August 31, 2020

किरदार से

ग़ज़ल---ओंकार सिंह विवेक
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तीर  से  मतलब   न  कुछ  तलवार  से,
हमको  मतलब  है  क़लम  की धार से।
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सुनते   सुनते   फिर   कहानी   रो  पड़ा,
जुड़  गया  वो  जब  किसी  किरदार से।
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ज़ोम   यूँ   तोड़ा    गया     तन्हाई   का,
बात    हम    करते    रहे    दीवार    से।
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कितनी महनत करके फ़न हासिल हुआ,
पूछ   कर   देखो  किसी   फ़नकार   से।
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दाम  वाजिब  कब  मिला  है  फ़स्ल  का,
इन  किसानों  को   किसी   सरकार   से।
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रख    ज़रा    नाकामियों    में    हौसला,
रौशनी    फूटेगी    इस    अँधियार    से।
 🌺          -----ओंकार सिंह विवेक
                    सर्वाधिकार सुरक्षित


August 27, 2020

ज़िंदगी से

ग़ज़ल--ओंकार  सिंह विवेक
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शिकायत  कुछ  नहीं  है  ज़िंदगी से,
मिला  जितना मुझे हूँ ख़ुश उसी से।
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मुक़द्दर   से   गिला  वे  कर  रहे  हैं,
हुए  नाकाम  जो  अपनी  कमी  से।
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ज़रुरत   और   मजबूरी  जगत   में,
कराती  हैं  न  क्या क्या आदमी से।
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जिन्होंने  आस  का  दीपक जलाया,
हुए  वे  एक दिन परिचित ख़ुशी से।
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असर कुछ कर न पाये जो दिलों पर,
नहीं   है  फ़ायदा   उस   शायरी   से।
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                   ----ओंकार सिंह विवेक

August 25, 2020

पहले जैसे लोगों के व्यवहार नहीं रहने

चंद अशआर कोरोना काल में बदले चिंतन के परिणामस्वरूप कुछ यों भी हुए)
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सूनी  सड़कें , गलियाँ-ओ- बाज़ार  नहीं  रहने,
और  बहुत  दिन  धुँधले  मंज़र यार नहीं रहने।

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    -----ओंकार सिंह विवेक
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August 24, 2020

जेबें हुईं उदास

🌷दोहे🌷
       ------ओंकार सिंह विवेक
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मँहगाई   को   देख  कर ,जेबें  हुईं  उदास,
पर्वों का  जाता  रहा, अब  सारा  उल्लास।
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उसकी  सुनता  ही  नहीं,कोई  यहाँ  पुकार,
चीख-चीख कर रात-दिन,मौन गया है हार।
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हैं  विपदा  में  आज हम,बिगड़ी है हर बात,
किंतु  हमारे   भी  कभी, बहुरेंगे  दिन-रात।
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मिली  कँगूरों  को  सखे,तभी बड़ी पहचान,
दिया नीव  की ईंट ने,जब अपना बलिदान।
🌷       -----ओंकार सिंह विवेक

August 19, 2020

निशाना

ग़ज़ल-ओंकार सिंह 'विवेक'

आँधियों   में  दिये   जलाना  है,
कुछ नया करके अब दिखाना है।

बात  क्या  कीजिये  उसूलों  की,
जोड़ औ तोड़  का ज़माना    है।

फिर से पसरा है इतना  सन्नाटा,
फिर  से  तूफ़ान  कोई आना है।

झूठ   कब   पायदार   है   इतना,
दो क़दम चल के गिर ही जाना है।

ज़िन्दगी    दायमी   नहीं    प्यारे,
एक  दिन मौत सबको  आना है।

इस क़दर बेहिसी के  आलम  में,
हाल  दिल  का  किसे सुनाना है।

बज़्म  में  और  भी  तो  बैठे  हैं,
सिर्फ़ हम पर ही क्यों निशाना है।
------------ओंकार सिंह विवेेेक

