मुक्तक
कभी सदमात देकर ख़ून के आँसू रुलाता है,
कभी ज़ख़्मों पे मेरे आप ही मरहम लगाता है।
उसे दुश्मन कहूँ या फिर कहूँ हमदर्द है मेरा,
बड़ी उलझन में हूँ मेरी समझ में कुछ न आता है।
-----------ओंकार सिंह'विवेक'
@सर्वाधिकार सुरक्षित
रामपुर की प्रसिद्ध साहित्यिक संस्था 'पल्लव काव्य मंच' द्वारा दिनांक 22-जून,2025 को माया देवी धर्मशाला रामपुर में मंच-संस...
No comments:
Post a Comment