September 27, 2020

असर संगत का

असर संगत का
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           ---------ओंकार सिंह विवेक
अक्सर कहते सुना जाता है कि अमुक आदमी चाल-चलन और व्यवहार का ठीक नहीं है।ऐसे आदमी से लोग बचने की नसीहत करते हैं जो ठीक भी है। यही कहने और सुनने में आता है कि उसकी संगत ही ठीक नहीं रही वरना  उसका चाल-चलन और व्यवहार ऐसा न होता।निःसंदेह यह बात ठीक भी है।हम जिस परिवेश में रहेंगे उसका असर हमारे व्यक्तित्व पर निश्चित रूप से पड़ेगा।आदमी जिन लोगों के बीच रहता है उन लोगों के  संस्कार भी सीखता है।नशा करने वालों या जुआ खेलने वालों के साथ उठने-बैठने वाले लोग अगर नशा करें या जुआ खेलें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है।आपराधिक या अनैतिक प्रवृत्तियों के लोगों के साथ उठने-बैठने से ऐसी ही आदतें हमारे अंदर विकसित होने का ख़तरा स्वाभाविक है।पर इससे इतर भी एक बात है जो महत्वपूर्ण है।कुछ लोग अपने अंदर कुछ ऐसे नैतिक और आध्यात्मिक बल का विकास कर लेते हैं कि अगर उनका बुरी संगत से वास्ता भी पड़े तो वे उससे प्रभावित हुए बिना अपने सदगुणों का ही विकास करते रहते हैं।वास्तव में यह एक आदर्श स्थिति है।इसके पीछे श्रेष्ठ व्यक्तियों का यही तर्क रहता  है कि अगर बुरे लोग अपनी बुराई नहीं छोड़ रहे तो हम अपनी अच्छाई कैसे छोड़ दें। उनके ऐसे विचार अनुकरणीय एवं वंदनीय हैं।ऐसे व्यक्तित्वत वास्तव में विरले और महान होते हैं जिनसे हमें सदैव प्रेरणा लेनी चाहिए।
अतः जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए हमें सदैव बुरी संगत से बचना होगा और यदि बुरे लोगों के संपर्क में आना भी पड़े ,तो ऐसे लोगों को अपना आदर्श मानकर उनसे सीख लेनी होगी जो बुरी संगत में भी अपनी अच्छाईयों से विमुख नहीं हुए। बुरी संगत से दो चार होने पर हमें अपने उच्च आचरण और नीतिगत विचारों से बुरे लोगों को अच्छा बनाने का भरसक भरसक प्रयत्न करना चाहिए।
प्रसंगवश आज फिर अपने एक शेर से बात समाप्त करता हूँ--
यक़ीनी तौर पर सबको असर सोहबत का  मिलता है,
मगर यह बात भी सच है कमल कीचड़ में खिलता है।
                                    ------ओंकार सिंह विवेक

ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
 मोबाइल 9897214710
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पंछी  नभ  में  उड़ता  था  यह  बात  पुरानी है,
अब  तो  बस  पिंजरा  है ,उसमें दाना-पानी है।
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वे   ही  आ   पहुँचे  हैं  जंगल  में  आरी  लेकर,
जो  अक्सर  कहते  थे  उनको छाँव बचानी है।
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आज  सफलता चूम रही है जो इन  क़दमों को,
इसके   पीछे   संघर्षों    की   एक  कहानी  है।
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मुस्काते  हैं   असली  भाव  छुपाकर  चहरे   के,
कुछ   लोगों  का   हँसना-मुस्काना  बेमानी  है।
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बाँध लिया जब अपना बिस्तर बरखा की रुत ने,
जान   गए   सब   आने   वाली   सर्दी  रानी  है।
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क्यों  होता  है  जग  में  लोगों  का आना-जाना,
आज  तलक  भी बात भला ये किसने जानी है।
🌸              -------ओंकार सिंह विवेक



September 23, 2020

प्रेरणा


प्रेरणा
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       ----ओंकार सिंह विवेक
शुभ प्रभात मित्रो,🙏💥🙏

