May 24, 2019

दोहे

      ओंकार सिंह'विवेक'
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शब्दों   ने  हमको   दिये,   ऐसे   ऐसे  घाव,
जीवन में संभव नहीं ,जिनका कभी भराव।

औरों  के  दिल  को  सदा, देते हैं जो घाव।
वे  ढोते  हैं  उम्र  भर  ,अपराधों   के भाव।

अपनी कमियों की करें,पहले ख़ुद पहचान,
करें  नसीहत  बाद  में , औरों को  श्रीमान।

पहले मुझको झिड़कियां, फिर थोड़ी मनुहार,
यार  समझ  पाया  नहीं , मैं  तेरा    व्यवहार।

जिससे  मिलकर बाँटते ,अपने मन की पीर,
मिला  नहीं  ऐसा  हमें,  कोई  भी   गंभीर।

बिगड़ेगी  कैसे  भला , जग  में  मेरी  बात,
जब  माँ  मेरे वासते, दुआ  करे दिन  रात।

गर्म  सूट  में  सेठ  का  जीना हुआ  मुहाल,
पर  नौकर  ने  शर्ट  में जाड़े  दिये निकाल।

इक दिन होगी आपकी,मुश्किल भी आसान,
वक़्त  किसी का भी सदा, रहता नहीं समान।

धन-दौलत  की  ढेरियां ,  कोठी-बंगला-कार,
अगर  नहीं  मन शांत तो, यह सब है बेकार।
-            -----------ओंकार सिंह'विवेक'

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