October 26, 2020

रौशनी फूटेगी इस अँधियार से


रौशनी फूटेगी इस अँधियार से
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                                      ------ ओंकार सिंह विवेक
"यह काम बहुत मुश्किल है,मैं इसमें सफल नहीं हो सकता।"
"मैंने प्रयास करके देख लिया ।इस काम में मुझे आगे भी असफलता ही हाथ लगेगी।"
"भाई क्या किया जाए हमारे मुक़द्दर में तो कामयाबी लिखी ही नहीं है। आख़िर कब तक कोशिश जारी रखें।"
लोगों के इस तरह के नकारात्मक कथन हम अक्सर ही सुनते हैं।एक बार को तो ऐसी निराशावादी सोच अच्छे -अच्छों के विश्वास को हिला देती है।जो लोग उत्साह के साथ किसी काम को करने की तैयारी में होते हैं वे भी दूसरों के मुँह से ऐसी निराशावादी बातें सुनकर हौसला खोने लगते हैं।लेख के प्रारम्भ में मैंने जिन कथनों का उल्लेख किया है ,ऐसे विचार कदापि किसी के मन में नहीं आने चाहिए।यह काम बहुत मुश्किल है ,यह मैं नहीं कर सकता आदि आदि----ऐसी भावना मन में रखकर कभी काम शुरू नहीं करना चाहिए।चाहे काम कितना भी मुश्किल क्यों न हो पूरे उत्साह और अपनी शत-प्रतिशत सामर्थ्य के साथ आशावादी रहते हुए प्रारम्भ करना चाहिए।यदि सोच सही होगी तो निश्चित ही सफलता की संभावना अधिक रहेगी।यदि पूर्ण समर्पित प्रयास के बाद भी सफलता प्राप्त न हो तो भी घबराने या दिल छोटा करने जैसी बात मन में नहीं आनी चाहिए।संसार में ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं जब लोगों को लक्ष्य हासिल करने से पहले कई-कई बार असफलता का सामना करना पड़ा है तब कहीं जाकर सफलता हासिल हुई है।इस बीच ऐसे लोगों ने संघर्ष और प्रयास करने नहीं छोड़े वरन दूने उत्साह से फिर प्रयास करने के संकल्प लिए।घोर अँधेरों के बीच से ही रौशनी की किरण फूटती है अतः हमें विपत्ति या असफलता में कभी साहस नहीं छोड़ना चाहिए।सोना भी पहले लगातार आग पर तपता है तब कहीं जाकर उसमें चमक आती है ।संसार में जब हमने तमाम सफल लोगों की कहानियाँ पढ़ीं और सुनीं तो पाया कि उन्हें सफल होने से पहले सैकड़ों असफलताएँ और रिजेक्शन झेलने पड़े थे।लोगों ने उनसे यहाँ तक कह दिया था कि तुम्हारे अंदर ऐसी क्षमता है ही नहीं की इस काम को अंजाम दे सको।मगर उन सफल लोगों ने बताया कि ऐसी बातों ने उनके अंदर एक नया स्पार्क पैदा किया ।उन्होनें ऐसी बातों को चुनौती के रूप में स्वीकार किया और वे दूने उत्साह से प्रयास करने में जुटे जिसके परिणामस्वरूप उन्हें सफलता का स्वाद चखने को मिला।
अतः किसी भी दशा में हमें अपना लक्ष्य पाने के प्रयास को कमज़ोर नहीं पड़ने देना चाहिए।
मैंने साहस और संघर्ष को बनाए रखने की बातें अपनी शायरी में अक्सर ही कहीं हैं अतः अपनी  कुछ अलग-अलग ग़ज़लों के अशआर उदधृत करते हुए बात समाप्त करता हूँ--
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हो अगर साहस तो संकट हार जाते हैं सभी,
रुक नहीं  पाते  हैं कंकर तेज़ बहती धार में।
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चीर कर पत्थर का सीना बह रही जो शान से,
प्रेरणा  ले  उस  नदी  से  संकटों को पार कर।
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रख ज़रा नाकामियों में हौसला,
रौशनी फूटेगी इस अँधियार से।
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            ----दोस्तो आज इतना ही ,मिलते हैं कल फिर किसी विषय पर सार्थक चर्चा के लिए🙏🙏
----ओंकार सिंह विवेक

