ग़ज़ल
उसूलों की तिजारत हो रही है,
मुसलसल यह हिमाकत हो रही है।
इधर हैं झुग्गियों में लोग भूखे,
उधर महलों में दावत हो रही है।
जवानों की शहादत पर भी देखो,
यहाँ हर पल सियासत हो रही है।
धरम, ईमान, तहज़ीब-ओ-तमद्दुन,
कहाँ इनकी हिफ़ाज़त हो रही है।
न बन पाया मैं इस दुनिया के जैसा,
तभी तो मुझ को दिक़्क़त हो रही है।
----------ओंकार सिंह 'विवेक'
उसूलों की तिजारत हो रही है,
मुसलसल यह हिमाकत हो रही है।
इधर हैं झुग्गियों में लोग भूखे,
उधर महलों में दावत हो रही है।
जवानों की शहादत पर भी देखो,
यहाँ हर पल सियासत हो रही है।
धरम, ईमान, तहज़ीब-ओ-तमद्दुन,
कहाँ इनकी हिफ़ाज़त हो रही है।
न बन पाया मैं इस दुनिया के जैसा,
तभी तो मुझ को दिक़्क़त हो रही है।
----------ओंकार सिंह 'विवेक'
Bahut khoob
ReplyDeleteआभार आपका
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