March 31, 2023

विश्व प्रसिद्ध रामपुरी चाकू (चाकू चौराहा)

मित्रो प्रणाम 🌹🌹🙏🙏

"जानी यह रामपुरी है, लग जाए तो ख़ून निकल आता है" आपने मशहूर अभिनेता स्मृतिशेष राजकुमार साहब को फिल्म में यह डायलॉग बोलते हुए ज़रूर सुना होगा।जब वह अपने ख़ास स्टाइल में यह डायलॉग बोला करते थे तो पिक्चर हॉल में तालियों की गड़गड़ाहट और सीटियों के अलावा कुछ सुनाई नहीं देता था। प्रसंगवश आज में उसी रामपुरी चाकू के बारे में आपसे कुछ बात करना चाहता हूं।
संयोग से मैं भी उसी रामपुर शहर (उत्तर प्रदेश) का निवासी हूं जिस शहर के चाकू की बात हो रही है। नवाबी दौर में रामपुरी चाकू उद्योग बहुत विकसित हुआ करता था।यहां एक चाकू बाज़ार भी है।रामपुर के बने चाकू दुनिया भर में पहचाने  जाते थे।इस उद्योग में अच्छे खासे लोगों को रोज़गार मिला हुआ था।समय और परिस्थितियां बदलने के साथ इस कारोबार में मंदी आती गई। कुछ तो काग़ज़ी खानापूरी जैसे लाइसेंस आदि मिलने में दिक्कत और कुछ मांग में कमी के चलते रामपुर का यह विश्व प्रसिद्ध उद्योग दम तोड़ने लगा। 
नए सिरे से रामपुरी चाकू को पहचान दिलाने के लिए शासन और प्रशासन ने फिर से इस उद्योग को प्रोत्साहित करना प्रारंभ किया है जिससे चाकू उद्योग से जुड़े लोगों में एक नई आस जगी है।
इसी कड़ी में रामपुरी चाकू के प्रचार-प्रसार के लिए रामपुर शहर की उत्तरी सीमा पर एक चौराहे का नाम "चाकू चौराहा" रखा गया है। नैनीताल रोड रामपुर पर 20 मार्च,2023 को इस चाकू चौराहे का भव्य लोकार्पण हुआ। चाकू तो आपने बहुत देखे होंगे पर इतना बड़ा चाकू कभी नहीं देखा होगा जितना बड़ा चाकू इस चौराहे पर लगाया गया है।यह चाकू 6.10 मीटर लंबा और लगभग 3 फिट चौड़ा है। इसके दुनिया का सबसे बड़ा चाकू होने का दावा भी किया जा रहा है।चाकू चौराहे की कुल लागत लगभग 52.52 लाख रुपए है जिसमें अकेले इस चाकू की लागत ही लगभग्र 29 लाख रुपए है।निश्चित तौर पर यह चौराहा पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बनेगा।इस चाकू चौराहे का निर्माण रामपुर विकास प्राधिकरण द्वारा कराया गया है। यहां स्थापित किया गया चाकू बहुत सुंदर है और इसे बनाने में लगभग आठ माह का समय लगा है। चौराहे पर लगे चाकू को पीतल,स्टील और लोहा धातुओं से बनाया गया है तथा इसका भार लगभग 8.5 क्विंटल है।
रामपुर के चाकू चौराहे से पर्यटन स्थल नैनीताल की दूरी लगभग 100 किलोमीटर है और झुमके वाले शहर बरेली की दूरी लगभग 60 किलोमीटर है।यहां से विश्व प्रसिद्ध ब्रास सिटी मुरादाबाद लगभग 30 किलोमीटर है तथा भारत की राजधानी दिल्ली की दूरी लगभग 185 किलोमीटर है।
यहां लोगों की ख़ूब भीड़ लग रही है।बच्चे,वृद्ध और जवान सभी विश्व के सबसे बड़े चाकू को देखने के लिए जुट रहे हैं और चाकू के साथ अपनी सेल्फी ले रहे हैं जिससे चौराहे की रौनक देखते ही बन रही है।हम भी श्रीमती जी के साथ इसे देखने पहुंचे तो इसके साथ फोटो खिंचवाने का लोभ संवरण न कर सके।

