मुक्तक
कभी सदमात देकर ख़ून के आँसू रुलाता है,
कभी ज़ख़्मों पे मेरे आप ही मरहम लगाता है।
उसे दुश्मन कहूँ या फिर कहूँ हमदर्द है मेरा,
बड़ी उलझन में हूँ मेरी समझ में कुछ न आता है।
-----------ओंकार सिंह'विवेक'
@सर्वाधिकार सुरक्षित
कवि/शायर अपने आसपास जो देखता और महसूस करता है उसे ही अपने चिंतन की उड़ान और शिल्प कौशल के माध्यम से कविता या शायरी में ढालकर प्र...
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