प्रेरणा---यह छोटा सा शब्द अपने आप में एक बहुत बड़ी सकारात्मक ऊर्जा समेटे हुए है।आशावादी सोच के साथ घटनाओं से सृजनात्मक प्रेरणा ग्रहण करने की प्रवृत्ति ही व्यक्ति को सफलता के शिखर तक पहुँचाती है।जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा व्यक्ति प्रकृति में विद्यमान किसी भी जड़ अथवा चेतन से ग्रहण कर सकता है।कल -कल करके बहती  नदी से जीवन में निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा ली जा सकती है।उपवन में काँटों के बीच खिलते फूलों से कठिनाइयों में भी मुस्कराते रहने की सीख ली जा सकती है।पेड़ गर्मी,बरसात और जाड़े सहकर भी हमें निरंतर छाया और फल देते रहते हैं।उनके इस आचरण से हम परोपकार का गुण ग्रहण कर सकते हैं।प्रकृति में घटित होने वाली दिन और रात की घटनाएँ भी हमें एक बड़ा संदेश और प्रेरणा देती हैं।प्रकृति ने  जिस प्रकार रात के बाद दिन का उदय होना निश्चित किया है उसी प्रकार व्यक्ति के जीवन में दुखों के बाद सुख का आगमन भी निश्चित है।अतः यह दिन और रात का क्रम भी निश्चित  ही मानव के लिए एक नई प्रेरणा और संदेश है।जीवन में मिलने वाली तमाम असफलताएँ भी हमें एक प्रेरणा ,संदेश ओर नई सोच देकर जाती हैं।असफलता से हम यह सीख सकते हैं कि कहाँ हमारे प्रयासों  में कमी रही जिस कारण हम सफलता पाने से वंचित रहे। इस पर चिंतन करके हम फिर से नई ऊर्जा और उत्साह के साथ मंज़िल की ओर बढ़ सकते हैं।झरनों का पहाडों से नीचे गिरना,रेगिस्तान में दूर तक  रेत का होना ,जंगल में जानवरों का दौड़ते फिरना और पक्षियों का उड़ना कुछ न कुछ प्रेरणा और संदेश देता है बस ज़रूरत है स्वस्थ्य नज़रिए औए सोच से इन चीजों को देखने और समझने की और इनसे प्रेरणा लेकर अपने जीवन को सुंदर बनाने की।
तो आइए प्रकृति में होने वाले  हर घटनाक्रम और प्रसंग से हम कुछ प्रेरणा लेकर अपनी सोच को सकारात्मक बनाएँ और जीवन में आगे बढ़ने का  प्रण करें।
प्रसंगवश मुझे अपनी अलग -अलग ग़ज़लों के कुछ शेर याद आ रहे हैं--
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ग़म  की  पैहम  बारिशों   में   मुस्कुराना   चाहिए,
मुश्किलों  को अज़्म  की क़ूवत दिखाना चाहिए।
💥
रख ज़रा नाकामियों में हौसला,
रौशनी फूटेगी इस अँधियार से।
💥
जीवन  में ग़म  आने  पर  जो  घबरा   जाते  हैं,
उनको हासिल ख़ुशियों की सौग़ात नहीं होती।
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जिस दिन से तुम मंज़िल को पाने की ठानोगे,
उस  दिन  से  रस्ते  हरगिज़  दुश्वार नहीं रहने।
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आज फ़िलहाल इतना ही-----
कल फिर कुछ और ऐसी ही सार्थक चर्चा करते हैं।
****** ओंकार सिंह विवेक

