मिलकर सब करते विनय,जमकर बरसो आज,
अपनी ज़िद को छोड़ दो, हे बादल महाराज।
आज बहुत प्यासी धरा, मेघ बरस दिल खोल,
यदि बरसेगा बाद में, तो क्या होगा मोल।
सबके होठों पर यहाँ, सिर्फ़ यही है बात,
गरमी की हद हो गयी, भगवन कर बरसात।
उमड़ पड़े आकाश में, जब बादल दो- चार,
सबकी आशा को लगे, जग में पंख हज़ार।
पशु-पक्षी, मानव जगत, पौधों सजी क़तार,
सब को ही राहत मिले, जब कुछ पड़े फ़ुहार।
----(सर्वाधिकार सुरक्षित) ओंकार सिंह'विवेक'
अपनी ज़िद को छोड़ दो, हे बादल महाराज।
आज बहुत प्यासी धरा, मेघ बरस दिल खोल,
यदि बरसेगा बाद में, तो क्या होगा मोल।
सबके होठों पर यहाँ, सिर्फ़ यही है बात,
गरमी की हद हो गयी, भगवन कर बरसात।
उमड़ पड़े आकाश में, जब बादल दो- चार,
सबकी आशा को लगे, जग में पंख हज़ार।
पशु-पक्षी, मानव जगत, पौधों सजी क़तार,
सब को ही राहत मिले, जब कुछ पड़े फ़ुहार।
----(सर्वाधिकार सुरक्षित) ओंकार सिंह'विवेक'
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