आपका भी जब कभी इधर से गुज़रना हो या नैनीताल जाना हो तो इस चौराहे पर रुककर रामपुरी चाकू की सुंदरता को अवश्य निहारिए और हां रामपुरी के साथ  सेल्फी लेना मत भूलिए। 
मुझे विश्वास है कि सेल्फी लेते समय आपको राजकुमार साहब का यह डायलॉग ज़रूर याद आ जाएगा "जानी यह रामपुरी है, लग जाए तो------------ "
           ओंकार सिंह विवेक 


March 25, 2023

कौन पूछेगा हमें दरबार में ???????

दोस्तो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏
कई दिन बाद मेरी एक बिल्कुल ताज़ा ग़ज़ल हाज़िर है। आप सभी सम्मानितों की प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा

ग़ज़ल : ओंकार सिंह विवेक 
 ©️ 
आजिज़ी  तो   है  नहीं  गुफ़्तार  में,
कौन    पूछेगा    हमें   दरबार    में।

 नफ़्सियाती   नुक़्स   है  दो-चार में,
 वरना है  सबका  अक़ीदा  प्यार में।

संग  रखता  है  उसे  जो  ये  गुलाब,
कुछ तो देखा होगा आख़िर ख़ार में।

बारहा  रोता   है   दिल  ये  सोचकर,
वन   कटेगा   शह्र   के   विस्तार  में।
©️ 
पूछने    आए    थे    मेरी    ख़ैरियत,
दे   गए   ग़म   और  वो   उपहार  में।

मीर, ग़ालिब, ज़ौक़  सबका  शुक्रिया,
रंग  क्या-क्या  भर  गए  अशआर में।

बैठा  है  परदेस  में   लख़्त-ए-जिगर,
क्या  ख़ुशी  माँ  को  मिले त्योहार में।
           -  ©️ ओंकार सिंह विवेक  
आजिज़ी ------  लाचारी,दीनता
गुफ़्तार ----         बोली,   बातचीत
नफ़्सियाती नुक़्स --- मानसिक कमी 
अक़ीदा    -----         श्रद्धा,भरोसा
ख़ार      -------.      कांटा 
बारहा   ----            बार-बार 
अशआर    -----      शेर का बहुवचन
लख़्त-ए-जिगर ----- जिगर का टुकड़ा अर्थात बेटा
 

 Onkar Singh Vivek
(All rights reserved)






March 22, 2023

हिंदुस्तानी ज़बान पत्रिका में मेरी ग़ज़लें

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏


"हिंदुस्तानी प्रचार सभा" की स्थापना वर्ष 1942 में महात्मा गांधी जी द्वारा की गई थी।देश भर में बोली जाने वाली आसान हिंदी और आसान उर्दू मिश्रित भाषा जिसे हम हिंदुस्तानी भाषा कहते हैं की लोकप्रियता और स्वीकार्यता को दृष्टिगत रखते हुए इस संस्था द्वारा वर्ष 1969 से मुंबई से "हिंदुस्तानी ज़बान" त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन किया जा रहा है।इस पत्रिका के संपादक एक पूर्व बैंकर श्री संजीव निगम जी हैं जो एक कुशल वक्ता और प्रसिद्ध साहित्यकार हैं।श्री निगम जी के संपादन में पत्रिका में बहुत ही स्तरीय रोचक सामग्री का प्रकाशन होता है।निगम साहब भारतीय सभ्यता,संस्कृति और साहित्य को बचाने के लिए निरंतर सक्रिय रहते हैं। मैं उनकी सार्थक सरगर्मियों को सोशल मीडिया पर देखता रहता हूं।आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति हैं।सामाजिक/सांस्कृतिक कार्यशालाओं में सहभागिता/ व्याख्यान और कवि सम्मेलनों आदि में आप निरंतर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं।विदेश में भी आप साहित्यिक आयोजनों में अक्सर सहभागिता करते नज़र आते रहते हैं।आपकी सक्रियता और जीवटता को सलाम करते हुए मुझे उनके लिए किसी मशहूर शायर द्वारा कहा गया यह शेर याद आ गया ---
      न खो जाऊं कहीं इस भीड़ में एहसास है मुझको,
      मैं  अपनी  राह  औरों  से ज़रा  हटकर बनाता हूं।
                                                   -----अज्ञात                          
            (पत्रिका के संपादक श्री संजीव निगम जी) 

