दोहे
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पहले मुझको झिड़कियाँ , फिर थोड़ी मनुहार,
यार समझ पाया नहीं , मैं तेरा व्यवहार।
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जिससे मिलकर बाँटते , अपने मन की पीर,
मिला नहीं ऐसा हमें , कोई भी गंभीर।
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बिगड़ेगी कैसे भला , जग में मेरी बात,
जब माता मेरे लिये , दुआ करे दिन रात।
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गर्म सूट में सेठ का , जीना हुआ मुहाल,
पर नौकर नें शर्ट में , जाड़े दिये निकाल।
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इक दिन होगी आपकी , मुश्किल भी आसान,
वक़्त किसी का भी सदा , रहता नहीं समान।
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धन दौलत की ढेरियाँ , कोठी बँगला कार,
अगर नहीं मन शांत तो , यह सब हैं बेकार।
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-------ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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पहले मुझको झिड़कियाँ , फिर थोड़ी मनुहार,
यार समझ पाया नहीं , मैं तेरा व्यवहार।
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जिससे मिलकर बाँटते , अपने मन की पीर,
मिला नहीं ऐसा हमें , कोई भी गंभीर।
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बिगड़ेगी कैसे भला , जग में मेरी बात,
जब माता मेरे लिये , दुआ करे दिन रात।
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गर्म सूट में सेठ का , जीना हुआ मुहाल,
पर नौकर नें शर्ट में , जाड़े दिये निकाल।
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इक दिन होगी आपकी , मुश्किल भी आसान,
वक़्त किसी का भी सदा , रहता नहीं समान।
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धन दौलत की ढेरियाँ , कोठी बँगला कार,
अगर नहीं मन शांत तो , यह सब हैं बेकार।
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-------ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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