September 30, 2022

यादों के झरोखों से (कड़ी-१)

प्रणाम मित्रो 🙏🙏🌹🌹
अक्सर कहा जाता है कि आदमी को वर्तमान में ही जीना चाहिए।न तो अतीत की बुरी यादों में खोकर दिल को भारी करना चाहिए और न ही भविष्य की सोचकर चिंता में डूबना चाहिए। मन की शांति के लिए यह बात कुछ ठीक-सी भी लगती है परंतु ऐसी आदर्श स्थिति किसी भी आदमी के जीवन में कम ही देखने को मिलती है।
हर व्यक्ति के स्मृति पटल पर गाहे-बगाहे अतीत की स्मृतियां भी आती हैं और भविष्य को लेकर चिंता भी सताती है। 
यदि अतीत की स्मृतियां सुखद हों तो उनका बार-बार मस्तिष्क में आना अच्छा लगता हैं क्योंकि वह आनंद की अनुभूति कराता है। हां !अतीत के ख़राब अनुभव और स्मृतियां ज़रूर विचलित करती हैं। 
इन बातों पर विचार करते हुए मेरा मन हुआ कि अपनी कुछ सुखद और सकारात्मक स्मृतियां आपके के साथ सिलसिलेवार साझा करूं।निश्चित तौर पर ऐसी चीज़ों से जीवन के प्रति सकारात्मकता और उत्साह बना रहता है।सो इस सिलसिले की पहली कड़ी प्रस्तुत कर रहा हूं :

यह तस्वीर १३अक्टूबर,२०१९ की है जब पल्लव काव्य मंच के संस्थापक/अध्यक्ष श्री शिवकुमार चंदन के निवास ज्वाला नगर, रामपुर-उ०प्र० पर मंच की और से एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया था।

        (गोष्ठी में काव्य पाठ करते हुए मैं)
 
गोष्ठी में श्री शिवकुमार शर्मा चंदन,शायर इफ्तिखार ताहिर,शायर नोमानी साहब और डॉक्टर रघुवीर शरण शर्मा जी तथा मेरे द्वारा सहभागिता की गई थी।

मुझे ध्यान आ रहा है कि ऊपर चित्र में दिखाई दे रहे कवियों में वरिष्ठ कवि डाक्टर रघुवीर शरण शर्मा (बीच में) द्वारा कवि गोष्ठी की अध्यक्षता की गई थी और संचालन मंच के संस्थापक श्री चंदन जी द्वारा किया गया था।डॉक्टर रघुवीर शरण लगभग अस्सी साल के हैं। आज भी बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी, धर्म और अध्यात्म में गहरी आस्था रखने वाले व्यक्ति हैं। यों तो आप अपनी कविताओं में हास्य की पैनी धार से गुदगुदाने के लिए जाने जाते हैं परंतु आपकी रचनाओं का गांभीर्य भी कुछ सोचने को विवश करता है :

ढोते-ढोते कभी थकूं ना 
जीवन के इस भार को,
सदा सहेजूं अपना मानूं
 सबके प्यार दुलार को।

मंच के संस्थापक श्री चंदन जी भक्ति प्रधान साहित्य सृजन के लिए जाने जाते हैं :
प्रिय तेरे सानिध्य को पाकर,
मगन हुआ है मन-मधुकर।
क़दम बढ़ाया भक्ति पंथ पर,
तब दर्शन का हुआ असर।

शायर नोमानी साहब ज़मीन से जुड़ी सच्ची और अच्छी शायरी के लिए जाने जाते हैं।उनका तरन्नुम भी ग़ज़ब का है।उनके अशआर इस वक्त मुझे याद नहीं आ रहे हैं।फिर किसी वक्त उनका पुख़्ता कलाम ज़रूर साझा करूंगा।
एक उम्दा शायर सैय्यद इफ्तिखार ताहिर साहब दुर्भाग्य से अब हमारे बीच नहीं हैं परंतु अपनी शायरी के माध्यम से आज भी सबके दिलों में बसते हैं ।उनका एक शेर मुझे याद आता है :

हर क़दम देखभाल कर रखना,
अपनी इज़्ज़त सँभाल कर रखना।

ऐसे आयोजनों का अपना अलग ही महत्व और आनंद होता है।न कोई बड़ा तामझाम और न ही किसी बड़े खाने/ठहरने आदि के इंतज़ाम की चिंता। सात-आठ साहित्यकार इकट्ठा हुए और किसी एक के घर बैठकर एक दूसरे का हाल-चाल जान लिया और फिर बिल्कुल अनौपचारिक माहौल में एक दूसरे की रचनाएँ का आनंद ले लिया --- और बस हो गईं मानसिक क्षुधा शांत।श्रोता के रूप में घर-परिवार के सदस्यों की उत्साहवर्धक हिस्सेदारी  ---- परिवार के सदस्यों द्वारा बड़े प्रेम से जलपान आदि का प्रबंध करना और बीच-बीच में वाह वाह वाह!के द्वारा कवियों/शायरों का उत्साहवर्धन करना ---- बहुत मज़ा आता है ऐसे अनौपचारिक आयोजनों में।आजकल सोशल मीडिया/ऑनलाइन गोष्ठियों के चलन या अन्य कारणों से ऐसे आयोजनों की गति थोड़ी धीमी ज़रूर पड़ी है परंतु समाप्त नहीं हुई है। ऐसे आयोजन अब फिर से गति पकड़ रहे हैं।सोशल मीडिया पर ऑनलाइन गोष्ठियां भले ही कितनी भी हो जाएं परंतु इन ऑन द स्पॉट गोष्ठियों की जगह नहीं ले सकतीं।
बड़ी प्रसन्नता का विषय है कि प्रबुद्ध वर्ग बड़े साहित्यिक आयोजनों के साथ-साथ ऐसी गोष्ठियों के आयोजन और प्रोत्साहन को लेकर पुन: गंभीर नज़र आ रहा है। ऐसे आयोजन साहित्य साधकों को निरंतर साहित्य सृजन की प्रेरणा देते हैं।
अंत में अपना एक शेर  पेश करके इजाज़त चाहता हूं।जल्द ही इस सिलसिले की दूसरी कड़ी के साथ आपके सम्मुख फिर हाज़िर होऊंगा :
अच्छे लोगों में जो उठना-बैठना हो जाएगा,
फिर कुशादा सोच का भी दायरा हो जाएगा।
--ओंकार सिंह विवेक
(इस ब्लॉग का कोई भी कॉन्टेंट कॉपी या साझा करने से पूर्व कृप्या ब्लॉगर की गोपनीयता पॉलिसी को अवश्य पढ़ें)



























September 28, 2022

समीक्षा : एक विमर्श

मैं सोशल मीडिया पर कई साहित्यिक मंचों से जुड़ा हुआ हूं। काव्य सृजन विशेष तौर पर ग़ज़ल विधा में रुचि होने के कारण अक्सर उन पटलों पर अपनी रचनाएँ भी पोस्ट करता रहता हूं।कई मंचों पर ग़ज़ल विधा की रचनाओं की समीक्षा का कार्य करने का अवसर भी प्राप्त होता है।इस कार्य के निष्पादन में काफ़ी खट्टे - मीठे अनुभव भी होते हैं।

कल समीक्षा कार्य को लेकर एक वरिष्ठ साहित्यकार ने एक पटल (साहित्यकार और पटल के नामों का उल्लेख करना ठीक नहीं होगा) पर अपने विचार रखे थे। उनके विचारों को पढ़कर विषय विशेष पर विमर्श का रास्ता खुला तो मैंने भी  अपने विचार पटल पर रखे जिन्हें ज्यों का त्यों आप सुधी साथियों के साथ साझा कर रहा हूं:

समीक्षा : एक विमर्श
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प्रणाम मित्रो🌹🌹🙏🙏

आज मैं तो अति व्यस्त्तता के कारण दिए गए मिसरे पर कोई ग़ज़ल पोस्ट नहीं कर पाया लेकिन सभी रचनाकारों की अच्छी रचनाएँ पढ़ने को मिलीं।समीक्षकद्वय द्वारा भी बहुत अच्छी समीक्षाएँ प्रस्तुत की गईं।सभी को हार्दिक बधाई!!!!

