July 31, 2019

मुन्शी प्रेमचंद जयंती पर

मुन्शी प्रेमचंद को समर्पित कुछ दोहे-
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लिखकर सदा समाज का,सीधा सच्चा हाल,
मुन्शी  जी  की   लेखनी,करती रही कमाल।
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'हल्कू' 'बुधिया' से सरल,  'होरी' से लाचार,
इस समाज में आज  भी,जीवित हैं किरदार।
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पढ़ते हैं हम जब  कभी, 'ग़बन'और 'गोदान',
आ  जाता  है    सामने, असली  हिन्दुस्तान।
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किये  अदब  के वासते, बड़े  बड़े सब काम,
मुन्शी जी  हम आपको, करते आज प्रणाम।
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-----ओंकार सिंह विवेक

July 30, 2019

दोहे:आओ करें विचार


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बढ़ चढ़ कर इस दौर में,माँगें सब अधिकार,
फ़र्ज़  निभाने  के  लिये, मगर  नहीं  तैयार।
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सच  मानो   संसार  में,  जीना   है   बेकार,
अगर कसौटी पर खरा, नहीं  रहा  किरदार।
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मिली नहीं हमको कभी, विश्वासों की छाँव,
छल छदमों की धूप में,झुलसा मन का गाँव।
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रहना  है  संसार  में, अगर  ख़ुशी  के  साथ,
विपदाओं से कीजिये, बढ़कर  दो  दो हाथ।
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रखता है  जो आदमी,  सच्चाई   का  मान,
उसके दिल में ही सदा, बसते  हैं  भगवान।
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---------ओंकार सिंह 'विवेक'
            रामपुर(उ0प्र0)

July 27, 2019

स्मृति शेष

आज दिनाँक 27 जुलाई,2019 को हिंदी के महान साहित्यकार डॉक्टर छोटे लाल शर्मा नागेन्द्र जी की पुण्य तिथि पर मेरे निवास पर डॉक्टर रघुवीर शरण शर्मा जी की अध्यक्षता में 'पल्लव काव्य मंच' के तत्वावधान में  एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।
कवि गोष्ठी में सर्वप्रथम सभी साहित्यकारों द्वारा नागेन्द्र जी के चित्र पर पुष्प अर्पित करके उनकी स्मृति को नमन किया गया।काव्य गोष्ठी का शुभारम्भ करते हुए कवि शिवकुमार चन्दन द्वारा सुंदर कंठ से सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गयी।इस अवसर पर डॉक्टर नागेन्द्र के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विचार  व्यक्त करते हुए साहित्यकारों ने कहा कि नागेन्द्र जी बहुत बड़े साहित्यकार थे।उनकी रचनाओं में कथ्य और शिल्प की श्रेष्ठता देखने को मिलती है।छंद शास्त्र में उन्हें महारथ हासिल थी।उनका सम्पूर्ण सृजन समाज को नई दिशा देता रहेगा।इस अवसर पर काव्य पाठ करते हुए डॉक्टर रघुवीर शरणं शर्मा,सीता राम शर्मा,शिव कुमार चन्दन, जितेन्द्र कमल आनंद,रामसागर शर्मा, कमल नोमानी,जितेंद्र नंदा और ओंकार सिंह विवेक द्वारा अपनी रचनाओं  के माध्यम से नागेन्द्र जी की स्मृतियों को नमन किया गया।कवि ओंकार सिंह विवेक द्वारा नागेन्द्र जी को अपने तीन दोहों के माध्यम से याद करते हुए  श्रद्धा सुमन अर्पित किए गये-
1.    कविता में जो आपने , दिल को रखा निकाल,
       उसकी  ढूँढे  से  कहीं, मिलती  नहीं  मिसाल।
2.   रचनाओं   में फिर वही,  लेकर  नये  कमाल,
      आ  जाओ  इस मंच पर, कविवर  छोटे लाल।
3.  कवि गण 'पल्लव मंच' के, लेकर प्रभु का नाम,
      आज आपकी याद को, शत शत करें  प्रणाम।
कार्यक्रम में विचार विमर्श के मध्य इस बात पर भी
सहमति बनी की नागेन्द्र जी की याद में रामपुर में
किसी ऐसे काम को अंजाम दिया जाये जिससे लोग उनके साहित्यिक योगदान का सदैव स्मरण करते रहें।इस विषय में विस्तार से चर्चा अभी अपेक्षित है।
कार्यक्रम समापन पर मेज़बान ओंकार सिंह विवेक द्वारा सभी का धन्यवाद किया गया।कार्यक्रम में श्रीमती रेखा सैनी,आदित्य सैनी और प्यारे लाल सैनी भी उपस्थित रहे।

