June 20, 2023

नारियल पानी

शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏

पिछले दिनों कर्नाटक राज्य की राजधानी बैंगलुरू जाना हुआ।उस यात्रा के रोमांचक अनुभव मैंने अपनी पिछली पोस्ट में आपके साथ साझा भी किए थे।यात्रा के कई वीडियोज मैंने अपने यूट्यूब चैनल पर भी अपलोड किए हैं जिनका लिंक इस पोस्ट के अंत में दिया गया है।आप उन्हें भी देख सकते हैं। उस यात्रा के दौरान हुआ एक और अनुभव आपके साथ साझा कर रहा हूं।

आजकल उत्तर भारत में गर्मी अपने चरम पर है।इस गर्मी में नारियल पानी का सेवन जो ठंडक और तरावट देता है उसे कौन नहीं महसूस करता होगा।आप भी आजकल अपने नगर में सड़कों के किनारे हरे नारियल बेचने वालों को ज़रूर देखते होंगे।पसीना पोंछते हुए रुककर नारियल पानी पीते भी होंगे।
हम बैंगलुरु में लालबाग बोटेनिकल गार्डन देखने गए तो  दोपहर का समय होने के कारण काफ़ी गर्मी थी।गार्डन में घूमते हुए जब हम थक गए तो  विशाल गार्डन के गेट पर आकर  नारियल  पानी पीकर अपनी प्यास बुझाने लगे।
बैंगलुरु में आप कहीं भी ये हरे नारियल ले लीजिए आपको चालीस रुपए के फिक्स रेट पर ही मिलेगा जो अच्छी बात है वरना हमारे यहां तो अलग-अलग जगहों पर खड़े नारियल वाले अलग-अलग रेट बताते हैं। नारियल खरीदते समय बहुत मोल-भाव करना पड़ता है।वहां चालीस रुपए में वे लोग बिलकुल ताज़ा/हरा और बड़ा नारियल आपको देते हैं जिसमें भरपूर पानी होता है।हमें नारियल पानी पीकर बहुत तरावट का अनुभव हुआ।
मैंने अपने यहां रामपुर-उत्तर प्रदेश में ऐसे नारियल बेचने वालों से पूछा तो उन्होंने यही बताया कि वे लोग भी बैंगलुरू से ही नारियल मंगवाते हैं।आने में तीन से चार दिन का समय लगता है।वे लोग यहां आजकल गर्मी का सीजन पीक पर होने के कारण मांग बढ़ने पर नारियल साठ रुपए का बेच रहे हैं बाकी दिनों में पचास रुपए का बेचते हैं।चूंकि यहां तक गाड़ी में नारियल आने में कई दिन लगते हैं इसलिए उनकी ताज़गी और क्वालिटी तो थोड़ी-बहुत प्रभावित हो ही जाती है परंतु फिर भी नारियल पानी का स्वाद अच्छा बना रहता है।
हमें नारियल पानी का सेवन अवश्य करना चाहिए।
रोज़ाना नारियल पानी का सेवन करने से शरीर में रक्त संचार बढ़ता है। इसे पीने से UTI और प्रोस्टेट की समस्याओं का खतरा भी कम होता है।नारियल पानी में पोटेशियम और मैग्नीशियम सहित कई पोषक तत्व होते है जो मसल्स क्षय को रोकने में मदद करते हैं।
          ---- ओंकार सिंह विवेक 


June 16, 2023

ज़रूरत सब कुछ करा लेती है

नमस्कार मित्रो 🙏🙏🌹🌹

     (बोटेनिकल गार्डन के द्वार पर मूंगफली बेचती हुई वृद्धा)