आज पटल पर विषय काल समाप्त होने के बाद मेरी भी समीक्षा-कार्य जैसे महत्वपूर्ण विषय पर अपने विचार रखने की इच्छा हुई। कविता या शायरी तो हम सब पोस्ट करते ही हैं पटल पर लेकिन काव्य सृजन और समीक्षा आदि को लेकर साहित्यकारों द्वारा अपने विचार भी रखे जाने चाहिए।इससे सभी का ज्ञानवर्धन होता है और सृजन में सुधार की संभावनाएं बढ़ती हैं तथा स्वस्थ विमर्श के रास्ते खुलते हैं।

चूंकि रचनाएँ सार्वजनिक रूप से समीक्षा हेतु पटल पर प्रस्तुत की जाती हैं अत: उनकी समीक्षा भी सार्वजनिक रूप से ही पटल पर प्रस्तुत की जाती है। हां,यह बात ठीक है कि सार्वजनिक मंच पर जितना भी हो सके समीक्षात्मक टिप्पणियों को अपेक्षाकृत अधिक शालीनता से अंकित किया जाना चाहिए। समीक्षक द्वारा शालीन और मर्यादित टिप्पणी किया जाना जितना ज़रूरी है उतना ही ज़रूरी रचनाकार द्वारा टिप्पणी को सहृदयता और सद्भावना से लिया जाना भी है। यदि कुछेक अपवादों को छोड़ दिया जाए तो इस पटल पर ऐसा ही देखने में आता भी है कि सभी योग्य समीक्षक रचनाओं पर अपने अनुभव और ज्ञान के आधार पर शालीन टिप्पणियां ही अंकित करते हैं और रचनाकार भी प्रतिउत्तर में उन्हें धन्यवाद ज्ञापित करते हैं।यही स्वस्थ्य परंपरा सीखने और सिखाने में सहायक भी होती है।समीक्षक भी एक रचनाकार ही है,उसकी टिप्पणी में विधा विशेष के ज्ञान के साथ-साथ उसके अपने चिंतन तथा कहन की शैली के रंग भी सम्मिलित होते हैं जिसके आधार पर वह एक मशवरा देता है।वह किसी रचनाकार पर अपनी बात थोपता नहीं है बल्कि विनम्रतापूर्वक अपने सुझाव प्रस्तुत करता है।यदि रचनाकर को सुझाव पसंद न हों  तो वह भी बिना किसी वाद-विवाद के विनम्रता से अपनी असहमति व्यक्त करते हुए बात को ख़त्म कर सकता है।

समीक्षा का शाब्दिक अर्थ है परीक्षण,गुण दोष-विवेचन या समालोचन।यदि गंभीरता से विचार करें तो समीक्षा शब्द का अर्थ इस्लाह शब्द के अर्थ से कहीं अधिक विस्तृत और व्यापक है।यह संभव नहीं है कि समीक्षक रचना के केवल शिल्पगत गुणदोष का विवेचन करे ,उसके भाव और कहन की समालोचना न करे। शिल्प यदि कविता की आत्मा है तो भाव और कहन उसका शरीर।दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं।समीक्षक आत्मा की सुरक्षा के उपाय बताए और शरीर को सजाने सँवारने के बारे में कोई राय न दे तो शायद यह उचित नहीं होगा। यदि समीक्षक भाव और कहन पक्ष की समीक्षा को यह कहकर छोड़ दे कि यह तो अनुभव से स्वत: आ जाएगा तो फिर अनुभव और ज्ञान से आदमी कविता का शिल्प भी सीख ही लेगा।
आइए अब ग़ज़ल की बात करते हैं। शेर को शेर उसकी कहन अर्थात निराले ढंग से कहने की कला ही बनाती है।यह ग़ज़ल के मूलभूत तत्वों में से एक है।मेरे विचार से समीक्षा में समीक्षक को यह भी देखना चाहिए कि रचनाकार द्वारा ग़ज़ल में शिल्प की शर्तों को पूरा करने के साथ-साथ भाषा को किस रूप में सँवारा गया है। बेहर/मापनी पूरी करने के साथ-साथ वाक्य विन्यास और व्याकरण आदि पर कितना ध्यान दिया गया है।सिर्फ़ बेहर पूरी करके रचनाकर रचना के और पहलुओं के प्रति कहीं केजुअल तो नहीं हो गया है आदि आदि -----।
एक आदर्श समीक्षा कभी एक्सक्लूसिव नहीं हो सकती वह हमेशा इंकलूसिव ही होगी।समग्रता ही समीक्षा का प्राण तत्व है मैं ऐसा मानता हूं।

यह बात सही है कि अदब के आसमान में मीर,ग़ालिब या फ़िराक़ जैसे दैदीप्यमान सितारों जितनी ऊंचाई तक कोई नहीं पहुंच सकता परंतु उनसे प्रेरणा लेकर सामर्थ्य के अनुसार अपनी रचनाधर्मिता को निरंतर बेहतर करने का प्रयास तो किया ही जा सकता है।यह भी तभी संभव है जब कोई समीक्षक या उस्ताद किसी रचनाकार के कलाम को पढ़कर उसकी बेहतरी के बारे में शालीनता के साथ कोई सुझाव दे और रचनाकार उसे सद्भावना के साथ ग्रहण करे।
अक्सर देखने में यह आता है कि समीक्षक जब किसी रचनाकार की रचना में किसी दोष की और इंगित करते हैं तो कुछ लोग(सब नहीं) तुरंत ही किसी बड़े रचनाकार की कोई ऐसी रचना कोट कर देते हैं जिसमें इस तरह का दोष रहा हो।ऐसा करके अपनी रचना के दोष को कवरअप करना कहां तक उचित है? बड़े उस्ताद शायर या कवि भी मानव ही हैं या थे।उनसे भी त्रुटियां हुई होंगी। अच्छा तो यह है कि हम उनकी त्रुटियों की आड़ न लें बल्कि उनके श्रेष्ठ कलाम से प्रेरणा लेकर कुछ बेहतर कहने की कोशिश करें।
जहां तक दूसरी भाषाओं के शब्दों यथा शहर, ज़ेहर,अम्न आदि के वज़्न और उच्चारण का प्रश्न है इसको लेकर अब कोई इतना रिज़िड नहीं है।लोग अपने ढंग से प्रयोग कर रहे हैं और देवनागरी में उसे स्वीकार्यता भी मिल रही है।यह अब कोई बड़ा मुद्दा नहीं रह गया है।यहां फिर मैं एक बात कहूंगा कि यह रचनाकार विशेष के सोच पर निर्भर करता है कि वह अन्य भाषा के शब्द को उस मूल भाषा के उच्चारण और वज़्न के अनुसार प्रयुक्त करता है अथवा किसी और ढंग से।
अंग्रेज़ी भाषा का एक शब्द है रिपोर्ट इसे हिंदी शब्दकोश में रपट के रूप में भी स्वीकार किया गया है और ग्रामीण अंचल में लोग बहुतायत में रिपोर्ट के स्थान पर रपट शब्द ही प्रयोग करते हैं जो स्वीकार्य है।जैसे थाने में रपट लिखाना,रपट करना आदि। लेकिन जो व्यक्ति अंग्रेज़ी भाषा का थोड़ा-बहुत भी जानकार है वह रपट के स्थान पर देवनागरी में भी रिपोर्ट ही लिखना पसंद करता है।

तमाम साहित्यकार बंधु मुझसे भिन्न मत भी रखते होंगे।उन सभी की असहमति का भी हार्दिक स्वागत है।

सादर
ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)

September 26, 2022

धीर और गंभीर : कवि/शायर रणधीर




एक धीर-गंभीर कवि और शायर रणधीर प्रसाद गौड़ 'धीर'
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जी हां, मैं बात कर रहा हूं बरेली-उ०प्र० में जन्मे प्रसिद्ध कवि और शायर श्री रणधीर प्रसाद गौड़ 'धीर' जी की। धीर जी को कविता और शायरी का फ़न विरासत में मिला है।आपके पिता स्मृतिशेष श्री देवीप्रसाद गौड़ 'मस्त' बरेलवी साहब अपने ज़माने के जाने माने शायर थे। श्री रणधीर प्रसाद गौड़ धीर साहब रेलवे के सीनियर सैक्शन इंजीनियर के पद से सेवा निवृत्ति प्राप्त करके आजकल स्वतंत्र साहित्य सृजन और समाज सेवा के कार्यों में निमग्न हैं।
'धीर' साहब से मेरा परिचय रामपुर की दो साहित्यिक संस्थाओं पल्लव काव्य मंच तथा आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्य धारा के माध्यम से हुआ।ये दोनों साहित्यिक मंच किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। इन मंचों के माध्यम से अक्सर ही रामपुर और बरेली जनपदों में साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं।मेरी ऐसे ही आयोजनों में श्री धीर साहब से रामपुर और बरेली में कई मुलाक़ातें हो चुकी हैं।इसे मैं अपनी ख़ुश-क़िस्मती ही कहूंगा कि एक कार्यक्रम में उनके कुशल संचालन में मुझे काव्य पाठ का अवसर भी प्राप्त हो चुका है।
श्री रणधीर प्रसाद गौड़ धीर जी में ७५-७६ वर्ष की आयु में भी ग़ज़ब की सक्रियता और ऊर्जा है। मेरा जब-जब भी उनसे मिलना होता है मैं उन्हें पहले से अधिक सक्रिय, ऊर्जावान और साहित्यिक सरोकारों के प्रति चिंतनशील पाता हूं। गौड़ साहब के व्यवहार में निहित सद्भावना और विनम्रता दिल को छू जाती है।रेलवे में अपनी नौकरी के दौरान धीर साहब एक अच्छे खिलाड़ी रहे और विभाग के रचनात्मक कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते रहे। श्री गौड़ साहब बरेली में काव्य गोष्ठी आयोजन समिति के अध्यक्ष हैं। बरेली में साहित्यिक प्रतिभाओं को निखारने,प्रोत्साहित करने और अदबी सरगर्मियों को परवान चढ़ाने में धीर साहब का बड़ा योगदान रहा है।
(विशेष : सभी छायाचित्र  भारतीय पत्रकारिता संस्थान बरेली की त्रैमासिक पत्रिका 'विविध संवाद' के अगस्त- अक्टूबर,2022 अंक से साभार प्राप्त किए गए हैं।यह पत्रिका मुझे स्वयं श्री रणधीर प्रसाद गौड़ धीर जी द्वारा भेंट की गई थी।उल्लेखनीय है कि पत्रकारिता संस्थान द्वारा श्री धीर जी के ७५ वर्ष का होने पर उनके सम्मान में पत्रिका का विशेषांक निकाला गया था)