July 26, 2019

अच्छे लगते हैं

ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710

हाथों  में   चाकू औ पत्थर  अच्छे   लगते   हैं,
कुछ   लोगों  को  ऐसे  मंज़र अच्छे लगते  हैं।

झूठ यहाँ  जब बोल रहा है सबके सर चढ़कर,
हमको   सच्चे  बोल  लबों पर अच्छे लगते  हैं।

यूँ  तो  हर  मीठे  का  ठहरा अपना एक मज़ा,
पर  सावन  में  फैनी , घेवर  अच्छे  लगते  हैं।

चाँद-सितारे   कौन यहाँ ला पाया  है नभ  से,
फिर  भी  उनके  वादे अक्सर अच्छे लगते  हैं।

देते हैं हर पल ही   सबको  सीख  उड़ानों की,
तब ही तो ये चिड़ियों के  पर अच्छे  लगते  हैं।

हर मुश्किल से आँख मिलाना,ग़म से लड़ जाना,
जिसमें   भी   हों   ऐसे  तेवर  अच्छे  लगते   हैं।
---ओंकार सिंह 'विवेक'(सर्वाधिकार सुरक्षित)

July 25, 2019

पुस्तक : स्पंदन (कृतिकार : अशोक विश्नोई -- समीक्षक : ओंकार सिंह विवेक)

पुस्तक समीक्षा

काव्य कृति: स्पंदन  (गद्य कविता-संग्रह )  
कृतिकार-अशोक विश्नोई
प्रकाशक - विश्व पुस्तक प्रकाशन, नई दिल्ली
प्रकाशन वर्ष -- 2018
पृष्ठ --       128   मूल्य रुo150/-
समीक्षक-ओंकार सिंह 'विवेक'

श्री अशोक विश्नोई जी से मैं एम आई टी , मुरादाबाद में आयोजित अखिल भारतीय साहित्य परिषद के एक कार्यक्रम में जनवरी,2019 में पहली बार रूबरू हुआ।उस समय विश्नोई जी कार्यक्रम के आयोजकों में से एक थे।उस कर्यक्रम में उनसे मिलकर मैं उनकी सह्रदयता,विनम्रता  और  मेज़बानी से  बहुत प्रभावित हुआ। यूँ तो इससे पूर्व से ही मैं श्री मनोज रस्तोगी द्वारा  संचालित  व्हाट्सएप्प  ग्रुप "साहित्यिक मुरादाबाद"  में विश्नोई  जी  की  रचनाओं  के  द्वारा  उनके विचारों से अवगत होता रहा हूँ परंतु पहली  बार  व्यक्तिगत  संपर्क उनसे उक्त कार्यक्रम में ही हुआ था। अवसर  मिला है तो यहाँ  विश्नोई जी की विनोदप्रियता का भी मैं उल्लेख करता चलूँ ।इसी वर्ष जून में मुझे एक फोन कॉल आई। दूसरी  और से बोल  रहे सज्जन का नम्बर मेरे फोन में सुरक्षित नहीं था । जब मैंने फोन उठाया तो उस तरफ से आवाज़ आई  कि कौन बोल रहा है।मैंने कहा कि आप कौन  साहब  बोल रहे हैं। उधर  से आवाज़ आई कि क्या आप ओंकार सिंह विवेक जी बोल रहे हैं।मैंने  कहा  जी हाँ बोल रहा हूँ पर आप कौन बोल रहे हैँ।इस पर उधर से आवाज़ आयी कि  मैं आपका छोटा भाई  अशोक विश्नोई  बोल रहा हूँ।यह सुनकर  मैं अपनी  हँसी न रोक  सका क्योंकि श्री अशोक विश्नोई  जी  लगभग  मेरे  पिताजी की आयु के ही होंगे।उनकी इस विनोदप्रियता ने मुझे अंदर तक गुदगुदा दिया । जीवन के चंद पलों को हल्का-फुल्का  बनाये  रखने  के  लिये  ऐसी विनोदप्रियता कितनी ज़रूरी है  यह  मैंने विश्नोई जी से सीखा।दरअस्ल  यह  वार्तालाप  तब हुआ जब उन्होंने मुझे मुरादाबाद के  युवा कवि श्री प्रवीण कुमार राही  की  प्रथम  काव्य  कृति "अंजुमन"के विमोचन के अवसर पर विशिष्ट अतिथि  के रूप में निमंत्रण हेतु फोन किया था।