श्री संजीव निगम साहब ने सम्माननीय पत्रिका के जनवरी- मार्च,2023 अंक में मेरी दो ग़ज़लें छापी हैं और मेरे ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" की सूक्ष्म समीक्षा भी छापी है। मैं इसके लिए आदरणीय संजीव निगम साहब,पत्रिका के संपादन सहयोगी श्री सुरेश प्रताप सिंह जी तथा संपादक मंडल के  अन्य सहयोगियों का ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूं।
      ----ओंकार सिंह विवेक
(ग़ज़लकार/समीक्षक/कॉन्टेंट राइटर/ब्लॉगर) 

March 16, 2023

"ग़बन" : संवेदनाओं को झकझोरता उपन्यास

मित्रो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏

पिछली कड़ी में हमने मुंशी प्रेमचंद जी के जीवन और उनके द्वारा समाज के लिए किए गए साहित्यिक अवदान के बारे में चर्चा किया। आइए आज उनके उपन्यास ग़बन पर कुछ चर्चा करते हैं।

मुंशी जी ने इस उपन्यास में सामाजिक,पारिवारिक और मानवीय चरित्र से जुड़ी तमाम समस्याओं को उठाया है और अंत में उनका समाधान भी प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है।
 ग़बन का नायक रमानाथ एक लालची और स्वार्थी वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है।वह अति महत्वाकांक्षा के चलते दोस्तों के पैसों पर ऐश करता है,पत्नी के गहने चुराता है और उससे झूठ बोलता है, उसके सामने अमीर होने का नाटक करता है।इतना ही नहीं ग़बन भी करता है जिसके कारण अपनी नौकरी से हाथ तक धोना पड़ता है। अपनी कमज़ोरियों के चलते पुलिस के चंगुल में फंसकर देशभक्तों के खिलाफ़ मुखबिरी भी करता है। अपने ही झूठ और अंतर्द्वंद के जाल में फंसे व्यक्ति की मानसिक दशा का मुंशी जी ने बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है। जीवन के एक मोड़ पर आकर पत्नी की प्रेरणा से रमानाथ को अपनी त्रुटियों का भान होता है और वह फिर से सच्चाई और आत्मसम्मान के महत्व को समझता है।
उपन्यास का दूसरा महत्वपूर्ण पात्र जालपा है जो रमानाथ की पत्नी है जिसे गहनों से बहुत लगाव है। बचपन में उसने अपनी मां के पास चंद्रहार देखा तो उसके मन में भी उसे पहनने की इच्छा बलवती हो जाती है।परंतु उसे यह समझाकर संतुष्ट कर दिया जाता है कि उसे चंद्रहार शादी के समय उसकी ससुराल से मिल जाएगा।इसी उम्मीद को लिए जालपा एक रोज़ ससुराल पहुंच जाती है।शादी में उसे ससुराल की तरफ़ से गहने तो बहुत मिलते हैं परंतु बस वही चंद्रहार नहीं मिलता जिसकी कामना वह किशोर वय से ही करती आ रही थी।जालपा के चरित्र को उभार देकर मुंशी जी ने नारी का गहनों के प्रति लगाव और  पति से एक पत्नी की अपेक्षा और उससे उपजे अंतर्द्वंद्व आदि को लेकर बहुत ही यथार्थपरक चित्रण किया है।
परिस्थितियां ऐसा मोड़ लेती हैं कि जालपा जो कभी गहनों से मोह रखने वाली एक सामान्य स्त्री थी नीति और आदर्श के महत्व को समझने लगती है। पति की नादानी पर उसे दया आने लगती है। उसमें देश के प्रति भी अनुराग जाग उठता है। 