धीर साहब उर्दू और हिंदी पर समान अधिकार रखते हैं। दोनों ही भाषाओं में भाव,कथ्य और शिल्प के स्तर पर उनकी रचनाएँ उत्कृष्ट हैं।उनके गीत और ग़ज़लों में प्रेम,दर्शन,अध्यात्म और जनसरोकार सभी की बानगी देखने को मिल जायेगी।धीर साहब गीत,ग़ज़ल,ख़याल, ख़मसा,मुक्तक और दोहा आदि सभी विधाओं के सिद्धहस्त रचनाकार हैं।
श्री धीर साहब की अब तक छह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।ग़ज़ल संग्रह कल्याण काव्य कौमुदी,बज़्म-ए-इश्क़, इश्क़- का दर्द,तथा गीत संग्रह अनुभूति से अभिव्यक्ति, जब याद तुम्हारी आती है आदि उनकी प्रमुख काव्य कृतियां हैं। कवि या शायर के पास श्रेष्ठ काव्य सृजन क्षमता के साथ यदि मधुर कंठ भी हो तो सोने में सुहागा हो जाता है।धीर जी इस मामले में सौभाग्यशाली हैं। मां सरस्वती ने उन्हें सुरीले कंठ से भी नवाज़ा है।आप मंचों पर तहत में तो अपनी प्रभावशाली प्रस्तुति देते ही हैं आपका तरन्नुम भी लाजवाब है।जब आप किसी महफ़िल में सस्वर रचना पाठ करते हैं तो लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
धीर साहब की विभिन्न रचनाओं की चुनिंदा पंक्तियां बानगी के तौर पर प्रस्तुत कर रहा हूं जिससे आपको उनकी कविता/शायरी की गहराई का अंदाज़ा बा-आसानी हो जाएगा :

द्वेष रहित जीवन जीने की की सीख देती ये पंक्तियां देखिए :
        अपना हर कर्तव्य दृढ़ता से निभाना चाहिए,
        छल कपट और द्वेष से आँचल बचाना चाहिए।
        अन्य की त्रुटियां निकालें, अपने गुण पर गर्व हो,
        ऐसे लोगों को हमें दर्पण दिखाना चाहिए।

बज़्म-ए-इश्क़ ग़ज़ल संग्रह से
         रहबरी भी देख ली और रहनुमाई देख ली,
         बे-वफ़ा दुनिया की हमने बे-वफ़ाई देख ली।
         अपनी क़िस्मत में कहां हैं आपकी नज़रों के जाम,
         हमको ख़ाली ही मिली शीशा-सुराही देख ली।

धीर साहब के कुछ और अशआर जो मुझे पसंद हैं :

           इश्क़ हर तौर ही इंसां को मज़ा देता है,
           दर्द देता है मगर ख़ुद ही दवा देता है।

चोर से कहें चोरी कर,शाह से कहें जागना,
आज रहनुमाओं की ये ही रहनुमाई है।

शिकवा ही रहा है कि फ़क़त आपने हमें,
बस दिल से खेलने का ही सामान बनाया।

हम बड़े शौक़ से ग़म उठाते रहे,
चोट खाते रहे,मुस्कुराते रहे।

धीर जी एक स्थान पर अपने नगर बरेली के बारे में कहते हैं :

         यह तो नाथों की नगरी है, इसकी हर छटा निराली है,
       शिव और शंकर के संगम से इस नगरी में ख़ुशहाली है।

धीर जी की काव्य चेतना का एक और सकारात्मक भक्तिमय रूप देखिए :

      मां ऐसी शक्ति प्रदान करो,
      पालन में अपना धर्म करूं।
      उपकार करूं हर मानव का,
      अनुभव ना इसमें धर्म करूं।
    
अपने एक गीत में आप कहते हैं : 

       आज गगन में काले बादल छाए हैं,
       तुम पूनम की याद दिलाना मत साथी।
       'धीर' भरत का भारत संकटग्रस्त हुआ,
       तुम अतीत की याद दिलाना मत साथी।

कविता या शायरी वही कामयाब कही जाती है जो श्रोता/पाठक को आह! या वाह! करने को मजबूर करे,उसके दिल के तारों को झंकृत कर दे।धीर साहब की कविता/शायरी में यह तासीर मौजूद है।उनकी कविता की एक-एक पंक्ति आम जन से सीधा संवाद करती हुई प्रतीत होती है।
मेरी यही कामना है की धीर साहब शतायु हों और इसी तरह इल्म-ओ-अदब के चराग़ रौशन करते रहें।अपनी इन चार पंक्तियों के साथ मैं वाणी को विराम देता हूं :
         महफ़िलों का नूर हैं, शृंगार हैं,
         सबकी चाहत हैं सभी का प्यार हैं।
         कहते हैं हम सब जिन्हें रणधीर जी,
         वो अदब के इक बड़े फ़नकार हैं।
                ---ओंकार सिंह विवेक


प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक
                ग़ज़लकार/समीक्षक/कॉन्टेंट राइटर/ब्लॉगर
                (ब्लॉगर पॉलिसी के तहत सर्वाधिकार सुरक्षित)




          


September 23, 2022

गाँव-गाँव की बात

   

गाँव-गाँव की बात 

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नीचे जो शानदार तस्वीरें आप देख रहे हैं ये किसी महानगर का दृश्य नहीं है बल्कि बारिश में भीगते स्विट्जरलैंड के एक गाँव का दृश्य है।चौंक गए न आप! यह सुनकर परंतु यही सच है। स्विट्जरलैंड के ही किसी व्यक्ति ने लाइव वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड किया था।मुझे यह चित्र बहुत अच्छा लगा सो मैंने साभार इसका स्क्रीनशॉट लेकर आपके साथ साझा कर दिया।

(सभी चित्र गूगल/सोशल मीडिया से साभार)
अगर ध्यान से देखें तो हमें यह किसी पहाड़ी नगर का मनभावन दृश्य-सा लगता है जबकि यह एक छोटे से यूरोपीय देश स्विटजरलैंड के किसी गाँव की मोहक तस्वीरें हैं।इसी से अंदाज़ा हो जाता है कि शहरों की बात तो छोड़ ही दीजिए यूरोपीय देशों के गाँव भी कितने विकसित हैं।
यदपि अपने देश में भी अब ग्रामीण विकास के लिए काफ़ी सराहनीय प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन दिल्ली अभी बहुत दूर है।
भारत की अर्थव्यवस्था पूर्ण रूप से गाँवों पर टिकी है। कृषि प्रधान भारत देश की 60 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में बसती हैं और उसका मुख्य कार्य कृषि और पशुपालन ही है।अतः आधे भारत की अनदेखी करके भारत प्रगति के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता।इसलिए कृषि,उद्योग,शिक्षा,चिकित्सा, बिजली,सड़क और संपर्क मार्गों तथा स्वच्छ पानी आदि की समस्याओं को लेकर हमारे यहां अभी बहुत कुछ करने की ज़रूरत है। नि:संदेह पहले की अपेक्षा हर मामले में भारतीय गाँवों की तस्वीर बदली है परंतु आज भी ऐसे बहुत से गाँव मौजूद हैं जैसी तस्वीर नीचे साझा की गई है :
चित्र : गूगल से साभार 
समय-समय पर केंद्र सरकार की ओर से गाँवों के चहुमुखी विकास के लिए कदम उठाए गये हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय गंभीरता से योजनाएँ बनाकर उनका क्रियान्वयन भी कर रहा है।
बेरोज़गरी निवारण,  प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना, मनरेगा, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, अटल आवास योजना, स्वच्छता कार्यक्रम, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, जननी सुरक्षा योजना, विद्युत् कनेक्शन योजना आदि सरकारी योजनाओं से गाँवों के स्तर को सुधारने में बड़ा लाभ हुआ है परंतु इस दिशा में मज़बूत इच्छा शक्ति के साथ अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। तेज़ी से होता शहरीकरण भी गाँवों के विकास की यात्रा को बाधित करने का एक बड़ा कारण है।शहरीकरण और ग्रामीण विकास में संतुलन बनाकर चलना होगा।
महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत की आत्मा गाँव में बसती है अत: गाँवों की समस्याओं को हल करके ही भारत का विकास संभव है। सभ्यता और संस्कृति के संरक्षण के लिए गाँव में अधिक से अधिक आधुनिक सुख सुविधाएँ एवं उद्योगों की स्थापना करके भारत को विकास के पथ पर  बढ़ाया जा सकता है।
तो आइए इस दिशा में गंभीरता से सोचकर सार्थक प्रयास करें ताकि किसी भारतीय गाँव की ऐसी तस्वीर न रहे जैसी ऊपर के चित्र में दिखाई देती है।
अंत में ताहिर अज़ीम साहब के इस शेर के साथ आपसे इजाज़त चाहता हूं :
 शहर की इस भीड़ में  चल तो रहा हूँ,

