October 28, 2022

रचनाकार,दिल्ली १ : एक अनुशासित और समृद्ध साहित्यिक पटल

शुभ प्रभात स्नेही साथियो 🙏🙏🌹🌹

आज एक ऐसे साहित्यिक पटल के बारे में अपने ब्लॉग पर कुछ लिखने का मन हुआ जो अपने अनुशासन के लिए जाना जाता है। जी हां, मैं बात कर रहा हूं 'रचनाकर, दिल्ली १' के नाम से राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त एक बहुत ही समृद्ध साहित्यिक पटल की।इस पटल के प्रशासक/संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण श्रीवास्तव अर्णव जी हैं।मुझे इस पटल से वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती मीना भट्ट सिद्धार्थ जी द्वारा जोड़ा गया था जिसके लिए मैं उनका हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। श्रीमती मीना भट्ट जी की काव्य कृति 'छंदमेध' की समीक्षा हाल ही में आप लोगों ने मेरे ब्लॉग पर पढ़ी थी।इस समीक्षा का वीडियो भी मैंने अपने यू ट्यूब चैनल पर भी अपलोड किया था।उसे भी सुधी साहित्यकारों द्वारा ख़ूब पसंद किया गया।
रचनाकार साहित्यिक पटल पर पूरे सप्ताह (रविवार को छोड़कर) काव्य की किसी न किसी विधा की कार्यशाला आयोजित की जाती है। विषय काल में हर रचनाकर द्वारा पटल पर विधा विशेष की एक रचना प्रस्तुत की जाती है।प्रस्तुत की गई रचनाओं की समीक्षकों द्वारा समीक्षा की जाती है। समीक्षात्मक टिप्पणियों का संज्ञान लेकर रचनाकार  सृजन में परिमार्जन/परिष्कार करके अपने सृजन की धार को तेज़ करने का अवसर प्राप्त करते हैं। मुझे भी अक्सर इस पटल पर ग़ज़ल विधा की कार्यशाला में समीक्षक का दायित्व निर्वहन करने का अवसर प्राप्त होता रहा है। कार्यशाला के अंत में पटल के निर्णायक मंडल द्वारा सर्वश्रेष्ठ रचनाकर, समीक्षक तथा संचालक को प्रशस्ति देकर प्रोत्साहित भी किया जाता है। यह एक अच्छी परंपरा है। मैं कामना करता हूं कि साहित्य सृजन द्वारा समाज सेवा का यह कार्य पटल पर यों ही अनवरत चलता रहे।रविवार का दिन पटल पर मुक्त दिवस के तौर पर रहता है अर्थात उस दिन किसी भी विधा में रचनाकर द्वारा अपनी रचना पोस्ट करने की स्वतंत्रता रहती है। उस दिन रचनाकर अपनी उपलब्धियों के समाचार,  रचनाओं के यू ट्यूब लिंक आदि भी पटल पर पोस्ट कर सकते हैं। सुधी साहित्यकारों से अनुरोध है कि इस मंच से अवश्य जुड़ें।
इसके अतिरिक्त इस  साहित्यिक समूह द्वारा 'रचनाकार' के नाम से एक ई-मासिक साहित्यिक पत्रिका भी निकाली जाती है जिसमें बहुत ही श्रेष्ठ साहित्यिक सामग्री संग्रहित की जाती है। मैं निश्चित तौर पर यह कह सकता हूं कि यह एक पठनीय और संग्रहणीय पत्रिका है। पत्रिका के अगस्त,२०२२ अंक में मेरे भी एक नवगीत को स्थान दिया गया है जिसके लिए मैं संपादक मंडल का हार्दिक आभार प्रकट करता हूं। मेरे कई साथी साहित्यकारों की रचनाएँ भी इसमें छपी हैं।इससे पहले भी कई बार मेरी रचनाएँ पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी हैं।पत्रिका के अगस्त,२०२२ अंक के कुछ पृष्ठों को अवलोकनार्थ यहां साझा करना प्रासंगिक होगा :
'रचनाकार' की इस साहित्यिक संकल्पना के सूत्रधार पटल प्रशासक/संयोजक श्री अर्णव जी और मूर्धन्य साहित्यकार 
आ० मेहा जी हैं। पत्रिका के इस अंक का सम्पादन आ० नीलम सिंह जी द्वारा किया गया है तथा इसके निरंतर प्रकाशन में प्रधान संपादक आ० संजीत सिंह जी का अमूल्य योगदान रहता है।
मैं इस मंच और पत्रिका की उत्तरोत्तर प्रगति की कामना करता हूं।

ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर




October 27, 2022

नई तस्वीरें , नई ग़ज़ल

 नमस्कार  !! शुभ प्रभात 🙏🙏🌹🌹

हाल ही में कुछ अलग अंदाज़ की एक ग़ज़ल मुकम्मल हुई।इसे फेसबुक और अन्य माध्यमों के द्वारा मित्रों के साथ साझा किया।बहुत अच्छी प्रतिक्रियाएं आईं जिनके लिए मैं सभी का दिल से शुक्रिया अदा करता हूं।इस ग़ज़ल में कुछ शेर 
थोड़ा-सा निराशा का भाव लिए हुए भी हो गए।इन अशआर को पढ़कर एक बहुत ही अच्छे मित्र की प्रतिक्रिया आई कि विवेक जी यदि आप ही इतने निराश हो जाएंगे तो कैसे काम चलेगा। मैं अपने दोस्त की भावनाओं को समझ सकता हूं।उनका नज़रिया एक तरह से ठीक भी है परंतु मैंने जब विनम्रता से इसके पीछे की बात बताई तो वह मुझसे सहमत भी दिखे।
मित्रो एक साहित्यकार अपने सृजन में कभी आप बीती तो कभी जग बीती को अभिव्यक्ति देता है और कभी वह न आप बीती कहता है और न जग बीती बल्कि कुछ आशावादी सोच के साथ ऐसा कहता है जो सबके लिए हितकर होता है और समाज को राह दिखाने का काम करता है। साहित्य या अदब का एक पक्ष यह भी है कि यह समाज का दर्पण कहा जाता है।समाज में जो घटित होता है उसकी अभिव्यक्ति करके रचनाकार समाज को आईना भी दिखाता है। कभी-कभी आदमी के दिल और दिमाग़ की ऐसी कैफियत भी हो जाती है जैसी यहां मैंने अपने शेरो र्में बयान की है। अत: स्वाभाविक रूप से ऐसी चीज़ें भी कवि के सृजन का हिस्सा बन जाती हैं।

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दोस्तो कुछ तस्वीरों के साथ आनंद लीजिए मेरी उस नई ग़ज़ल का जिसके बहाने आपसे यह बातचीत हो सकी :
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बैठता  है  दिल  घुटन  से  क्या  करें,
अश्रु  झरते  हैं  नयन  से  क्या  करें।   

आप    ही   बतलाइए   मुँह-ज़ोर  ये,
बात हम-से कम-सुख़न  से क्या करें।

आए  थे  जिनके  लिए, वो  ही  नहीं,
ख़ुश  हमारे  आगमन   से  क्या करें। 

साथ   जाना   ही   नहीं  है जब इसे,
इस क़दर फिर मोह धन से क्या करें।

काम ही  उसका जलाना है तो फिर,
हम गिला कोई अगन  से  क्या करें।

बस   बुझाने  आते  हैं   दीपक  उसे,
और  हम आशा  पवन  से क्या करें।

ज़ेहन  को  भी है  तलब  आराम की,
चूर  है  तन भी थकन  से  क्या  करें। 

आजकल सौगंध खाकर  भी 'विवेक', 
लोग  फिरते  हैं  वचन  से  क्या  करें।
         ---©️ओंकार सिंह विवेक 
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(विभिन्न साहित्यिक आयोजनों के अवसर पर लिए गए चित्र एक कोलाज के रूप में) 
(भारत विकास परिषद रामपुर शाखा की एक पारिवारिक बैठक का दृश्य)

                (मेरी धर्मपत्नी और मैं)

         (दीपावली के शुभ अवसर पर दीपों की थाली लिए                   मेरी धर्मपत्नी) 

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October 26, 2022

राष्ट्रीय तूलिका मंच की ग़ज़ल/गीतिका कार्यशाला में

शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏

रविवार दिनांक २३ अक्टूबर,२०२२ को प्रतिष्ठित साहित्यिक ग्रुप राष्ट्रीय तूलिका मंच,एटा द्वारा आयोजित ग़ज़ल/गीतिका विधा की कार्यशाला में मेरे द्वारा दीपावली के अवसर को देखते हुए उसी रंग की एक ग़ज़ल पोस्ट की गई थी। सौभाग्य से पटल के निर्णायक मंडल द्वारा मुझे उस दिन सर्वश्रेष्ठ शब्द शिल्पी चुना गया। मैं पटल के निर्णायक मंडल तथा संस्थापक आदरणीय डॉक्टर राकेश सक्सैना जी का हार्दिक आभार प्रकट करता हूं 🌹🌹🙏🙏

