ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल9897214710
हर हाल में ख़िज़ाँ पर ग़ालिब बहार होगी,
फिर से फ़ज़ा गुलिस्तां की ख़ुशगवार होगी।
केवल यहाँ बुराई ही लोग सब गिनेंगे,
अच्छाई मेरी कोई भी कब शुमार होगी।
इंसानियत-मुहब्बत-तहज़ीब की हिमायत,
शिद्दत से मेरी ग़ज़लों में बार बार होगी।
केवल ख़िज़ाँ मकीं है मुद्दत से इसमें यारो,
कब मेरे दिल के हिस्से में भी बहार होगी।
दिल को लुभाने वाले सब रंग उसमें होंगे,
जब उनकी बज़्म है तो फिर शानदार होगी।
(सर्वाधिकार सुरक्षित)-ओंकार सिंह विवेक
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हर हाल में ख़िज़ाँ पर ग़ालिब बहार होगी,
फिर से फ़ज़ा गुलिस्तां की ख़ुशगवार होगी।
केवल यहाँ बुराई ही लोग सब गिनेंगे,
अच्छाई मेरी कोई भी कब शुमार होगी।
इंसानियत-मुहब्बत-तहज़ीब की हिमायत,
शिद्दत से मेरी ग़ज़लों में बार बार होगी।
केवल ख़िज़ाँ मकीं है मुद्दत से इसमें यारो,
कब मेरे दिल के हिस्से में भी बहार होगी।
दिल को लुभाने वाले सब रंग उसमें होंगे,
जब उनकी बज़्म है तो फिर शानदार होगी।
(सर्वाधिकार सुरक्षित)-ओंकार सिंह विवेक
चित्र:गूगल से साभार
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