  ज़ेहन में पर गाँव का नक़्शा रखा है।

            ---- शायर ताहिर अज़ीम      

रिमझिम यह बरसात👌👌☘️☘️

ओंकार सिंह विवेक 

September 22, 2022

जब चलेंगे वक्त की रफ़्तार से

मित्रो काफ़ी पहले एक ग़ज़ल कही थी जिसमें सिर्फ़ पांच शेर ही हो पाए थे। अब फ़िक्र बढ़ी तो उसमें कुछ और शेर कहे और इस तरह यह सात अशआर की एक मुकम्मल ग़ज़ल हो गई।इस दौरान कुछ नए अनुभव हुए,समाज में तेजी से परिवर्तित हो रहे घटनाक्रम पर नज़र गई तो उन तमाम भावों और कथ्यों को ग़ज़ल में पिरो दिया। अपने जज़्बात को काव्य रूप में आपकी अदालत में प्रतिक्रिया की आशा के साथ प्रस्तुत कर रहा हूं:
ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक
🌹
हो   ज़रा   सादा-सरल  व्यवहार  से,
और बशर आला भी हो किरदार से।
🌹
कितनी  ख़बरों  में  मिलावट हो गई,
सच  पता  चलता  नहीं अख़बार से।
🌹
काश! नफ़रत   बाँटने   वाले  कभी,
जीतकर  देखें  दिलों  को  प्यार  से।
🌹
पैरवी   करते    रहे    सच्चाई   की,
हम  गिरे  हरगिज़  नहीं  मेआर  से।
🌹
लाख  कोशिश  कीजिए,होगा  नहीं-
काम  सूई  का   कभी  तलवार  से।
🌹
नाश  हो  इस  कलमुँही महँगाई का,
छीन   लीं   सब  रौनकें  त्योहार  से।
🌹
कामयाबी  भी   मिलेगी   एक  दिन,
जब  चलेंगे  वक़्त   की  रफ़्तार  से।
 🌹       ©️  ओंकार सिंह विवेक 



(ब्लॉगर की पॉलिसी के तहत सर्वाधिकार सुरक्षित)

तलाश किताब के नाम की

 तलाश किताब के नाम की
दोस्तो आप सबको पता ही है कि "दर्द का एहसास" के नाम से मेरा पहला ग़ज़ल संकलन वर्ष 2021 में आ चुका है।उसके रस्म-ए-इजरा (लोकार्पण)और समीक्षा आदि से संबंधित कई ब्लॉग पोस्ट्स में पहले आप लोगों के साथ साझा कर चुका हूं। स्मरण हेतु पुन: उसका कवर पेज आपके साथ साझा कर रहा हूं :
आजकल मैं अपने दूसरे ग़ज़ल संकलन की तैयारी को अंतिम रूप देने में लगा हुआ हूं। मेरा पिछला संकलन 58 ग़ज़लों का 80 पृष्ठों की पुस्तक के रूप में छपा था।इस बार  85-90 ग़ज़लों का लगभग 120 पृष्ठ का संकलन छपवाने की योजना है।अपनी तरफ़ से पांडुलिपि लगभग तैयार कर चुका हूं बस कुछ ग़ज़लों पर नज़र-ए-सानी (अंतिम नज़र डालना) कर रहा हूं।कुछ ग़ज़लों को जब पुन: पढ़ता हूं तो कहन की दृष्टि से बार-बार कुछ न कुछ सुधार की ज़रूरत महसूस होने लगती है।यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। जैसे-जैसे हमारा ज्ञान और चिंतन विकसित होता है,हमें अपने पुराने सृजन में सुधार की गुंजाइश महसूस होने लगती है।ऐसा आपके साथ भी अवश्य होता होगा। अध्ययन,सृजन और सीखने की यह प्यास जीवन भर बनी रहनी चाहिए,ऐसा मैं मानता हूं।

किताब छपवाना भी किसी साधना से कम नहीं होता।सबसे पहले जतन से अच्छा कॉन्टेंट तैयार करना,उसको बार-बार परिष्कृत करके स्तरीय बनाना फिर पांडुलिपि को किसी विषय विशेषज्ञ को समीक्षा करने या भूमिका लिखने के लिए भेजना , विद्वजनों से आशीर्वाद स्वरूप उनके संदेश प्राप्त करना आदि आदि। फिर किताब को प्रेस में देना उसके बाद प्रूफ रीडिंग ,सेटिंग और तरतीब देना आदि अनेक महत्वपूर्ण काम पूरी मेहनत और एकाग्रता चाहते हैं।इन सबके के लिए मानसिक शक्ति, समय प्रबंधन तथा आर्थिक संसाधन आदि की ज़रूरत होती है।फिर किताब के विमोचन/लोकार्पण आदि का प्रबंध करना,जिनसे कार्यक्रम में समीक्षा करानी है उन्हें पुस्तक उपलब्ध कराना और भी न जाने क्या क्या ---। यह सब सफलता पूर्वक संपन्न करना ऐसा ही आभास कराता है जैसे घर में शादी अथवा अन्य कोई समारोह आयोजित करा लिया गया हो।
यदि मन में समर्पण की भावना और कुछ करने की लगन हो तो कार्य अंजाम तक पहुंच ही जाता है। दोस्तो उम्मीद है कि आप सबके आशीर्वाद से यह काम भी पूर्ण हो ही जाएगा।

अब मुद्दे की बात पर आता हूं। दरअस्ल इस ग़ज़ल संकलन का मैं अभी तक कोई शीर्षक/नाम नहीं चुन पाया हूं अत: आप सबसे आग्रह करता हूं कि मेरे आने वाले ग़ज़ल संग्रह का कोई उपयुक्त नाम सुझाइए और इस ब्लॉग पोस्ट के कॉमेंट बॉक्स में मुझे लिख भेजिए। वैसे तो आप सब सुधी पाठक/साहित्यकार बंधु मेरे रचना कर्म से भली भांति परिचित हैं क्योंकि मैं अपनी सभी ग़ज़लें और अन्य रचनाएँ निरंतर ब्लॉग पर साझा करता रहता हूं फिर भी संदर्भ के लिए बता दूं कि मेरी ग़ज़लों का कथ्य सामाजिक विसंगतियों और जन सरोकारों से जुड़ा होता है।
यदि सुझाया गया नाम पसंद आया तो मैं किताब का नाम सुझाने वाले व्यक्ति का उल्लेख "आत्म निवेदन" में करूंगा और किताब की एक प्रति भी भेंट करूंगा।


सादर 🙏🙏
ओंकार सिंह विवेक 

September 19, 2022

अखिल भारतीय काव्य धारा रामपुर का लखनऊ कवि सम्मेलन



अखिल भारतीय काव्यधारा रामपुर की लखनऊ इकाई का आज़ादी का अमृत महोत्सव कवि सम्मेलन तथा साहित्यकार सम्मान समारोह 
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         --- ओंकार सिंह विवेक 
वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय श्री जितेंद्र कमल आनंद जी द्वारा स्थापित अखिल भारतीय काव्य धारा साहित्यिक संस्था की लखनऊ शाखा द्वारा दिनांक १८सितंबर ,२०२२ को बंसल लॉन, विक्रमनगर, मानक नगर लखनऊ में एक शानदार कवि सम्मेलन और साहित्यकार सम्मान समारोह का आयोजन संपन्न हुआ।

इस कार्यक्रम में स्थानीय साहित्यकारों के अतिरिक्त दूर-दूर से आए २५ साहित्यकारों को सम्मानित किया गया।

सांय ५ बजे कार्यक्रम के अध्यक्ष जितेंद्र कमल आनंद,मुख्य अतिथि ओंकार सिंह विवेक,डाक्टर शिवभजन कमलेश, प्रेमशंकर शास्त्री तथा विशिष्ठ अतिथि देवेंद्र सिंह यादव जीतू जी ने मां सरस्वती की छवि के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलित और पुष्प अर्पित करके कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए बरेली की साहित्यकार राजबाला धैर्य द्वारा सर्वप्रथम रश्मि लहर जी को सरस्वती वंदना हेतु मंच पर आमंत्रित किया गया।इसके पश्चात साहित्यकारों को क्रमवार रचना पाठ हेतु आमंत्रित किया जाता रहा।सभी रचनाकारों ने आज़ादी का अमृत महोत्सव, राजभाषा हिंदी और अन्य विभिन्न सामयिक विषयों को लेकर अपनी मोहक प्रस्तुतियों से देर रात तक चले इस कार्यक्रम में श्रोताओं को बांधे रखा।
कुछ रचनाकारों के कविता पाठ की पंक्तियां आवलोकनार्थ प्रस्तुत हैं :
बरेली से राजबाला धैर्य 
 जाति धर्म पर लफड़े-झगड़े,क्षेत्रवाद पर दंगे, 
 भूल सभ्यता देवभूमि की काम करें बेढंगे। 