इस उपन्यास का कालखंड आज़ादी की लड़ाई के समय का है सो अंग्रेज़ों के प्रति देशभक्तों में जो आक्रोश था उसकी भी अभिव्यक्ति इसमें स्थान-स्थान पर हुई है।पुलिस के दोगले चरित्र को भी खूब उजागर किया गया है उपन्यास में। कैसे पुलिस झूठे गवाह और मुखबिर तैयार करती है यह उपन्यास को पढ़कर जान सकते हैं।आज भी पुलिस महकमे की कमोबेश वैसी ही स्थिति है जैसी मुंशी जी ने 70 -80 साल पहले अपने उपन्यास में चित्रित की है।
उपन्यास का एक महत्वपूर्ण चरित्र दयानाथ जी हैं जो रमानाथ के पिता हैं और उनकी पत्नी का नाम जागेश्वरी है। दयानाथ जी कचहरी में नौकरी करते हुए भी आदर्शों की बात करते हैं और रिश्वत को हराम समझते हैं।उनकी आस्था मेहनत से कमाए गए धन में है जो एक संदेश है समाज के लिए।उनके चरित्र को लेकर मुझे अपनी ही ग़ज़ल का एक शेर याद आ गया
   कि जिसमें सिलसिला हो बरकतों का,
   मैं   ऐसा    धन    कमाना   चाहता  हूं।
                   ओंकार सिंह विवेक
उपन्यास के एक और प्रमुख पात्र का नाम है दीनदयाल जो जालपा के पिता हैं।उनकी पत्नी का नाम मानकी है। दीनदयाल जी एक गांव के ज़मीदार के मुख़्तार हैं और दुनियादारी में पूरे रचे-बसे हैं। किस से कैसे काम लेना है और किस पर कैसे असर डालना है,उन्हें अच्छी तरह आता है।जब वह बेटी जालपा की शादी दयानाथ जी के बेटे रमानाथ से तय करते हैं तो बातचीत में उनके चरित्र के विभिन्न शेड्स खुलकर सामने आते हैं।
एक और महत्वपूर्ण किरदार है इस कड़ी में जिसका नाम ज़ोहरा है।जोहरा एक वैश्या है।अपनी कमज़ोरियों की वजह से रमानाथ जब पुलिस की गिरफ्त में फंस जाते हैं तो अंग्रेज़ पुलिस उन्हें देशभक्तों के एक मुकदमें में सरकारी गवाह के रूप में तैयार करने के लिए ज़ोहरा को उनके मनोरंजन के लिए भेजती है। एक समय ऐसा आता है जब तमाम-उतार चढ़ाव के बाद ज़ोहरा का ह्रदय परिवर्तन होता है और वह इस अभिशप्त जीवन से उकताकर समाज में मान-सम्मान से जीने के लिए छटपटाने लगती है।नैतिकता और समाज सेवा का भाव उसमें जाग्रत होता है। इसी भाव के चलते दूसरे को बचाने में वह अपनी जान तक दे देती है।
उपन्यास के और सभी किरदार भी पाठक/श्रीता को अंत तक बांधे रहते हैं।कथानक का कोई भी किरदार बनावटी नहीं लगता।ऐसा लगता है की सभी किरदार हमारे आसपास से ही उठाए गए हैं ।जैसे-जैसे उपन्यास को पढ़ते जाते हैं वैसे-वैसे नई जिज्ञासा उत्पन्न होती जाती है कि अब किस किरदार का अगला क़दम क्या होगा।मुंशी प्रेमचंद जी के लेखन की यही विशेषता है कि हर कोई अपने आप को उससे जुड़ा हुआ पता है।
आशा है प्रेमचंद के इस उपन्यास के कुछ किरदारों के संक्षिप्त परिचय से उपन्यास को पढ़ने की आपकी जिज्ञासा अवश्य उत्पन्न हुई होगी।
अगली कड़ी में मुंशी जी के गोदान उपन्यास के कुछ किरदारों पर चर्चा करेंगे।
इस ब्लॉग पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया देकर अवश्य ही कृतार्थ कीजिए 🙏🙏
    ओंकार सिंह विवेक 




