June 21, 2021

Yoga Day Special

 अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर कुछ दोहे
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                  ---ओंकार सिंह विवेक
©️ 
होता  है  इस  बात पर , हमें  गर्व  का  भान,
भारत  ने  संसार  को , दिया  योग का ज्ञान।

आदिकाल में देश  के, बालक- वृद्ध-जवान,
गुरुकुल जाकर योग का, लेते  थे नित ज्ञान।

जिसने शामिल कर लिया , दिनचर्या में योग,
उससे   घबराने  लगे ,  सभी  तरह  के  रोग।

घोर निराशा-क्रोध-भय,उलझन और तनाव,
योग  शक्ति  से  दूर  हों ,  ऐसे  सभी  दबाव।

तेग  बहादुर - सेमुअल , राम  और   रहमान,
सबके मुख पर योग से , खिलती है मुस्कान।

अगर करेंगे योग का ,प्रतिदिन हम अभ्यास,
भर  जाएगा एक दिन , जीवन  में  उल्लास।

कोरोना  के  काल  में ,करके  प्रतिदिन योग,
प्रतिरोधक क्षमता सतत, बढ़ा  रहे  हैं  लोग।
               ------ ©️  ओंकार सिंह विवेक 
                              

June 20, 2021

फादर्स-डे स्पेशल

आज पिता-दिवस पर पिता श्री
को समर्पित एक ग़ज़ल
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        ---- ओंकार सिंह विवेक
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मफ़ऊ लु    मफ़ाईलु    मफ़ाईलु    फ़ऊलुन
©️ 
मेरी  सभी  ख़ुशियों  का  हैं आधार पिता जी,
और माँ के भी जीवन का हैं शृंगार पिता जी।
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सप्ताह  में   हैं  सातों  दिवस  काम  पे  जाते,
जानें   नहीं  क्या  होता  है  इतवार पिता जी।
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हालाँकि ज़ियादा  नहीं  कुछ आय के साधन,
फिर  भी  चला  ही लेते हैं परिवार पिता जी।
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ख़ैरात   किसी   की  भी  गवारा  नहीं  करते,
है   फ़ख़्र   मुझे , हैं   बड़े  ख़ुद्दार   पिता  जी।
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दुख  अपना  बताते  नहीं ,पर  सबका हमेशा,
ग़म   बाँटने   को  रहते  हैं  तैयार  पिता  जी।
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दुनिया बड़ी ज़ालिम है , सजग हर घड़ी रहना,
समझाते  हैं  मुझको  यही  हर बार पिता जी।
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ये  आपकी  ही सीख का है मुझ पे असर,जो-
विपदा  से   नहीं  मानता   मैं  हार  पिता  जी।
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पीटो   मुझे   या   चाहे   कभी   कान  मरोड़ो,
हर  बात  का  है आपको अधिकार पिता जी।
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सर  से  न   उठे  मेरे  कभी  आप  का  साया,
मिलता  रहे  बस  यूँ ही सदा  प्यार पिता जी।
🌹 
 ©️ ओंकार सिंह विवेक
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June 14, 2021

दो बोल प्यार के

ग़ज़ल---ओंकार सिंह विवेक

©️


दो  बोल  जिसने  बोल  दिए  हँसके  प्यार के,
हम उसके होके रह गए इस दिल को हार के।

ये    नौजवान   कैसे   दिखाएँगे   फिर   हुनर,
अवसर   ही  जब  न  दोगे  इन्हें  रोज़गार के।

है   और   चंद  रोज़  की  महमान  ये  ख़िज़ाँ,
आएँगे   जल्द   लौटके   मौसम   बहार   के।

'कोविड'  के ख़ौफ़ में ही रहे वो भी मुब्तिला,
जो  थे  मरीज़  मौसमी  खाँसी - बुख़ार  के।

रहना  ही   है  'विवेक'  अभी  ये  ख़ुमार  तो,
आए  हैं  उनकी बज़्म में कुछ पल गुज़ार के।
©️ ---ओंकार सिंह विवेक

June 11, 2021

पुख़्ता तैयारी है

 ग़ज़ल**ओंकार सिंह विवेक
 
©️ 
बंद  भले   ही  सरहद  पर  अब  गोलीबारी  है, 
पर  हमसाये  की  साज़िश  वैसे  ही  जारी  है।

जान गए  कुछ देर की बारिश से ही लोग यहाँ,
टाउन  परिषद  की  कितनी पुख़्ता  तैयारी  है।

दस्तावेज़ों   में   चाहे    कुछ   भी  तहरीर  करें,
पर   यह   सच्चाई   है , दुनिया   में  बेकारी  है।

घटना में शामिल लोगों की जानिब से हर पल,
जाँच को भटकाने  की  पूरी कोशिश जारी है।

जान  नही  पाए  हैं  दुनिया  वाले  ये अब तक,
'कोविड' कोई साज़िश  है या फिर  बीमारी है।

