November 27, 2022

मूल्यों का अवसान

मित्रो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏

हाल ही में मुरादाबाद-उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ साहित्यकार श्री ओंकार सिंह 'ओंकार' जी (मेरे ही हम नाम हैं बस उपनाम/तख़ल्लुस का अंतर है वो ओंकार उपनाम लिखते हैं और मैं विवेक लिखता हूं)ने अपना ग़ज़ल संग्रह 'आओ ख़ुशी तलाश करें' भेंट किया था।आजकल उसे ही पढ़ रहा हूं।मर्म को छूती हुई बहुत ही पुष्ट गज़लें कही हैं आदरणीय ओंकार जी ने।अभी उनकी  ग़ज़लों के कथ्य को रहस्य ही रहने देता हूं।जल्दी ही उनकी पुस्तक की समीक्षा का वीडियो अपने चैनल पर अपलोड करूंगा और उस समीक्षा को आप लोगों के साथ ब्लॉग पर भी साझा करूंगा।

इस बीच कई नई गजलें भी कही हैं और रस परिवर्तन के लिए कुछ दोहे और कुंडलिया भी।फिलहाल एक कुंडलिया छंद और दो दोहे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं। प्रतिक्रिया से अवश्य ही अवगत कराएं:
कुंडलिया 
*******
        --- ओंकार सिंह विवेक 

क्या होगा इससे अधिक,मूल्यों का अवसान।
बेच    रहे   हैं   आजकल,लोग  दीन-ईमान।।
लोग  दीन-ईमान, गई   मति   उनकी   मारी।
करते  हैं  जो  नित्य,पाप  की  गठरी  भारी।।
दुष्कर्मों   का   दंड, यहाँ   है    सबने   भोगा।                     
सोचें  पापी  काश,अंत उनका  क्या  होगा।। 
       --- ओंकार सिंह विवेक 

दो दोहे कुछ यों भी
***************
©️
पत्नी    के   शृंगार   का,ले   आए   सामान।
माँ  के चश्मे  का उन्हें,रहा नहीं कुछ ध्यान।।

खाना  खाकर   सेठ  जी, गए  चैन  से  लेट।
नौकर   धोता   ही  रहा, बर्तन  ख़ाली  पेट।।
               ©️  ओंकार सिंह विवेक

      यहां मैं अपने इस शेर की बात कर रहा हूं :
          जनता  की आवाज़  दबाने  वालो  इतना  ध्यान रहे,
          कल पैदल भी हो सकते हो आज अगर सुल्तानी है।
                    --- ओंकार सिंह विवेक 
                         (सर्वाधिकार सुरक्षित)




November 24, 2022

कुछ पढ़ने की आदत डालें (स्मृतियों के बहाने)

साथियो शुभ प्रभात 🌹🌹🙏🙏

कुछ पढ़ने की आदत डालें
 ********************
    --- ओंकार सिंह विवेक

यों तो ब्लॉगर पर मैंने एकाउंट 2017 में बना लिया था परंतु उस पर विधिवत लिखना अप्रैल,2019 से ही शुरु कर पाया। इससे पहले अपने बैंक कार्यकाल में अति व्यस्तता के चलते कुछ नहीं लिख पाया।बैंक में रहा तो भी अपना काम पूरी शिद्दत से किया। अपनी रुचि का प्रदर्शन बढ़-चढ़कर करने से वहां भी मुझे उच्च प्रबंधतंत्र की मेहरबानी से अपनी हॉबी का काम ही मिलता रहा जैसे सर्कुलर ड्राफ्टिंग, उच्च विभागों को लेटर ड्राफ्टिंग या बैंक में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाने में सहयोग करना और विभिन्न कार्यक्रमों का संचालन करना आदि-आदि। 

        (बैंक कार्यकाल के समय की मधुर स्मृति : १)

