्क़त हो रही है।
----------ओंकार सिंह 'विवेक'
April 27, 2019
बच्चों का कोना
ग़ज़ल
मन से करिए रोज़ पढ़ाई,
पापा ने यह बात बताई।
पढ़ कर बेटा नाम करेगा,
माँ बापू ने आस लगाई।
टीचर जी ने ख़ूब सराहा,
जब भी देखी साफ़ लिखाई।
अव्वल दर्ज़ा पास हुये तो,
देंगे सारे लोग बधाई।
पढ़-लिखकर औरों को पढ़ायें,
होगी जग में ख़ूब बढ़ाई।
फिर अच्छा है सैर सपाटा,
पहले कर लें आप पढ़ाई।
हमारा बेटा
सबसे न्यारा सबसे प्यारा,
हम दोनों का राजदुलारा।
हम को इससे हैं आशायें,
कर देगा यह नाम हमारा।
दोहे
बच्चों हमको है सदा , ये आशा विश्वास,
बदलोगे तुम लोग ही ,दुनिया का इतिहास।
रखते हो बच्चों अगर ,तुम मंज़िल की चाह,
चुन लो अपने वासते, सच्चाई की राह।
--------------ओंकार सिंह'विवेक'
April 26, 2019
नरेंद्र भाई मोदी : जन्म तिथि विशेष
मित्रो नमस्कार 🙏🙏🌹🌹
अगर मैं कहूं कि वर्षों या दशकों बाद देश को एक ऐसा प्रधानमंत्री मिला है जो व्यक्तिगत स्वार्थ और वोटों की राजनीति न करके सिर्फ़ राष्ट्रहित की बात को आगे रखकर देश की बागडौर संभाले हुए है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
यदि वोटों और सत्ता का लालच होता तो मोदी जी द्वारा नोटबंदी या जी एस टी जैसे कठोर निर्णय न लिए गए होते।
धारा-३७० को ख़त्म करने की बात हो या फिर एन आर सी अथवा नए कृषि क़ानून सभी निर्णय देश के हित और विकास को ध्यान में रखकर लिए गए।
आईए देश की एकता और अखंडता को अक्षुण्य रखने के लिए निरंतर प्रयासरत देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के जन्म दिवस के अवसर पर उनके दीर्घायु होने की कामना करें।
देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी
के जन्म दिवस पर विशेष
*********************************
©️
जग में धाक जमाने वाले मोदी भाई हैं,
देश का मान बढ़ाने वाले मोदी भाई हैं।
भारत माँ की और जो कोई आँख उठाएगा,
उसकी नींद उड़ाने वाले मोदी भाई हैं।
बनती है पहचान अलग, कुछ हट कर करने से,
सब को यह बतलाने वाले मोदी भाई हैं।
©️
दुनिया में चर्चित-ताक़तवर सब नेताओं को,
अपना यार बनाने वाले मोदी भाई हैं।
सारी दुनिया में भारत की अपने कौशल से,
जय जयकार कराने वाले मोदी भाई हैं।
कहते हैं सब भारत वासी आज ये बात 'विवेक',
हर उलझन सुलझाने वाले, मोदी भाई हैं।
--- ©️ओंकार सिंह'विवेक'
सर्वाधिकार सुरक्षित
April 24, 2019
माँ
ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
दूर रंज-ओ-अलम और सदमात हैं,
माँ है तो खुशनुमां घर के हालात हैं।
सब मुसलसल उसी को सताते रहे,
यह न सोचा कि माँ के भी जज़्बात हैं।
दुख ही दुख वो उठाती है सब के लिये,
माँ के हिस्से में कब सुख के लम्हात हैं।
लौट भी आ मेरे लाल परदेस से,
मुंतज़िर माँ की आँखें ये दिन रात हैं।
चूमती है जो मंज़िल ये मेरे क़दम,
यह तो माँ की दुआओं के असरात हैं।
बाल बाँका मेरा कौन कर पायेगा,
माँ के जब तक दुआ में उठे हाथ हैं।
---------ओंकार सिंह'विवेक'
दूर रंज-ओ-अलम और सदमात हैं,
माँ है तो खुशनुमां घर के हालात हैं।
सब मुसलसल उसी को सताते रहे,
यह न सोचा कि माँ के भी जज़्बात हैं।
दुख ही दुख वो उठाती है सब के लिये,
माँ के हिस्से में कब सुख के लम्हात हैं।
लौट भी आ मेरे लाल परदेस से,
मुंतज़िर माँ की आँखें ये दिन रात हैं।
चूमती है जो मंज़िल ये मेरे क़दम,
यह तो माँ की दुआओं के असरात हैं।
बाल बाँका मेरा कौन कर पायेगा,
माँ के जब तक दुआ में उठे हाथ हैं।
