दूर रंजोअलम् और सदमात हैं ,
माँ है तो खुशनुमा घर के हालात हैं।
अपने ढंग से उसे सब सताते रहे ,
यह न सोचा कि माँ के भी जज़्बात हैं।
दुख ही दुख वो उठाती है सब के लिये ,
माँ के हिस्से में कब सुख के लम्हात हैं।
लौट भी आ मिरे लाल परदेस से ,
मुन्तज़िर माँ की आँखे ये दिन रात हैँ ।
दौर मुश्किल भी आखिर गुज़र जायेगा,
मेरी माँ की दुआएं मेरे साथ हैं ।
(सर्वाधिकार सुरक्षित)-ओंकार सिंह विवेक
माँ है तो खुशनुमा घर के हालात हैं।
अपने ढंग से उसे सब सताते रहे ,
यह न सोचा कि माँ के भी जज़्बात हैं।
दुख ही दुख वो उठाती है सब के लिये ,
माँ के हिस्से में कब सुख के लम्हात हैं।
लौट भी आ मिरे लाल परदेस से ,
मुन्तज़िर माँ की आँखे ये दिन रात हैँ ।
दौर मुश्किल भी आखिर गुज़र जायेगा,
मेरी माँ की दुआएं मेरे साथ हैं ।
(सर्वाधिकार सुरक्षित)-ओंकार सिंह विवेक
(चित्र:गूगल से साभार)
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