December 30, 2019

अटल रही पहचान




कुछ दोहे अटल जी
 की स्मृति में
नैतिक मूल्यों का  किया, सदा मान सम्मान।
दिया अटल जी ने नहीं,ओछा कभी बयान।।

विश्व मंच  पर  शान से , अपना  सीना तान।
अटल बिहारी ने  किया,हिंदी का यश गान।।

राजनीति   में   आपने , ऐसे   किए  कमाल।
जिनकी देते आज भी, जग में लोग मिसाल।।

सारा जग करता रहे, शत शत  तुम्हें  प्रणाम।
अटल बिहारी जी रहे, अमर  तुम्हारा  नाम।।
                     ----------ओंकार सिंह विवेक
                                 सर्वाधिकार सुरक्षित

December 29, 2019

ठिठुरन से बेहाल

                          चित्र:गूगल से साभार

December 13, 2019

अपनी कहन

चंद अशआर---
शिकायत कुछ नहीं है ज़िन्दगी  से,
मिला जितना मुझे हूँ ख़ुश उसी से।

ज़रा    कीजे   अँधेरों    से   लड़ाई,
तभी  होगा  तआरुफ़   रौशनी   से।

न  छोड़ेगा  जो उम्मीदों  का दामन,
वो होगा आशना इक दिन ख़ुशी से।

रखें  उजला  सदा किरदार अपना,
सबक़  लेंगे ये बच्चे  आप   ही से।

उसे  अफ़सोस  है अपने किए पर,
पता चलता है आँखों की नमी से।
          -------ओंकार सिंह विवेक
                   रामपुर-उ0प्र0
              मोबाइल 9897214710
              (सर्वाधिकार सुरक्षित)
शीघ्र प्रकाशित होने वाले ग़ज़ल संग्रह"अहसास"से


December 4, 2019

आख़िर कब तक ???????

आख़िर कब तक?????

हैदराबाद मैं महिला पशु चिकित्सक के साथ हुई मानवता को शर्मसार करने वाली घटना के बाद फिर यही सवाल लोगों के दिमाग़ में आ रहा है की आख़िर  यह कब तक---आख़िर यह कब तक-----????।लेकिन  इस  प्रश्न का सही  जवाब अगर  किसी के पास भी नहीं है तो इसका एक बहुत बड़ा कारण यह है कि परिवार,समाज और शासन के स्तर पर  ऐसी  घटनाओं को रोकने के लिए दृढ़ इच्छा  शक्ति का  अभाव  है। यदि  दृढ़ इच्छा शक्ति दिखाते  हुए  सार्थक  और  सुसंगत  प्रयत्न  एवं  उपाय किए जायें  तो कोई  कारण नहीं कि ऐसे घटनाओं को नियंत्रित न किया जा सके।यदि  परिवार के स्तर पर प्रारम्भ से ही बच्चों को नैतिकता ,सभ्य-संतुलित  आचरण और संस्कारों के  महत्व   को  समझाया  जाए  तो  निश्चित  ही  अमर्यादित आचरण एवम  कृत्यों पर अंकुश लगेगा।सत्संग और प्रवचनों में  जाना  तथा  अच्छे  साहित्य  का  पठन  पाठन  भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।अकेले सरकार या किसी  प्रभावित परिवार का ही  इस तरह की घटनाओं को रोकने का दायित्व  नहीं  हो  सकता । इसमें  समाज  की  भी बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी बनती है ।अक्सर देखने में  आता है  कि कुछ लोग अचानक ही अपराधियों की पैरवी और बचाव में आ खड़े होते हैं।ऐसे में पीड़ित और उसके परिवार पर क्या गुज़रती है कोई नहीं  समझता । ऐसी  घटनाओं  के  नियंत्रण हेतु सबसे बड़ा दायित्व शासन का है जिस पर आज फिर से चिंतन और मनन की ज़रूरत है।जिस तरह से इस प्रकार की घटनाओं में लिप्त लोगों  को  सज़ा  देने  में देरी की जाती है वह किसी भी तरह उचित  नहीं कही जा सकती।अपराधियों के ट्रायल इतने लंबे खिंचते हैं कि लोगों की अपराधियों के प्रति सहानुभूति उमड़ने लगती है और अपराध करने वालों के हौसले जस के तस बने रहते हैं।  जघन्य अपराधों के मामलों में विलंब से दिया जाने वाला  फ़ैसला  किसी  भी  तरह  न्याय  संगत नहीं  कहा जा सकता।अपराधियों के हाथों किसी मासूम की जान तो जा ही चुकी  होती  है परंतु बाद में  न्याय प्रक्रिया के लंबा खिंचने से पीड़ित के परिवारों का तिल तिल  मरना कितनी बड़ी त्रासदी है इस पर विचार करने की ज़रूरत है। सरकार को आज इस सन्दर्भ में   क़ानूनों की  समीक्षा  करने  की ज़रूरत  है। कोई त्वरित  न्याय प्रणाली और सख़्त क़ानूनअमल  में लाना बहुत ज़रूरी है वरना ऐसी वीभत्स घटनाओं पर लगाम नहीं लगाई जा सकती।इस तरह की घटनाओं के लिए कुछ मुस्लिम देशों में लागू सख़्त क़ानूनों की महत्ता को यहाँ अनदेखा नहीं किया जा सकता।
चित्र:गूगल से साभार
इन देशों में इस  प्रकार के अमानवीय और घृणित कृत्य करने वालों को सरेआम फाँसी देना,गोली मारना और  इसी प्रकार के  अन्य  कठोर  प्रावधान हैं  जिससे  लोगों में यह भय पैदा होता  है कि इंसानियत को शर्मसार करने वाले  कृत्य करने पर उनका  क्या अंजाम होगा। इन देशों  में  ऐसे सख़्त क़ानूनों की वजह से इस प्रकार के अपराध लगभग ना के  बराबर ही होते हैं। सरकार की तरफ से एक पहल यह भी    की जा सकती है कि देश के सभी नागरिकों के लिए निःशुल्क  कम से कम एक घंटे की नैतिक शिक्षा की कक्षा में जाने की व्यवस्था की जाए।इन कक्षाओं में  हर नागरिक का  जाना अनिवार्य किया जाना चाहिए। यह  व्यवस्था  देश  के  प्रत्येक नागरिक के मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में बड़ी भूमिका निभा सकती है।अगर देश के प्रत्येक नागरिक का मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य ठीक रहेगा तो निश्चित  ही इस प्रकार  के अमानवीय कृत्यों में कमी आयेगी।अंत में अपने एक दोहे के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूँ

नैतिक  मूल्यों  का  पतन, क़ानूनों  की  खोट।
क्यों अब ये करते नहीं, सबके दिल पर चोट।।
                           -------ओंकार सिंह विवेक

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