November 26, 2019

सूखे हुए निवाले


ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
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काम   हमारे   रोज़  उन्होंने   अय्यारी   से  टाले   थे,
जिनसे  रक्खी  आस  कहाँ  वो  यार भरोसे वाले थे।

जब   मोती   पाने  के  सपने   इन  आँखों  में  पाले थे,
गहरे   जाकर  नदिया , सागर  हमने  ख़ूब  खँगाले  थे।

जिनकी वजह से सबको मयस्सर आज यहाँ चुपड़ी रोटी,
उनके   हाथों    में    देखा   तो   सूखे   चंद  निवाले  थे।

दाद  मिली  महफ़िल में  थोड़ी  तो  ऐसा  महसूस हुआ,
ग़ज़लों  में  हमने  भी   शायद  अच्छे  शेर  निकाले  थे।

जंग  भले  ही  जीती हमने पर यह भी महसूस किया,
जंग  जो  हारे  थे  हमसे  वे  भी सब हिम्मत वाले थे।
                                  --------ओंकार सिंह विवेक
                                         (सर्वाधिकार सुरक्षित)         


November 22, 2019

कभी सोचा नहीं


ग़ज़ल---ओंकार सिंह विवेक
आप  में  ही  आगे  बढ़ने  का  ज़रा  जज़्बा  नहीं,
बेसबब   कहते   हो ,  कोई   रासता   देता   नहीं।

ख़्वाब  तो  बेताब   थे  आँखें   सजाने   के  लिए,
मैं  ही  लेकिन  दो  घड़ी  को  चैन  से सोया नहीं।

हो गए क्यों लीक पर चलकर ही तुम भी मुत्मइन,
क्यों   नए   रस्ते   बनाने   का  कभी  सोचा  नहीं।

फ़र्क  है  गर  कोई  तो  है  आदमी  की  सोच का,
काम   कोई   भी  कभी  छोटा  बड़ा  होता  नहीं।

आज  सब राज़ी हैं तो तुम यह भरम मत पालना,
तुमसे  कल  को  भी  यहाँ कोई ख़फ़ा होगा नहीं।
                                 -----ओंकार सिंह विवेक
                               
    (सर्वाधिकार सुरक्षित)

November 20, 2019

कुछ अपना अंदाज़

कुछ  दोहे
हर  पल  की  गंभीरता ,   कर   देगी   बीमार।
हँसी ठिठोली भी कभी, किया करो तुम यार।।

 उठते  हैं  उनके  लिए , सदा  दुआ  में  हाथ।
 जो  ख़ुशियाँ  हैं बाँटते, दीन  हीन  के साथ।।

अपनी  क्षमता  का किया , जब  पूरा उपयोग।
पहुँच  गए  तब  अर्श पर , यहाँ फ़र्श से लोग।।

मन  बहलाने  के  सभी,  साधन जिनके पास।
उनको  ही  देखा   गया, मन  से बड़ा उदास।।

यों  तो  सबसे  तेज़ थी ,  उसकी  ही  रफ़्तार।
मगर  संतुलन  के बिना, दौड़  गया वह हार।।

अनुशासन में बाँध ली, जिसने  मन की डोर।
उसे सफलता का मिला, बड़ा  सुहाना भोर।।
                      ---------ओंकार सिंह विवेक
                             (सर्वाधिकार सुरक्षित)

November 10, 2019

मन नहीं है

ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
अगरचे  उनसे कुछ अनबन नहीं है,
मिलें  उनसे ,ये फिर भी मन नहीं है।

समझते  हो  इसे जितना सरल तुम,
सरल  इतना भी यह जीवन नहीं है।

बताओ  झूठ  यह  बोलोगे कब तक,
कि तुमको कोई भी उलझन नहीं है।

हैं  क़ायम आपसी रिश्ते तो अब भी,
मगर   इनमें  वो  अपनापन  नहीं है।

बढ़ाता है  ये मेरे फ़िक्र-ओ-फ़न को,
बुरा हरगिज़ सुख़न का फ़न नहीं है।

तो  फिर  यह  फैसलों  में  देर कैसी,
विचारों  में  अगर  भटकन  नहीं  है।
          -----------ओंकार सिंह विवेक

November 4, 2019

मन के भाव



दोहे
💐💐💐💐💐💐💐💐
चिन्तन का जब भी हुआ,मन में तेज़ बहाव।
आसानी से ढल गए , कविता में सब भाव।।
💐💐💐💐💐💐💐💐
यह अपनों का साथ है,यह अपनों का प्यार।
जो जीवन में दे रहा, मुझको  ख़ुशी अपार।।
💐💐💐💐💐💐💐💐
                      --------ओंकार सिंह विवेक
                             (सर्वाधिकार सुरक्षित)

November 2, 2019

फूल और काँटे


यहाँ सफ़र सबका किया, काँटों ने प्रतिकूल।
नहीं  किसी  को राह में,मिले फूल ही फूल।।
                       -------ओंकार सिंह विवेक
                            (सर्वाधिकार सुरक्षित)
               

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