December 24, 2020

स्व0श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी,स्व0श्री मदन मोहन मालवीय जी एवं स्व0 श्री धर्मवीर भारती जी को श्रद्धा सुमन

आज 25 दिसम्बर को पूर्व प्रधानमंत्री एवं भारत रत्न स्व0 श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी, स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी नेताओं में से एक भारत रत्न स्व0 पंडित मदन मोहन मालवीय जी एवं भारत -भारती पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार व पत्रकार स्व0 श्री धर्मवीर भारती जी के जन्म दिवस के अवसर पर उनकी स्मृतियों को शत-शत नमन करते हुए अपने काव्य-सुमन अर्पित करता हूँ🙏🙏

1..स्व0 श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी
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  नैतिक  मूल्यों  का किया , सदा  मान-सम्मान,
  दिया  अटल  जी  ने  नहीं,ओछा कभी बयान।
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  विश्व-मंच   पर   शान  से , अपना  सीना  तान,
  अटल  बिहारी  ने  किया , हिंदी  का  सम्मान।
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  राजनीति  के  मंच  पर  , छोड़  अनोखी  छाप,
  सबके  दिल  में  बस गए, अटल बिहारी आप।
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 सारा  जग  करता  रहे , शत-शत  सदा प्रणाम,
 अटल  बिहारी  जी  रहे , अमर  आपका  नाम।
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2.स्व0 पंडित मदन मोहन मालवीय जी
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 निज व्यक्तित्व-कृतित्व की,छोड़ अनोखी छाप,
 सबके  दिल  में  बस  गए , मालवीय  जी आप।
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 गाँधी  अरु  टैगोर  ने ,  देख   श्रेष्ट   सब   काम,
 मालवीय  जी  को  दिया , महामना   का  नाम।
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3.स्व0 श्री धर्मवीर भारती जी
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 यों   ही   थोड़ी   कर  रहा , याद  सकल  संसार,
 धर्मवीर   जी   आपके ,   लेखन   में   थी   धार।
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 जब  तक   संपादन   रहा  ,  धर्मवीर   के  पास,
 रही   बनाती   'धर्मयुग' ,  नए - नए   इतिहास।
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                          --///--ओंकार सिंह विवेक
                                   (सर्वाधिकार सुरक्षित)
  

December 18, 2020

हैरानी से

ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710

दूर  है  वो   रिश्वत   के  दाना - पानी  से,
देख   रहे   हैं   सब  उसको   हैरानी   से।

यार बड़ों  के दिल का दुखना लाज़िम है,
नस्ले - नौ   की    पैहम  नाफ़रमानी  से।

कुछ   करना  इतना  आसान  नहीं होता,
कह   देते  हैं  सब  जितनी  आसानी  से।

मुझको  घर  में  मात-पिता  तो  लगते हैं,
राजभवन    में    बैठे    राजा - रानी   से।

रखनी  पड़ती   है  लहजे  में   नरमी   भी,
काम  नहीं  होते  सब  सख़्त  ज़ुबानी से।

ज़ेहन को हरदम कसरत करनी पड़ती है,
शेर     नहीं    होते   इतनी   आसानी   से।

होना   है   सफ़   में  शामिल  तैराकों  की,
और   उन्हें  डर  भी  लगता  है  पानी  से।
                     ---–-ओंकार सिंह विवेक
https://vivekoks.blogspot.com/?m=1

December 14, 2020

सब्र का सरमाया

ग़ज़ल**ओंकार सिंह विवेक
  मोबाइल 9897214710

सब्र  करना  जाने  क्यों  इंसान  को  आया  नहीं,
जबकि इससे बढ़के जग में कोई सरमाया नहीं।

आदमी  ने  नभ  के  बेशक  चाँद-तारे  छू  लिए,
पर  ज़मीं  पर  आज  भी रहना उसे आया नहीं।

धीरे - धीरे  गाँव   भी  सब  शहर  जैसे  हो  गए,
अब  वहाँ  भी  आँगनों  में नीम  की छाया नहीं।

लोग  कहते   हों  भले  ही  चापलूसी  को  हुनर,
पर  कभी उसको हुनर हमने तो बतलाया नहीं।

ज़हर  नफ़रत  का  बहुत उगला गया तक़रीर में,
शुक्र  समझो  शहर  का  माहौल  गरमाया नहीं।

देखलीं  करके   उन्होंने  अपनी  सारी  कोशिशें,
झूठ  का  पर  उनके हम पर रंग चढ़ पाया नहीं।
                                  ----ओंकार सिंह विवेक

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