राष्ट्रीय तूलिका मंच एक बहुत ही प्रतिष्ठित साहित्यिक समूह है जिससे देश भर के तमाम मूर्धन्य साहित्यकार जुड़े हुए हैं।श्रेष्ठ काव्य साहित्य में रुचि रखने वाले साथियों से अनुरोध करूंगा कि इस मंच से जुड़कर अपने काव्य सृजन को धार दें। मैं पिछले कई सालों से इस मंच से जुड़ा हुआ हूं। अवसर मिलने पर कभी-कभार पटल पर ग़ज़ल/गीतिका कार्यशाला के दिन अपनी सीमित जानकारी के अनुसार समीक्षक के दायित्व का निर्वहन करने का प्रयास भी करता हूं।यहां रहकर मूर्धन्य साहित्यकारों से बहुत कुछ सीखने का अवसर प्राप्त हो रहा है।पटल के संस्थापक डॉक्टर राकेश सक्सैना जी बहुत अनुशासित ढंग से इसे चला रहे हैं। मैं उनके दीर्घायु होने की कामना करता हूं।
(चित्र में : पटल के संस्थापक आदरणीय डॉक्टर राकेश सक्सैना जी वरिष्ठ साहित्यकार श्रद्धेय बाबा कल्पनेश जी के साथ)

संदर्भित ग़ज़ल आपके रसास्वादन हेतु पुन: प्रस्तुत कर रहा हूं:

ग़ज़ल ----- ओंकार सिंह विवेक
तम को नफ़रत के मिटाओ कि अब दिवाली है,
प्यार  के  दीप  जलाओ  कि  अब  दिवाली  है।

सख़्त राहों  के  सफ़र  से  हैं  जो  भी घबराते,
हौसला  उनका  बढ़ाओ  कि अब  दिवाली है।

वक़्त  गुज़रा  तो  कभी   लौटकर  न  आएगा,
वक़्त को  यूँ  न गँवाओ  कि  अब  दिवाली है।

पेड़-पौधे     ही    तो    पर्यावरण    बचाते   हैं,
इनको  हर ओर लगाओ  कि  अब  दिवाली है।

आपसी   मेल-मुहब्बत   का, भाई   चारे   का,
सबमें  एहसास जगाओ  कि  अब दिवाली है।
                           --- ओंकार सिंह विवेक 
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
राष्ट्रीय तूलिका मंच एटा के पटल से साभार👎
 
 🇮🇳  *राष्ट्रीय तूलिका  मंच*🇮🇳

      🫐23अक्टूबर  2022 🫐
            🌞रविवार 🌞

🇮🇳🪷🇮🇳🪷🇮🇳🪷 🇮🇳🪷🇮🇳
  
   🪴 *सर्वश्रेष्ठ शब्दशिल्पी*

    श्री ओंकार सिंह विवेक 

    🪴 *श्रेष्ठ शब्दशिल्पी* 🪴
  डाॅ0 महेश कुमार मधुकर 

🇮🇳🪷🇮🇳🪷🇮🇳🪷🙏🪷🇮🇳


       💐हार्दिक बधाई 💐

 🇮🇳  *- राष्ट्रीय तूलिका    मंच -* 🇮🇳

🇮🇳🪷🇮🇳🪷🇮🇳🪷🇮🇳🪷🇮🇳
 दैनिक सर्वश्रेष्ठ विवेचक 
श्री मुकुट सक्सेना 
दैनिक श्रेष्ठ विवेचक 
श्री कल्याण गुर्जर कल्याण

विशेष : मेरी इस ग़ज़ल को मेरी धर्मपत्नी श्रीमती रेखा सैनी जी द्वारा अपनी आवाज़ दी गई है । यदि इसे सुनकर कॉमेंट बॉक्स में प्रतिक्रिया देकर तथा चैनल को नि:शुल्क सब्सक्राइब करके हमारा उत्साहवर्धन करेंगे तो हमें हार्दिक प्रसन्नता होगी 👎👎





October 23, 2022

🪔🪔 शुभ दीपावली 🪔🪔 शुभ दीपावली 🪔🪔

मित्रो शुभ दीपावली 🙏🙏🪔🪔🪔🪔

घर आंगन, कार्यालय प्रतिष्ठान और दिलों को रौशन करने वाले प्रिय पर्व दीपावली की आप सब को सपरिवार बहुत बहुत शुभकामनाएं।

मित्रो वैसे तो हम सब दीपावली के पावन त्योहार के उद्धव और विकास के बारे में जानते ही हैं। परंतु फिर भी इस समय कुछ बातों का पुन: चर्चा करना प्रासंगिक होगा। शारदीय नवरात्र और विजयदशमी के त्योहारों के आगमन के साथ ही दीपोत्सव की तैयारियां बड़े ज़ोर-शोर से शुरु हो जाती हैं। हम सब जानते हैं कि भगवान श्री राम द्वारा रावण का वध करने पर असत्य पर सत्य की जीत के रूप में विजयदशमी/दशहरा त्योहार मनाया जाता है।इसके ठीक इक्कीस दिन बाद दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। दशहरे के ठीक इक्कीस दिन बाद ही दीवाली का त्योहार क्यों मनाया जाता है इसके पीछे भी एक कारण है।रावण का वध करके श्री लंका का राज्य विभीषण को सौंपकर अयोध्या लौटकर आने में भगवान श्री राम को  इक्कीस दिन का समय लगा था। इक्कीस दिन का सफ़र करके उनके अयोध्या पहुँचने पर अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था।इसलिए दशहरे के इक्कीस दिन बाद दीपावली का त्योहार मनाया जाता है।दीपावली का शाब्दिक अर्थ है दीप (दीपक) +आवली (पंक्ति) अर्थात दीपों की पंक्ति।
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दीपावली के अवसर पर मुझे घर की छत से अपनी कॉलोनी का को जगमगाता मंज़र नज़र आया उसे आप लोगों के साथ साझा करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं-
इस अवसर पर हम यही कामना करते हैं कि देश और दुनिया में शांति स्थापित हो और लोग अपने-अपने घर आंगन में रौशनी करने के साथ दिलों को भी रौशन करें तथा परस्पर प्रेम और सौहार्द से रहें।

लीजिए प्रस्तुत है अवसर के अनुकूल मेरी एक ताज़ा ग़ज़ल 

🪔शुभ दीपावली🪔

ग़ज़ल ----- ओंकार सिंह विवेक
 🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔

तम को नफ़रत के मिटाओ कि अब दिवाली है,
प्यार  के  दीप  जलाओ  कि  अब  दिवाली है।

सख़्त राहों  के  सफ़र  से  हैं  जो  भी घबराते,
हौसला  उनका  बढ़ाओ  कि अब  दिवाली है।

वक़्त  गुज़रा  तो  कभी   लौटकर  न  आएगा,
वक़्त को  यूँ  न गँवाओ  कि  अब  दिवाली है।

पेड़-पौधे    ही    तो    पर्यावरण    बचाते   हैं,
इनको हर ओर  लगाओ कि  अब  दिवाली है।

आपसी   मेल-मुहब्बत   का, भाई   चारे  का,
सबमें  एहसास जगाओ  कि  अब दिवाली है।

🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔
                           ---- ओंकार सिंह विवेक 
               (सर्वाधिकार सुरक्षित) 

October 21, 2022

पुस्तक समीक्षा : छंदमेध

मित्रो नमस्कार🙏🙏🌹🌹

आज आपके सम्मुख आदरणीया मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की काव्य कृति 'छंदमेधा' की समीक्षा लेकर हाज़िर हूं। प्रतिक्रिया से अवश्य ही अवगत कराएं।

पुस्तक    :    छंदमेधा
रचनाकार :    मीना भट्ट सिद्धार्थ
समीक्षक  :   ओंकार सिंह विवेक
पृष्ठ संख्या :  100
प्रकाशक   :  साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली 

श्रीमती मीना भट्ट सिद्धार्थ,जबलपुर (मध्य प्रदेश) की एक वरिष्ठ साहित्यकार हैं।आप ज़िला जज के ओहदे से रिटायर होने के बाद साहित्य और समाज सेवा के कार्यों में निमग्न हैं।मीना जी साहित्य की लगभग सभी विधाओं यथा लघुकथा/गीत/ग़ज़ल/अन्य विविध हिंदी छंदों में श्रेष्ठ सृजन के लिए जानी जाती हैं। आपकी अब तक कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। पहली पुस्तक 'पंचतंत्र में नारी' वर्ष 2016 में प्रकाशित हुई थी।हाल ही में आपकी एक और किताब ई-फॉर्म में 'छंदमेध' के नाम से आई है।इस पुस्तक को साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली द्वारा नि:शुल्क छापा गया है।पुस्तक को मीना जी ने अपने दिवंगत पुत्र सिद्धार्थ को समर्पित किया है।