September 19, 2020

क़ानून में सुधार भी अच्छे संस्कार भी

क़ानून में सुधार भी अच्छे संस्कार भी
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              -------ओंकार सिंह विवेक
निर्भया बलात्कार ,हैदराबाद में महिला पशुचिकित्सक की बलात्कार के बाद निर्मम हत्या,उन्नाव काँड, कानपुर का विकास दूबे काँड  या देश में इसी तरह की तमाम हत्या,बलात्कार,हिंसा,चोरी,डकैती, लूट,ठगी या या अन्य अपराधों की दिल दहला देने वाली घटनाएँ कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं।बार बार दिमाग़ में यही सवाल आता है कि आख़िर हम किधर जा रहे हैं।जब इस तरह की घटनाएँ होती हैं तो कुछ समय के लिए चर्चा होती है,डिबेट और बुद्धिजीवियों का चिंतन चलता है पर फिर से सब उसी ढर्रे पर लौट आते हैं।
अक्सर यह बात ज़ोर शोर से उठायी जाती है कि अब हमारे देश के क़ानूनों में सख़्त प्रावधानों की ज़रूरत है ताकि अपराधी को क़ानून की सख़्ती का कुछ भय हो।यह बात किसी हद तक सही भी है।आज अपराधी और उनके पैरोकार क़ानून के लचीलेपन के कारण क़ानून तोड़ने और क़ानून की गिरफ्त से बचने के लिए क़ानून का ही सहारा ले रहे हैं।यह बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।जघन्य अपराध करके अपराधी चंद दिन में ही जेल से ज़मानत पर छूटकर पीड़ित को धमकाने लगते हैं। क़ानून की यह  विवशता समझ नहीं आती।न्याय प्रक्रिया इतनी विलंबित है कि न्याय का उद्देश्य ही ख़त्म हो जाता है।जटिल क़ानूनी प्रक्रिया और  उसके लचीलेपन का फ़ायदा उठाकर वकील आसानी से अपराधियों को बचाकर लिए जा रहे हैं। इस भयावह स्थिति से निपटने के लिए यह आवश्यक हो गया है कि अप्रसांगिक हो चुके क़ानूनों को समाप्त करके नए और सख़्त क़ानून बनाये जाएँ तथा आवश्यक प्रचलित क़ानूनों के सभी छेद बन्द करके न्याय व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त किया जाए।
 इस तरह की चिन्ताजनक परिस्थितियों की बात करते समय हमें इसके एक दूसरे महत्वपूर्ण पहलू पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।वर्तमान आधुनिक परिवेश में निरंतर दूषित होते संस्कार भी इस तरह की घटनाओं का एक प्रमुख कारण हैं। आधुनिकता की अंधी दौड़ में परिवारों में बच्चों को प्रारंभ से ही सत्य के प्रति अनुराग और नैतिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों के प्रति जागरूक करने की प्रथा प्रायः समाप्त सी होती जा रही है।मानवीय मूल्यों में आस्था और उच्च आचरण की महत्ता रेखांकित करने और उसे युवा पीढ़ी को बताने की आज किसी के पास फ़ुरसत ही नहीं है।आज लोग सोशल मीडिया या फिल्मों से अच्छी बातें तो कम सीख रहे हैं गलत आचरण और अपराध करके बच निकलने के तरीक़ों के बारे में अधिक सीख रहे हैं।यह बहुत ही चिंताजनक स्थिति है।
अतः इस तरह की घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए जहाँ एक ओर क़ानून में सुधार की ज़रूरत है वहीं दूसरी और घर परिवार और समाज के स्तर पर नई पीढ़ी को अच्छे संस्कार और नैतिक शिक्षा के प्रति जागरूक करने और अपने कार्यों के प्रति ईमानदार और पारदर्शी बने रहने तथा अच्छे चाल चलन की नसीहत करना भी बहुत ज़रूरी है।ऐसा करके ही समाज और देश को पतन से बचाया जा सकता है।
शेष फिर---🙏🙏
(ओंकार सिंह विवेक)