आदरणीय विश्नोई जी के साथ अपने इन व्यक्तिगत  अनुभवों को  साझा  करने  के उपरांत मैं उनकी रचना धर्मिता की ओर आता हूँ। श्री अशोक  विश्नोई   जी   के  गद्य   कविता  संग्रह "स्पंदन"को पढ़ने का सौभाग्य  मुझे  प्राप्त  हुआ अतः उनकी रचनाओं का रसास्वादन करने के उपरांत  इस  कृति पर कुछ कहना तो बनता ही है।

"स्पंदन"में संकलित रचनाओं  में पारिवारिक,सामाजिक और राजनैतिक विसंगतियों  पर  व्यंग्य बाण चलाते  हुए जहाँ एक ओर विश्नोई जी ने  समाज  को आईना दिखाया है वहीं दूसरी ओर  जीवन  के हर क्षेत्र में दिखाई देने वाले विरोधाभासों पर आक्रोश व्यक्त करते हुए उचित मार्ग दिखाने की  भी कोशिश की है।एक सह्रदय कवि को सभ्यता और संस्कृति का निरन्तर पतन कितना कचोटता है,देखिये-
               क्या
              आप भी वही देख रहे हैं
               जो मैं देख रहा हूँ
 
सभ्यता असभ्यता में विलय होते हुए
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एक रचना में नेताओं के चरित्र के दोगलेपन को इशारों में रेखांकित किया है-
         शहर में दंगा हो गया
         लोग अपनी जान बचाने को
         इधर उधर भाग रहे थे
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         -------------------
        अफवाह है
       इस दंगे मे अमुक व्यक्ति का हाथ है
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      अगर ऐसा होता तो
      वह 'महिला कल्याण 'समिति
      के उदघाटन पर
      कबूतर नहीं उड़ा रहा होता-----
एक तरफ कवि जहाँ जीवन के हर क्षेत्र में  दिखाई दे रहे विरोधाभासों से  चिंतित  दिखाई देता है  वहीं दूसरी ओर
एक सकारात्मक और आशावादी दृष्टिकोण रखते हुए इस प्रकार भी अपने भाव व्यक्त करता है-

विश्वास जागता है
विचार पनपते हैं
क्षमता जागृत होती है
एक नया सपना-
जो छोड़ जाता है मीठी यादें
कुछ करने हेतु
फिर से-एक प्रयास------
 'स्पंदन' रूपी गुलदस्ते में सजी हर रचना के भावों से स्पष्ट है की कवि  समाज में मौजूद  विसंगतियों  से  विचलित है और नैतिकता तथा सद्चरित्रता का प्रबल पक्षधर है-
              सच्ची अनुभूति
              हाथों से
              किसी के बदन को
              स्पर्श करके नहीं
              किसी
              विवश लाचार की
              सेवा से होती है-------
 कवि  ने  अपनी  रचनाओं  में सामाजिक सरोकार, वर्तमान परिदृश्य  एवम  मानव जीवन के लगभग हर पहलू पर गहन दृष्टि डाली है।सभी रचनाएं भाव प्रधान हैं तथा इनकी  भाषा बहुत सहज एवम सरल है।रचनाओं में कई स्थानों पर मुहावरों का प्रयोग भी सुंदर बन पड़ा है।प्रयोग किये गये  कुछ  मुहावरे देखें--
 ज़ख़्मों पर नमक छिड़कना,चिकने घड़े,साहस बटोरना  तथा कंधे से कंधा मिलाकर चलना आदि।
स्वाभिमानी कवि ने अपनी ख़ास शैली में रचनाओं का  सृजन किया है जो हर ख़ासो-आम की समझ में  आने वाली है।  कुछ रचनाओं  में  'महाभारत'  के   प्रसंग   और   दृष्टांत  देकर  भी कुशलता से अपनी बात कही गयी है।