October 22, 2020

विडंबना

💥विडंबना💥
                     ----ओंकार सिंह विवेक
नमस्कार मित्रो🙏🙏

यह एक विडंबना ही है कि आज सब लोग विरोधाभासों के बीच जी रहे हैं।अक्सर लोग दूसरों को सच्चाई और साफ़गोई की नसीहत देते हैं परंतु उन्हें स्वयं चापलूसी पसंद आती है।ऐसा भी देखने में आता है कि लोग ख़ुद तो किसी से बातचीत का तरीक़ा नहीं जानते परंतु दूसरों को बातचीत करने के सलीक़े पर ज़ोरदार भाषण देते हैं।आज मनुष्य के लक्ष्यहीन होने की यह स्थिति है कि वह उन रास्तों पर दौड़ा चला जा रहा है जिन रास्तों की मंज़िल का ही कोई पता नहीं है।आज आदमी के धैर्य,साहस और संयम तो जैसे चुक ही गए हैं।जीवन में ज़रा सी भी असफलता या नाकामी मिलने पर हाथ-पाँव छोड़कर बैठ जाता है।जबकि नई ऊर्जा के साथ यह सोचकर पुनः प्रयास करना चाहिए कि असफलता का अँधेरा ही मनुष्य के जीवन में सफलता की रौशनी के द्वार खोलता है।
यदि हम व्यक्ति के जीवन में त्याग या क़ुर्बानी की भावना की बात करें तो खिलते फूलों से अच्छी त्याग या क़ुर्बानी की प्रेरणा हमें भला और कौन दे सकता है जो मसलने वाले के हाथों को ही महका देते हैं।
काश!ऐसे ही दृष्टांतों से प्रेरणा लेकर हम अपने जीवन को सुंदर बना सकें।
शेष कल------
//*******ओंकार सिंह विवेक

इन्हीं भावों को लेकर कही गई मेरी ताज़ा ग़ज़ल पढ़िए-👎👎
(ग़ज़ल के पहले शेर के दूसरे मिसरे में सदा के स्थान पर यहाँ पढ़ा जाए)

October 19, 2020

पुस्तक के बहाने


वक़्त से पहले कोई काम पूरा नहीं होता।लगभग एक वर्ष पूर्व मैंने अपने  प्रथम ग़ज़ल संग्रह को प्रकाशित कराने का निश्चय किया था।कुछ पारिवारिक व्यस्तताओं और लंबे कोरोना काल के कारण यह काम टलता चला जा रहा था।अब कुछ परिस्थितियाँ सामान्य होने पर पुनः एकाग्रता के साथ प्रयास किए हैं।सब कुछ ठीक रहता है तो नए वर्ष के प्रथम सप्ताह में मेरा ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" प्रतिक्रिया हेतु सभी शुभचिंतकों के संमुख आ जाएगा।इस अवसर पर मुझे यह सूचना साझा करते हुए ऐसी ही ख़ुशी का अनुभव हो रहा है जैसे परिवार में संतान के पैदा होने पर होता है।एक कवि या लेखक को अपनी पुस्तकें अपनी संतान जितनी ही प्रिय होती हैं। यहाँ आप सब की प्रतिक्रिया हेतु किताब का मुखपृष्ठ  साझा कर रहा हूँ।

    इंसानियत के फ़र्ज़ का आभास लिख दिया,
    रिश्तों  के टूटने  का भी संत्रास  लिख दिया।
    जब  फ़िक्र  की उड़ान बढ़ी उसके फ़ज़्ल से,
    मैंने  जहाँ के दर्द  का अहसास लिख दिया।
                              -----ओंकार सिंह विवेक