छंद एक पुरातन ज्ञान है।यति, गति और लय छंद के तीन प्रमुख गुण हैं।इनके योग से ही छंद का सृजन होता है। मीना जी की इस काव्य कृति में हिंदी भाषा के विविध सनातनी छंदों में प्रेम, करुणा और भक्ति भाव से ओतप्रोत रचनाएँ देखने को मिलती हैं। मैं निश्चित रूप से यह कह सकता हूं कि श्रीमती मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की यह काव्य कृति हिंदी का संवर्धन करके उसका गौरव और मान बढ़ाएगी।
इस पुस्तक की अधिकांश रचनाएँ पढ़कर मैंने उन पर चिंतन और मनन भी किया है। समीक्षा में सभी का उल्लेख तो नहीं किया जा सकता। हां,कुछ रचनाओं के चुनिंदा अंश अवश्य आपके साथ साझा करना चाहूंगा ताकि आपको मीना जी के चिंतन की गहराई का अनुमान हो सके।

पुस्तक के प्रारंभ में ही वर्णिक छंद सिंहनाद में मीना जी ने ईश स्मरण की महत्ता को किस सुंदरता के साथ अभिव्यक्ति किया है, देखिए :
        प्रभु नाम धाम सुखकारी,
        भजते सदैव वनवारी।
       नित आस है मिलन जानो,
       प्रिय वास है ह्रदय मानो।
रचनाकार चीज़ों को एक ख़ास नज़र से देखता है।उसका सोच सत्य और नैतिकता को काव्य रूप में अभिव्यक्त करने के लिए हमेशा व्याकुल रहता है। मीना जी ने गजपति छंद में सत्य की सत्ता की स्थापना की कामना कितने सुंदर शब्दों में की है,देखें :
          अटल सत्य चमके,
           सहज देख दमके।
           भ्रमित झूठ भटके,
            नयन देख खटके।

नि:संदेह झूठ को भटकना चाहिए और सत्य की सत्ता स्थापित होनी ही चाहिए।मीना जी की इस कृति में ऊपर उल्लिखित छंदों के अतिरिक्त हिंदी के अन्य विभिन्न छंदों यथा भृंग,दीपक,राजरमणीय, कामदा,सुमति तथा मनहरण आदि में हमें प्रेम, करुणा और भक्ति भाव की मार्मिक अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। एक स्थान पर शिष्या छंद में मां दुर्गा की शानदार स्तुति देखिए :
      मां की मीठी वाणी है,
      दुर्गा तो कल्याणी है।
      अम्बे है मां काली भी,
      माता जोता वाली भी।
एक कवि का ह्रदय भी अथाह सागर के समान होता है।उसमें प्रेम, करुणा और भक्ति आदि भावों के अनेक रत्न छुपे होते हैं। मीना जी के ह्रदय-सागर के प्रेम भाव का प्रमाणिका छंद का एक मोती देखिए :
            उदास में निहारती,
           पिया तुम्हें पुकारती।
           वसंत की उमंग है,
           बजे पिया मृदंग है।
मीना जी की सभी छंदबद्ध रचनाएँ ह्रदय को छूती हैं। कविता की सार्थकता भी तभी है जब वह सीधे आदमी के दिल में उतर जाए और उसे आह या वाह करने के लिए विवश कर दे।पुस्तक में संकलित सभी रचनाओं की भाषा बहुत ही सहज और सरल है।भाव, कथ्य और शिल्प का अच्छा संयोजन है।एक और अच्छी बात इस पुस्तक की यह है कि इसमें हर छंदबद्ध रचना से पूर्व उसका पूरा विधान तथा मापनी आदि अंकित है जो आम तौर पर काव्य पुस्तकों में देखने को नहीं मिलती।पुस्तक को बहुत ही आकर्षक ढंग से डिज़ाइन किया गया है जिसके लिए संपादक मंडल बधाई का पात्र है।
मैं यही कामना करता हूं कि श्रीमती मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की यह काव्य कृति साहित्य जगत में बड़े स्नेह से पढ़ी और सराही जाए।
    धन्यवाद!!!

स्थान : रामपुर                                 ओंकार सिंह विवेक 
दिनांक : 21अक्टूबर,2022       ग़ज़लकार/समीक्षक/ब्लॉगर






October 19, 2022

होगा तभी नसीब कहीं थोड़ा-सा खाना

नमस्कार मित्रो 🌹🌹🙏🙏

धनी और निर्धन ,ऊंच नीच और जाति-पांति का भेद समाज में युगों-युगों से चला आ रहा है। इसके प्रभावों पर बहुत कुछ कहा और लिखा जाता रहा है।इस वर्ग भेद को समाज से पूरी तरह मिटाया तो नहीं मिटाया जा सकता परंतु संवेदनशील बने रहकर इसको विकृत होने से तो बचाया ही जा सकता है।
अक्सर देखने में आया है कि उल्लिखित विभेदों के चलते धनी निर्धन से, उच्च जाति के लोग निम्न जाति के लोगों से और मालिक नौकर से अप्रिय तथा अमानवीय व्यवहार  करते हैं। परंतु इसके अपवाद भी हैं।कुछ लोग अपने अधीनस्थों/मातहतों से बहुत अच्छी तरह भी पेश आते हैं।

कई बार मैंने देखा है कि घर या दुकान आदि में लोगों द्वारा लेबर और नौकरों से काम लेते समय मानवीयता के पहलू को नज़रअंदाज़ करते हुए बहुत अप्रिय और कठोर व्यवहार किया जाता है जो बिल्कुल भी उचित नहीं है। मज़दूर या वर्कर से काम लेते हुए मालिक को यह नहीं भूलना चाहिए कि नौकर भी एक इंसान है और उसकी भी अन्य लोगों की भांति स्वाभाविक क्रियाएं और ज़रूरतें होती हैं जिनका वांछित समय पर उचित निस्तारण अपरिहार्य है। यदि थोड़ी बहुत देर  विश्राम देकर उन्हें मानसिक बल प्रदान करेंगे तो इससे उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि होगी जिसका अच्छा असर काम पर भी दिखाई देगा। यदि हम इस बात को ध्यान में रखकर उनसे काम लेंगे तब ही सही अर्थ में/इंसान कहलाने के हक़दार होंगे अन्यथा नहीं। 
कुछ दिन पहले ऐसी ही एक घटना मैंने देखी जिसका नाम और प्रसंग सहित उल्लेख करना ठीक नहीं है।परंतु उसे देखकर यह कवि मन उद्वेलित हुआ और एक कुंडलिया छंद का सृजन हुआ जो आप सब सुधी मित्रों के सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं, कृपया अपनी टिप्पणियों से अवश्य ही अवगत कराइए :
         कुंडलियां 
        ********
खाना खाकर  सेठ जी, गए  चैन  से लेट,
नौकर  धोता  ही  रहा, बर्तन  ख़ाली पेट।
बर्तन  ख़ाली  पेट, निरंतर  भूख   सताए,
कैसे  पर यह बात, सेठ जी को समझाए।
है 'विवेक' सब काम,उसे पहले निपटाना,
होगा तभी  नसीब,कहीं थोड़ा-सा खाना।
           -- ओंकार सिंह विवेक
         (सर्वाधिकार सुरक्षित)


October 17, 2022

दिल तो दर्पण है टूट जाएगा !!!!!!

 नमस्कार साथियो🙏🙏🌹🌹

आज इस ब्लॉग पोस्ट में मंच पर काव्य पाठ की दो शैलियों के बारे में कुछ चर्चा करते हैं। जहाँ तक कविता का प्रश्न है शिल्प और भाव के साथ गेयता भी उसकी प्रमुख शर्तों में से एक होती है। यहाँ तक कि अतुकांत कविता में भी एक प्रवाह विद्यमान रहता है।
काव्य पाठ की दो शैलियाँ तहत और तरन्नुम हैं।तहत में काव्य पाठ का अर्थ है सीधे-सीधे अपनी रचना को बिना गाए हुए श्रोताओं के सम्मुख प्रस्तुत करना और तरन्नुम में पढ़ने का अर्थ है रचना को गाकर प्रस्तुत करना। मंच पर लोग अक्सर दोनों ही तरह से अपनी अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करते हैं।यह बिल्कुल ठीक बात है कि गायन शैली में रचना प्रस्तुति का अपना एक अलग प्रभाव होता है परंतु तहत में रचना पाठ भी अपने ढंग से श्रोताओं पर असर छोड़ता है।
हाँ,यह बात सही है कि यदि किसी रचनाकार के पास अच्छी कविता के साथ साथ अच्छा गला भी है तो सोने में सुहागा हो जाता है।तरन्नुम में रचना पढ़ने का एक फ़ायदा यह भी होता है कि एक या दो रचनाएँ पढ़ने में ही अच्छा समय निकल जाता है जबकि तहत में रचना पढ़ने में इतना समय नहीं लगता इसलिए रचनाकार को कई रचनाएँ पढ़नी पड़ती हैं।बहरहाल, रचना पाठ की दोनों शैलियों का अपना महत्त्व है।आज मंचों पर कई कवि/कवयित्रियाँ यदि अपने तरन्नुम के लिए जाने जाते हैं तो कई सीधे-सीधे संवाद करते हुए अपने तहत में काव्य पाठ के लिए भी जाने जाते हैं।
      मैं भी अक्सर मंचों पर जाता हूं। मैं हमेशा तहत में ही काव्य पाठ करना पसंद करता हूं क्योंकि तरन्नुम में कभी मैं अपने आपको सहज महसूस नहीं करता। हाँ,कभी-कभार दोहे ज़रूर तरन्नुम में पढ़ने का प्रयास कर लेता हूं।मेरा मानना है कि कवि को जिसमें सहजता महसूस हो उसी शैली में रचना पाठ करके अपना स्टाइल विकसित करना चाहिए ।किसी की नकल बिल्कुल नहीं करनी चाहिए।

