हो सके जितना भी तुझसे उम्र भर उपकार कर,
बाँट कर दुख दर्द बन्दे हर किसी से प्यार कर।
छल,कपट और द्वेष ही करते हैं मन को स्वारथी,
हो तनिक यदि इनकी आहट बंद मन के द्वार कर।
जिसको सुनते ही ख़ुशी से सब के तन-मन खिल उठें,
ऐसी वाणी से सदा व्यक्तित्व का शृंगार कर।
चीर कर पत्थर का सीना बह रही जो शान से,
प्रेरणा ले उस नदी से संकटों को पार कर।
विश्व के कल्याण की जिनसे प्रबल हो भावना,
उन विचारों का ही तू मष्तिष्क में संचार कर।
नफरतों की चोट से इंसानियत घायल हुई,
ज़िन्दगी इसकी बचे ऐसा कोई उपचार कर।
@सर्वाधिकार सुरक्षित ----ओंकार सिंह'विवेक'
No comments:
Post a Comment