पिछले दिनों व्यक्तिगत कारणों से सपत्नीक बैंगलुरू जाना हुआ।व्यस्तता के कारण बहुत अधिक तो रुकना नहीं हुआ वहां पर वर्ना मैसूर और आस- पास के अन्य दर्शनीय स्थलों का भ्रमण अवश्य करते।पारिवारिक कामों को पूरा करने के बाद हमारे पास सिर्फ़ एक दिन बैंगलुरू में घूमने के लिए बचा था तो लोकल मार्केट आदि में घूम लिए और वहां के विश्व प्रसिद्ध बोटेनिकल गार्डन को देखने गए।
                      (बोटेनिकल गार्डन का प्रवेश द्वार)
बोटेनिकल गार्डन की ख़ूबसूरती तो मैं अपनी अगली पोस्ट में बयान करूंगा।आज जिस वजह से यह पोस्ट लिख रहा हूं वह इस पोस्ट में सबसे ऊपर दिखाया गया चित्र है जिसमें एक अत्यधिक वृद्ध अम्मां जी मूंगफली बेचती हुई नज़र आ रही हैं। 
जब हम गार्डन में घूमते- घूमते थक गए तो कुछ सुस्ताने और कोल्डड्रिंक,स्नैक्स आदि की तलाश में इधर- उधर देखने लगे।हमें कोल्डड्रिंक्स और चिप्स आदि बेचने वालों की लंबी पंक्ति दिखाई दी तो हम लोग उधर जाने लगे।वहीं एक अत्यधिक वृद्ध माता जी को फुटपाथ पर मूंगफली बेचते हुए देखा। माता जी ने मूंगफली के छोटे- छोटे पैकेट बनाकर अपनी टोकरी में रखे हुए थे। वृद्धा की उम्र ऐसी नहीं थी कि वह यह सब काम करें यह देखकर उनके प्रति हमारा दिल करुणा से भर गया।हमने उनकी इस विवशता के बारे में जानने के लिए कुछ पूछना चाहा परंतु भाषा की समस्या उत्पन्न हुई।वो स्थानीय वृद्धा कन्नड़ ही जानती थीं और हम हिंदी या फिर अंग्रेजी समझते थे लेकिन फिर भी उनकी सांकेतिक भाषा और
 भाव- भंगिमाओं से हम उनकी मजबूरी का बहुत कुछ अनुमान लगा पाए।
           (बोटेनिकल गार्डन में फुर्सत और सुकून के पल)      
जिस उम्र में वृद्धा को अपने घर -परिवार, बहू - बेटों के मध्य रहकर आराम करना था और उनसे सेवा पानी थी उस उम्र में वह चिलचिलाती धूप में पेट की ख़ातिर मूंगफली बेचने को मजबूर थीं इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी।
हमारी मूंगफली खाने या खरीदने की कोई इच्छा नहीं थी परंतु फिर भी हमने उनसे दो पैकिट मूंगफली खरीदी तो माता जी हाथ जोड़कर हमें ढेरों दुआएं देने लगीं। रेहड़ी,फुटपाथ आदि पर  मजबूरी में यदि छोटे बच्चे और वृद्ध कुछ बेचते दिखाई देते हैं तो मैं उनसे अक्सर बिना ज़रूरत के भी कोई सामान ख़रीद लेता हूं। बस यही सोचकर कि पता नहीं किसकी क्या मजबूरी है जो उसे असहाय अवस्था में यह सब करना पड़ रहा है। दोपहर का समय था धूप बहुत अधिक थी।लोग सामने खड़े ठेलों और स्टॉल्स आदि से आइस्क्रीम और कोल्डड्रिंक्स आदि ख़रीद रहे थे। मूंगफली बेचने वाली माता जी उस तरफ़ ललचाई दृष्टि से देख रही थीं।हमारी बेटी ने उनसे इशारों में पूछा कि अम्मां आइस्क्रीम खाओगी।उन्होंने सहमति में सिर हिलाया तो बेटी ने पास के ठेले से ख़रीदकर आइस्क्रीम लाकर दी। आइस्क्रीम पाकर वृद्धा मां का चेहरा खिल उठा। उन्होंने बेटी के हाथ चूमे और  अपनी भाषा में ढेरों आशीष और दुआएं दीं।उस समय मुझे अपनी एक पुरानी ग़ज़ल का एक शेर याद आ गया :
         
         ज़रूरत और मजबूरी जहां में,
          करा लेती है सब कुछ आदमी से।
                   @--- ओंकार सिंह विवेक 



June 12, 2023

कैसी -कैसी नेमत हमको जंगल देते हैं

दोस्तो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏


हाज़िर है मेरी एक और ग़ज़ल जिसमें कुछ शेर पर्यावरण को लेकर भी हो गए हैं:

नई ग़ज़ल -- --  ©️ ओंकार सिंह विवेक 
©️ 
शीशम  साखू   महुआ   चंदन  पीपल   देते हैं,
कैसी-कैसी  ने'मत   हमको   जंगल   देते   हैं।

वर्ना सब  होते  हैं  सुख  के   ही  संगी -साथी,
दुनिया में  बस  कुछ  विपदा  में संबल देते हैं।

रस्ता  ही भटकाते  आए  हैं  वो  तो अब तक,
लोग  न  जाने  क्यों  उनके  पीछे  चल देते हैं।
©️ 
आज बना  है मानव  उनकी ही जाँ का दुश्मन,
जीवन  भर  जो  पेड़  उसे  मीठे  फल  देते हैं।

मिलती है  कितनी  तस्कीन तुम्हें क्या बतलाएँ,
आँगन  के  प्यासे पौधों  को  जब  जल देते हैं।

कब तक सब्र का बाँध न टूटे प्यासी फसलों के,
धोखा   रह-रहकर   ये   निष्ठुर  बादल  देते  हैं।