March 12, 2023

भारत विकास परिषद रामपुर की इस सत्र की अंतिम पारिवारिक बैठक व होली मिलन कार्यक्रम संपन्न

नमस्कार मित्रो 🌹🌹🙏🙏

दिनांक 10 मार्च,2023 को भारत विकास परिषद मुख्य शाखा,रामपुर (उत्तर प्रदेश)की वर्तमान सत्र की अंतिम पारिवारिक बैठक एवं होली मिलन समारोह कार्यक्रम चम्पा कुवंरि न्यास धमॅशाला गांधी समाधि रोड,रामपुर पर संपन्न हुआ।
कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए दीप प्रज्ज्वलन एवं माल्यार्पण तथा वन्देमातरम गीत के पश्चात पूर्व सभा की कार्यवाही की पुष्टि की गई। तत्पश्चात कार्यक्रम के मुख्य अतिथि नगर विधायक श्री आकाश सक्सैना उर्फ़ हनी भैया का सदन से परिचय कराया गया। इसके बाद 19मार्च,2023 रविवार को मुरादाबाद में होने जा रहे प्रान्तीय अधिवेशन के सम्बन्ध में प्रान्तीय महासचिव डाक्टर गौरव वार्ष्णेय  द्वारा सदन को जानकारी दी गई।
तत्पश्चात वैवाहिक वर्षगांठ उपहार वितरण किया गया। हमारी  वैवाहिक वर्षगांठ 8 मार्च को पड़ती है अत: परिषद द्वारा हमें भी इस अवसर पर उपहार प्रदान किया गया।इसके लिए हम परिषद के ह्रदय से आभारी हैं। संस्था के इस स्नेह प्रकटीकरण ने निश्चय ही हमारा उत्साहवर्धन किया।
          ( उपहार गृहण करते हुए श्रीमती जी और मैं )
             (विधायक आकाश सक्सैना जी के साथ)

    (परिषद-सदस्य व अच्छे गायक श्री परमानंद शर्मा जी के          साथ सेल्फी)
प्रांतीय अध्यक्ष जगन्नाथ चावला जी ने अपने उद्बोधन के पश्चात बताया कि अगले सत्र के लिए सर्वसम्मति से रविंद्र गुप्ता जी को अध्यक्ष पद का दायित्व सौंपा गया है।श्री रविंद्र गुप्ता जी को तीसरी बार परिषद का अध्यक्ष चुने जाने पर सभी ने करतल ध्वनि से उनका उनको बधाई दी गई। नए सत्र के लिए पुष्पेंद्र अग्रवाल को उपाध्यक्ष,दीपक पुंडीर को सचिव, संजीव अग्रवाल को कोषाध्यक्ष,सुनीता गुप्ता को महिला संयोजक और माधव गुप्ता जी को संरक्षक चुने जाने की भी जानकारी दी गई।
.           (सभा भवन में उपस्थित सम्मानित साथी गण)
पुन: अध्यक्ष चुने जाने पर रविंद्र गुप्ता जी ने सभी का आभार प्रकट करते हुए सदैव की भांति निष्ठा और पारदर्शिता से कार्य करने का आश्वासन दिया।उन्होंने सदस्य संख्या बढ़ाने का भी विश्वास दिलाया।
मुख्य अतिथि नगर विधायक श्री आकाश सक्सैना जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि वह अपने कार्यकाल में रामपुर का चहुंमुखी विकास कराएंगे।इस कार्य में सहयोग हेतु उन्होंने लोगों से सुझाव भी मांगे।आमंत्रित किए गए कलाकारों ने होली गीत और भजन सुनाकर कार्यक्रम में चार चांद लगा दिए।सभी ने मधुर गीतों पर थिरकते हुए फूलों की होली खेली तथा एक दूसरे के लिए मंगल कामना की।
               (कार्यक्रम की मीडिया कवरेज)
अंत में संरक्षक श्री माधव गुप्ता द्वारा सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया गया।कार्यक्रम का सफल संचालन अध्यक्ष श्री रविंद्र गुप्ता द्वारा किया गया।भाई कुलदीप राणा जी ने कार्यक्रम की वीडियो रिकॉर्डिंग तथा सुंदर फोटोग्राफी में विशेष सहयोग किया। सुरुचिपूर्ण रात्रि भोज के बाद सब ने एक दूसरे से विदा ली।
        (विधायक आकाश सक्सैना जी के साथ परिषद के                   पदाधिकारीगण)
अपने इस दोहे के साथ वाणी को विराम देता हूं
    जीवन  में  उत्साह  का,करते  हैं संचार।
    बेमक़सद होते नहीं,तीज और त्योहार।।
                ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/समीक्षक/कॉन्टेंट राइटर/ब्लॉगर

