मुक्तक
कभी सदमात देकर ख़ून के आँसू रुलाता है,
कभी ज़ख़्मों पे मेरे आप ही मरहम लगाता है।
उसे दुश्मन कहूँ या फिर कहूँ हमदर्द है मेरा,
बड़ी उलझन में हूँ मेरी समझ में कुछ न आता है।
-----------ओंकार सिंह'विवेक'
@सर्वाधिकार सुरक्षित
मित्रो प्रणाम 🙏🙏 इस हाड़ कंपाती ठंड में लीजिए प्रस्तुत है एक कुंडलिया छंद : कुंडलिया ******* ----ओंकार सिंह विवेक सर्दी से यह ...
No comments:
Post a Comment