ग़ज़ल - ओंकार सिंह विवेक
आँसुओं से ज़ख्मे दिल धोते हुए,
ज़िन्दगी अपनी कटी रोते हुए।
दिल की नादानी नहीं तो और क्या,
है परेशां आपके होते हुए।
ख़्वाब से आँखें हों कैसे आशना ,
जागते रहते हैं हम सोते हुए।
मुद्दतें गुजरीं ज़माना हो गया ,
बोझ अहसानात का ढोते हुए।
कर रहे हैं मंज़िलों की जुस्तजू ,
लोग अपना हौसला खोते हुए।
----------------ओंकार सिंह विवेक
चित्र:गूगल से साभार
आँसुओं से ज़ख्मे दिल धोते हुए,
ज़िन्दगी अपनी कटी रोते हुए।
दिल की नादानी नहीं तो और क्या,
है परेशां आपके होते हुए।
ख़्वाब से आँखें हों कैसे आशना ,
जागते रहते हैं हम सोते हुए।
मुद्दतें गुजरीं ज़माना हो गया ,
बोझ अहसानात का ढोते हुए।
कर रहे हैं मंज़िलों की जुस्तजू ,
लोग अपना हौसला खोते हुए।
----------------ओंकार सिंह विवेक
चित्र:गूगल से साभार
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