August 18, 2020

अटल बिहारी बाजपेयी जी

भारत में जब जब राजनीति के मंच पर  नैतिकता और शुचिता की बात होगी तो सदैव श्री अटल जी का नाम ही सबकी ज़ुबान पर आएगा।श्री बीजपेेई जी ही एक मात्र ऐसे नेेता थे जिनकी राय को उनका विरोध करने वाले भी मानने को विवश हो जाया करते थे।यह उनकी वाकपटुता और व्यवहार कुुुशलता का ही कमाल था।
संयुक्त राष्ट्रसंघ में हिंदी में अपना भाषण देकर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर हिंदी का लोहा मनवाया।श्री बाजपेई जी राजनेता होने के साथ ही मानवीय मूल्यों के पोषक,प्रखर वक्ता और संवेदनाओं से लबरेज़ कवि भी थे।
उनकी स्मृति को शत शत नमन🙏🙏!!!!!
        ------ओंकार सिंह विवेक

August 16, 2020

मीठा-खारा

ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710

कुछ  मीठा  कुछ  खारापन  है,
क्या क्या स्वाद लिए जीवन है।

कैसे   आँख   मिलाकर   बोले,
साफ़  नहीं जब उसका मन है।

शिकवे  भी   उनसे   ही   होंगे,
जिनसे   थोड़ा  अपनापन   है।

धन  ही  धन है इक तबक़े पर,
इक  तबक़ा  बेहद  निर्धन  है।

सूखा  है  तो  बाढ़  कहीं   पर,
बरसा  यह   कैसा  सावन  है।

कल  निश्चित  ही  काम  बनेंगे,
आज भले ही कुछ अड़चन है।

दिल  का है वह साफ़,भले ही,
लहजे  में  कुछ  कड़वापन है।
        ----ओंकार सिंह विवेक

August 15, 2020

स्वतंत्रता दिवस

स्वतंत्रता दिवस:कुछ दोहे
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           -------ओंकार सिंह विवेक
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  आज़ादी  पाना  कहाँ, था  इतना आसान।
  वीरों ने  इसके  लिए, प्राण  किए क़ुर्बान।।
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  लुटा गए जो देश पर,हँसकर अपनी जान।
  हम उनके बलिदान का ,रखें हमेशा मान।।
 🌷
  राष्ट्र  सुरक्षा  में  दिया, अपना  जीवन वार।
  भारत  के   वीरों  नमन, तुमको  बारंबार।।
 🌷
   मन में यह ही कामना, यह ही है अरमान।
   दुनिया का सिरमौर हो,अपना हिंदुस्तान।।
  🌷
                   -----ओंकार सिंह विवेक
                         @CR

August 14, 2020

कवि सम्मेलन ऑनलाइन

पल्लव काव्य मंच रामपुर-उ0प्र0 का कारगिल विजय दिवस के अवसर पर आयोजित  ऑनलाइन राष्ट्रीय कवि सम्मेलन
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पल्लव काव्य मंच,रामपुर(उ0प्र0) के तत्वावधान में मंच के व्हाट्सएप्प पटल पर एक ऑनलाइन राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें कवियों नेअपनी देश प्रेम,समाज और मानवीय सरोकारों से जुड़ी श्रेष्ठ रचनाओँ का सस्वर पाठ किया गया।कार्यक्रम की अध्यक्षता गीतकार डॉ0 शिवशंकर यजुर्वेदी,बरेली जी द्वारा की गई तथा मुख्य अतिथि व विशिष्ठ अतिथि क्रमशः विपिन शर्मा जी,ब्यूरो चीफ हिंदुस्तान दैनिक ,रामपुर तथा डा0 मोनिका शर्मा,पशुचिकित्सा अधिकारी ,रामपुर रहे।

कार्यक्रम का शुभारंभ पल्लव काव्य मंच के संस्थापक रामपुर के वरिष्ठ कवि श्री शिव कुमार शर्मा चंदन की सस्वर  सरस्वती वंदना के द्वारा हुआ--
ग्यान की जगावो ज्योति,अंतस विराजो आये,
भक्ति   सुरसरि  माहि , डूब  डूब  जाऊँ  माँ।
लगन  लगी  है  ऐसी,कान्हा संग खेलों जाए,
दीजे  मन  मीत  गीत, छंदन  को  गाऊँ  माँ।

गीतकार डॉ0 शिवशंकर यजुर्वेदी जी ,बरेली ने कारगिल के वीरों के सम्मान में अपने उदगार कुछ यों व्यक्त किए-
आपके   त्याग   और   बलिदान   का
युग-युगों  तक ऋणी यह रहेगा वतन।
कारगिल  युद्ध  के  वीर   बलिदानियों,
आपको शत नमन आपको शत नमन।