वर्ष २०२१ में मेरा ग़ज़ल संग्रह "दर्द का एहसास" छपा था, जिसमें एक ग़ज़ल थी "संग नफ़रत के सह न पाएगा" उस समय इस ग़ज़ल में सिर्फ़ पांच शेर थे। 
हाल ही में मैंने इस ग़ज़ल में कुछ परिमार्जन के साथ दो शेर और बढ़ाए हैं सो पूरी ग़ज़ल यहां पुन: प्रस्तुत कर रहा हूं:

2   1    2   2 1   2  1  2 2 2                                 

ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक

संग  नफ़रत  के  सह  न पाएगा,      संग - पत्थर
दिल  तो  दर्पण  है  टूट जाएगा।     

टूटकर  मिलना   आपका  हमसे,
वक्ते-रुख़सत   बहुत   रुलाएगा।
 

(वक्ते-रुख़सत- जुदाई के समय)

दिल को हर पल ये आस रहती है,  
एक   दिन   वो    ज़रूर  आएगा।   

जब  कदूरत  दिलों  पे  हो  हावी,       कदूरत - दुर्भाव 
कौन   किसको   गले   लगाएगा?

राह  भटका  हुआ हो जो ख़ुद ही,  
क्या    हमें    रास्ता    दिखाएगा?

होगा  हासिल   फ़क़त  उसे  मंसब,       मंसब - पद
उनकी  हाँ  में  जो   हाँ  मिलाएगा।

और  कब  तक  'विवेक'  यूँ  इंसाँ, 
ज़ुल्म   जंगल,नदी    पे    ढाएगा।
                  ओंकार सिंह विवेक  

                 (सर्वाधिकार सुरक्षित)

(विशेष : मेरी पुस्तक का मूल्य एक सौ पचास रुपए है।यदि ग़ज़ल के शौक़ीन साथी चाहें तो मोबाइल संख्या 9897214710 पर इस धनराशि का पे टी एम करके पुस्तक मंगा सकते हैं।पुस्तक पंजीकृत डाक द्वारा आपको भेज दी जाएगी। पंजीकृत डाक व्यय जो लगभग पचास रुपया होगा, मेरे द्वारा वहन किया जायेगा।)

आइए अब कुछ अपनी धर्मपत्नी श्रीमती रेखा सैनी जी के शौक़ के बारे में बताता हूं।इस ग़ज़ल के संदर्भ में उनका ज़िक्र करना यहां प्रासंगिक भी हो गया है। पत्नी जी ने वोकल म्यूजिक में प्रभाकर तक शिक्षा प्राप्त की है।शादी के बाद पारिवारिक दायित्वों के चलते वह अपने शौक़ को तो जैसे भूल ही बैठी थीं। मैंने तथा बच्चों ने निरंतर प्रोत्साहित किया है तो फिर से अपने पैशन को फॉलो करने की तरफ़ ध्यान गया है।इधर अपने यहां रामपुर आल इंडिया रेडियो पर भी मैंने उनका ऑडिशन कराया था जिसमें वह पास भी हो गई हैं। वहाँ लोकगीत कार्यक्रम में उनको शायद अब जल्दी ही नियमित अंतराल पर बुलाया जाने लगेगा। मेरा तो यही मानना है कि आदमी को अपने अच्छे पैशन को हमेशा ज़िंदा रखना चाहिए।

प्रोत्साहित करने पर श्रीमती जी ने मेरी उल्लिखित ग़ज़ल को गाने का प्रयास किया है। वह कहाँ तक सफल हो पाई हैं यह तो आपकी प्रतिक्रिया से ही पता चलेगा।मेरा आग्रह है कि नीचे दिए गए लिंक पर जाकर उनके प्रयास को अवश्य देखिए। आपके कॉमेंट्स से उन्हें/हमें प्रोत्साहन मिलेगा।यदि चैनल पर आप पहली बार जा रहे हैं तो चैनल पर दाईं ओर दिखाई दे रहे Subscribe ऑप्शन को दबाकर इसे  सब्सक्राइब करना न भूलें 🙏🙏

दिल तो दर्पण है टूट जाएगा 👈



October 14, 2022

नई ग़ज़ल : पा ही लेंगे मंज़िल को ये मन में ठानी है

दोस्तो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏


कलकत्ता से प्रकाशित होने वाली पत्रिका "सदीनामा'' में मेरी ताज़ा ग़ज़ल छपी है।इसके लिए मैं पत्रिका के संपादक मंडल का आभार प्रकट करता हूं और साथ ही संयोजक वरिष्ठ शायर श्री ओमप्रकाश नूर साहब का भी दिली शुक्रिया अदा करता हूं जिनके सहयोग से यह मुमकिन हो पाया। मैंने इस पत्रिका का साहित्यिक कॉन्टेंट पढ़ा है।यह पत्रिका मानवीय मूल्यों और जनसरोकारों से जुड़े विषयों पर किए गए सृजन को प्रमुखता से छापती है।

पत्रिका के कुछ पृष्ठ भी आप सुधी जनों के अवलोकनार्थ संलग्न कर रहा हूं:
ग़ज़ल ****ओंकार सिंह विवेक 
©️
आ  जाए  रस्ते  में   जो   भी  मुश्किल  आनी है,
पा  ही   लेंगे  मंज़िल  को  ये   मन  में   ठानी है।

लीपा-पोती   कर   दी   जाएगी  फिर  तथ्यों  पर,
सिर्फ़ दिखावे को कुछ दिन तक  जाँच करानी है।
©️
आती  ही   है  मुश्किल  सच   के   पैरोकारों  पर,
हम   पर   आई  है   तो   इसमें  क्या   हैरानी  है।

वक़्त  भी  करता  है  अपनी  रफ़्तार  कहीं धीमी?
हमको ही उसकी चाल से अपनी चाल मिलानी है।
©️
छोड़ो  भी  अब और  पशेमाँ  क्या  करना  उसको,
अपनी  ग़लती   पर  वो   ख़ुद  ही   पानी-पानी है।

दिन    भर    शोर-शराबा,   छीना-झपटी,  हंगामा,     
और   उन्हें  कितनी  संसद  की  साख  गिरानी है?

बीज  हसद-नफ़रत   के   ही   बोने   वाले  निकले,
जो   कहते   थे   सद्भावों  की   फ़स्ल   उगानी  है। 

बीत  गए वो  दिन  जब  आकर फुदका  करती थी,
आज  न  घर  की   खिड़की पर  गौरैया  आनी  है।
                         --  ©️ ओंकार सिंह विवेक 

 (यह चित्र साहित्यिक संस्था अखिल भारतीय काव्य धारा रामपुर की लखनऊ इकाई द्वारा आयोजित कराए गए साहित्यिक समारोह के अवसर का है। चित्र में दाएँ से संस्था प्रमुख श्री जितेंद्र कमल आनंद जी, सम्मान ग्रहण करते हुए मैं तथा उसके बाद संस्था की लखनऊ इकाई के सचिव श्री शैलेंद्र सक्सैना जी,कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉक्टर शिव भजन कमलेश जी और लखनऊ इकाई के महासचिव श्री प्रेम शंकर शास्त्री जी के साथ कार्यक्रम संचालक श्रीमती राजबाला धैर्य जी नज़र आ रही हैं )



October 13, 2022

करवा चौथ : हमारी संस्कृति और परंपरा को सुदृढ़ करता त्योहार

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

आज पति- पत्नी के बीच प्रेम और विश्वास के रिश्ते को मज़बूत करने वाला त्योहार करवा चौथ है। मुझे यह तो नहीं मालूम कि पति के लिए पत्नी द्वारा इस तरह निर्जल व्रत रखने के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार भी रहा है परंतु यह ज़रूर कह सकता हूं कि ऐसे कितने ही त्योहार हमारी सांस्कृतिक विरासत और परम्पराओं का अभिन्न अंग हैं जो पारस्परिक प्रेम और सद्भाव से जीने का उत्साह  प्रदान करते हैं। मैं समझता हूं कि हमारे जीवन में रच बस चुकी इन सुदृढ़ और सकारात्मक परम्पराओं को किसी वैज्ञानिक कसौटी की आवश्यकता भी नहीं है।

यह पर्व भारत में ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में बसे भारतीयों द्वारा भी पूरे हर्ष, उल्लास और उत्साह से मनाया जाता है।भारतीय संस्कृति में प्रेम और आस्था की जड़ें कितनी मज़बूत हैं ,करवा चौथ जैसे तमाम अन्य त्योहार हमें इस बात का बार-बार एहसास कराते हैं।हमें इस बात का गर्व है कि होली,दीपावली, रक्षा बंधन और करवा चौथ जैसे पर्व भारतीय संस्कृति को वैश्विक स्तर पर पहुंचा चुकी हैं।करवा चौथ का त्योहार परस्पर प्रेम और सहयोग का प्रतीक है।पत्नी का दिन भर इस तरह निर्जल व्रत रखना पति के प्रति उसका नि:स्वार्थ प्रेम और समर्पण दर्शाता है तो वहीं पति द्वारा भी उसे भरोसा दिया जाता है की वह उसे सहयोग करने में कोई कोर कसर बाक़ी नहीं छोड़ेगा।