तंग नज़रिया  रखने  वाले  लोगो , तुम अपनी-
सोच  बदलकर  देखो, दुनिया  बेहद प्यारी है।
©️                        ----ओंकार सिंह विवेक

 

June 3, 2021

समीक्षा : एक दुष्कर कार्य

बात साहित्य सृजन की आती है तो कथ्य-तथ्य-शिल्प-भाव-कला और शब्द-संयोजन जैसे शब्दों के साथ ही एक शब्द और है जो
मस्तिष्क में आता है।वह शब्द है समीक्षा ।आज नेट के इस युग में
सोशल मीडिया के अनेक मंचों जैसे ट्विटर,व्हाट्सएप्प और फेसबुक पर अनेक साहित्यिक ग्रुप्स चल रहे हैं जहाँ साहित्यकार
अपनी रचनाएँ पोस्ट करके अपने सृजन में निरंतर सुधार करने के साथ ही वाही-वाही भी लूट रहे हैं।
कुछ साहित्यिक पटल तो बहुत ही अच्छा स्तर बनाए हुए हैं।वहाँ बड़े -बड़े साहित्यिक बारीकियों के जानकार निरंतर अपनी रचनाएँ पोस्ट करते हैं और नए रचनाकारों की रचनाओं पर अपनी समीक्षात्मक टिप्पणियाँ भी देते हैं जिससे काफ़ी कुछ सीखने का अवसर प्राप्त होता है।मैं भी वरिष्ठ साहित्यकारों की ऐसी टिप्पणियों से अपने लेखन में निरंतर सुधार करता रहा हूँ।कई मंचों पर मुझे भी ग़ज़ल और दोहा विधा की रचनाओं की समीक्षा करने का अवसर प्राप्त होता रहा है।समीक्षा -कार्य निष्पादन के दौरान कई चीज़ें देखने में आती हैं।कुछ साहित्यकार तो समीक्षात्मक टिप्पणियों को सह्रदयता से लेते हुए तदनुसार अपनी रचना में परिवर्तन करके अपने लेखन में सुधार लाने का प्रयत्न करते हैं।दूसरी ओर कई साहित्यकार भी ऐसे होते हैं जिन्हें समीक्षक से केवल वाह वाह ! की टिप्पणी की ही आशा रहती है।वे सुझावात्मक अथवा आलोचनात्मक टिप्पणी को अन्यथा लेते हैं।इससे समीक्षक का तो कोई नुक़सान नहीं होता बल्कि उस रचनाकार की ही हानि होती है जो अनुभवी समीक्षक की बहुमूल्य टिप्पणी को नज़रअन्दाज़ करके अपने सृजन को निखारने से स्वयं को वंचित कर लेता है।
रचनाकार को चाहिए कि समीक्षक की टिप्पणी के प्रत्येक शब्द को ध्यान से पढ़कर उसके मर्म को समझे और उस पर सार्थक चर्चा करके अपने सृजन में धार और निखार लाए।
अपनी ही ग़ज़ल के एक मतले से बात समाप्त करता हूँ--

तीर  से  मतलब न  कुछ तलवार से,
हमको मतलब है क़लम की धार से।
            ----ओंकार सिंह विवेक🙏🙏

June 1, 2021

जब दिये ही नहीं जलाए हैं

नमस्कार मित्रो🙏🏻🙏🏻
सोचा काफ़ी दिन हो गए ,चलो साहित्यिक अभिव्यक्ति को  लेकर
कुछ बात की जाए।
यों तो आस-पास घटित हो रही तमाम घटनाओं और मन में चल रहे विचारों को लेकर एक साहित्यकार की प्रबल इच्छा रहती है कि वह उन भावों को अभिव्यक्ति दे।कुछ लोग /साहित्यकार अपनी रुचि और कौशल के अनुसार उन विचारों को कहानी ,लेख या निबंध के रूप में अभिव्यक्त करते हैं तो कुछ लोग काव्य रूप में।विचारों की अभिव्यक्ति साहित्य की किसी भी विधा में की जा सकती है परंतु उस विधा के शिल्प /व्याकरण विधान की पूरी जानकारी के साथ यदि हम कथ्य-तथ्य-भाव -शब्द चयन और संयोजन का पूरा ध्यान रखकर सृजन करेंगे तो निश्चित रूप से ऐसा सृजन लोगों के ऊपर गहरा और स्थायी प्रभाव छोड़ने में कामयाब होता है।
इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखकर सामाजिक विसंगतियों,विषमताओं और विरोधाभासों को लेकर मैंने एक ताज़ा ग़ज़ल कही है।पढ़कर
आप अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएँगे, ऐसी आशा है।।  
          ,🙏🏻🙏🌷🌷ओंकार सिंह विवेक


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नमस्कार मित्रो 🌷🌷🙏🙏 हम जिस मिश्रित सोसाइटी में रहे हैं उसमें सांप्रदायिक सौहार्द और सद्भावना की बहुत ज़रूरत है। त्योहार वे चाहे किसी भी ...