October 15, 2020

सरोकार मानवीय संवेदनाओं से


सरोकार मानवीय संवेदनाओं से ----
                                            *****ओंकार सिंह विवेक
सोचा आज फिर कोई मानवीय संवेदना और सरोकार से जुड़ी बात की जाए----------
हमारे अनमोल जीवन की सार्थकता इस बात में है कि हम एक दूसरे  के दुःख-दर्द को बाँटकर जीने की कला विकसित करें।दूसरों के दुख-दर्द को महसूस करके उसमें सहभागी बनने से जो ख़ुशी का भाव स्वयं के भीतर उत्पन्न होता है उसको बयान करना बहुत मुश्किल है।इस कला को अपने भीतर विकसित करने के लिए हमें अपने मन में बैठे छल ,कपट और द्वेष के भावों को दूर करना होगा।अगर ये भाव मन में घर जमाकर बैठे रहेंगे तो दया और परोपकार के  भाव तो हमारे मन के दरवाज़े से ही वापस लौट जाएँगे। इस कड़ी में वाणी में मिठास के द्वारा अपने व्यक्तित्व का शृंगार करना भी अति आवश्यक है।हमारी वाणी से निकला प्रत्येक शब्द ऐसा  हो कि  सुनने वाले व्यक्ति का तन और मन प्रफुल्लित हो उठे। व्यक्तित्व के समग्र विकास के लिए इन गुणों का अपने अंदर  विकास करते समय हमारे सामने अनेक बाधाएँ एवं संकट आ सकते हैं परंतु उनका हमें इस प्रकार सामना करना होगा जैसे एक नदी कंकरों और पत्थरों का सीना चीरकर बिना विचलित  हुए पूरे वेग से बहती रहती है।
आज लोग अपने अंदर दया और प्रेम जैसे मानवीय गुणों का निरंतर ह्रास होने के  कारण  मानवता पर नफ़रतों के वार करके उसे घायल कर रहे हैं।ज़रूरत है कि हम सब मिलकर  प्रेम और सद्भाव रूपी औषधियों के द्वारा नफ़रत के प्रहार से घायल हुई मानवता का उपचार करके उसका जीवन बचाएँ।
प्रसंगवश अपनी ग़ज़ल के दो शेरों को उदधृत करते हुए बात समाप्त करता हूँ--

           हो सके  जितना भी तुझसे उम्र भर उपकार कर,
           बाँट  कर  दुख-दर्द  बंदे  हर किसी से प्यार कर।

           नफ़रतों   की  चोट  से   इंसानियत  घायल   हुई,
           ज़िंदगी  इसकी   बचे   ऐसा  कोई  उपचार  कर।
                               🙏🙏💥💥ओंकार सिंह विवेक

आओ कुछ बातें करें

October 9, 2020

प्रथम पुरस्कार प्राप्त ग़ज़ल


"अनकहे शब्द" संस्था द्वारा प्रथम पुरस्कार हेतु चुनी गई मेरी ग़ज़ल का आप भी आनंद लीजिए---
ग़ज़ल प्रतियोगिता: 62
      ----ग़ज़ल***ओंकार सिंह विवेक
कुछ  मीठा  कुछ  खारापन  है,
क्या क्या स्वाद लिए जीवन है।

 कैसे   आँख   मिलाकर  बोले,
 साफ़ नहीं जब उसका मन है।

 उनसे    ही   तो   शिकवे  होंगे,
 जिनसे   थोड़ा  अपनापन  है।

 धन  ही  धन है इक तबक़े पर,
 इक  तबक़ा  बेहद  निर्धन  है।

 सूखा  है  तो  बाढ़  कहीं  पर,
 बरसा  यह  कैसा  सावन  है।

कल  निश्चित ही  काम  बनेंगे,
आज भले ही कुछ अड़चन है।

दिल  का  है वह साफ़,भले ही,
लहजे  में  कुछ  कड़वापन  है।
        ----ओंकार सिंह विवेक
          (सर्वाधिकार सुरक्षित)