March 5, 2023

कहानीकार,उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद

मित्रो नमस्कार 🙏🙏🌹🌹

बार-ए-दुनिया  में  रहो,गम-ज़दा या शाद रहो,
ऐसा कुछ करके चलो यां कि बहुत याद रहो।
            मीर तक़ी मीर
मशहूर शायर मीर का यह शेर मुंशी प्रेमचंद जी की शख्सियत पर बिल्कुल फिट बैठता है।मुंशी प्रेमचंद जी अपनी कहानियों और उपन्यासों के माध्यम से साहित्य जगत को इतना कुछ दे गए कि युगों-युगों तक याद किए जाते रहेंगे।
प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई,1880 को मुंशी अजायब राय जी के यहां बनारस के पास लमही गांव में एक साधारण कायस्थ परिवार में हुआ था।आपकी मृत्यु केवल 56 वर्ष की आयु में 8 अक्टूबर,1936 में हुई। प्रेमचंद जी का मूल नाम नवाब राय/धनपत राय था तथा इनके पिता जी डाक मुंशी थे।शिक्षक ,लेखक तथा पत्रकार रहे मुंशी जी ने प्रारंभ में नवाब राय नाम से ही उर्दू/हिंदी में लेखन किया।सन 1910 ईसवी में जब उनकी रचना "सोज़-ए-वतन" को अंग्रेज़ सरकार ने ज़ब्त कर लिया तो नवाब राय ने प्रेमचंद के छद्म नाम से लिखना प्रारंभ किया।
मुंशी जी की प्रारंभिक शिक्षा एक मौलवी साहब के यहां उर्दू/फ़ारसी में हुई।स्नातक स्तर तक भी उर्दू/फ़ारसी विषय उनके पास रहे।चूंकि प्रेमचंद जी के पिता जी सरकारी नौकरी में रहे सो उनके परिवार का  लखनऊ,बनारस ,देवरिया और गोरखपुर आदि स्थानों पर आना-जाना रहा।उन दिनों अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ़ लोगों के आक्रोश और आंदोलनों ने प्रेमचंद जी को बहुत प्रभावित किया। देश की आज़ादी को लेकर भारतीयों में जो जोश और जज़्बा था वह प्रेमचंद जी के सृजन में साफ़ देखा जा सकता है।
प्रेमचंद जी का जीवन बहुत संघर्षों से भरा रहा।माता और पिता की मृत्यु के समय उनकी उम्र काफ़ी कम थी।परिवार की ज़िम्मेदारी को पूरा करने के दबाव में आगे की शिक्षा भी किसी तरह प्राइवेट रूप से ही पूरी की।जब नौकरी मिली तो अपने मनमौजी और फक्कड़ स्वभाव के चलते उससे भी त्यागपत्र देना पड़ा।घर-गृहस्थी चलानी थी सो 1930 में "मर्यादा" पत्रिका से जुड़े,साप्ताहिक पत्र "जागरण" में काम किया। यहां कोई बात नहीं बनी तो अपना मासिक पत्र "हंस" भी निकाला जो बहुत लोकप्रिय हुआ। ईमानदारी और उसूलों पर चलने वाले प्रेमचंद जी को इन कामों से भी परिवार को चलाने में कोई मदद नहीं मिली उल्टे उन पर अच्छा-ख़ासा क़र्ज़ और चढ़ गया।
ऐसी विपरीत आर्थिक परिस्थितियों और पारिवारिक दायित्वों के चलते मुंशी जी ने फिल्म नगरी बंबई का रुख़ किया।वहां उनकी एक कहानी पर मिल/मज़दूर नाम से फ़िल्म भी बनी।वहां भी तरह-तरह की शर्तों के कारण मुंशी जी का मन नहीं लगा और वह वापस बनारस आ गए।बॉम्बे टॉकीज के हिमांशु राय जी ने उनसे बहुत कहा कि आप अच्छे कहानीकार हैं आपकी कहानियां फिल्मों में बहुत चलेंगी आप बंबई छोड़कर न जाएं परंतु मुंशी जी ने इंकार कर दिया।