संस्था-अध्यक्ष जितेंद्र कमल आनंद रामपुर से
 आंधियाँ आएँ तो आने दो कमल,
लिपटी शाखों से तितलियां देखीं।

लखनऊ से डा शिव भजन कमलेश 
आँधियों सर उठाओ नहीं, हम अमन चाहते, 
तुम सताओं नहीं।

रामपुर से पंडित जगदीश शर्मा मधुर
 सीमा पर एक जवान जो शहीद हो गया, 
 वीरता के बीज वो भारत में बो गया।  

 लखनऊ से वर्षा श्रीवास्तव 
 लोरियों की धुन सी लग रही हैं गीतिका, 
 अक्षरों का ज्ञान दे रहीं हैं वीथिका।
 गीत लग रहें हैं जैसे यज्ञ का हवन, 
 हिन्द को प्रणाम मेरी, हिन्दी को प्रणाम।

रामपुर से ग़ज़लकार ओंकार सिंह विवेक ने हिंदी भाषा को लेकर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा :

अंगरेजी ने आज सब, बदल दिया परिवेश,
कहां  रह  गया हिंद अब, हिंदी वाला देश।

सब भाषाएं सीखिए,लेकिन रखिए ध्यान,
किसी दशा में हो नहीं,हिंदी का अपमान।

लखनऊ से अशोक पाण्डेय अनहद
 पूरे भारत संग जगत में अलख जगाएं ऐसी, 
 दुनिया का संपर्क सूत्र बन जाए हिंदी भाषा। 

लखनऊ से कवयित्री रश्मि लहर 
काश हो ना युद्ध, ना संहार फिर,
देश के नव-रुप को आते लिखूँ अब। 
इन कवियों के अतिरिक्त संजय कुमार श्रीवास्तव सागर, मनोज यादव, संजय हमनवा,कुलदीप नारायण, मीना लोकेश,रेनू यादव, सुरेखा अग्रवाल स्वरा, पूनम मिश्रा, प्रिया सिंह, स्वधा रविंद्र उत्कर्षिता, महेंद्र पाल सिंह यादव, डॉ आलोक कुमार यादव आदि साहित्यकारों ने भी अपना काव्य पाठ प्रस्तुत किया।

काव्यपाठ के मध्य ही साहित्यिक सेवाओं हेतु साहित्यकारों को प्रशस्ति पत्र और अंगवस्त्र आदि भेंट करके अखिल भारतीय काव्य धारा और सुरभि कल्चरल ग्रुप द्वारा सम्मानित करने का सिलसिला निरंतर जारी रहा। 
कार्यक्रम में संस्था द्वारा प्रकाशित "आज़ादी का अमृत महोत्सव" काव्य संग्रह का मंचासीन अतिथियों द्वारा लोकार्पण भी किया गया। 

इस बीच काव्यधारा की लखनऊ इकाई का गठन करते हुए संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने रश्मि लहर जी को उपाध्यक्ष तथा आचार्य प्रेम शंकर शास्त्री जी को महासचिव नियुक्त किया। शैलेंद्र सक्सैना जी पूर्व में ही संस्था के सचिव नियुक्त किए जा चुके हैं।
कार्यक्रम के कुछ और चित्र तथा मीडिया कवरेज

कार्यक्रम के अंत में समापन भाषण में मुख्य अथिति ओंकार सिंह विवेक ने कहा कि संस्था और इसके संस्थापक श्री आनंद जी द्वारा हिंदी के संवर्धन  हेतु किए जा रहे प्रयास वंदनीय हैं ।उन्होंने कहा कि लोगों को ऐसी संस्थाओं का तन-मन और धन से सहयोग करना चाहिए। मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर शिवभजन कमलेश जी ने संस्था के संरक्षक श्री आनंद जी के बड़े भाई प्रसिद्ध साहित्यकार श्री वीरेन्द्र सरल जी के साथ अपने आत्मीय संबंध और अपनी साहित्यिक यात्रा का स्मरण करते हुए संस्था की उत्तरोत्तर प्रगति की कामना की। विशिष्ट अतिथि श्री देवेंद्र सिंह यादव जीतू जी ने संस्था के ऐसे आयोजनों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए भविष्य में भी ऐसे आयोजनों में अपनी ओर से हर संभव मदद का आश्वासन दिया।संस्था-अध्यक्ष श्री आनंद जी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करके उनका उद्देश्य हिंदी भाषा की सेवा करना और नए साहित्यकारों को मंच प्रदान करके उनकी प्रतिभा को निखारना हैं।संस्था की लखनऊ इकाई के महासचिव श्री प्रेम शंकर शास्त्री जी ने अपने काव्य पाठ के उपरांत सभी आगंतुकों का आभार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम समापन की घोषणा की। कार्यक्रम को सफल बनाने में संस्था के अन्य पदाधिकारियों के अतिरिक्त सचिव शैलेंद्र सक्सैना जी और उनकी धर्म पत्नी का विशेष सहयोग रहा।

     ओंकार सिंह विवेक
     गजलकार,समीक्षक, कॉन्टेंट राइटर, ब्लॉगर
 (ब्लॉगर की कॉन्टेंट पॉलिसी के तहत सर्वाधिकार सुरक्षित)




  

September 15, 2022

वाह रे ! क़ुदरत

शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏

आज सवेरे के सुहावने मौसम का अवलोकन करते हुए मुझे यह पोस्ट लिखने में बहुत आनंद की अनुभूति हो रही है।प्रकृति के साथ मनुष्य द्वारा किए जा रहे खिलवाड़ और उसके दुष्परिणामों के बारे में पहले भी कई अवसरों पर मैं अपने ब्लॉग पर लिख चुका हूं।
इस समय लिखने बैठा हूं तो मुझे किसी पुरानी फ़िल्म की ये दो पंक्तियां सहसा स्मरण हो आईं:

           क़ुदरत  के   खेल   निराले   मेरे   भैया,
           क़ुदरत का लिखा कौन टाले मेरे भैया।

सचमुच  क़ुदरत के आगे किसी का कोई वश नहीं चलता मगर यह भी सच है की यदि हम इसके साथ संतुलन बनाकर चलें तो यह आदमी को अनमोल उपहार भी प्रदान करती है।जंगल,नदी, पहाड़,फल-फूल और पेड़-पौधों का जो अनमोल तोहफ़ा   क़ुदरत ने हमें बख़्शा है उसका कोई तोड़ नहीं है।आदमी के व्यवहार से कुपित होकर प्रकृति जो अपना रौद्र रुप दिखाती है वह भी किसी से छिपा नहीं है। यह हमें आजकल मौसमों के असंतुलित और अप्रत्याशित व्यवहार से साफ़ पता चल रहा है।अब न तो गर्मी और जाड़े के मौसम में वांछित अनुपात में गर्मी और सर्दी ही पड़ती है और न ही बारिश के मौसम में कुछ हिस्सों में आवश्यकता के अनुरूप बारिश होती है।कहीं सुखा ही सूखा तो कहीं सैलाब के हालत पैदा हो जाते हैं।मौसमों का यह असंतुलन दुनिया में विद्यमान हर चीज़ के अस्तित्व के लिए खतरे की घंटी है।
काश! दुनिया इस विचार करे और प्रगति की इस अंधी दौड़ में  क़ुदरत के साथ अनावश्यक छेड़-छाड़ करने से बचे।यह निरंतर चिंता का विषय है कि अब अक्सर मौसम वैज्ञानिकों की भविष्यवाणियां भी ग़लत साबित होती जा रही हैं।इस बार भी ऐसा ही देखने में आया।वर्षा ऋतु के प्रारंभ में ही मौसम वैज्ञानिकों ने कहा था कि इस बार आशा के अनुरूप भरपूर बारिश होगी किंतु ऐसा नहीं हुआ।इस बार देश के तमाम हिस्सों में ५०प्रतिशत से भी कम बारिश हुई जो फसलों के लिए अभिशाप सिद्ध हुई। यह अलग बात है कि कुछ हिस्से भयानक बाढ़ की चपेट में भी आए।

इधर हमारे क्षेत्र रुहेलखंड (उत्तर प्रदेश) में इस बार मौसम का लंबा सूखा झेलने के बाद एक अच्छी ख़बर की संभावना हो रही है। इस क्षेत्र में १६ और १७ सितंबर को अच्छी बारिश की संभावना बताई जा रही है।प्रदेश की  ग्रामीण कृषि मौसम इकाई के अनुसारअगर २० से ३० मिलीमीटर तक वर्षा होती है तो फसल को लाभ रहेगा लेकिन इससे अधिक वर्षा होने पर फसल को नुक़सान भी हो सकता है।कई जगह बुधवार को आसमान में छाए बादल धरती पर मेहरबान भी हुए।शीतल हवाओं ने भी मौसम को खुशगवार बनाया।तापमान की गिरावट ने भी भारी उमस से थोड़ी राहत प्रदान की है।
काश ! मौसम यूं ही खुशगवार बना रहे और आशा के अनुरूप ही इंद्र देवता जग को अपनी कृपा का पात्र बनाएं इसी आशा के साथ लीजिए मेरी ताज़ा ग़ज़ल का आनंद :

