May 28, 2019

मन की स्थिरता

चित्राधारित दोहे
भाग-दौड़ से जब हुई ,दिन प्रतिदिन हलकान,
गोरी तब करने  लगी,     गहन साधना-ध्यान।

करना  पड़ता  है  बहुत,पावनता  से  ध्यान,
चंचल  मन को बाँधना, कब  इतना आसान।
@सर्वाधिकार सुरक्षित
----ओंकार सिंह विवेक

May 27, 2019

हमदर्द

 

मुक्तक
कभी   सदमात  देकर  ख़ून  के आँसू रुलाता है,
कभी  ज़ख़्मों पे मेरे  आप  ही मरहम लगाता  है।
उसे  दुश्मन  कहूँ  या  फिर कहूँ  हमदर्द  है मेरा,
बड़ी उलझन में हूँ मेरी समझ में कुछ न आता है।
-----------ओंकार सिंह'विवेक'
@सर्वाधिकार सुरक्षित

May 24, 2019

दोहे

      ओंकार सिंह'विवेक'
      मोबाइल9897214710
     @सर्वाधिकार सुरक्षित
शब्दों   ने  हमको   दिये,   ऐसे   ऐसे  घाव,
जीवन में संभव नहीं ,जिनका कभी भराव।

औरों  के  दिल  को  सदा, देते हैं जो घाव।
वे  ढोते  हैं  उम्र  भर  ,अपराधों   के भाव।

अपनी कमियों की करें,पहले ख़ुद पहचान,
करें  नसीहत  बाद  में , औरों को  श्रीमान।

पहले मुझको झिड़कियां, फिर थोड़ी मनुहार,
यार  समझ  पाया  नहीं , मैं  तेरा    व्यवहार।

जिससे  मिलकर बाँटते ,अपने मन की पीर,
मिला  नहीं  ऐसा  हमें,  कोई  भी   गंभीर।

बिगड़ेगी  कैसे  भला , जग  में  मेरी  बात,
जब  माँ  मेरे वासते, दुआ  करे दिन  रात।

गर्म  सूट  में  सेठ  का  जीना हुआ  मुहाल,
पर  नौकर  ने  शर्ट  में जाड़े  दिये निकाल।

इक दिन होगी आपकी,मुश्किल भी आसान,
वक़्त  किसी का भी सदा, रहता नहीं समान।

धन-दौलत  की  ढेरियां ,  कोठी-बंगला-कार,
अगर  नहीं  मन शांत तो, यह सब है बेकार।
-            -----------ओंकार सिंह'विवेक'

May 22, 2019

ख़ुशगवार

ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल9897214710
हर हाल में ख़िज़ाँ पर ग़ालिब बहार   होगी,
फिर से फ़ज़ा गुलिस्तां की ख़ुशगवार होगी।

केवल  यहाँ  बुराई  ही  लोग   सब   गिनेंगे,
अच्छाई  मेरी  कोई  भी कब  शुमार   होगी।

इंसानियत-मुहब्बत-तहज़ीब  की  हिमायत,
शिद्दत से  मेरी ग़ज़लों में  बार   बार   होगी।

केवल  ख़िज़ाँ मकीं  है मुद्दत से इसमें यारो,
कब  मेरे दिल के हिस्से में भी  बहार   होगी।

दिल  को  लुभाने  वाले सब रंग उसमें होंगे,
जब उनकी बज़्म है तो फिर शानदार  होगी।
(सर्वाधिकार सुरक्षित)-ओंकार सिंह विवेक
चित्र:गूगल से साभार