किस  दर्जा  मे'यार  गिरा  बैठे  कुछ  व्यापारी,
ब्रांड  बड़ा  बतलाकर  चीज़ें   लोकल  देते  हैं।
                       ---©️ ओंकार सिंह विवेक

    यह बोटनिकल गार्डन बैंगलुरू का दृश्य है जहां पिछले दिनों हमारा जाना हुआ था।


June 5, 2023

विश्व पर्यावरण दिवस विशेष



आज विश्व पर्यावरण दिवस है।जब हम पर्यावरण की बात करते हैं तो प्रथ्वी,जल,अग्नि,वायु तथा आकाश सभी का विचार मस्तिष्क में कौंध जाता है।पर्यावरण इन्हीं पाँच तत्वों से मिलकर बना है।इससे सहज ही अनुमान हो जाता है कि पर्यावरण का क्षेत्र कितना विस्तृत है और इसकी कितनी महत्ता है। आइए विश्व पर्यावरण दिवस पर पर्यावरण यानी अपने जीवन को बचाने का संकल्प लें।

         चित्र : गूगल से साभार 
इस अवसर पर पर्यावरण को समर्पित मेरी कुछ काव्य रचनाओं का आनंद लीजिए 👎👎
विश्व पर्यावरण दिवस विशेष
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                -- ओंकार सिंह विवेक

पर्यावरण :पाँच दोहे
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    ओंकार सिंह विवेक      
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करता  है दोहन  मनुज,ले  विकास  की आड़,
कैसे  चिंतित   हों   नहीं , जंगल नदी  पहाड़।
🌷
भू का  बढ़ता ताप  यह ,ये  पिघले  हिमखंड, 
मनुज प्रकृति  से  छेड़ का,मान इन्हें  तू  दंड।
 🌷
करते  हैं  मैला  सभी,निशिदिन  इसका  नीर,
गंगा माँ   किससे  कहे,जाकर  अपनी   पीर।
🌷
देते   हैं   हम  पेड़  तो,प्राण  वायु   का   दान,
फिर  क्यों लेता  है मनुज, बता  हमारी जान।
🌷
सबसे    है    मेरी    यही,  विनती    बारंबार,
वृक्ष   लगाकर   कीजिए, धरती  का  शृंगार।
🌷
  --ओंकार सिंह विवेक
पर्यावरण विषयक कुछ कुंडलिया छंद
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देते   हैं   सबको  यहाँ,प्राणवायु   का    दान,
फिर भी वृक्षों  की मनुज,लेता है नित  जान।
लेता  है नित जान, गई  मति  उसकी   मारी,
जो वृक्षों  पर  आज,चलाता पल-पल आरी।
कहते  सत्य 'विवेक', वृक्ष हैं  कब कुछ  लेते,
वे  तो  छाया-वायु,,फूल-फल  सबको   देते।    
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  पानी   जीवन   के   लिए, है  अनुपम  वरदान,
  व्यर्थ न  इसकी बूँद  हो, रखना  है  यह ध्यान।
  रखना  है  यह ध्यान,करें  सब संचय  जल का,
  संकट हो विकराल,पता क्या है कुछ कल का।
  करता  विनय  'विवेक',छोड़ दें अब  मनमानी,
  मिलकर करें  उपाय , बचा  लें   घटता  पानी।  
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करता  है  यह  प्रार्थना,मिलकर  सारा  गाँव,    
बनी   रहे  यों   ही   सदा,बरगद  तेरी  छाँव।
बरगद   तेरी   छाँव,न   कोई    तुझे  सताए,
छाया    तेरी     ख़ूब,घनेरी    होती     जाए।
ग्रीष्म काल  में नित्य,ज़ोर जब  सूरज भरता,
सबके सिर  पर छाँव,मित्र तू  ही  तो करता।
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©️ ओंकार सिंह विवेक 


          

June 2, 2023

सदीनामा अख़बार में फिर छपी एक ग़ज़ल

शुभ संध्या मित्रो 🌹🌹🙏🙏

कोलकता से निकलने वाले प्रतिष्ठित अख़बार/पत्रिका सदीनामा के बारे में पहले भी मैं कई बार अपने ब्लॉग पर लिख चुका हूं।यह बहुत ही प्रतिष्ठित पत्र है जिसमें राजनैतिक,सामाजिक ख़बरों के साथ-साथ उच्च स्तर की साहित्यिक सामग्री भी प्रकाशित की जाती है। मशहूर शायर मुहतरम ओमप्रकाश नूर साहब की मुहब्बतों के चलते पहले भी इस पत्र में मेरी कई ग़ज़लें छप चुकी हैं।इस अख़बार की प्रतिनिधि मीनाक्षी जी और आदरणीय नूर साहब के सहयोग से इस इदारे के अदबी पटल पर ऑनलाइन काव्य पाठ का भी अवसर प्राप्त हो चुका है।इसके लिए मैं इदारे का शुक्रिया अदा करता हूं।आज फिर मुझे अपनी एक नई ग़ज़ल सदीनामा में पढ़ने को मिली। इसके लिए मैं अख़बार के संपादक मंडल का पुन: आभार व्यक्त करता हूं।
मेरा सभी से अनुरोध है कि अधिक से अधिक संख्या में इस अख़बार से जुड़कर लाभ उठाएँ।