 
(ब्लॉगर की पॉलिसी की तहत कंटेंट के सभी अधिकार सुरक्षित)


---ओंकार सिंह विवेक 

September 14, 2022

हिंदी दिवस पर

शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏

आज हिंदी दिवस है । सभी को इस अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।हिंदी को लेकर आज बड़े- बड़े व्याख्यान और साहित्यिक आयोजन होंगे किन्तु एक-दो दिन बाद फिर वही सन्नाटा हो जाएगा। सब अंग्रेजी में लिखने और बात करने पर गर्व करने लगेंगे जो दुर्भाग्यपूर्ण है।विश्व की कोई भी भाषा सीखना बुरी बात नहीं है परंतु अपनी राज भाषा/राष्ट्र भाषा या मातृ भाषा की अनदेखी करके ऐसा करना बिल्कुल उचित नहीं होगा।हिंदी का ह्रदय बहुत विशाल है इसने अंग्रेज़ी,उर्दू, फ़ारसी और भी न जाने कितनी विदेशी भाषाओं के शब्दों को बड़े प्रेम से आत्मसात कर लिया है। पिछले कई सालों में परिस्थितियां बहुत बदली हैं।हिंदी अंतरराष्ट्रीय स्तरपर अपना लोहा मनवा रही है।हमारे देश के प्रधानमंत्री और अन्य गणमान्य नेता आज अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिंदी में अपनी बात रखते हैं और लोग ध्यान से सुनते तथा प्रोत्साहन देते हैं।आज चीन और जापान जैसे देश अपनी मातृ भाषा के महत्व को जिस प्रकार  समझकर आगे बढ़ रहे हैं हमें भी इसी का अनुसरण करने की आवश्यकता है।

मुक्तक : हिंदी
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      --ओंकार सिंह विवेक
 
हमारे देश के इतिहास की पहचान है हिंदी,

नहीं है झूठ कुछ इसमें,हमारी शान है हिंदी।

विदेशी लोग भी अब गर्व से यह बात कहते हैं,

इसे हम क्यों नहीं सीखें, बहुत आसान है हिंदी।
         ---ओंकार सिंह विवेक
🌹
सब सीखें समझें इसको सबसे इसको सम्मान मिले,
चार दिशाओं में सुनने को हिंदी मंगल गान मिले।
आओ हम सब हिंदी भाषी मिलकर ऐसा काम करें,
हिंदी हो जन-जन की भाषा इसको नव पहचान मिले।
🌹

आज दो दोहे हिंदी भाषा को लेकर कुछ यों भी हुए
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                  ---ओंकार सिंह विवेक
अँगरेज़ी ने आज सब ,बदल दिया परिवेश,
कहाँ रह  गया हिंद अब, हिंदी  वाला  देश।

सब भाषाएँ सीखिए, लेकिन रखिए ध्यान,
किसी दशा  में  हो नहीं,हिंदी का अपमान।
           ---ओंकार सिंह विवेक
  

(सर्वाधिकार सुरक्षित)
ओंकार सिंह विवेक

 

September 12, 2022

राष्ट्रीय समूहगान प्रतियोगिता : भारत विकास परिषद रामपुर इकाई

मुझे एक पुरानी फिल्म "गंगा-जमुना" के गाने की कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं :
        इंसाफ़ की डगर पे बच्चो दिखाओ चल के,
         ये देश  है तुम्हारा, नेता  तुम्हीं हो कल के।
इस मार्मिक गाने को आप पूरा सुनिए।इसका एक-एक बोल बिल्कुल सच्चा और अच्छा है।हमारी ये नई नस्ल/ये बच्चे ही तो कल का भारत हैं।इन्हें ही तो कल सत्ता/शासन और प्रशासन संभालना है। यदि इन्हें देशप्रेम ,संस्कार , इंसाफ़, ईमानदारी और नैतिक मूल्यों का पाठ पढ़ाया जाएगा तभी तो हमारा देश सुरक्षित हाथों में जाएगा। हम सोचकर देखें कि क्या यह काम परिवार,समाज,प्रांत या राष्ट्रीय स्तर पर इतनी गंभीरता से हो रहा है जितनी गंभीरता से होना चाहिए।यदि हो भी रहा है तो कितने लोग या संस्थाएँ ऐसा कर रही हैं।जवाब होगा बहुत कम लोग या संस्थाएं। मेरे विचार से राष्ट्रीय हित के इस मुद्दे पर भारत विकास परिषद या संस्कार भारती जैसी संस्थाएं ही वांछित सक्रियता से काम करती नज़र आती हैं। इस दिशा में अभी और व्यापक रूप से क़दम उठाए जाने की आवश्यकता महसूस होती है। बच्चे बहुत मासूम और निर्दोष होते हैं उन्हें जिस परिवेश में ढाला जायेगा जिंदगी भर के लिए वैसे ही ढल जाएंगे। अत: जरूरी है कि उन्हें खिलखिलाने दें और हँसते-खेलते उनमें राष्ट्र प्रेम का भाव विकसित होने दें।मुझे किसी मशहूर कवि की ये पंक्तियां याद आती हैं :
      इन्हीं बच्चों से क़ायम हैं यहां मंज़र सुहाने से,
      इन्हीं से गूंजते हैं  हर  तरफ़  महके तराने से।
      अगर ये रूठ जाते हैं तो सारा घर सुबकता है,
       मेरा घर  मुस्कुराता  है इन्हीं के मुस्कुराने से।
                                     --अज्ञात
दिनांक ११ सितंबर,२०२२ को भारत विकास परिषद की मुख्य शाखा रामपुर के तत्वावधान में विभिन्न विद्यालयों के बच्चों की  ज़िला स्तर की हिंदी और संस्कृत भाषाओं की राष्ट्रीय समूहगान (देशभक्ति गीत) प्रतियोगिता का शानदार आयोजन किया गया।इस प्रतियोगिता में जो प्रतिभागी बच्चे श्रेष्ठ स्थान प्राप्त करेंगे उन्हें आगामी प्रांतीय और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन का अवसर प्राप्त होगा।कार्यक्रम में सभी बच्चों द्वारा अपनी शानदार प्रस्तुतियां दी गईं। प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल में संगीत और गायन के क्षेत्र के ख्याति प्राप्त लोगों को रखा गया था जिन्होंने बच्चों के प्रदर्शन पर सूक्ष्म दृष्टि रखते हुए निष्पक्षता से अपने दायित्वों का निर्वहन किया।निर्णायक मंडल ने बच्चों के प्रदर्शन की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए उन्हें अपने प्रदर्शन में निखार हेतु महत्वपूर्ण टिप्स भी दिए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश सरकार के दर्जा मंत्री श्री सूर्य प्रकाश पाल जी रहे तथा कुशल संचालन ऐडवोकेट श्री राजीव अग्रवाल जी द्वारा किया गया।
आयोजन में अध्यक्ष श्री रविंद्र कुमार गुप्ता जी के कुशल निर्देशन में परिषद के सभी दायित्वधारियों ने अपने दायित्वों का कुशलता से निर्वहन करते हुए कार्यक्रम को अपेक्षा से अधिक सफल बनाने में कोई कोर कसर बाक़ी नहीं छोड़ी। कार्यक्रम में सभी आमंत्रित मेहमानों तथा प्रतिभागियों के लिए उत्तम जलपान और भोजन का प्रबंध किया गया था।
राष्ट्रीय जागरण की भावना को बल प्रदान करते भारत विकास परिषद के ऐसे प्रयास सराहनीय और वंदनीय हैं।

प्रस्तुत कर्ता : ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/कॉन्टेंट राइटर/ब्लॉगर
(सर्वाधिकार सुरक्षित)








September 10, 2022

मुलाक़ात अच्छे लोगों से

शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏

अभी दो दिन पहले एक फोन आया। मैंने फोन रिसीव किया तो उधर से आवाज़ आई कि क्या आप ओंकार सिंह विवेक जी बोल रहे हैं? मैंने कहा जी बोल रहा हूं,आप कौन साहब? फोन करने वाले सज्जन ने कहा कि मैं रुड़की(उत्तराखंड) से शायर ओमप्रकाश नूर बोल रहा हूं।कल व्हाट्सएप ग्रुप "ग़ज़लों की महफ़िल" में आपकी ग़ज़ल पढ़ी थी जो काफ़ी पसंद आई।हम उसे "सदीनामा" पत्रिका में छपवाना चाहते हैं। ग़ज़ल पसंद करने के लिए मैंने उनका शुक्रिया अदा किया और सहर्ष स्वीकृति दे दी।एक साहित्यकार को इससे ज़ियादा भला क्या दरकार होगा कि उसका कलाम कहीं छपता-छपाता रहे और लोग उसको सराहते रहें।

बातचीत का माहौल अनौपचारिक हो गया तो उनसे काफ़ी देर बातें हुईं।मुझे नूर साहब बहुत दिलचस्प इंसान लगे।कोशिश रहेगी कि कभी उनसे व्यक्तिगत भेंट भी हो पाए।उन्होंने बताया कि इस समय लखनऊ के शायर जनाब ओमप्रकाश नदीम साहब मेरे पास बैठे हुए हैं। मुझे आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता हुई और मैंने तत्काल ही कहा कि ज़रा बात कराइए उनसे।

