ग़ज़ल-ओंकार सिंह'विवेक'
मोबाइल9897214710
चाहे कैसी भी महफ़िल हो रास न हरगिज़ आती है,
इस दिल का क्या कीजे इसको तनहाई ही भाती है।
दिल से दिल के रिश्ते कितने पाकीज़ा हैं सच्चे हैं,
उनको मेरी हर मुश्किल की आप ख़बर हो जाती है।
मेल हुआ तो है उनमें कुछ लोगों के समझाने पर ,
देखें अब यह आपसदारी कितने दिन रह पाती है।
शौक उड़ानों का रखना कोई इतना आसान नहीं,
पंछी के घायल पंखों की पीड़ा यह बतलाती है।
पूछ रहे हो आप सियासत के बारे में,तो सुन लो,
यह वो शय है जो हर रोज़ मसाइल को उलझाती है।
---------------ओंकार सिंह'विवेक'
मोबाइल9897214710
चाहे कैसी भी महफ़िल हो रास न हरगिज़ आती है,
इस दिल का क्या कीजे इसको तनहाई ही भाती है।
दिल से दिल के रिश्ते कितने पाकीज़ा हैं सच्चे हैं,
उनको मेरी हर मुश्किल की आप ख़बर हो जाती है।
मेल हुआ तो है उनमें कुछ लोगों के समझाने पर ,
देखें अब यह आपसदारी कितने दिन रह पाती है।
शौक उड़ानों का रखना कोई इतना आसान नहीं,
पंछी के घायल पंखों की पीड़ा यह बतलाती है।
पूछ रहे हो आप सियासत के बारे में,तो सुन लो,
यह वो शय है जो हर रोज़ मसाइल को उलझाती है।
---------------ओंकार सिंह'विवेक'
Behtreen vah vah
ReplyDelete