September 17, 2020

अच्छा आदमी

अच्छा आदमी
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--------ओंकार सिंह विवेक( सर्वाधिकार सुरक्षित)
अच्छे आदमी की जब हम बात करते हैं तो स्वाभाविक रूप से सोचने पर यही माना जाता है कि जो व्यक्ति वास्तव में अच्छा है उसे ही सब लोग अच्छा आदमी कहेंगे। परंतु सच में ऐसा नहीं होता।आज  हम कई दृष्टि से इसकी पड़ताल करेंगे। समाज में अच्छे आदमी की कोई सार्वभौमिक परिभाषा नज़र नहीं आती।अच्छे आदमी को लेकर आज समाज में हर व्यक्ति ने अपने अलग मानदंड और मानक निर्धारित कर रखे हैं।
किसी व्यक्ति को दूसरा व्यक्ति तभी अच्छा कहता है जब वह उसकी हर अच्छी बुरी बात से सहमति जताए और उसका सम्मान करे ।अपनी प्रतिभा या ज्ञान का उसके सामने प्रदर्शन न करे।किसी बात पर आवश्यक होने पर भी तर्क वितर्क न करे अर्थात सदैव यस  मैन की भूमिका में रहे। आदमी इतना स्वार्थी और अहंकारी हो गया है कि वह किसी को भी अपने सामने प्रतिस्पर्धा में देखना नहीं चाहता,जो उससे तर्क करे या उसके ग़लत कामों पर ऊँगली उठाए वह अच्छा आदमी नहीं है।यदि कोई विरला ऐसे आदमी को अच्छा आदमी स्वीकारने की बात करता भी है तो बहुत किंतु ,परंतु के बाद ही।आदमी दूसरों के साथ जैसा नहीं करता वह दूसरों से अपने लिए वैसा करने की अपेक्षा रखता है।मसलन दूसरे को कभी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखता और न ही सम्मान से सलाम, नमस्ते करता है परंतु चाहता है  कि दूसरे उसका सम्मान करें और उसके सामने सर भी झुकाएँ और सदैव विनम्र बने रहें।अपने इन्हीं पूर्वाग्रहों के जाल में रहकर वह अच्छे और बुरे आदमी की परिभाषा गढ़ता है।मैं समाज के सभी लोगों को इस श्रेणी में नहीं रखता पर अधिकाँश पर यही बात लागू होती है।
सोचकर देखिए क्या हमारे द्वारा गढ़ी गई अच्छे आदमी की यह एक पक्षीय परिभाषा उचित है? शायद नहीं।
पर अच्छे आदमी को इन सब बातों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता।वह अच्छा आदमी है तो है।वह तो हमेशा सही को सही और ग़लत को ग़लत कहता रहेगा और बिना कोई भेद किए हर व्यक्ति से अपेक्षित व्यवहार करता रहेगा चाहे समाज में रहकर उसे अपने निष्कपट और साफ़गोई से भरे व्यवहार के लिए कुछ भी क़ीमत चुकानी पड़े।
             ----------ओंकार सिंह विवेक
( कल फिर इसी तरह की किसी चर्चा के लिए आपका ब्लॉग पर इंतज़ार रहेगा,नमस्कार!!!!🙏🙏 )

September 15, 2020

बीमारी वाह!वाह! की


सोशल मीडिया और कवि व अन्य साहित्यकार
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            -----@CRओंकार सिंह विवेक

वह ज़माना गया जब साहित्यकार किसी पत्र-पत्रिका  में छपने अपनी रचना भेजा करते थे और लंबे समय तक बड़ी बेसब्री से स्वीकृति की सूचना प्राप्त होने की प्रतीक्षा किया करते थे।यह अलग बात है कि अधिकाँश मामलों में संपादक के अभिवादन और खेद की टिप्पणी ही कवियों या लेखकों के हिस्से आती थी।जिनकी रचना प्रकाशित होने के लिए स्वीकृत हो जाती थी वे अपने को बहुत सौभाग्यशाली मानते थे।

किंतु आज परिस्थितियाँ बिल्कुल बदल चुकी हैं।इस दौर में रचनाकार इस चक्कर में बिल्कुल नहीं पड़ता । जो कुछ भी वह लिखता है उसे फ़ौरन से भी पहले सोशल मीडिया ( फेसबुक या व्हाट्सएप्प आदि )पर परोस देता है और फिर तुरंत ही लाइक और प्रशंसा भरे कमेंट्स का इंतज़ार शुरू कर देता है।सोशल मीडिया की इस सुविधा से कवि को इतनी संतुष्टि तो ज़रूर हुई  है कि वह बिना कोई रिजेक्शन झेले छप जाता है परंतु इसका दूसरा पहलू जो बहुत महत्वपूर्ण है उसकी तरफ कवि का ध्यान नहीं जाता।पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन हेतु भेजी गई रचनाओं के बार बार अस्वीकृत होने पर रचनाकार अपनी रचना में जो निखार लाता था वह अवसर अब उसके हाथ से जाता रहा।
आज अधिकाँश कवि सोशल मीडिया पर अपनी रचनाओँ पर कोई आलोचनात्मक टिप्पणी देखना पसंद नहीं करते।चाहे उन्होंने कैसा भी परोसा हो उन्हें बस "वाह वाह!बहुत स्वादिष्ट है"कि टिप्पणी की ही दरकार होती है जो स्वयं उनका ही अहित करती है ।क्योंकि ऐसी अपेक्षा करके वे अपनी रचना में निखार के सारे रास्ते बंद कर देते हैं।मैं मानता हूँ कि आह !या वाह !जैसी टिप्पणियाँ प्रोत्साहन की दृष्टि से महत्व रखती हैं परंतु उससे कहीं ज़ियादा ज़रूरी वे आलोचनात्मक और समीक्षात्मक टिप्पणियाँ होती हैं जो कवि या रचनाकार की रचना/कविता में निखार का मार्ग प्रशस्त करती हैं।कई बड़े सीनियर कवियों और अन्य साहित्यकारों को मैंने इस मामले में धीरज खोते देखा है ।वे अक्सर यही शिकायत करते हैं कि उनकी रचना पर कोई आह !या वाह !क्यों नहीं कर रहा।
मेरे विचार से इस मामले में धैर्य धारण करने की आवश्यकता है।रचना पोस्ट करने के बाद हमें वाह! वाह !की टिप्पणियों की बहुत ज़ियादा अपेक्षा मन में पाल कर नहीं बैठना चाहिए।अगर रचना में दम होगा तो आह !या वाह! जैसी टिप्पणियाँ तो लोगों के क़लमऔर मुँह से स्वतः ही निकलेंगी।
हो सकता है बहुत से साथी मेरी बात से सहमत न हों पर मैंने तो इसी का पालन करते हुए अपनी रचनाओं में सुधार किया है और अच्छे परिणाम भी प्राप्त किए हैं।

