दोहे: लो आयी बरसात
सूर्य देव के ताप को, देकर आखिर मात,
मन हरषाने आ गयी, लो रिमझिम बरसात।
पुरवाई के साथ में, जब आयी बरसात,
फसलें मुस्काने लगीं, हँसे पेड़ के पात।
मेंढ़क टर- टर बोलते, भरे तलैया - कूप,
सबके मन को भा गया, वर्षा का यह रूप।
खेतों में जल देखकर, छोटे - बड़े किसान,
चर्चा यह करने लगे, चलो लगायें धान।
कभी-कभी वर्षा यहाँ, धरे रूप विकराल,
कोप दिखाकर बाढ़ का, जीना करे मुहाल।
---(सर्वाधिकार सुरक्षित)ओंकार सिंह'विवेक'
सूर्य देव के ताप को, देकर आखिर मात,
मन हरषाने आ गयी, लो रिमझिम बरसात।
पुरवाई के साथ में, जब आयी बरसात,
फसलें मुस्काने लगीं, हँसे पेड़ के पात।
मेंढ़क टर- टर बोलते, भरे तलैया - कूप,
सबके मन को भा गया, वर्षा का यह रूप।
खेतों में जल देखकर, छोटे - बड़े किसान,
चर्चा यह करने लगे, चलो लगायें धान।
कभी-कभी वर्षा यहाँ, धरे रूप विकराल,
कोप दिखाकर बाढ़ का, जीना करे मुहाल।
---(सर्वाधिकार सुरक्षित)ओंकार सिंह'विवेक'
No comments:
Post a Comment