कवि देशराज शर्मा उदार, धामपुर ने राम मंदिर के प्रति  आस्था व्यक्त करते हुए कहा--
श्रीराम मंदिर हमारे राष्ट्रीय गौरव मान का प्रतीक है,
श्रीराम  मंदिर  हमारे  राष्ट्रीय  सम्मान का प्रतीक हैं।

ग़ज़लकार ओंकार सिंह विवेक,रामपुर ने जीवन में माँ की महत्ता बताते हुए माँ के सम्मान में अपना मुक्तक प्रस्तुत किया--
डगर  का  ज्ञान होता है अगर माँ साथ होती है,
सफ़र आसान  होता है अगर माँ साथ होती है।
कभी मेरा जगत में बाल बाँका हो नहीं सकता,
सदा यह  भान होता है अगर माँ साथ होती है।

कवियित्री नीलिमा पाँड़े, मुंबई ने अपने उदगार कुछ यों व्यक्त किए--
कोरे  काग़ज़  पर  पढूँ,  अंतहीन  संवाद,
मृग तृष्णा में नीलिमा,तन मन है आबाद।

ओज कवि श्री अरविंद वाजपेयी,कन्नौज ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा--
काव्य  वही  जो  राष्ट्र  चेतना  को नव स्वर दे,
काव्य वही जो राष्ट्र भक्ति ज्वर घर घर भर दे।

कवि आनंद मिश्र अधीर,बदायूँ ने सामयिक विषय राम मंदिर पर अपने उदगार कुछ यों व्यक्त किए--
हो रहा मंदिर का निर्माण,लो छप्पन इंची सीना तान,
विजय  सत्य  की  हुई, झूठ  पर  हार  गया  है वान।

कवियित्री डॉ0 मोनिका शर्मा,मुरादाबाद ने अपनी प्रस्तुति दी--
हे  माँ   शारदे   चरण  रज   मैं   पाऊँ,
भाव शब्द सुमन तेरे चरणों में चढ़ाऊँ।

श्री विपिन शर्मा,रामपुर द्वारा माता एवं पिता के सम्मान में अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति कुछ यों दी गई--
यकीं मानो तुम्हें मिल जाएँगी ख़ुशियाँ जहाँ भर की,
कभी  माँ  बाप  की  आँखों  को नम होने नहीं देना।

इस ऑनलाइन कवि सम्मेलन में रचना पाठ करने वाले कवियों के अतिरिक्त अन्य कवियों और श्रोताओं ने भी सामयिक रचनाओं का रसास्वादन करते हुए कार्यक्रम के अंत तक रचनाकारों का उत्साहवर्धन किया। कार्यक्रम का सफल संचालन हरदोई के समर्थ कवि गोपाल ठहाका द्वारा किया गया। अंत में पल्लव काव्य मंच के संरक्षक वरिष्ठ कवि श्री शिवकुमार शर्मा चंदन जी द्वारा सभी का आभार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की गई।
         ------ओंकार सिंह विवेक
 ग़ज़लकार,समीक्षक,कंटेंट राइटर व ब्लॉगर
            रामपुर-उ0 प्र0

August 12, 2020

श्रीकृष्ण जी और कोरोना काल

दोहे--कोरोना और कृष्ण जी
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----////ओंकार सिंह विवेक
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कहे  यशोदा  कृष्ण  से, है  यह  कोविड काल।
मास्क  पहन  कर  घूमने, निकलो मेरे   लाल।।
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मंदिर   में   श्रीकृष्ण   जी, आएँ   कैसे   लोग।
डरा   रहा  है  आजकल, कोरोना  का   रोग।।
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सबका  कोविड  दुष्ट  ने , जीना किया  मुहाल।
बनकर  इसका  कालअब,आ जाओ गोपाल।।
 🌷                        -----ओंकार सिंह विवेक

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बात सोहार्द और सद्भावना की

नमस्कार मित्रो 🌷🌷🙏🙏 हम जिस मिश्रित सोसाइटी में रहे हैं उसमें सांप्रदायिक सौहार्द और सद्भावना की बहुत ज़रूरत है। त्योहार वे चाहे किसी भी ...