October 8, 2020

क्या करें वक़्त ही नहीं मिलता

क्या करें वक़्त ही नहीं मिलता
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                     ----ओंकार सिंह विवेक
मैंने इंटरमीडिएट तो कर रखा है।इधर काफ़ी दिनों  से प्राइवेट बी0 ए0 करने की सोच रहा हूँ परंतु पढ़ाई का समय ही नहीं मिलता। मेरा वज़्न लगातार बढ़ रहा है जिससे कुछ शारीरिक परेशानियाँ भी बढ़ रही हैं।कब से जिम ज्वाइन करने की सोच रहा हूँ पर समय ही नहीं निकाल पा रहा हूँ।मुझे बचपन से ही गायन और वादन में रुचि रही है ।पढ़ाई के दबाव के कारण विद्यार्थी जीवन में तो अपने इस शौक़ को मैं परवान न चढ़ा सकी।सोचा था बाद में ज़रूर मैं गायन और वादन को मनोयोग से सीखकर अपने शौक़ को पूरा करूँगी लेकिन अब शादी के बाद तो घर-गृहस्थी और बच्चों की देखभाल में ही सारा समय निकल जाता है।अपनी रुचि को पूरा करने का बिल्कुल भी समय नहीं मिल पाता।
किसी काम को न करने या न सीखने के पीछे ऐसे  ही तमाम अव्यवहारिक कारण लोग अक्सर ही गिनाते मिल जाएँगे।
दुनिया में हर व्यक्ति को अपने क्रिया-कलापों को करने के लिए चौबीस घंटे का समय ही उपलब्ध है।ऐसा बिल्कुल नहीं है कि संसार में जिन व्यक्तियों ने साधारण से हटकर कुछ  किया है उनके पास रात और दिन को मिलाकर चौबीस घंटे से अधिक समय रहा है।उन्होंने चौबीस घंटों में से ही सारे दैनिक क्रिया-कलापों को करने के बाद कुछ असाधारण करने के लिए भी समय निकाला है।अतः यह बात तो यहीं ग़लत साबित हो जाती है कि क्या करें हमें तो कुछ अलग करने के लिए वक़्त ही नहीं मिलता।
हम असाधारण काम करने वाले लोगों के साक्षात्कार और जीवनियाँ पढ़कर उनके द्वारा कार्य निष्पादन हेतु किए गए समय प्रबंधन से बहुत कुछ सीख सकते हैं। दरअस्ल किसी विशेष उपलब्धि को हासिल करने या अपने शौक़ को पूरा करने के लिए कहीं से या किसी से समय मिलता नहीं है अपितु समय निकालना पड़ता है अर्थात समय का प्रबंधन (Management)करना पड़ता है।हम अपने  देश के प्रधानमंत्री श्री मोदी जी के बारे में अक्सर पढ़ते हैं कि वह सिर्फ़ चार घंटे ही सोते हैं।इस प्रकार हम देखते हैं कि वह अपने सोने के समय में से भी कई घंटे अन्य असाधारण कामों के लिए निकाल लेते हैं।यह उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति और अनुशासित जीवन शैली के कारण ही संभव हो पाता है।ऐसे ही अनेक महापुरुषों,खिलाड़ियों और वैज्ञानिकों आदि के उदाहरण हमारे सामने मौजूद हैं जिनसे प्रेरणा लेकर हम बेहतर टाइम मैनेजमेंट करके अपने जीवन को औरो से भिन्न बना सकते हैं।अगर हम समय का सही प्रबंधन करना सीख लें  तो कभी किसी से यह नहीं कहना पड़ेगा कि क्या करें हमें तो अमुक काम करने के लिए समय ही नहीं मिलता। 
प्रसंगवश मेरे कुछ शेर प्रस्तुत हैं----
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ज़िंदगी अपनी  बदलना सीखिए,
वक़्त के साँचे में ढलना सीखिए।

