February 28, 2024

रौशनी 'इल्म की

नमस्कार दोस्तो 🌹🌹🙏🙏

आजकल एक तरही मिसरे पर ग़ज़ल कहने की काविशें चल रही हैं।संयोग से अभी मतला' तो नहीं हो पाया है ग़ज़ल का। हाँ,दो शेर(अशआर) हो गए हैं जो आपकी प्रतिक्रिया हेतु प्रस्तुत कर रहा हूं।ग़ज़ल कहते वक्त अक्सर ऐसा होता है कि कभी मतला' पहले हो जाता है और फिर कई-कई दिन तक कोई शेर नहीं होता। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि अचानक कई अच्छे शेर हो जाते हैं ग़ज़ल के परंतु मतला' नहीं सूझता। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मां शारदे की कृपा से चिन्तन की उड़ान अपने चरम पर होती है और एक सिटिंग में ही ग़ज़ल मुकम्मल हो जाती है। आप सम्मानित साहित्यकारों के साथ भी कभी न कभी ऐसा ज़रूर हुआ होगा।काव्य सृजन के दौरान हुए अपने अनुभवों को यदि आप भी साझा करेंगे तो मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी।
फ़िलहाल आप नई ग़ज़ल के दो शेर मुलाहिज़ा करें,जल्द ही पूरी ग़ज़ल आपकी ख़िदमत में हाज़िर करूंगा :

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आदमी   को   क़रीने   जीने   के,
'इल्म की  रौशनी  से  मिलते  हैं।

ख़ैरियत लेने  की  ग़रज़ से  नहीं,  
दोस्त अब काम ही से मिलते हैं।
       @ओंकार सिंह विवेक






February 23, 2024

शुचिता

शुचिता
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शुचिता एक भाव हैं जिसका शाब्दिक अर्थ है पवित्रता,शुद्धता, निष्कपटता या स्वच्छता। जीवन के हर क्षेत्र में शुचिता पूर्ण आचरण अपरिहार्य है।घर,परिवार,समाज या अन्य कहीं हमारा कार्य ,व्यवहार और आचरण शुचिता पूर्ण होना चाहिए।इसी में जीवन की सार्थकता है।
आज सबसे अधिक कमी शुचिता की यदि कहीं दिखाई देती है तो वह है राजनीति का क्षेत्र।बात चाहे राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति की हो या फिर अंतरराष्ट्रीय धरातल पर हो रही राजनैतिक गतिविधियों की।हर जगह राजनीति से  सिद्धांत और नीतियां तो ऐसे  ग़ायब हो गए हैं जैसे गधे के सिर से सींग।झूठ,भ्रष्टाचार या कदाचार चाहे जिस का भी सहारा लेना पड़े राजनैतिक पार्टियों /नेताओं का एक मात्र लक्ष्य कुर्सी --- कुर्सी और बस कुर्सी ही रह गया है। आज सियासत में नीतियों,सिद्धांतों के लिए स्थान या समाज सेवा का भाव तो रह ही नहीं गया है। जो भी राजनीति की राह पकड़ता है उसका लक्ष्य होता है
 छल,फरेब, दल-बदल से अतिशीघ्र सत्ता पर पकड़ बनाकर अपना हित साधन करना।
कोई ज़माना था जब लोग विशुद्ध समाज और देश सेवा के उद्देश्य से राजनीति में प्रवेश करते थे।सियासत को कभी व्यापार की दृष्टि से नहीं देखा जाता था।
यदि हम भारतीय राजनीति में शुचिता की बात करें तो बरबस हमें स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी और अटल बिहारी वाजपेई जी की याद आ जाती है। शास्त्री जी की सादगी को कौन नहीं जानता।उन्होंने सादा जीवन उच्च विचार का पालन करते हुए प्रधानमंत्री के पद को बड़ी गरिमा प्रदान की थी। इसी प्रकार‘भारत रत्न’ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति में शुचिता के जो मानदंड स्थापित किए उन्हें कौन भूल सकता है।सरकार में सुशासन और संसद में सर्वमान्य सांसद के साथ ही संवेदनशील साहित्यकार, महान राष्ट्रभक्त और अजातशत्रु पूर्व प्रधानमन्त्री ‘भारत रत्न’ अटल बिहारी वाजपेयी जी का राजनीति में उनके विरोधी भी लोहा मानते थे। काश ! आज के नेता शुचिता और सिद्धांतों के मामले में ऐसे विराट व्यक्तियों के व्यक्तित्व से कुछ प्रेरणा ले पाएं।

आज स्थिति बिल्कुल उलट हो गई है।यह अवसरवादिता और धूर्तता की हद ही तो है कि लोग कपड़ों से भी अधिक तेज़ी से दल और पार्टियां बदलते हैं। घड़ी-घड़ी अपने बयान बदलते हैं और वोटों के लालच में सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने वाले बयान देते हैं।
हाल ही में हमारे एक पड़ोसी देश में हुए चुनाव में शुचिता की जो धज्जियाँ उड़ीं वे दुनिया ने देखीं।
काश ! ये स्थितियां बदलें और राजनीति में शुचिता और सिद्धांतों का महत्व बढ़े।अच्छी विचारधारा और सच्चे अर्थों में समाज सेवा का भाव रखने वाले लोग इस क्षेत्र में आएं। समाज ,देश और दुनिया में खुशहाली लाने का यही एक रास्ता है।
वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य पर मेरे दो कुंडलिया छंद का आनंद लीजिए :
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कुंडलिया-1

खाया  जिस  घर  रात-दिन,नेता जी ने  माल,

नहीं  भा  रही  अब  वहाँ, उनको  रोटी-दाल।

उनको  रोटी-दाल , बही   नव   चिंतन  धारा,

छोड़   पुराने   मित्र , तलाशा   और   सहारा।

कहते  सत्य  विवेक,नया  फिर  ठौर  बनाया,

भूले  उसको  आज ,जहाँ  वर्षों  तक खाया।        

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कुंडलिया-2

जिसकी  बनती  हो  बने, सूबे  में  सरकार,

हर  दल   में  हैं  एक-दो, उनके  रिश्तेदार।

उनके   रिश्तेदार, रोब   है   सचमुच  भारी,

सब   साधन  हैं  पास,नहीं  कोई  लाचारी।

अब उनकी दिन-रात,सभी से गाढ़ी छनती,

बन जाए सरकार,यहाँ हो  जिसकी बनती।

      @ओंकार सिंह विवेक 


सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ 👈👈


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