May 19, 2019

व्यक्तित्व विकास


                         मानव स्वास्थ्य
जब हम व्यक्ति के स्वास्थ्य की बात करते हैं तो मन में प्राय: शारीरिक स्वास्थ्य का भाव ही उत्पन्न होता है |स्वास्थ्य शब्द का प्रसंग आने या चर्चा होने पर हम किसी व्यक्ति के शरीर की संरचना या उसके मोटे  अथवा पतले होने की दशा  तक ही सीमित हो जाते हैं |वास्तव में जब हम किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य की बात करते हैं तो इसका अर्थ बहुत व्यापकता लिए हुए होता है |व्यक्ति के सम्पूर्ण स्वास्थ्य के दो पहलू होते हैं ,पहला शारीरिक स्वास्थ्य  और दूसरा मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य| किसी व्यक्ति को स्वस्थ  तभी कहा जा सकता है जब वह व्यक्ति भौतिक शरीर से स्वस्थ  होने के साथ ही मानसिक और आत्मिक रूप से भी पूरी तरह स्वस्थ हो| यदि कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से बहुत बलिष्ठ है परन्तु मानसिक रूप से बीमार है तो हम उसे स्वस्थ व्यक्ति की श्रेणी में नहीं रख सकते |इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति अपनी मानसिक स्थिति का तो  विकास कर  चुका हो परन्तु  शारीरिक द्रष्टि से कमज़ोर हो  तो भी हम उसे पूरी तरह  स्वस्थ नहीं कह सकते |
व्यक्ति को अपने स्थूल शरीर को स्वस्थ  रखने के लिए अच्छे  खान-पान ,व्यायाम अथवा शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है |यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो उसका  शरीर दुर्बल हो जायेगा और उसकी प्रतिरोधक क्षमता भी शिथिल पड़ जाएगी|परिणामस्वरूप व्यक्ति शारीरिक रूप से असक्त  हो जायेगा |इस अवस्था से बचने के लिए उसे अपने शरीर को चलाने के लिए अपने शरीर की खुराक पर ध्यान देना होगा |शरीर को स्वस्थ रखने के लिए सभी मौसमी फल,सब्जियां, दूध,घी या जो भी प्रकृति ने  हमें सुपाच्य  खाद्य  उपलब्ध  कराया है उसका सेवन करना चाहिए एवं किसी भी रोग से ग्रस्त होने की दशा में चिकित्सीय  परामर्श लेना चाहिए|
व्यक्ति को पूर्ण रूप से स्वस्थ होने के लिए स्थूल  शरीर के साथ साथ अपने आत्मिक स्वास्थ्य की चिंता करना भी परम आवश्यक है |यदि व्यक्ति शारीरिक रूप से बलशाली है परन्तु उसकी आत्मा और मन बीमार  और कमजोर हैं तो भी व्यक्ति का समग्र विकास संभव नहीं है | अत :व्यक्ति को  अपने  तन के स्वास्थ्य  के साथ मन और आत्मा के स्वास्थ्य  की चिंता करना भी उतना ही आवश्यक है| जिस प्रकार स्थूल  शरीर के स्वास्थ्य के लिए अच्छा व्यायाम और भोजन आवश्यक है उसी प्रकार मन और आत्मा के अच्छे  स्वास्थ्य के लिए व्यक्ति का अच्छे लोगों की संगत में बैठना और  अच्छा साहित्य पढ़ना भी अति आवश्यक है | जिस प्रकार अच्छा भोजन स्थूल शरीर की खुराक है उसी प्रकार अच्छे लोगों की संगत एवं अच्छे साहित्य का पठन-पाठन व्यक्ति के मन और आत्मा की खुराक है |
मन और आत्मा को स्वस्थ रखने के लिए सदैव सकारात्मक सोच ,सत्संग् और अच्छे साहित्य को पढ़ते रहना अति आवश्यक है |अत : यदि व्यक्ति शारीरिक और मानसिक दोनों ही रूप से स्वस्थ होगा तभी उसका चारित्रिक विकास संभव है :
                 तन तेरा मज़बूत हो मन भी हो बलवान,
               अपने इस व्यक्तित्व को सफल तभी तू मान।
@सर्वाधिकार सुरक्षित------ओंकार सिंह विवेक


May 18, 2019

इज़हार-ए-ख़्याल

चित्र:साभार गूगल से
ग़ज़ल-ओंकार सिंह'विवेक'
मोबाइल9897214710
चाहे कैसी भी महफ़िल हो रास न हरगिज़ आती है,
इस दिल का क्या कीजे इसको तनहाई ही भाती है।

दिल  से  दिल के  रिश्ते कितने पाकीज़ा हैं सच्चे  हैं,
उनको मेरी हर मुश्किल की आप  ख़बर हो जाती है।

मेल  हुआ  तो है  उनमें कुछ लोगों के समझाने पर ,
देखें  अब  यह आपसदारी कितने दिन रह पाती है।

शौक  उड़ानों का  रखना कोई  इतना आसान नहीं,
पंछी  के  घायल  पंखों  की  पीड़ा यह बतलाती है।

पूछ  रहे  हो  आप  सियासत के बारे में,तो सुन लो,
यह वो शय है जो हर रोज़ मसाइल को उलझाती है।
                     ---------------ओंकार सिंह'विवेक'

May 17, 2019

फ़िक्र की परवाज़

ग़ज़ल-ओंकार सिंह'विवेक'
कभी  तो  चाहता  है  यह  बुलंदी  आसमानों   की,
कभी दिल माँग करता है मुसलसल ही ढलानों की।

अभी  भी  सैकड़ों  मज़दूर  हैं  फुटपाथ  पर  सोते,
अगरचे  बात  की  थी  आपने  सबको मकानों  की।

उसूलों  की  पज़ीरायी, वफ़ा-अख़लाक़  के  जज़्बे,
इन्हें   बतला   रहें   हैं   लोग   बातें  दास्तानों   की।

चला  आयेगा  कोई  फिर  नया इक  ज़ख्म देने को,
कमी   कब   है  ज़माने   में   हमारे  मेहरबानों  की।

नदी  को  क्या  रवानी, सोचिये  हासिल  हुयी होती,
ग़ुलामी  वो  अगर  तसलीम  कर  लेती  चटानों की।
-------------ओंकार सिंह'विवेक'
@सर्वाधिकार सुरक्षित
चित्र गूगल से साभार

May 15, 2019

माँ का साथ

डगर  का ज्ञान होता है अगर माँ साथ होती है,
सफ़र आसान होता  है अगर माँ साथ होती है।
मेरा कोई जगत में बाल बाँका कर नहीं सकता,
सदा  ह भान होता है अगर  माँ साथ होती है।
------------ओंकार सिंह विवेक

May 14, 2019

हिना

फूलों से खिलता यह घर है रची हथेली  कहती है,
सबका मन ख़ुशबू से तर है रची हथेली कहती है।
हम भी अपने मन में दीपक जला रखें उम्मीदों के,
ख़ुशियों का पावन अवसर है रची हथेली कहती है।
                      -------------ओंकार सिंह विवेक

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