इन सब बातों को देखकर लगता है कि मुंशी प्रेमचंद जी का जीवन संघर्षों में ही गुज़रा होगा।उनके पुत्र अमृत राय जी का भी यही कहना है कि पिताजी का जीवन अभावों में ही बीता परंतु कुछ विद्वान इस पर भिन्न मत भी रखते हैं।
मुंशी प्रेमचंद का सभी साहित्य जन सरोकारों से जुड़ा हुआ साहित्य है।इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि भारतीय भाषाओं में ही नहीं वरन कई विदेशी भाषाओं में भी उनकी कहानियों और उपन्यासों का अनुवाद हो चुका है।
उनकी नमक का दारोग़ा, कफ़न,ईदगाह,मंत्र, पंच परमेश्वर और दो बैलों की कथा आदि कहानियां पढ़कर आंखों में आंसू आ जाते हैं।ऐसा लगता है कि 70 या 80 साल पहले लिखी गई ये कहानियां हमारे आज के समाज का ही सच दर्शा रहीं हों।इसलिए ही साहित्यकार को भविष्य दृष्टा कहा जाता है।यदि प्रेमचंद जी के उपन्यासों की बात करें तो गोदान,ग़बन,कर्मभूमि और रंगभूमि जैसे उपन्यास भी समाज की सच्ची तस्वीर दिखाते हैं।सामाजिक विसंगतियों,नैतिक मूल्यों के क्षरण,मानव चरित्र की दुर्बलता और ऊंच-नीच के भेद आदि की मार्मिक अभिव्यक्ति उनमें  देखने को मिलती है।मुंशी प्रेमचंद के साहित्य में कोई बनावट नहीं लगती क्योंकि उन्होंने जिन समस्याओं और दशाओं का अपने साहित्य में वर्णन किया है वह स्वयं उनसे गुज़रे थे।
प्रेमचंद जी की कोई भी कहानी या उपन्यास आप पढ़ना शुरू कर दीजिए उसे पूरा पढ़े बिना संतुष्ट हो ही नहीं सकते।यही उनके लेखन की विशेषता है।पाठक पढ़ना शुरू करते ही ख़ुद को चित्रित घटनाओं से जुड़ा हुआ महसूस करने लगता है। मुंशी जी ने अपने उपन्यासों और कहानियों में यदि किसी पारिवारिक,सामाजिक समस्या को उठाया है तो उसका समाधान भी प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।ऐसा लेखन ही वास्तविक लेखन कहलाता है।
इस सिलसिले की अगली कड़ी में मुंशी जी के प्रसिद्ध उपन्यास ग़बन पर कुछ बात करेंगे। ग़बन उपन्यास का मुख्य किरदार रमानाथ है जो अति महत्वाकांक्षा और लालच के चलते ग़बन  करता है,पत्नी के गहने चोरी करता है और भी न जाने क्या-क्या अनैतिक कार्य करता है।एक झूठ को छुपाने के चक्कर में सौ और झूठ बोलता और फिर उलझता ही चला जाता है।
(उपन्यास पर विस्तार से रोचक चर्चा अगली कड़ी में)
ओंकार सिंह विवेक 


Featured Post

साहित्यिक सरगर्मियां

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏 साहित्यिक कार्यक्रमों में जल्दी-जल्दी हिस्सेदारी करते रहने का एक फ़ायदा यह होता है कि कुछ नए सृजन का ज़ेहन बना रहता ह...