नदीम साहब से जब बात की तो उनका वही पुराना अनौपचारिक और आत्मीय अंदाज़  दिल को बाग़-बाग़ कर गया। रामपुर में साथ के लोग कैसे हैं, नशिस्तों और गोष्ठियों का क्या हाल है, रामपुर के पास स्थित बेनज़ीर के बाग़ के आम बहुत याद आते हैं  आदि आदि-- एक ही सांस में तमाम बातें बड़ी अपनाइयत के साथ नदीम साहब पूछते रहे और मैं जवाब देता रहा।शायरों और कवियों में मुर्तज़ा फरहत,सीन शीन आलम, होश नोमानी, शहज़ादा गुलरेज़ नईम नजमी,हीरालाल किरन,जितेंद्र कमल आनंद सहित कितने ही लोगों के बारे में उन्होंने बहुत उत्साह के साथ मुझसे जानकारी ली। इस आत्मीय बातचीत के चलते मुझे रामपुर में उनकी पोस्टिंग के दौरान उनकी संगत में बिताए गए दिन सहसा याद आ गए।
बात उन दिनों की है जब मैं रामपुर में ही प्रथमा बैंक में तैनात था और नदीम साहब पी डब्ल्यू डी कार्यालय में अकाउंट्स अफ़सर थे। वो मेरी शायरी का इब्तदाई दौर था।नदीम साहब से शायरी/ग़ज़ल और उसकी कहन के बारे में मैंने बहुत कुछ सीखा था। एक दूसरे के घर पर भी आना-जाना होता रहता था।। मैं जब कभी नदीम साहब के घर गया तो मैंने कभी उन्हें औपचारिक होते नहीं देखा।बड़ी आत्मीयता से मिलना और घर के सदस्य की तरह ही खाने-खिलाने का इसरार करना उनके मस्तमौला स्वभाव का परिचायक था। रामपुर में आयोजित होने वाली गोष्ठियों और नशिस्तों में हम लोग मेरे पुराने स्कूटर पर अक्सर साथ ही आया-जाया करते थे। एक बार एक गोष्ठी में जाते वक्त संतुलन बिगड़ जाने की वजह से मेरा स्कूटर स्लिप हो गया और हम दोनों काफ़ी दूर तक सड़क पर फिसलते चले गए।दोनों के ही अच्छे ख़ासे घुटने छिल गए थे। मैंने कहा कि अब घर वापस चलते हैं यूं ज़ख्मी हालत में गोष्ठी में जाना मुनासिब नहीं होगा परंतु यह कहते हुए कि ऐसा तो होता ही रहता है,नदीम साहब इसरार करके मुझे गोष्ठी में ले गए। फोन पर इस घटना को याद करके नदीम साहब और मैं बहुत देर तक हँसते रहे। 
अरसे बाद एक उम्दा शायर और बेहतरीन इंसान से फोन पर बात करके बहुत अच्छा लगा।उम्मीद है यह सिलसिला चलता रहेगा। किसी शायर के इस शेर के साथ अपनी बात समाप्त करता हूं :
       कितने हसीन लोग थे जो मिलके एक बार,
       आँखों में  जज़्ब हो  गए दिल में समा गए।

   --- प्रस्तुतकर्ता ओंकार सिंह विवेक 

जिस ग़ज़ल को लेकर यह बातचीत का सिलसिला बना
 "सदीनामा" में छपी वह ग़ज़ल भी आप हज़रात की नज़्र करता हूं :

September 8, 2022

बज़्म-ए- अंदाज़-ए-बयां का तरही मुशायरा

दोस्तो नमस्कार🙏🙏🌹🌹

फेसबुक पर एक प्रतिष्ठित साहित्यिक समूह है जिसका नाम है "बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयां"।इस समूह के उत्कृष्ट साहित्यिक स्तर और अनुशासन के बारे में पहले भी मैं अपने ब्लॉग पर लिखता रहा हूं।
अपने कड़े अनुशासन-मानकों और समर्पित प्रशासक मंडल की सक्रियता के चलते यह समूह उत्तरोत्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर है।
समूह के इस बार के तरही मुशायरे के आयोजन में मेरी भी हिस्सेदारी रही। मैं समूह के योग्य निर्णायक मंडल का ह्रदय से आभार प्रकट करता हूं कि उन्होंने मेरी तरही ग़ज़ल को प्रथम पुरस्कार हेतु चुना। मेरी ह्रदय से यही कामना है कि यह समूह संस्थापक श्री अश्क चिरैयाकोटी जी के कुशल निर्देशन में यों ही साहित्य के आकाश में अपनी यश-पताका लहराता रहे।

इस आयोजन में दिए गए तरही मिसरे पर कही गई अपनी ग़ज़ल आपकी प्रतिक्रिया हेतु प्रस्तुत कर रहा हूँ :

तरही मुशायरे का मिसरा -- मुझको उल्फ़त सिखा गया कोई
ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक 
झूठ   को   सच   बता   गया  कोई,
रंग    अपना    दिखा   गया   कोई।

क्या ये कम है  कि दौर-ए-हाज़िर में,
क़ौल  अपना   निभा    गया   कोई।

ज़ेहन   में    है  अजीब-सी  हलचल,
शेर    जब से     सुना    गया   कोई।

रात  को  कह  रहा   है   दिन  देखो,
उसको   इतना   डरा    गया   कोई।

हाय ! मज़दूर आज  फिर  मिल  में,
क्रेन   के   नीचे    आ    गया  कोई।

ज़िंदगानी     सँवर      गई,   जबसे-
"मुझको  उल्फ़त  सिखा गया कोई।"

चार   दिन   की    है  ज़िंदगी  प्यारे!
साधु    गाता    हुआ    गया   कोई।

दे   दिया   अपना   कौर  भी   उसने,
दर   पे  भूखा  जो   आ  गया  कोई।
       --- ओंकार सिंह विवेक
            (सर्वाधिकार सुरक्षित)
कुछ समय पहले इस बज़्म के स्थापना दिवस के अवसर पर मैंने कुछ मिसरे कहे थे।वो मिसरे भी आज आपके साथ साझा करना प्रासंगिक हो गया :
  ओंकार सिंह विवेक
🌹
है  भले  ऊँचा  बहुत इल्म-ओ-अदब  का  आसमां,
चूम  लेगी   पर   इसे   ये  बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयां।
🌹
नित   बड़ी  तादाद   में  जुड़ते   रहें  इससे   अदीब,
और   तेज़ी   से   यूं   ही   बढ़ता   रहे   ये   कारवां।
🌹
हो  कहीं  भी   गर  कोई  शेर-ओ-सुखन  की  गुफ्तगू,
हो ज़ुबां पर सबकी नाम-ए-बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयां।
🌹
अपनी  तो बस रोज़-ओ-शब ये कामना है अश्क जी,
काविशों    के    आपकी    होते    रहें    गाढ़े   निशां।
🌹
मजलिसें इल्म-ओ-अदब की  और भी  हैं पर 'विवेक',
बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयां  है, बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयां।
 🌹  ओंकार सिंह विवेक (सर्वाधिकार सुरक्षित)

September 6, 2022

भारत को जानो

भारत को जानो
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भारत विकास परिषद एक सेवा एवं संस्कार-उन्मुख अराजनैतिक, सामाजिक-सांस्कृतिक स्वयंसेवी संस्था है जो स्वामी विवेकानंद जी के आदर्शो को अपनाते हुए मानव-जीवन के सभी क्षेत्रों (संस्कृति, समाज, शिक्षा, नीति, अध्यात्म, राष्ट्रप्रेम आदि) में भारत के सर्वांगीण विकास के लिये समर्पित है। इसका लक्ष्यवाक्य है - "स्वस्थ, समर्थ, संस्कृत भारत"

भारत विकास परिषद द्वारा आज  6 सितंबर, 2022 को देश भर के विभिन्न विद्यालयों में "भारत को जानो" प्रतियोगिता का आयोजन कराया गया। इसी क्रम में परिषद की मुख्य शाखा रामपुर -उ०प्र० द्वारा भी परिषद के अध्यक्ष श्री रविंद्र कुमार गुप्ता जी के कुशल निर्देशन में प्रात: ९.३०बजे से जनपद के  विभिन्न विद्यालयों में जूनियर और सीनियर वर्ग की भारत को जानो प्रतियोगिता का आयोजन सफलता पूर्वक संपन्न कराया गया। छात्रों ने इस प्रतियोगिता में बढ़-चढ़कर प्रतिभाग किया गया।प्रतियोगिता में कुल ४५ प्रश्न पूछे गए।प्रश्न संख्या १से ४० तक बहुविकल्पीय प्रश्न थे जिनमें से सही उत्तर पर टिक मार्क अंकित करना था।प्रश्न संख्या ४१ से ४५ तक का छात्रों को सूक्ष्म उत्तर लिखना था। प्रतियोगिता कुल 50 अंक की थी।दोनों वर्गों से प्रत्येक विद्यालय से दो-दो सर्वश्रेष्ठ प्रतिभागियों का चयन करके उन्हें अंतर्विद्यालय स्तर पर प्रश्नमंच प्रतियोगिता में सहभागिता का अवसर प्रदान किया जाएगा।इसके पश्चात प्रतियोगिता के नियमों के अनुसार जनपद स्तर पर चुने गए सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थियों को प्रांत और क्षेत्रीय स्तर तथा फिर उसके आगे भी सहभागिता का अवसर मिलेगा तथा प्रोत्साहन पुरस्कार भी परिषद द्वारा प्रदान किए जाएंगे।
इस दौरान जैन इंटर कॉलेज रामपुर में आयोजित कराई गई प्रतियोगिता में सहयोग करने का मुझे भी अवसर प्राप्त हुआ।अवसर के कुछ छाया चित्र यहां अवलोकनार्थ साझा किए जा रहे हैं :