यही कामना है की हम इसी उत्साह , विश्वास और ऊर्जा के साथ त्योहार मनाते हुए अपने सांस्कृतिक मूल्यों और परम्पराओं का संवर्धन और संरक्षण करते रहें।

लीजिए प्रस्तुत हैं इस अवसर पर सृजित मेरे कुछ दोहे :

दोहे : करवा चौथ

💥
पति की लम्बी आयु की, मन में इच्छा धार,
पत्नी करवा  चौथ का, व्रत रखती हर बार।
💥
छलनी  में  से चाँद का,  करने  को   दीदार,
छत पर सभी सुहागिनें,नभ को रहीं निहार।
💥
पति- पत्नी   में  उम्र भर,बना  रहे  विश्वास,
यह  ही  करवा चौथ का, संदेशा  है  ख़ास।
💥
मित्रो!करवाचौथ  का, यह   पावन  त्योहार,
पति-पत्नी   संबंध  का, है  अटूट   आधार।       
💥
                      --------ओंकार सिंह विवेक
                             (सर्वाधिकार सुरक्षित)

        ( धर्म पत्नी जी के साथ हमारे शहर की दर्शनीय 
           गाँधी समाधि पर  लिया गया फोटो)
 ---- ओंकार सिंह विवेक 

October 12, 2022

कविता अपने समय का आईना होती है

प्रणाम मित्रो🙏🙏🌹🌹

कविता के सृजन के लिए कोई घटना,अनुभूति, या अनुभव चाहिए होता है।इन सब चीज़ों को लेकर ही कवि का चिंतन विकसित होता है और कविता का प्रस्फुटन होता है। गद्य में किसी विचार को विस्तार देना जितना आसान है, यह काम कविता में उतना ही मुश्किल होता है। कविता के शिल्प विधान का पालन करते हुए कम से कम शब्दों में अपनी बात कहने के लिए पर्याप्त कौशल की आवश्यकता होती है। परंतु मां सरस्वती की कृपा और निरंतर अभ्यास से ऐसा कर पाना कुछ मुश्किल भी नहीं है।
जिन दिनों रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत हुई उन दिनों मन बहुत खिन्न रहा। मानवता पर घिर आए संकट को देखकर उन दिनों मन की कैफियत बयान करने के लिए मैंने अपनी ब्लॉग पर भी कई पोस्ट्स लिखी थीं। उन्हीं दिनों अपनी मनोदशा को चित्रित करते हुए मैंने ग़ज़ल का एक मतला कहा था फिर उसमें उसी रंग के कुछ और शेर भी हुए।कुछ शेर अलग रंग के भी हुए।वह ग़ज़ल आप सबकी प्रतिक्रिया हेतु नीचे प्रस्तुत कर रहा हूं। कॉमेंट्स की प्रतीक्षा रहेगी।
यह ग़ज़ल और इसके साथ मेरी कुछ और ग़ज़लें प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका अनुभूति में भी छपीं थीं जिनके स्क्रीनशॉट अवलोकनार्थ साथ संलग्न हैं।पत्रिका की संपादक आदरणीया पूर्णिमा वर्मन जी का दिल से शुक्रिया अदा करता हूं।

कुछ ग़ज़लें कलकत्ता से निकलने वाले प्रसिद्ध अख़बार सदीनामा में भी छपीं जिसके स्क्रीनशॉट भी साथ संलग्न हैं। इसके लिए रुड़की के मशहूर शायर आदरणीय ओमप्रकाश नूर साहब का दिली शुक्रिया।
ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक 
हर   तरफ़   जंग  की  अलामत  है,
अम्न  पर  ख़ौफ़-सा  मुसल्लत  है।

क्या करें उनसे कुछ गिला-शिकवा,
तंज़  करना  तो  उनकी  आदत  है।

मुजरिमों  को   नहीं  है   डर   कोई,
ख़ौफ़  में  अब  फ़क़त अदालत है।

हमने ज़ुल्मत  को  रौशनी  न कहा,
उनको  हमसे  यही   शिकायत  है।

पूछ   लेते    हैं   हाल-चाल   कभी,
दोस्तों    की    बड़ी    इनायत   है।

बात   करते    हैं,  फूल   झरते    हैं,
उनके लहजे  में  क्या  नफ़ासत  है।

जंग  से   मसअले  का  हल  होगा,
ये   भरम   पालना    हिमाक़त  है।
    ---- ओंकार सिंह विवेक







---ओंकार सिंह विवेक 


October 11, 2022

ग़ज़ल और इसके मूल रुक्न

शुभ प्रभात मित्रो🙏🙏🌹🌹


(यह चित्र २अक्टूबर,२०२२ को रामपुर के पल्लव काव्य मंच द्वारा आयोजित कराए गए कवि सम्मेलन/पुस्तक लोकार्पण/साहित्यकार सम्मान समारोह के अवसर पर लिया गया था।चित्र में दाएं से बाएं : साहित्यकार श्री राजेश डोभाल जी, मैं ओंकार सिंह विवेक,श्री शिव कुमार चंदन जी और आदरणीय बाबा कल्पनेश जी)

काव्य की हर विधा का अपना निश्चित विधान होता है। व्याकरण, वाक्य विन्यास आदि महत्वपूर्ण पहलुओं के साथ विधा के अनुशासन में बंधकर ही कोई रचना पूरा निखार पाती है। ग़ज़ल विधा का अपना अनुशासन है जिसमें उसके रुक्न बहुत महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं। रुकनों से ही लयखण्ड बनते हैं जो ग़ज़ल को रवानी प्रदान करते हैं।
ग़ज़ल के आठ प्रमुख मूल रुकन निम्न प्रकार हैं :
     रुक्न                 हिंदी मात्रा-क्रम 
    फ़ऊलुन              १ २ २
    मफ़ाईलुन           १ २ २ २
     फ़ाइलुन             २ १ २
     फ़ाइलातुन          २ १ २ २
   मुस्तफ़इलुन          २ २ १ २
    मुफ़ाइलतुन          १ २ १ १ २
    मुतफ़ाइलुन          १  १ २ १ २
      मफ़ऊलातु          २ २ २ १
 इन्हीं रुक्नों की आवृत्ति से बहरों का निर्माण होता है। किसी भी बहर में चार, छः या आठ आदि अरकान(रुक्न का बहुवचन) हो सकते हैं।
ऐसी ग़ज़ल भी कही जा सकती है जिसके एक मिसरे में केवल कोई एक ही रुक्न हो अर्थात दोनों मिसरों/पंक्तियों में केवल दो ही रुक्न हों।ऐसी ग़ज़ल को एक रुकनी ग़ज़ल कहा जा सकता है।
एक रुकनी ग़ज़ल कहना/लिखना अपेक्षाकृत मुश्किल होता है क्योंकि ऐसी दशा में अपनी पूरी बात बहुत कम शब्दों में कहने की बाध्यता हो जाती है।बहुत ही कम शब्दों में शिल्प ,कथ्य और भाव को बिना किसी व्याकरणीय त्रुटि के कुशलता से संप्रेषित करना वास्तव में एक कठिन काम तो है ही।
पटना,बिहार के श्री रमेश कंवल साहब एक उम्दा शायर और बेहतरीन इंसान हैं।वर्ष २०२१ में उन्होंने "इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवें साल की बेहतरीन ग़ज़लें" शीर्षक से एक साझा ग़ज़ल संग्रह निकाला था जिसमें हिंदुस्तान भर के अच्छे शायरों की ग़ज़लें संकलित की गईं थीं। मुझे भी इस किताब का हिस्सा बनने का सौभाग्य मिला था।इस किताब की संक्षिप्त समीक्षा भी मैंने आप सब के लिए अपने इस ब्लॉग पर पोस्ट की थी।
                          (श्री रमेश कंवल साहब)
अब श्री रमेश कंवल साहब ने एक रुकनी ग़ज़लों का संग्रह निकालने की योजना बनाई है। उन्होंने तमाम शायरों से एक रुकनी ग़ज़लें इस संकलन के लिए आमंत्रित की हैं ।उनकी इस अनूठी पहल का हिस्सा बनने के लिए मैंने भी कुछ एक रुकनी ग़ज़लें कहीं जिनमें से एक आपकी प्रतिक्रिया हेतु यहां साझा कर रहा हूं।
आशा है आप ब्लॉग को फॉलो  करके रचना पर टिप्पणी अवश्य अंकित करेंगे।

एक रुकनी ग़ज़ल
**************
 --- ओंकार सिंह विवेक 
फ़ाइलातुन
2  1  2   2
ज़ीस्त क्या है,
बुलबुला   है।

