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बढ़ चढ़ कर इस दौर में,माँगें सब अधिकार,
फ़र्ज़ निभाने के लिये, मगर नहीं तैयार।
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सच मानो संसार में, जीना है बेकार,
अगर कसौटी पर खरा, नहीं रहा किरदार।
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मिली नहीं हमको कभी, विश्वासों की छाँव,
छल छदमों की धूप में,झुलसा मन का गाँव।
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रहना है संसार में, अगर ख़ुशी के साथ,
विपदाओं से कीजिये, बढ़कर दो दो हाथ।
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रखता है जो आदमी, सच्चाई का मान,
उसके दिल में ही सदा, बसते हैं भगवान।
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---------ओंकार सिंह 'विवेक'
रामपुर(उ0प्र0)
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