सार रूप में यह कहना  उचित  होगा कि इस संग्रह की प्रत्येक रचना कवि अशोक विश्नोई के गहन चिंतन और मनन का एक बड़ा सरमाया है।'स्पंदन' में अपने नाम के अनुरूप विचारों की हलचल  है, भावों  की  गहराई है तथा संवेदनाओं का ज्वार है।मुझे  आशा ही  नहीं वरन  पूर्ण विश्वास  है  की विश्नोई जी की यह काव्य कृति समाज को दिशा देने में कामयाब होगी।अंत में अपने दो दोहों के माध्यम से मैं कवि के प्रति आदर भाव प्रकट करते  हुए  उनके  शतायु  होने की कामना करता हूँ ताकि वह आगे  भी  इसी तरह  और अधिक श्रेष्ठ कृतियों का सृजन कर सकें-
रचनाओं में  हो रहे, मुखरित सच्चे बोल।
विश्नोई जी आपकी,पुस्तक है अनमोल।।

आशा के  अनुरूप ही, होगा  इसका मान।
दिलवाएगी आपको,यह पुस्तक पहचान।।

                                         --ओंकार सिंह विवेक
                                           कवि/स्वतंत्र लेखक,
                                         समीक्षक तथा ब्लॉगर
                                          सदस्य-एस.डब्ल्यू.ए.मुम्बई
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July 23, 2019

चन्द्रयान-3 : मिशन मून

कुछ दोहे-मिशन मून : चंद्रयान-3 पर
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@
पूरे  करने  के  लिये, दिल  के  सब  अरमान।
चन्द्रलोक की सैर को,निकला अपना  यान।।

लिया नहीं तकनीक का,किसी और से ज्ञान।
अपने  दम  पर  ही भरी, हमने नई  उड़ान।।

किसी देश का भी जहाँ, उतरा  नहीं  विमान।
चंदा के  उस  पोल*  पर, होगा  "चंदायान"।।

क्या-क्या कुछ है चाँद पर,जीने  का सामान।
चन्द्रयान  के   उपकरण, देंगे  इसका  ज्ञान।।

भेजेंगे   जो   चाँद   से, रोवर*   जी   तस्वीर।
उसे  देखने  के   लिये,  मन  है  बड़ा अधीर।।

"मिशन मून" पर रात-दिन,किया श्रेष्ठतम काम।
 है इसरो* की  टीम  को, सौ-सौ  बार प्रणाम।।
@-------ओंकार सिंह विवेक(अधिकार सुरक्षित)
#मिशनमून#चंद्रयान 

.    (चित्र : गूगल से साभार) 
पोल-ध्रुव(दक्षिणी ध्रुव पर ही उतरना है यान को)
रोवर- यान  में लगा एक डिवाइस
इसरो ISRO-Indian Space Research Organisation


July 22, 2019

हिमा दास

         


तुमने  रौशन  कर दिया,  हिन्दुस्तां  का  नाम,

हिमा दास झुक कर तुम्हें, करते सभी सलाम।
                        ------ओंकार सिंह'विवेक'

July 21, 2019

मन की पीर

             दोहे -ओंकार सिंह विवेक
जिससे मिलकर बाँटते,अपने मन की पीर,
मिला  नहीं   ऐसा  हमें, कोई  भी  गम्भीर।

भाषण की हद तक रही,सच्ची-अच्छी बात,
नहीं धरातल पर कभी,बदले  कुछ  हालात।

और अधिक मजबूत हो,रिश्तों की बुनियाद,
समय समय पर हो अगर,आपस  में संवाद।

पहले चुभती थी सदा,जिनकी  हर इक बात,
अब उनका ही मौन क्यों,खलता है दिन-रात।

जिसने भी  झेले  यहाँ,  ग़म  के   झंझावात,
मिली उसी को अंत में, ख़ुशियों की  सौग़ात।
                  ------ओंकार सिंह विवेक
                        (सर्वाधिकार सुरक्षित)

