July 3, 2019

माँ

दूर  रंजोअलम्   और  सदमात   हैं ,
माँ है तो खुशनुमा घर के हालात हैं।

अपने  ढंग  से उसे सब   सताते  रहे  ,
यह न सोचा कि माँ के भी जज़्बात हैं।

दुख ही दुख वो उठाती है सब के लिये ,
माँ के हिस्से में कब सुख के लम्हात हैं।

लौट   भी  आ  मिरे  लाल  परदेस  से  ,
मुन्तज़िर माँ की आँखे ये  दिन रात हैँ ।

दौर मुश्किल भी आखिर गुज़र जायेगा,
मेरी  माँ   की   दुआएं   मेरे  साथ  हैं ।
(सर्वाधिकार सुरक्षित)-ओंकार सिंह विवेक
(चित्र:गूगल से साभार)

No comments:

Post a Comment

Featured Post

पुस्तक परिचय : गद्य पुस्तक 'उड़ती पतंग'

              गद्य पुस्तक : 'उड़ती पतंग'              कृतिकार : दीपक गोस्वामी 'चिराग़'               प्रकाशक : ड...