जैन इंटर कालेज में प्रतियोगिता के आयोजन में प्रधानाचार्य श्री हरीश डुडेजा जी का प्रबंधन सहयोग बहुत सराहनीय रहा। कॉलेज के अध्यापक गण डॉक्टर गौरव वार्ष्णेय जी, श्री प्रदीप राजपूत जी और श्री सक्सैना जी ने बहुत ही कुशलता पूर्वक प्रतियोगिता को संपन्न कराने में अपना महत्पूर्ण योगदान दिया।इसके लिए मैं इन सभी सम्मानित गुरुजनों का ह्रदय से आभार प्रकट करता हूं।
डॉक्टर गौरव वार्ष्णेय जी परिषद के प्रांतीय महासचिव भी हैं और बहुत व्यवहारिक और मिलनसार व्यक्ति हैं। उन्होंने अपने विस्तृत प्रांतीय दायित्वों का निर्वहन करते हुए भी हमें स्थानीय स्तर पर अपेक्षा से अधिक सहयोग प्रदान किया इसके लिए उन्हें पुन: धन्यवाद।भाई प्रदीप राजपूत साहब का भी दिल की गहराइयों से धन्यवाद जिन्होंने बहुत ही सादगी, शालीनता और शिद्दत के साथ हर आवश्यक सूचना उपलब्ध कराकर हमारा काम आसान किया। भाई प्रदीप राजपूत जी एक उम्दा शायर भी हैं जो माहिर तखल्लुस से अदब की दुनिया में अपनी ख़ास पहचान बनाए हुए हैं।कॉलेज के भौतिक विज्ञान के प्रवक्ता श्री सक्सैना साहब का भी बेहद शुक्रिया कि उन्होंने अपना अमूल्य समय देकर इस आयोजन को संपन्न कराने में सहयोग किया।
भविष्य में ऐसे आयोजनों की महती आवश्यकता है क्योंकि इससे नई पीढ़ी को अपने देश के इतिहास और संस्कृति को जानने तथा भारतीय संस्कारों को आत्मसात करने में मदद मिलेगी।
          अंत में अपनी ग़ज़ल के एक शेर के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूं :
              आओ सबका दर्द बांटें, सबसे  रिश्ता जोड़ लें,
               इस तरह इंसानियत का हक़ अदा हो जाएगा।
     ---ओंकार सिंह विवेक 
        (सर्वाधिकार सुरक्षित)

      

September 5, 2022

वाह रे ! बचपन

शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏

खाना - पीना, खेलना -कूदना और फिर थककर सो जाना । वाह!क्या मस्त दिन थे वे भी।भला बचपन के वे मस्त दिन किसको याद नहीं आते होंगे।न किसी के प्रति द्वेष भाव रखना,पल में लड़ना और पल में एक हो जाना ---- निष्कपट, निर्दोष और मासूमियत की मूरत।बच्चों को तभी तो भगवान का रूप कहा जाता है।हर आदमी सांसारिक तनाव से जूझते हुए अक्सर कह उठता है " काश ! मुझे कोई मेरा बचपन लौटा दे।"
पर गुज़रा ज़माना कहां लौटकर आता है।अब तो केवल स्मृतियों में ही जीवन के उस सुखद काल की कल्पना करके खुश हो लेते हैं।
उन्हीं स्मृतियों को ताज़ा करता हुआ एक मुक्तक सृजित हुआ है जो आप सुधी मित्रों की प्रतिक्रिया हेतु प्रस्तुत कर रहा हूं :

काग़ज़ी  नाव  जल  में  चलाने  लगे,
ख़ूब  छत   पर   पतंगें   उड़ाने  लगे।
स्वप्न में साथियो नित्य हम फिर वही,
सब  मज़े  बालपन  के  उठाने  लगे।
         ओंकार सिंह विवेक
    (सर्वाधिकार सुरक्षित)

September 2, 2022

किसको दिल के घाव दिखाए -----

साथियो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏
नवगीत गीत से थोड़ी भिन्नता लिए हिंदी साहित्य की एक लोकप्रिय काव्य विधा है। प्रतीकों और बिंबों का सटीक प्रयोग करते हुए सामाजिक विसंगतियों और विद्रूपताओं आदि पर आजकल बहुत ही मार्मिक नवगीतों का सृजन किया जा रहा है।
माहेश्वर तिवारी,डाक्टर श्याम मनोहर सिरोठिया और शिवानंद सिंह सहयोगी जैसे प्रसिद्ध नवगीतकार नई पीढ़ी के नवगीतकारों को प्रोत्साहन देते हुए उनका मार्गदर्शन कर रहे हैं।

"नवगीत का कार्य कोने में छिपी किसी अनछुई सामाजिक छुईमुई अनुभूति को समाज के समक्ष लाना है|    
          नवगीत न मांसल सौन्दर्य की कविता है और न संयोग-वियोग की स्मृतियाँ|
          नवगीत प्रथम पुरुष के जीवन की उठा-पटक, उत्पीड़न, गरीबी, साधनहीनता के संघर्ष की अभिव्यक्ति है|
          नवगीत हृदय प्रधान, छन्दबद्ध, प्रेम और संघर्ष का काव्य है. नवगीत की यह एक विशेषता है कि वह छंदबद्ध होकर भी किसी छंदवाद की लक्ष्मणरेखा के घेरे से नहीं लिपटा है|"                
प्रसिद्ध नवगीतकार शिवानंद सिंह सहयोगी

आज आपके समक्ष प्रस्तुत है मेरा हाल ही में कहा गया एक नवगीत। आशा है कि आप इसे पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराते हुए मेरा उत्साहवर्धन करेंगे।

नवगीत : ओंकार सिंह विवेक
🌹
किसको दिल के घाव दिखाए,  
नदिया बेचारी।     

रात और दिन अपशिष्टों का,
बोझा ढोती है।
तनिक नहीं आभास किसी को,
कितना रोती है।
कृत्य मनुज के हैं अब इसकी,
सांसों पर भारी।
किसको दिल के घाव -----

निर्मल है जल मेरा इसको,
निर्मल रहने दे।
रोक नहीं यों अविरल धारा,
मुझको बहने दे।
नित यह विनती करते-करते ,
मानव से हारी।
किसको दिल के घाव ----

आओ मिलकर इसके सारे,
दुख-संताप हरें।
पल-पल दूषित होती जल की,
धारा स्वच्छ करें।
मान इसे मिल जाए जिसकी,
है यह अधिकारी।
किसको दिल के घाव ----
 🌹 ओंकार सिंह विवेक
 (सर्वाधिकार सुरक्षित)



September 1, 2022

राजनीति के कुशल मछेरे

शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏

यों तो मैं मूलत: ग़ज़ल विधा का विद्यार्थी हूं परंतु रस परिवर्तन के लिए अक्सर दोहों, मुक्तकों और नवगीत तथा कुंडलिया आदि के माध्यम से भी भाव अभिव्यक्ति का प्रयास कर लेता हूं।कुछ दिन पूर्व चुनावी हलचल के दौरान राजनैतिक विसंगतियों और विराधाभासों को लेकर एक नवगीत का सृजन हुआ था जो आपके साथ साझा कर रहा हूं :

नवगीत : समीक्षार्थ
    --©️ओंकार सिंह विवेक

राजनीति के कुशल मछेरे,
फेंक रहे हैं जाल।

जिस घर में थी रखी बिछाकर,
वर्षों अपनी खाट।
उस घर से अब नेता जी का,
मन हो गया उचाट।
देखो यह चुनाव का मौसम,
क्या-क्या करे कमाल।।                   

घूम रहे हैं गली-गली में,
करते वे आखेट।
लेकिन सबसे कहते सुन लो,
देंगे हम भरपेट।
काश!समझ ले भोली जनता,
उनकी गहरी चाल।

कुछ लोगों के मन में कितना,
भरा हुआ है खोट।
धर्म-जाति का नशा सुँघाकर,     
माँग रहे हैं वोट।
ऊँचा कैसे रहे बताओ,
लोकतंत्र का भाल।

नैतिक मूल्यों, आदर्शों को,
कौन पूछता आज,
जोड़-तोड़ वालों के सिर ही,
सजता देखा ताज।
जाने कब अच्छे दिन आएँ,
कब सुधरे यह हाल।
    --- ©️ ओंकार सिंह विवेक


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