क्या हो कल को,
क्या    पता   है।

हम   भले   तो,
जग   भला  है।

शायरी      भी,
इक   नशा  है।

ठीक    समझे,
सच   बड़ा  है।

श्रम का सबको,
फल  मिला  है।

जाग,    सूरज-
चढ़   गया  है।
--  ©️ ओंकार सिंह विवेक

 (
ऊपर दिया गया सम्मान पत्र काव्यानंद साहित्यिक पटल कासगंज, उ०प्र०से प्राप्त हुआ है।यह एक प्रतिष्ठित साहित्यिक पटल है जिससे बहुत अच्छे साहित्यकार जुड़े हुए हैं। मैं इस पटल से लगभग इसकी स्थापना के समय से ही जुड़ा हुआ हूं।समय मिलने पर यहां अपनी रचनाएँ पोस्ट करने के साथ-साथ अक्सर पटल-संस्थापक के आग्रह पर ग़ज़लों पर समीक्षात्मक टिप्पणियां भी कर देता हूं जिसे पटल से जुड़े सभी लोग सह्रदयता से लेते हैं। वरिष्ठ साहित्यकार और पटल के संस्थापक श्री भ्रमर जी पटल को बहुत अनुशासित ढंग से इसे चला रहे हैं। मैं पटल की उत्तरोत्तर प्रगति की कामना करता हूं।
           --ओंकार सिंह विवेक
      ग़ज़लकार/समीक्षक/ स्वतंत्र विचारक/ब्लॉगर
(ब्लॉगर की गोपनीयता पॉलिसी के तहत सर्वाधिकार सुरक्षित)

October 9, 2022

एक बार फिर ग़ज़ल के बहाने

एक बार फिर ग़ज़ल के बहाने
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प्रणाम मित्रो🙏🙏

कविता कवि के मन और उसके आस-पास जो घटित हो रहा होता है उसकी अभिव्यक्ति से इतर कुछ नहीं होती।कवि या रचनाकार के मन में भिन्न-भिन्न समय पर काल और परिस्थितियों को देखकर विचार आते रहते हैं जिन्हें वह अपने चिंतन कौशल से शब्दों में ढालकर कविता का रूप देकर पाठकों और श्रोताओं के संमुख रख देता है। काव्य की गीत विधा में एक गीत में अमूमन एक विचार और भावभूमि को लेकर ही  पूरा गीत रचा जाता है परंतु ग़ज़ल का केस थोड़ा भिन्न है।ग़ज़ल का हर  शेर दूसरे से स्वतंत्र और विभिन्न कालखंड के मौज़ू और मफ़हूम लिए हुए हो सकता है।ग़ज़लकार को इस बात का फ़ायदा मिलता है कि वह कई कथ्य और विषय अपनी एक ही ग़ज़ल के अलग-अलग शेरों/अशआर में कह सकता है।

मेरी  हाल ही में एक जदीद ग़ज़ल मुकम्मल हुई।इस ग़ज़ल के कुछ शेर ऐसे हैं जो कई साल पहले उस समय की परिस्थिति और राजनैतिक परिदृश्य पर हुए चिंतन के फलस्वरूप सृजित हुए थे।मैंने यह ग़ज़ल फेसबुक पर "ग़ज़लों की दुनिया" समूह में पोस्ट की थी।इस ग्रुप से मैं पिछले लगभग सात साल से जुड़ा हुआ हूँ।इस पटल से अच्छी ग़ज़लें कहने वालों के साथ-साथ ग़ज़लों का शौक़ीन एक बहुत बड़ा पाठक वर्ग भी जुड़ा हुआ है।

कई बार अक्सर लोगों की ऐसी राय पढ़ने को मिलती है कि अच्छी ग़ज़ल उर्दू के शब्दों का  प्रयोग करके ही कही जा सकती है।ऐसा कहना बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा।आज अंसार कंबरी,विज्ञान व्रत, हरे राम समीप और अशोक रावत जी जैसे तमाम ग़ज़लकार हिंदी देवनागरी में बहुत ही सशक्त ग़ज़लें कह रहे हैं। हां, स्वाभाविक रूप से यदि आम बोलचाल के कुछ उर्दू शब्द ग़ज़ल में आ भी जाएं तो इसमें क्या बुराई है। आख़िर उर्दू भी तो हमारे देश की ही भाषा है। किंतु ऐसा हमारी राजभाषा हिंदी की क़ीमत पर बिल्कुल नहीं होना चाहिए। 

ग़ज़ल के बारे में आदरणीय श्री अशोक रावत जी का यह कथन यहां उद्धृत करना प्रासंगिक होगा :

"ग़ज़ल में जिसे अपने आप को साबित करना है वह अपने आप को उस भाषा में साबित करे जिसे वह बेहतर बोलता और समझता है. अगर साबित करना है तो ग़ज़ल की कहन और दमदार कथ्य से साबित करे. ग़ज़ल सिर्फ किसी एक भाषा के शब्दों की ग़ुलाम नहीं है."
           --- अशोक रावत 

इस बार बाक़ी ग़ज़लों के मुक़ाबले ग्रुप में मेरी इस ग़ज़ल को अपेक्षा से कहीं ज़ियादा लोगों ने पसंद करते जुए कमेंट किये परन्तु एक दो कमेंट अप्रत्याशित भी आए जो कोई असामान्य बात भी नहीं कही जा सकती क्योंकि आपकी हर बात सबको पसंद आए यह बिल्कुल असंभव है।बहुत पहले की परिस्थितियों को देख-परखकर कहे गए कुछ पुराने शेरों को कुछ लोगों ने जिस विचारधारा या वर्ग से उनकी आस्थाएं जुड़ी हैं सीधे उससे जोड़कर देखा और अप्रिय कमेंट भी किए जो शायद नहीं किए जाने चाहिए थे या मर्यादित तरीक़े से किए भी जा सकते थे।अन्य लोगों को जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती है वैसे ही एक कवि और साहित्यकार को भी अपनी स्वतंत्र विचारधारा रखते हुए अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार होता है।हाँ,कई लोग उससे असहमत भी हो सकते हैं।उनकी अपनी  विचारधारा और प्रतिबद्धता के कारण यह उनका अधिकार भी बनता है।परंतु असहमत होने की दशा में भी  टिप्पणी तो मर्यादित भाषा में ही कि जानी चाहिए चाहे वो कवि द्वारा की जाए या फिर प्रबुद्व पाठक द्वारा।

फिलहाल इतना ही।लीजिए आपकी अदालत में हाज़िर है मेरी संदर्भित ग़ज़ल 

ग़ज़ल : ओंकार सिंह 'विवेक'
©️
जुमले  और  नारे  ही  सिर्फ़ उछाले हैं,
मुद्दे   तो   हर   बार  उन्होंने  टाले  हैं।

देख रहे  हैं वो  चुपचाप चमन जलता,
कैसे  कह  दें  हम  उनको,रखवाले हैं।

बाग़ों से  ही  सिर्फ़  नहीं  पहचान रही,
सहरा  भी  सब   हमनें  देखे-भाले  हैं।
©️
अम्न-ओ-अमां की बातें करने वालों के,
हाथों   में   कैसे   ये   बरछी-भाले   हैं।

जंग  लड़ी  है  हर  पल  घोर अँधेरों से,
यूँ  ही  थोड़ी  हासिल  आज उजाले हैं।

साथ   चलेंगे   इसके साँसें  रहने  तक,
हम  कब  वक़्त  से पीछे रहने वाले हैं।

चाय   मनीला  में,लंदन  में  लंच-डिनर,
दौलत  वालों  के  सब  ठाठ निराले हैं।
           --   ©️ओंकार सिंह विवेक

(इस पटल से कुछ भी कॉपी करने से पूर्व ब्लॉगर की कॉपीराइट नीति को अवश्य पढ़ें) 





October 8, 2022

यादों के झरोखों से (कड़ी - ४)

नमस्कार मित्रो 🙏🙏🌹🌹

आज 'यादों के झरोखों से' की चौथी कड़ी के साथ हाज़िर हूं :
अब तक की कड़ियों में आपने पढ़ा :
कड़ी-१ : कुछ वर्ष पूर्व आयोजित की गई पल्लव काव्य मंच रामपुर की एक काव्य गोष्ठी का रोचक संस्मरण।

कड़ी- २ : एकता विहार कॉलोनी रामपुर के वरिष्ठ नागरिक संघ द्वारा आयोजित कराई गई कवि गोष्ठी का वृतांत।

कड़ी- ३: संस्था तहरीक-ए-अदब रामपुर द्वारा आयोजित कराई गई नशिस्त का आंखों देखा हाल।

अब कड़ी -४ में पढ़िए २५ नवंबर,२०२१ को शहर के प्रतिष्ठित सर्राफ और अच्छे साहित्यकार श्री रवि प्रकाश अग्रवाल द्वारा राजकली देवी शैक्षणिक पुस्तकालय रामपुर-उ०प्र० में आयोजित कराई गई एक काव्य गोष्ठी का वृतांत।