June 1, 2023

दास्तान कुछ सुखद क्षणों की


मित्रों के साथ सुखद क्षणों की स्मृतियां साझा करना अच्छा लगता है।कई बार इनसे दूसरे लोग भी प्रेरणा ले लेते हैं। ऐसी स्मृतियों को सहेजने से जीवन को हंसी खुशी से जीने की उमंग सी बनी रहती है।आज ऐसे ही खुशी के कुछ लम्हे आपके साथ साझा कर रहा हूं।
कल दिनाँक ३१ मई,२०२३ को प्रसार भारती रामपुर-उoप्रo में पर्यावरण  विषय को लेकर एक काव्य गोष्ठी की रिकॉर्डिंग के लिए जाना हुआ।मेरे साथ गोष्ठी में मुरादाबाद की अनुभवी होम्योपैथिक चिकित्सक और वरिष्ठ गीतकार डॉक्टर प्रेमवती उपाध्याय , बदायूँ के युवा कवि अभिषेक अनंत तथा विवेक हरि मिश्र जी ने सहभागिता की।सभी कवि मित्रों से बहुत आत्मीयतापूर्ण भेंट रही।डाक्टर प्रेमवती उपाध्याय जी से पहले भी बहुत साहित्यिक कार्यक्रमों में मिलना होता रहा है।आप उच्चकोटि की साहित्यकार हैं।जब आप अपने सुमधुर स्वर में रचना पाठ करती हैं तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। बदायूं से पधारें दोनों युवा साहित्यकारों में भी मुझे असीम संभावनाएं नज़र आईं। समसामयिक विषयों को लेकर उन्होंने जितनी सुंदर प्रस्तुतियां दीं उससे उनकी काव्य प्रतिभा का पता चलता है। गोष्ठी के बाद हम लोगों ने कुछ साहित्यिक विमर्श भी किया।आमंत्रित साहित्यकारों को मैंने अपने प्रथम ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" की प्रतियाँ भी भेंट कीं।
गोष्ठी के उपरांत मेरे आग्रह पर डॉक्टर प्रेमवती उपाध्याय मेरे निवास पर आकर परिजनों से भी मिलीं।बच्चे उनके स्नेहपूर्ण व्यवहार से बहुत प्रभावित हुए।उन्होंने परिजनों को स्वास्थ्य संबंधी कुछ बहुमूल्य परामर्श भी दिया। लगभग 76 वर्ष की आयु में भी अनुशासित दिनचर्या और खानपान के कारण डॉक्टर प्रेमवती उपाध्याय जी की चुस्ती-फुर्ती देखते ही बनती है।ईश्वर से प्रार्थना है कि उन्हें दीर्घ आयु प्रदान करें।पत्नी को थोड़ा गायन का शौक़ है सो डाक्टर प्रेमवती उपाध्याय जी ने उनसे एक गीत भी सुना।

दूसरा खुशी का अवसर तब आया जब हमारी छोटी पुत्री आस्था सैनी को Chartered accountants of India द्वारा बैंगलुरू में एक Convocation में  C.A. की डिग्री प्रदान की गई।
हम पति-पत्नी भी इस अवसर पर भव्य समारोह में उन सुखद क्षणों के साक्षी बने। हम दोनों की आंखों से खुशी के आंसू झलक आए जब पुत्री का नाम स्टेज से पुकारा गया।बेटी आस्था को पिछले लगभग पांच साल से हम एक प्रकार की साधना करते देख रहे थे।आस्था को उसकी महनत और लगन का प्रतिफल प्राप्त करते देखकर बहुत अच्छा लगा।बच्चे जब अपने मां-बाप से भी कहीं अधिक उपलब्धियां जीवन में हासिल करते हैं तो यह देखकर मां-बाप को बहुत गर्व होता है।मुझे अपनी ही एक ग़ज़ल का मतला याद आ रहा है :
क़द यहाँ औलाद का जब उनसे बढ़कर हो गया,
फ़ख़्र  से  ऊँचा तभी  माँ-बाप  का  सर हो गया।
                              --- ओंकार सिंह विवेक


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साहित्यिक सरगर्मियां

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏 साहित्यिक कार्यक्रमों में जल्दी-जल्दी हिस्सेदारी करते रहने का एक फ़ायदा यह होता है कि कुछ नए सृजन का ज़ेहन बना रहता ह...