---------ओंकार सिंह'विवेक'
April 23, 2019
हमने भी मतदान किया
जिस तरह हर देश में शासन को चलाने की एक निर्धारित व्यवस्था होती है उसी प्रकार शासकों के चुनाव की भी विश्व के अलग-अलग देशों में अलग-अलग प्रणालियाँ होती हैं |अधिकांश प्रजातांत्रिक देशों में जनता द्वारा सीधे वोटिंग के द्वारा शासकों और जन प्रतिनिधियों का चुनाव किया जाता है|
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और यहाँ जनता द्वारा सीधे वोटिंग के माध्यम से जन प्रतिनिधियों और शासकों का चुनाव किया जाता है।यह एक पारदर्शी चुनाव पद्धति है तथा इस प्रणाली से सांसदों/विधायकों के चुनाव में एक-एक वोट अथवा मत का बहुत महत्त्व होता है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अच्छी तरह सोच समझकर अपने वोट के संवैधानिक अधिकार का आवश्यक रूप से इस्तेमाल करना चाहिए।इस दौर में नैतिक मूल्यों में निरंतर गिरावट देखने को मिल रही है। लोग मूल्यों और सिद्धांतों को ताक पर रखकर छल,कपट और अवसरवादी राजनीति करने में लगे हुए हैं।राजनीति की यह दशा देखकर इस बार मन में यह विचार आया कि ऐसे स्वार्थी और अवसरवादी लोगों को वोट देने से तो अच्छा है कि वोट दिया ही न जाये।परन्तु अगले ही पल एक जागरूक नागरिक होने के नाते अपने दायित्व का एहसास भी हुआ और मन ने यह कहा कि ऐसा करके भी तू किसका भला करेगा। देश और समाज की चिंता करने वाले अन्य लोग भी यदि तेरी तरह ही सोचकर वोट करने नहीं निकलेंगे तो इससे कोई अच्छा सन्देश नहीं जायेगा और एक बड़ा वर्ग जो देश और समाज की बेहतरी चाहता है अच्छे लोगों को अपने वोट से चुनकर संसद में भेजने से स्वयं को वंचित कर लेगा जो किसी भी दशा में अच्छा नहीं है।जब हमारे देश में जन प्रतिनिधियों को चुनने की एक मात्र यही प्रक्रिया है तो फिर और कोई विकल्प भी नहीं रह जाता है।अत: अपने मत/वोट का उपयोग न करना कोई बुद्धिमत्ता पूर्ण कार्य नहीं होगा।
आम तौर पर लोगों का यह मानना है कि अब ऐसे अच्छे लोग हैं ही नहीं जिन्हें चुनकर संसद में भेजा जाये।अगर इस बात को मान भी लिया जाये तो भी हमारा यह दायित्व बनता है कि हम बुरे या ख़राब लोगों में से ही कुछ ऐसे लोगों को चुनना तय करें जो उन बुरे लोगों में से कुछ कम बुरे हैं क्योंकि इसके अलावा कोई और चारा भी तो नहीं है।इन्हीं सब तथ्यों को सोचकर अनेक अंतर्द्वंदों से दो-चार होता हुआ मन इस नतीजे पर पहुँचा कि मतदान करना चाहिए और यदि सभी उम्मीदवार बुरे हैं तो उनमे से सबसे कम बुरे लोगों को चुनने के लिए हर आदमी को वोट करना चाहिए।यही सोचकर मैंने अपनी धर्म पत्नी के साथ प्रात: 7.30 बजे ही पोलिंग बूथ पर पहुँच कर अपने मत/वोट का प्रयोग करके लोकतंत्र के इस महापर्व में अपनी हिस्सेदारी और ज़िम्मेदारी पूरी की।धर्म पत्नी भी वोट देकर बहुत ख़ुश नज़र आयीं | शायद उन्हें भी संविधान द्वारा दिए गए अपने वोट देने के अधिकार का प्रयोग करके गर्व महसूस हो रहा था।होता भी क्यों नहीं , आख़िर हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के एक ज़िम्मेदार नागरिक के तौर पर अपने मताधिकार का प्रयोग करके जो आ रहे थे।
पोलिंग बूथ से बाहर निकलकर घर आते हुए रास्ते में कवि मन में कुछ दोहों का सृजन हुआ --