मेरा एक शेर---
बेसबब  ही  आपकी  तारीफ़  जो  करने  लगें,
फ़ासला रक्खा करें कुछ आप उन हज़रात से।
                            ------ओंकार सिंह विवेक
(मिलते हैं कल फिर कुछ इसी तरह की चर्चा के साथ )

---ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार, समीक्षक व ब्लॉगर( सर्वाधिकार सुरक्षित )

जीवन-यात्रा

बहुुुत कम लोग ऐसे होते हैैं जिनको अपनी रुचि के अनुुुसार जॉब मिलता है।अक्सर देेखने में आता है कि लोगो को अपनी रुचि से मेल न खाते हुए कार्य ही करने पड़ते हैं।घर को चलाने  के लिए अक्सर ऐसा करना आवश्यक होता है।जिन लोगों को रुचि के अनुसार कार्य करने का अवसर प्राप्त होता है वे बहुत ही भाग्यशाली होते हैं निश्चित तौर पर ऐसे लोगों की क्षमता प्रारम्भ से ही बहुत अधिक बढ़ी हुई रहती है क्योंकि रोज़ी रोटी के लिए भी वे अपनी रुचि का कार्य ही कर रहे होते है ।जिन लोगों को रुचि के विपरीत मिले कार्य को करना पड़ता है उनको उसी कार्य में मन लगाकर पूरी एकाग्रता के साथ अपना सौ प्रतिशत देने का प्रयास करना पड़ता है और करना भी चाहिए।जब हमारे पास कोई विकल्प नहीं तो फिर उसी कार्य को हमें अपनी रुचि  का बनाकर आनंद के साथ उस कार्य का निष्पादन करना चाहिए।जीवन में  यही सफलता का सबसे बड़ा मंत्र है।
कुछ लोग अपनी रुचि के प्रति हद दर्जे का जुनून और दृढ़ इच्छाशक्ति रखते हैं और जीवन मेंजोखिम उठाने का साहस रखते हैं।ऐसे लोग कई बार रुचि का न होने के कारण जमा जमाया काम भी छोड देते हैं और अपनी रुचि के कार्य में नए सिरे से ख़ुद को आज़माने का साहस दिखा पाते हैं।अपनी जोख़िम लेने की क्षमता के कारण वे अपने पैशन  को फॉलो करके जीवन में सफलता की नई ऊँचाइयाँ पाने में  सफल भी हो जाते हैं।
बस इसी का नाम जीवन है और यह जीवन ऐसे ही चलता रहता है।
ग़म  की  पैहम  बारिशों  में  मुस्कुराना  चाहिए,
मुश्किलों को अज़्म की क़ूवत दिखाना चाहिए।
-----///////ओंकार सिंह विवेक

