मानव स्वास्थ्य
जब हम व्यक्ति के स्वास्थ्य की बात करते हैं तो मन में प्राय: शारीरिक स्वास्थ्य का भाव ही उत्पन्न होता है |स्वास्थ्य शब्द का प्रसंग आने या चर्चा होने पर हम किसी व्यक्ति के शरीर की संरचना या उसके मोटे अथवा पतले होने की दशा तक ही सीमित हो जाते हैं |वास्तव में जब हम किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य की बात करते हैं तो इसका अर्थ बहुत व्यापकता लिए हुए होता है |व्यक्ति के सम्पूर्ण स्वास्थ्य के दो पहलू होते हैं ,पहला शारीरिक स्वास्थ्य और दूसरा मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य| किसी व्यक्ति को स्वस्थ तभी कहा जा सकता है जब वह व्यक्ति भौतिक शरीर से स्वस्थ होने के साथ ही मानसिक और आत्मिक रूप से भी पूरी तरह स्वस्थ हो| यदि कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से बहुत बलिष्ठ है परन्तु मानसिक रूप से बीमार है तो हम उसे स्वस्थ व्यक्ति की श्रेणी में नहीं रख सकते |इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति अपनी मानसिक स्थिति का तो विकास कर चुका हो परन्तु शारीरिक द्रष्टि से कमज़ोर हो तो भी हम उसे पूरी तरह स्वस्थ नहीं कह सकते |
व्यक्ति को अपने स्थूल शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अच्छे खान-पान ,व्यायाम अथवा शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है |यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो उसका शरीर दुर्बल हो जायेगा और उसकी प्रतिरोधक क्षमता भी शिथिल पड़ जाएगी|परिणामस्वरूप व्यक्ति शारीरिक रूप से असक्त हो जायेगा |इस अवस्था से बचने के लिए उसे अपने शरीर को चलाने के लिए अपने शरीर की खुराक पर ध्यान देना होगा |शरीर को स्वस्थ रखने के लिए सभी मौसमी फल,सब्जियां, दूध,घी या जो भी प्रकृति ने हमें सुपाच्य खाद्य उपलब्ध कराया है उसका सेवन करना चाहिए एवं किसी भी रोग से ग्रस्त होने की दशा में चिकित्सीय परामर्श लेना चाहिए|
व्यक्ति को पूर्ण रूप से स्वस्थ होने के लिए स्थूल शरीर के साथ साथ अपने आत्मिक स्वास्थ्य की चिंता करना भी परम आवश्यक है |यदि व्यक्ति शारीरिक रूप से बलशाली है परन्तु उसकी आत्मा और मन बीमार और कमजोर हैं तो भी व्यक्ति का समग्र विकास संभव नहीं है | अत :व्यक्ति को अपने तन के स्वास्थ्य के साथ मन और आत्मा के स्वास्थ्य की चिंता करना भी उतना ही आवश्यक है| जिस प्रकार स्थूल शरीर के स्वास्थ्य के लिए अच्छा व्यायाम और भोजन आवश्यक है उसी प्रकार मन और आत्मा के अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्यक्ति का अच्छे लोगों की संगत में बैठना और अच्छा साहित्य पढ़ना भी अति आवश्यक है | जिस प्रकार अच्छा भोजन स्थूल शरीर की खुराक है उसी प्रकार अच्छे लोगों की संगत एवं अच्छे साहित्य का पठन-पाठन व्यक्ति के मन और आत्मा की खुराक है |
मन और आत्मा को स्वस्थ रखने के लिए सदैव सकारात्मक सोच ,सत्संग् और अच्छे साहित्य को पढ़ते रहना अति आवश्यक है |अत : यदि व्यक्ति शारीरिक और मानसिक दोनों ही रूप से स्वस्थ होगा तभी उसका चारित्रिक विकास संभव है :
तन तेरा मज़बूत हो मन भी हो बलवान,
अपने इस व्यक्तित्व को सफल तभी तू मान।
@सर्वाधिकार सुरक्षित------ओंकार सिंह विवेक
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-04-2020) को "नेह का आह्वान फिर-फिर!" (चर्चा अंक 3660) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
हार्दिक आभार आदरणीया।मैं अपरिहार्य परिस्थितियों वश समय से आभार व्यक्त न कर सका और न ही परिचर्चा में भाग ले सका इसका मुझे खेद है।आप के सहयोग का आभारी हूँ।
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