July 14, 2019

अश्क

हमें  अश्कों  को   पीना आ  गया है,
ग़रज़  यह  है  कि जीना आ गया है।

कठिन कब तक न हों सूरज की राहें,
 दिसम्बर  का   महीना  आ  गया  है।

 करो  कुछ  फ़िक्र इसके संतुलन की,
 भँवर  में  अब  सफीना  आ  गया  है।

 हमारी   तशनगी   को देखकर  क्यों,
 समुंदर   को   पसीना   आ  गया  है।

 अगर  है  उनकी फ़ितरत ज़ख्म देना,
 हमें  भी  ज़ख्म  सीना  आ  गया  है।
                    ---ओंकार सिंह विवेक
                     (सर्वाधिकार सुरक्षित)

July 6, 2019

दोहे: लो आयी बरसात

दोहे: लो आयी बरसात

सूर्य  देव  के ताप को,  देकर  आखिर मात,
मन हरषाने आ गयी, लो  रिमझिम बरसात।

पुरवाई  के साथ  में,  जब  आयी   बरसात,
फसलें  मुस्काने  लगीं, हँसे  पेड़   के  पात।

मेंढ़क  टर- टर  बोलते,  भरे  तलैया  - कूप,
सबके मन को भा गया, वर्षा  का  यह रूप।

खेतों में  जल  देखकर, छोटे -  बड़े  किसान,
चर्चा  यह  करने   लगे, चलो   लगायें   धान।

कभी-कभी वर्षा  यहाँ,  धरे  रूप  विकराल,
कोप दिखाकर बाढ़ का, जीना  करे  मुहाल।

---(सर्वाधिकार सुरक्षित)ओंकार सिंह'विवेक'

July 4, 2019

दोहे: जल संकट की बात

जल  संसाधन  घट   रहे, संकट है विकराल,
हल कुछ इसका खोजिये,है यह बड़ा सवाल।

झूठ नहीं इनमें तनिक, सच्चे  हैं  यह   बोल,
बूँद-बूँद  में    ज़िन्दगी, पानी   है   अनमोल।

मोदी  जी  ने बोल दी, अपने  मन  की  बात,
जल  संरक्षण  के लिये, एक  करें  दिन-रात।

क़ुदरत ने जो  जल  दिया,  है  पारस का रूप,
घिर आयी इस पर  मगर, अब संकट की धूप।

पेड़ों   का  हर  रोज़  ही, अंधाधुंध    कटान,
जल  संकट का इक बड़ा,कारण है श्रीमान।

रखना  है भू  पर अगर, अपना  जीवन शाद,
पानी को मत कीजिये,  हरगिज़ भी  बरबाद।

वर्षा  जल  का  संचयन,  वाटर शेड  विकास
करें अगर मिलकर सभी, तो जागे कुछ आस।

खपत अधिक जल की सदा,जिन फसलों में होय,
कह  दो अभी  किसान  से, उनको कम  ही बोय।

झीलें - पोखर  - बावड़ी,  सबका  करें   विकास,
पूरी   हो   पाये   तभी,    जल  संचय  की आस।

बोरिंग  के  उपयोग पर,    नीति    बने     गंभीर,
नहीं   मिलेगा  अन्यथा,     गहरे  मे   भी   नीर  ।

चेरापूँजी   में   बहुत ,        है  वर्षा    का   नीर  ,
उसके  भी  उपयोग को,   हो   शासन   गंभीर  ।
(सर्वाधिकार सुरक्षित) ओंकार सिंह विवेक




July 3, 2019

माँ

दूर  रंजोअलम्   और  सदमात   हैं ,
माँ है तो खुशनुमा घर के हालात हैं।

अपने  ढंग  से उसे सब   सताते  रहे  ,
यह न सोचा कि माँ के भी जज़्बात हैं।

दुख ही दुख वो उठाती है सब के लिये ,
माँ के हिस्से में कब सुख के लम्हात हैं।

लौट   भी  आ  मिरे  लाल  परदेस  से  ,
मुन्तज़िर माँ की आँखे ये  दिन रात हैँ ।

दौर मुश्किल भी आखिर गुज़र जायेगा,
मेरी  माँ   की   दुआएं   मेरे  साथ  हैं ।
(सर्वाधिकार सुरक्षित)-ओंकार सिंह विवेक
(चित्र:गूगल से साभार)

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बात सोहार्द और सद्भावना की

नमस्कार मित्रो 🌷🌷🙏🙏 हम जिस मिश्रित सोसाइटी में रहे हैं उसमें सांप्रदायिक सौहार्द और सद्भावना की बहुत ज़रूरत है। त्योहार वे चाहे किसी भी ...