September 10, 2020

भारतेंदु हरिश्चंद्र जयंती पर विशेष

भारतेंदु हरिश्चंद्र जयंती पर  "निर्झर साहित्यिक संस्था, कासगंज" द्वारा गूगल मीट पर एक  सफल काव्य-संध्या का आयोजन
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हिन्दी खड़ी बोली के जनक , यशस्वी साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी की जयंती (9 सितम्बर) के अवसर पर गूगल मीट पर एक  आनलाइन "काव्य- संध्या" आयोजित की गई। 
कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ०अखिलेश चन्द्र गौड़( वरिष्ठ संरक्षक- निर्झर ,वरिष्ठ हड्डी रोग विशेषज्ञ, कासगंज) द्वारा की गई।मुख्य अतिथि डॉ० सुरेन्द्र गुप्ता (प्रबंध निदेशक -- निर्झर, वरिष्ठ चिकित्सक, कासगंज)  रहे तथा विशिष्ट आतिथ्य डॉ० सुभाष चन्द्र दीक्षित( पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष, जे०एल०एन, कालेज,एटा) ,डॉ० निरूपमा वर्मा(पूर्व व्याख्याता, जे०एल०एन० कालेज, एटा, पूर्व न्यायिक सदस्य- जिला उपभोक्ता फोरम एवं वरिष्ठ साहित्यकार, एटा) एवं सुकवि श्री बसंत कुमार शर्मा(वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार, उप मुख्य सतर्कता अधिकारी, पश्चिम मध्य रेल, जबलपुर) का रहा।कार्यक्रम का सफल संचालन संस्था के सचिव श्री अखिलेश सक्सैना जी द्वारा किया गया।
🌺🎉🌺 कार्यक्रम में निम्न रचनाकारों द्वारा काव्य पाठ किया गया--
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1. श्री तेजपाल शर्मा जी (मथुरा) 
2. श्रीमती गीता चतुर्वेदी जी (औरैया) 
3. श्री जसवीर सिंह " हलधर" जी ( देहरादून)
4. ओंकार सिंह "विवेक" जी ( रामपुर)
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5.  श्री प्रमोद प्यासा जी (हाथरस) 
6. श्रीमती भारती जैन "दिव्यांशी" जी ( मुरैना) 
7. श्री गयाप्रसाद मौर्य 'रजत' जी (आगरा) 
8. श्रीमती मिथलेश बडगैया जी ( जबलपुर ) 
9. श्रीमती प्रमेशलता पाण्डेय "लता" जी ( कासगंज) 
10. श्री निर्मल सक्सेना जी ( कासगंज)
11.श्री अखिलेश सक्सैना जी (कासगंज )
       🙏🏼🎉🌺🎉🙏🏼

----ओंकार सिंह विवेक
 साहित्यकार, रामपुर-उ0प्र0

September 9, 2020

मन का पंछी

🌺 दोहै 🌺
         ------ओंकार सिंह विवेक
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भरता  रहता  है सखे ,यह हर समय उड़ान,
मन के पंछी को कभी, होती  नहीं  थकान।

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सब  ही मैला कर  रहे,निशि दिन इसका नीर,
यह नदिया किससे कहे,जाकर  अपनी  पीर।

  🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

दिन भर हमने सूर्य की , किरणों से की बात,
रात  घिरी  तो  देख  ली , तारों  की  बारात।

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पत्नी  से   संवाद  में , गए  सखे  जब  हार,
बैठ  गए चुपचाप फिर,पढ़ने  को अख़बार।

 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
                    ------ओंकार सिंह विवेक
                         (सर्वाधिकार सुरक्षित)

September 4, 2020

मन मिल जाएगा


ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
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मोबाइल 9897214710

अपनेपन  के  बदले  अपनापन  मिल जाएगा,
आस यही  है  उनसे अपना मन मिल जाएगा।

नंद लला  फिर  से  आ  जाओ मथुरा-वृंदावन,
घर-घर तुमको मटकी में माखन मिल जाएगा।

काले  धन  वालों  के हों जब ऊपर तक रिश्ते,
कैसे  आसानी  से  काला  धन  मिल जाएगा।

सोचो  दुनिया  कितनी अच्छी हो जाएगी,जब,
हर  भूखे  को  रोटी का  साधन मिल जाएगा।

कब  सोचा  था  हो  जाएँगे दिल के ज़ख़्म हरे,
कब सोचा था आँखों को सावन मिल जाएगा।
                             ------ओंकार सिंह विवेक
                                   सर्वाधिकार सुरक्षित

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बात सोहार्द और सद्भावना की

नमस्कार मित्रो 🌷🌷🙏🙏 हम जिस मिश्रित सोसाइटी में रहे हैं उसमें सांप्रदायिक सौहार्द और सद्भावना की बहुत ज़रूरत है। त्योहार वे चाहे किसी भी ...