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और यहाँ जनता द्वारा सीधे वोटिंग के माध्यम से जन प्रतिनिधियों और शासकों का चुनाव किया जाता है।यह एक पारदर्शी चुनाव पद्धति है तथा इस प्रणाली से सांसदों/विधायकों के चुनाव में एक-एक वोट अथवा मत का बहुत महत्त्व होता है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अच्छी तरह सोच समझकर अपने वोट के संवैधानिक अधिकार का आवश्यक रूप से इस्तेमाल करना चाहिए।इस दौर में नैतिक मूल्यों में निरंतर गिरावट देखने को मिल रही है। लोग मूल्यों और सिद्धांतों को ताक पर रखकर छल,कपट और अवसरवादी राजनीति करने में लगे हुए हैं।राजनीति की यह दशा देखकर इस बार मन में यह विचार आया कि ऐसे स्वार्थी और अवसरवादी लोगों को वोट देने से तो अच्छा है कि वोट दिया ही न जाये।परन्तु अगले ही पल एक जागरूक नागरिक होने के नाते अपने दायित्व का एहसास भी हुआ और मन ने यह कहा कि ऐसा करके भी तू किसका भला करेगा। देश और समाज की चिंता करने वाले अन्य लोग भी यदि तेरी तरह ही सोचकर वोट करने नहीं निकलेंगे तो इससे कोई अच्छा सन्देश नहीं जायेगा और एक बड़ा वर्ग जो देश और समाज की बेहतरी चाहता है अच्छे लोगों को अपने वोट से चुनकर संसद में भेजने से स्वयं को वंचित कर लेगा जो किसी भी दशा में अच्छा नहीं है।जब हमारे देश में जन प्रतिनिधियों को चुनने की एक मात्र यही प्रक्रिया है तो फिर और कोई विकल्प भी नहीं रह जाता है।अत: अपने मत/वोट का उपयोग न करना कोई बुद्धिमत्ता पूर्ण कार्य नहीं होगा।
आम तौर पर लोगों का यह मानना है कि अब ऐसे अच्छे लोग हैं ही नहीं जिन्हें चुनकर संसद में भेजा जाये।अगर इस बात को मान भी लिया जाये तो भी हमारा यह दायित्व बनता है कि हम बुरे या ख़राब लोगों में से ही कुछ ऐसे लोगों को चुनना तय करें जो उन बुरे लोगों में से कुछ कम बुरे हैं क्योंकि इसके अलावा कोई और चारा भी तो नहीं है।इन्हीं सब तथ्यों को सोचकर अनेक अंतर्द्वंदों से दो-चार होता हुआ मन इस नतीजे पर पहुँचा कि मतदान करना चाहिए और यदि सभी उम्मीदवार बुरे हैं तो उनमे से सबसे कम बुरे लोगों को चुनने के लिए हर आदमी को वोट करना चाहिए।यही सोचकर मैंने अपनी धर्म पत्नी के साथ प्रात: 7.30 बजे ही पोलिंग बूथ पर पहुँच कर अपने मत/वोट का प्रयोग करके लोकतंत्र के इस महापर्व में अपनी हिस्सेदारी और ज़िम्मेदारी पूरी की।धर्म पत्नी भी वोट देकर बहुत ख़ुश नज़र आयीं | शायद उन्हें भी संविधान द्वारा दिए गए अपने वोट देने के अधिकार का प्रयोग करके गर्व महसूस हो रहा था।होता भी क्यों नहीं , आख़िर हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के एक ज़िम्मेदार नागरिक के तौर पर अपने मताधिकार का प्रयोग करके जो आ रहे थे।
पोलिंग बूथ से बाहर निकलकर घर आते हुए रास्ते में कवि मन में कुछ दोहों का सृजन हुआ --
रखने को निज देश के,लोकतंत्र का मान।
जाकर पहले बूथ पर, करना है मतदान।।
जाकर पहले बूथ पर, करना है मतदान।।
रखने को निज देश के, लोकतंत्र का मान।
छोड़-छाड़कर काम सब,करना है मतदान।।
रखने को निज देश के,लोकतंत्र का मान।
आओ प्यारे साथियो,कर आएँ मतदान।।
रखने को निज देश के, लोकतंत्र का मान।
घर-घर जाकर बोल दें,करना है मतदान।।
रखने को निज देश के, लोकतंत्र का मान।
हर वोटर का लक्ष्य हो,करना है मतदान।।
---- ©️ ओंकार सिंह विवेक
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शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏 संगठन में ही शक्ति निहित होती है यह बात हम बाल्यकाल से ही एक नीति कथा के माध्यम से जानते-पढ़ते और सीखते आ रहे हैं...