श्री रवि प्रकाश अग्रवाल जी प्रतिष्ठित सर्राफ होने के साथ - साथ समाजसेवी और सुंदर लाल इंटर कॉलेज तथा टैगोर शिशु निकेतन जैसे प्रतिष्ठित विद्यालयों के स्वामी तो हैं ही, एक बढ़िया साहित्यकार भी हैं।अब तक उनकी  गद्य और कविता की कई किताबें आ चुकी हैं। चूंकि रवि प्रकाश जी स्वयं एक साहित्यकार हैं,वे साहित्यकारों के प्रति विशेष स्नेह और सम्मान का भाव रखते हैं।अपने इसी स्नेह को प्रदर्शित करते हुए उन्होंने २५ नवंबर,२०२१ को राजकली देवी पुस्तकालय में एक शानदार काव्य गोष्ठी का आयोजन कराया था। उस अवसर के कुछ छाया चित्र नीचे साझा किए जा रहे हैं:
काव्य गोष्ठी में श्री रवि प्रकाश अग्रवाल जी सहित श्री जितेंद्र कमल आनंद, सुरेश अधीर, रामकिशोर वर्मा , ओंकार सिंह विवेक, शिवकुमार चंदन, डॉक्टर अब्दुल रऊफ,रागिनी गर्ग,प्रदीप राजपूत,सचिन सिंह सार्थक आदि कवियों ने सहभागिता की थी।
रामपुर की संभावनाशील कवयित्री रागिनी गर्ग जी को इस अवसर पर उनके स्तरीय छंदबद्ध सृजन से प्रभावित होकर विशिष्ट सम्मान प्रदान किया गया था।इस कार्यक्रम में काव्य पाठ के अतिरिक्त पुरानी यादों को ताज़ा करते हुए शहर में वर्तमान साहित्यिक गतिविधियों को और अधिक गति प्रदान करने के बारे में विमर्श भी हुआ था।रज़ा लाइब्रेरी में कार्यरत श्री अब्दुल रऊफ साहब, जिन्होंने हिंदी भाषा में पी एच डी की है,ने कहा कि उनका प्रयास है कि वह अधिक से अधिक हिंदी रचनाकारों को जोड़कर इस दिशा में कुछ ठोस काम कर सकें।सभी इस बात से सहमत थे कि साहित्य और समाज सेवा की दृष्टि से ऐसी गतिविधियां जारी रहनी चाहिए।
गोष्ठी में आए कुछ साहित्यकारों के सृजन और चिंतन से परिचित कराने के लिए उनकी रचनाओं की कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत कर रहा हूं:
रवि प्रकाश अग्रवाल
आई हैं तैयार हो के सिंह पे सवार हो के
          करती प्रहार माँ कटार-संग लाई हैं
लाई हैं अचूक शक्ति दानव-संहार हेतु 
          देवी की भुजाऍं यह अष्ट-वर‌दाई हैं 
वरदाई हैं भरेंगी भारत में नव-नाद
          सिंह‌नाद-जैसी ध्वनियाँ ही आज छाई हैं 
छाई हैं दसों दिशाऍं आज वीर भावना में
          घड़ि‌याँ पराजय की शत्रुओं की आई हैं

ओंकार सिंह विवेक
     खिले से चौक-चौबारे नहीं हैं,
     नगर में अब वो नज़्ज़ारे नहीं हैं।

      तलब है कामयाबी की सभी को,
       हमीं इस दौड़ में न्यारे नहीं हैं।

प्रदीप राजपूत माहिर
खुद की ख़ातिर ज़रा जो सोच लिया,
हरेक शख़्श कहे है बहुत ख़राब हैं हम।

रागिनी गर्ग
बूढ़ा माली‌ सोचता, कहाँ हुई है भूल।
बाग‌ लगाया आम का, कैसे उगा बबूल।।

शिवकुमार चंदन

पवन वसंती मधुगंधा सी,वही जा रही निर्जन में
मुग्ध हो रही है अलबेली,बेसुध मेघों के गर्जन में
हिमगिरि,निर्झर उच्च शिखर संग नेह जताती जी भर
कहीं न ठहरी रही लजाती,सुख बरसाती धरती पर
पंछी  भौंरे  गुंजन  करते ,झूम रहे  हैं  उपवन में
पवन वसंती मधुगंधा सी,वही जा रही निर्जन में

जितेंद्र कमल आनंद 
हम जिये हैं सदा ही तुम्हारे लिए 
 दर्द की दाह से हो गये दृग सजल

 अंत में श्री रवि प्रकाश जी द्वारा सभी का आभार प्रकट करते हुए शीघ्र ही इसी प्रकार के आयोजन में फिर से मिलने की बात कहते हुए कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की।
कार्यक्रम का संचालन श्री रवि प्रकाश जी द्वारा किया गया। भाजपा की नेत्री श्रीमती नीलम गुप्ता जी भी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहीं।
कार्यक्रम के अंत में उत्तम जलपान की व्यवस्था भी की गई थी।श्री रवि प्रकाश जी की धर्म पत्नी तथा उनके पुत्र एवम् पुत्रवधु द्वारा आग्रहपूर्वक सभी को जलपान कराया गया।
एक मशहूर शायर, जिनका इस वक्त नाम याद नहीं आ रहा,के इस शेर के साथ अपनी बात समाप्त करता हूं:
          कितने हसीन लोग थे जो मिल के एक बार,
           आँखों में जज़्ब हो गए दिल में समा गए।

जय हिंद, जय भारत 🌹🌹🙏🙏


विशेष : यदि आप किसी कारणवश पिछली कड़ियां न पढ़ पाए हों तो ब्लॉग पोस्ट्स को स्क्रॉल करके अपनी पसंद की कड़ी को शीर्षक में ढूंढकर पढ़ सकते हैं।
ओंकार सिंह विवेक 

October 6, 2022

यादों के झरोखों से (कड़ी -३)

नमस्कार दोस्तो🙏🙏

'यादों के झरोखों से' सिलसिले की तीसरी कड़ी लेकर आपके सम्मुख उपस्थित हूं।रोचक संस्मरणों की पहली कड़ी में आपके लिए पल्लव काव्य मंच की एक पुरानी काव्य गोष्ठी का वृतांत प्रस्तुत किया था। दूसरी कड़ी में अपने शहर की एकता विहार कॉलोनी के वरिष्ठ नागरिक संघ की काव्य गोष्ठी और उस कॉलोनी से जुड़ी अपनी यादों को विस्तार से साझा किया था।मुझे इस बात की बेहद ख़ुशी है कि दोनों ही कड़ियों को आपके द्वारा पसंद किया गया जिसका प्रमाण आप द्वारा ब्लॉग पर पोस्ट किए गए कॉमेंटस हैं।
 आज मैं कुछ वर्ष पूर्व अपने शहर की संस्था
' तहरीक-ए-अदब रामपुर' द्वारा आयोजित कराई गई एक शानदार नशिस्त से रूबरू कराता हूं।
इस संस्था के पदाधिकारियों श्री नईम नजमी और फ़ैसल मुमताज़ द्वारा मुझे इस नशिस्त में शिरकत के लिए निमंत्रण दिया गया था।श्री नईम नजमी साहब एक बेहतरीन इंसान और उम्दा शायर हैं जो हिंदुस्तान भर में आयोजित किए जाने वाले मुशायरों में रामपुर का नाम रौशन करते रहे हैं।  फ़ैसल मुमताज़ एक नौजवान शायर हैं और राजनीति में भी रुचि रखते हैं।उनका सामाजिक सरोकारों से भी ख़ासा वास्ता है।  

इस नशिस्त में रामपुर के प्रसिद्ध वकील और अदब नवाज़ श्री शौकत अली ख़ां साहब के साथ-साथ शहर के तमाम मशहूर शायर और दानिश्वर मौजूद थे।एक अरसे बाद इस तरह की किसी अदबी सरगर्मी का हिस्सा बनकर मुझे बहुत  ख़ुशी हो रही थी।
मेरे ज़ेहन में तमाम पुरानी यादें ताज़ा हो गईं। मैं इसी मुहल्ले में (ज़ियारत ख़ुरमा) जहाँ यह नशिस्त हो रही थी मुहतरम जनाब हकीम शब्बीर अली ख़ान तरब ज़ियाई साहब के यहां जाकर बैठा करता था।शाम को अपने बैंक से छुट्टी के बाद उनके यहाँ लगभग एक से दो घंटे बैठना होता था।दुर्भाग्य से तरब साहब अब हमारे बीच नहीं हैं,ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें। तरब साहब से शायरी की इस्लाह के साथ-साथ भाषा संबंधी और भी तमाम बारीकियाँ सीखने को मिलती थीं। वहाँ रोज़ बैठने के कारण मुझे आसपास के सभी लोग अच्छी तरह जान गए थे।यदि  मजबूरी के कारण किसी दिन मैं नहीं जा पाता था तो लोग तरब साहब से मेरा हालचाल पूछने लगते थे।यह लोगों की सादा दिली और आत्मीयता ही थी। तरब साहब एक बेहतरीन इंसान थे।उनके बारे में विस्तार से फिर किसी पोस्ट में बताऊंगा। 
जब यह पोस्ट लिख रहा हूं तो कितने ही शायरों के नाम मुझे याद आ रहे हैं जिनसे तरब साहब के यहां अक्सर मुलाक़ात हो जाया करती थी। मुहतरम शौक़ असरी,होश नोमानी,शीन सीन आलम, नईम नजमी, फैसल मुमताज़,ताहिर फ़राज़, इफ्तेख़ार ताहिर, शकील वफ़ा,अहमद ख़ां,जमशेद नादिम, अदनान ज़ियाई, ज़हीर रहमती,साक़िब रामपुरी, अज़ीज़ बक़ाई, अशफ़ाक़ ज़ैदी, आले अहमद ख़ां सुरूर, मुर्तज़ा फ़रहत आदि  आदि।