💥💥💥💥💥💥💥💥💥

क़द्र जितनी भी हो सके कीजे,
वक़्त गुज़रा तो फिर न आएगा।

💥💥💥💥💥💥💥💥💥
               ------ओंकार सिंह विवेक🙏🙏

October 6, 2020

महत्व संवाद का


महत्व संवाद का
            ------ओंकार सिंह विवेक
लोग अक्सर ही कोई विशेष कारण न होते हुए भी किसी के प्रति अपनी एक पक्षीय धारणा बनाकर पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो जाते हैं।इस ग़लत फ़हमी के कारण वे अनावश्यक रूप से  अपनी चिंता और परेशानी  को बढ़ाकर तनावग्रस्त रहने लगते हैं।
मसलन अगर कोई कह दे  कि अमुक व्यक्ति तुम्हारे बारे में कुछ नकारात्मक बातें कर रहा था तो यह सुनकर लोग आग बबूला हो जाते हैं और केवल सुनी- सुनाई बातों के आधार पर ही अमुक व्यक्ति के प्रति मन में एक काल्पनिक धारणा बना लेते हैं। उस समय लोग जाने क्यों यह ज़रूरी नहीं समझते कि उस व्यक्ति से भी सच्चाई को जानने के  लिए संवाद किया जाए जिसके  बारे में किसी दूसरे  व्यक्ति ने अपने ही ढंग से  कुछ बताया था।अक्सर देखा गया है कि दफ़्तर में किसी बात  को लेकर लोग उच्च अधिकारियों से सीधे बात करने से बचते रहते हैं और लगातार अपने मानसिक तनाव को बढ़ाते  रहते हैं।जबकि उच्च अधिकारियों से किसी समस्या को लेकर तुरन्त ही  संवाद किया जाए तो बहुत मुमकिन है कि आसानी से समस्या का समाधान हो जाए।
वास्तव में आपसी संवाद का बहुत बड़ा महत्व है।संवाद करने में संकोच करने या संवाद के रास्ते बंद कर देने से  समस्या और विकराल होती जाती है।  संवाद जारी रखने या उसकी पहल करने से निश्चित ही समस्या का  समाधान सम्भव है।
        रखनी  है  मज़बूत यदि,रिश्तों की बुनियाद,
        समय-समय पर कीजिए,आपस में संवाद।
                                  ---ओंकार सिंह विवेक

October 4, 2020

हर किसी से प्यार कर

हर किसी से प्यार कर
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       -------ओंकार सिंह विवेक

यह कहना कितना अच्छा लगता है कि हमें हर किसी से प्यार करना चाहिए। पर क्या व्यवहार में सब लोग ऐसा कर पाते हैं ?उत्तर है शायद नहीं।कोई आदर्श बात बोल देना या उस पर वक्तव्य दे देना एक अलग बात है  पर उसे स्वयं अमल में लाना दूसरी बात। यदि सभी लोग अपनी कथनी और करनी में एक समान हो जाएँ तो बहुत सी समस्याओं का हल हो जाए।
आज लोग अपने सीमित दायरों की सोच और स्वार्थ के चलते हर किसी से प्यार की बात कैसे कर सकते हैं। वे लोग विरले ही होते हैं जो अपना स्वार्थ त्याग कर दूसरों की ख़ुशी में ही अपनी ख़ुशी और असली ख़ुशी का आनंद मानते हैं। यह सही है कि अपनी और अपने घर -परिवार की ख़ुशी महत्वपूर्ण है पर जो व्यक्ति इससे ऊपर उठकर अपनी सोच को विस्तार दे पाते हैं और प्रकृति में विद्यमान हर चीज़  से स्नेह का भाव रखते हैं वे महान होते हैं।सोच को इस हद तक ऊँचा कर लेने से हमारे और हमारे घर -परिवार की ख़ुशी तो स्वतः ही इसमे निहित हो जाती है।प्रकृति द्वारा उत्पन्न की गई किसी भी चीज़ के प्रति मानव में घृणा का भाव नहीं होना चाहिए।प्रकृति में विद्यमान सभी चीजों को मर्यादा में रहते हुए अपने अस्तित्व को बचाए रखने का अधिकार है।मानव को सदैव पर सेवा,उपकार और हर किसी से प्यार करने की भावना को अपने अंदर विकसित करना चाहिए।
हम छल,कपट , द्वेष और घृणा से दूर रहकर यदि अपने मन  में हर किसी से प्यार करने के भाव का विकास करें तो  स्वयं के साथ ही संसार को भी सुंदर बनाने में अपना योगदान दे सकते हैं।

हो सके जितना भी तुझ से उम्र भर उपकार कर,
बाँट  कर  दुख-दर्द  बंदे  हर  किसी से प्यार कर।
                                         #ओंकार सिंह 'विवेक'

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