May 27, 2019

हमदर्द

 

मुक्तक
कभी   सदमात  देकर  ख़ून  के आँसू रुलाता है,
कभी  ज़ख़्मों पे मेरे  आप  ही मरहम लगाता  है।
उसे  दुश्मन  कहूँ  या  फिर कहूँ  हमदर्द  है मेरा,
बड़ी उलझन में हूँ मेरी समझ में कुछ न आता है।
-----------ओंकार सिंह'विवेक'
@सर्वाधिकार सुरक्षित

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