मुझे लगता है कुछ विषयांतर हो रहा है अत: मुद्दे पर आते हुए इस नशिस्त में मौजूद रहे कुछ शायरों के अच्छे अशआर आपके साथ साझा करता हूं :

 यूं तो सबसे हिजाब करते हैं,
 आईनों से खिताब करते हैं।
           फ़ैसल मुमताज़

इस रात के लिए ख़ाली दिया था काफ़ी,
लेकिन चराग़ सारे बेकार जल रहे हैं।
        ज़हीर रहमती

जबसे मुजरिम पकड़ के लाए हैं,
फ़ोन थाने के घनघनाए हैं।
देखकर हाल आज गंगा का,
शिव भी आँसू न रोक पाए हैं।
          ओंकार सिंह विवेक

मेरे कांधों पे ख़ानदान का बोझ,
जैसे बुनियाद पर मकान का बोझ।
रख लिया दोश पर हवाओं ने,
ऐ परिंदे तेरी उड़ान का बोझ।
         नईम नजमी 
इस नशिस्त के आयोजकों  ने बड़े ही प्रेम से सबका स्वागत- सत्कार करके बहुत ही उत्तम जलपान की व्यवस्था की थी।अंत में सभी को प्रतीक चिह्न देकर सम्मानित किया गया था।

मेरा मानना है कि उर्दू नशिस्तों या हिंदी काव्य गोष्ठियों के ऐसे कार्यक्रम निरंतर होते रहने चाहिए जिससे कवियों/शायरों में कुछ नया लिखने का जोश बना रहता है और इस बहाने एक दूसरे के हालचाल भी मालूम होते रहते हैं।
दोस्तो इसी के साथ आपसे विदा लेता हूं।जल्द ही इस सिलसिले की चौथी कड़ी के साथ आपकी सेवा में फिर हाज़िर होऊंगा।
धन्यवाद ,नमस्कार🌹🌹🙏🙏

October 4, 2022

पल्लव काव्य मंच का पुस्तक लोकार्पण,कवि सम्मेलन तथा साहित्यकार सम्मान समारोह,२०२२

मित्रो प्रणाम🌹🌹🙏🙏

कवि समाज में जो कुछ घटित हो रहा होता है उसे अपनी सूक्ष्म दृष्टि से देखकर अपने चिंतन की उड़ान के माध्यम से कविता में ढालता है।जब सामाजिक विसंगतियां और विद्रूपताएं उसे उद्वेलित करती हैं तो वह अपने काव्य सृजन द्वारा उन्हें समाप्त करने का संदेश भी देता है। इस प्रकार एक साहित्यकार काव्य सृजन के माध्यम से समाज-निर्माण के कार्य में बढ़ चढ़कर अपनी भागीदारी सुनिश्चित करता है।  इसलिए कवि को केवल युग दृष्टा ही नहीं अपितु युग सृष्टा भी कहा जाता है।

काव्य साहित्य साधना में निमग्न ऐसे ही साहित्यकारों को पल्लव काव्य मंच से जोड़कर रामपुर के वरिष्ठ साहित्यकार श्री शिवकुमार चंदन जी निरंतर हिंदी साहित्य के संवर्धन द्वारा  समाज की सेवा कर रहे हैं। चंदन जी द्वारा संचालित पल्लव काव्य मंच,रामपुर -उ०प्र०द्वारा२ अक्टूबर,२०२२ को गांधी जी तथा लालबहादुर शास्त्री जी की जयंती के अवसर पर माया देवी धर्मशाला, ज्वालानगर रामपुर में पुस्तक लोकार्पण, कवि सम्मेलन तथा साहित्यकार सम्मान समारोह का एक शानदार कार्यक्रम संपन्न हुआ।
कार्यक्रम में स्थानीय कवियों और आमंत्रित अतिथियों के साथ-साथ बरेली,खटीमा, बिसौली, बहजोई, संभल,गाजियाबाद,अलीगढ़ ,देहरादून और ऋषिकेश आदि सुदूर स्थानों से पधारे साहित्यकारों ने सहभागिता की।
यह विशाल आयोजन दो चरणों में संपन्न हुआ।कार्यक्रम के पहले सत्र में ११बजे से अपराह्न २बजे तक कवि सम्मेलन हुआ । जिसमें मंच व्यवस्था इस प्रकार रही :

अध्यक्ष : वरिष्ठ कवि रणधीर प्रसाद गौड धीर,बरेली 
मुख्य अतिथि: वरिष्ठ कवि बाबा कल्पनेश,ऋषिकेश
विशिष्ठ अतिथिद्वय : वरिष्ठ साहित्यकार रूपकिशोर गुप्ता
                                         बहजोई
                             : वरिष्ठ साहित्यकार गाफिल स्वामी
                                   इगलास,अलीगढ़
इस सत्र का संचालन करने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ।

कवि सम्मेलन में मां शारदे के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन के उपरांत रागिनी गर्ग द्वारा सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई। इसके बाद कवियों द्वारा विधिवत काव्य पाठ किया गया।सभी ने देश-काल के अनुसार अपनी श्रेष्ठ सामयिक प्रस्तुतियों से आमंत्रित श्रोताओं की ख़ूब तालियाँ बटोरीं। 

      काव्य पाठ करते हुए  प्रदीप राजपूत माहिर 

      काव्य पाठ करते हुए रामरतन यादव रतन
भोजन अवकाश के उपरांत दूसरा सत्र विधिवत प्रारंभ हुआ, जिसका कुशल संचालन प्रदीप राजपूत माहिर जी द्वारा किया गया। इस सत्र में सर्वप्रथम मंच के अध्यक्ष श्री शिव कुमार चंदन जी की काव्य कृति 'शारदे स्तवन' का  मंच-अतिथियों
द्वारा लोकार्पण किया गया।
इसके पश्चात डॉक्टर अरुण कुमार,डॉक्टर प्रीति अग्रवाल,श्री रूपकिशोर गुप्ता और श्री अतुल कुमार शर्मा द्वारा पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत की गई।
समीक्षकों द्वारा कवि चंदन की 'शारदे स्तवन' कृति में विद्यमान भक्ति भाव की मुक्त कंठ से प्रशंसा की कई।सभी ने उनकी वंदनाओं में भाव पक्ष को बहुत प्रबल बताया।स्मरण रहे कि श्री चंदन जी की इस कृति में सभी रचनाएं मां सरस्वती को समर्पित हैं।
कार्यक्रम में पटल के संरक्षक वरिष्ठ साहित्यकार डाक्टर रघुवीर शरण शर्मा जी की कृति 'देखें तनिक विचार'  का भी लोकार्पण किया गया।
(मेहमान कवियों श्री बाबा कल्पनेश जी तथा श्री राजेश डोभाल जी के साथ श्री शिवकुमार चंदन जी और मैं) 

कार्यक्रम के अंतिम चरण में इस पटल के विभिन्न विधाओं के समीक्षकों सहित अनेक स्थानीय तथा मेहमान साहित्यकारों को अंग वस्त्र,प्रशस्ति पत्र तथा स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया।मुझे भी इस पटल के ग़ज़ल विधा के समीक्षक के रूप में 'कवि जे के रतन स्मृति सम्मान' देकर सम्मानित किया गया, इसके लिए मैं पटल के अध्यक्ष श्री शिवकुमार चंदन जी का हार्दिक आभार प्रकट करता हूं।यह सम्मान आदरणीय श्री कमल रतन जी ने अपने पिता स्मृतिशेष कवि श्री जे के रतन जी की स्मृति में शुरू कराया है।
अंत में मंच के अध्यक्ष श्री शिव कुमार चंदन द्वारा सभी का आभार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम समापन की घोषणा की।
पटल के मीडिया प्रभारी प्रिय नवीन पाण्डे द्वारा अखबारों में कार्यक्रम की बहुत सुंदर रिपोर्टिंग की गई जिसके लिए वह अतिरिक्त धन्यवाद और बधाई के पात्र हैं।
कार्यक्रम में मंच के पदाधिकारियों भाई विनोद शर्मा जी, आशीष पांडे जी और वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री सीताराम शर्मा जी का विशेष सहयोग रहा। पटल के पदाधिकारी डॉक्टर अरविंद गौतम जी,प्रधानाचार्य हामिद इंटर कॉलेज रामपुर सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति भी समारोह में उपस्थित रहे।भोजन व्यवस्था का श्री प्रवीण भांडा जी द्वारा उत्तम प्रबंध किया गया।
         प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक 

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साहित्यिक सरगर्मियां

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