पढ़ने और पढ़ाने का शौक़ रहा है सो मेरी इस प्रतिभा को पहचानकर मैनेजमेंट ने मुझे बैंक के प्रशिक्षण केंद्र का एसोशिएट डायरेक्टर भी बनाया।बैंक में रहते हुए पढ़ने और पढ़ाने का मेरा वह कार्यकाल बहुत शानदार बीता।उन दिनों अपने उच्च अधिकारियों के कहने पर बैंक की प्रगति को निरूपित करता हुआ एक  गीत भी मैंने लिखा था जिसे आकाशवाणी रामपुर-उoप्रo के कलाकारों द्वारा कंपोज करके गाया भी गया था।बैंक के अध्यक्ष महोदय को वह गीत इतना पसन्द आया था की काफी दिन तक उसे बैंक के प्रशिक्षण केंद्र में प्रशिक्षण के लिए आने वाले बैंकर्स को सुनवाया भी जाता था।

       (बैंक कार्यकाल के समय की मधुर स्मृति : २)

जब महसूस हुआ कि अब मुझे अपनी रुचि के काम कविता/शायरी और कंटेंट राइटिंग आदि में ही अधिक रमना चाहिए तो मैंने अच्छी भली सेवा अवधि शेष रहते हुए भी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण कर ली। परिवार ने भी मेरी रुचि को देखते हुए इस कठिन निर्णय लेने में मुझे अपना नैतिक समर्थन प्रदान किया। इस प्रकार मार्च 2019 में मैंने बैंक से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण कर ली।उसके बाद मंचों पर कविता पाठ,मंच संचालन और कंटेंट राइटिंग आदि के अपनी रुचि के कामों में मस्त और व्यस्त हूं। अब ब्लॉग पर भी पूरी तरह सक्रिय हूं।कम से कम एक पोस्ट तो रोज़ ब्लॉग पर पोस्ट कर ही देता हूं।

        (बैंक कार्यकाल के समय की मधुर स्मृति : ३)    (अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर बैंक के चेयरमैन साहब के साथ)

इस बीच मेरा पहला ग़ज़ल संकलन 'दर्द का एहसास' भी आ चुका है।दूसरे संकलन की तैयारी भी लगभग पूरी है। आजकल इस संकलन के लिए कोई उपयुक्त नाम सोच रहा हूं।आप लोग भी कोई अच्छा नाम सुझाइए।
भूमिका बनाने में थोड़ा विषयांतर होता प्रतीत हो रहा है अत: सीधे विषय पर आता हूं। बात ब्लॉग लेखन से शुरु की थी सो बताता चलूं कि मेरे ब्लॉग पर आपको मानवीय संवेदनाओं को छूती हुई मेरी ग़ज़लों के साथ-साथ तमाम विधाओं जैसे गीत,नवगीत,दोहे और मुक्तक आदि में मानवीय सरोकार से जुड़ा सृजन पढ़ने को मिल जाएगा। इसे पढ़कर आप ख़ुद को इससे जुड़ा हुआ पाएंगे ऐसी मुझे आशा है।इतना ही नहीं मेरे ब्लॉग पर आपको सामयिक विषयों पर लेख,संस्मरण और कविसम्मेलनों की जीवंत रिपोर्ट्स के साथ-साथ अच्छे साहित्यकारों की पुस्तकों की समीक्षाएं भी पढ़ने को मिल जाएंगी।यहां आपको ऐसे लोगों के जीवन-संघर्ष के बारे में भी पढ़ने को मिल जाएगा जो अपनी मेहनत के बल पर फर्श से अर्श तक पहुंच गए हैं।कुछ ऐसे लोगों के बारे में भी पढ़ने को मिल जाएगा जो समाज सेवा जैसे अच्छे काम कर रहे हैं। ग़रज़ यह कि मेरे ब्लॉग पर हर व्यक्ति को उसकी रुचि के अनुसार कुछ न कुछ पढ़ने को मिल ही जाएगा। बस शर्त एक ही है कि इस सबसे रूबरू होने के लिए आपको पढ़ने की आदत डालनी होगी। 

अत आपसे अनुरोध है कि मेरे ब्लॉग पर पहुंचें और अपनी रुचि के अनुसार चुनाव करके कॉन्टेंट का आनंद लें तथा कोमेंट करके बताएं कि रचना/लेख/आलेख आपको कैसा लगा और भविष्य में आप किस तरह का कॉन्टेंट चाहते हैं।

विशेष : ब्लॉग खोलने पर आपको मेरे ब्लॉग के दाईं तरफ़ फॉलोअर्स के फोटोज़ के नीचे follow ऑप्शन दिखाई देगा उसको दबाकर अगला स्टेप आने पर उसे ओके कर दीजिए ताकि आप इसे फॉलो करके अपनी रुचि के अनुसार सूची में से कोई भी रचना पढ़ सकें।

मेरे यू ट्यूब चैनल के लिए👇

https://youtube.com/@onkarsinghvivek3325

ओंकार सिंह विवेक

November 21, 2022

'संकेत' का समृद्ध लेखनी सम्मान-2022




मित्रो नमस्कार 🙏🙏🌹🌹

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। साहचार्य से रहने में ही जीवन की सार्थकता है।मनुष्य समाज में रहकर बहुत कुछ सीखता और गुनता है। अत: उसका दायित्व बनता है कि वह समाज को भी कुछ दे। स्वार्थ भाव से ऊपर उठकर समाज की सेवा भी करे।समाज सेवा के विभिन्न माध्यम हो सकते हैं। साहित्य सृजन के माध्यम से भी समाज की सेवा की जा सकती है। 
अपनी समृद्ध लेखनी से समाज के  लिए योगदान कर रहे पांच साहित्यकारों को साहित्य, कला एवं संस्कृति को समर्पित मुरादाबाद की संस्था 'संकेत' द्वारा अपने रजत जयंती वर्ष पर एम आई टी मुरादाबाद में एक भव्य समारोह में सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए एम आई टी के चेयरमैन श्री सुधीर गुप्ता जी ने साहित्यकारों से अपील की कि वे समाज में हो रहे नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों के क्षरण को रोकने का संदेश अपनी रचनाओं के माध्यम से देने का सतत प्रयास करते रहें।मुख्य अतिथि बाल संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर विशेष गुप्ता ने वर्तमान समाज में हो रही अनेक जघन्य हत्याओं और अमानवीय कृत्यों को लेकर चिंता प्रकट की तथा इनके सामाजिक कारणों की पड़ताल करते हुए साहित्यकारों को इन विषम परिस्थितियों में उनके दायित्व का बोध कराया। विशिष्ट अतिथियों इंजीनियर उमाकांत गुप्ता,प्रबंधक दयानंद डिग्री कॉलेज मुरादाबाद तथा डॉक्टर महेश दिवाकर अध्यक्ष अंतरराष्ट्रीय साहित्य-कला मंच ने कहा कि साहित्यकार अपने साहित्य सर्जन द्वारा भारतीय सभ्यता और संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन में महती भूमिका निभा सकते हैं।मंच पर आसीन अतिथि प्रमुख बाल साहित्यकार श्री राजीव सक्सैना जी ने गहन चिंतन और मनन के द्वारा स्तरीय साहित्य सर्जन  की आवश्यकता पर बल दिया।
साहित्यिक मुरादाबाद समूह के संस्थापक और संचालक श्री मनोज रस्तोगी जी द्वारा "संकेत" की स्थापना से लेकर अब तक के इसके सफ़र की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। सम्मानित किए जा रहे साहित्यकारों के जीवनवृत्त तथा साहित्यिक उपलब्धियों से भी सदन को परिचित कराया गया।
कार्यक्रम में निम्न पांच साहित्यकारों को उनके साहित्यिक अवदान के लिए मंचासीन अतिथियों द्वारा अंगवस्त्र, प्रशस्ति पत्र,स्मृति चिह्न तथा पुस्तक आदि भेंट करके सम्मानित किया गया :

 1. डॉक्टर प्रेमवती उपाध्याय,मुरादाबाद
 2. श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद 
 3. प्रेमचंद प्रेमी ,धामपुर
 4. ओंकार सिंह विवेक ,रामपुर
 5.  मीनाक्षी ठाकुर, मुरादाबाद
       (सम्मान ग्रहण करते हुए साथियों ने मेरा चित्र भी क़ैद            किया कैमरे में)
कार्यक्रम में सम्मानित किए गए साहित्यकारों की रचनाओं के संकलन "साधना के पथ" का लोकार्पण भी उपस्थित अतिथियों और साहित्यकारों द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। अतिथिगणों ने  सम्मानित हुए रचनाकारों के काव्य पाठ का भी आनंद लिया।
संस्था के अध्यक्ष श्री विश्नोई जी
             संस्था के महासचिव श्री मधुकर जी 
इस अवसर पर अच्छी संख्या में आमंत्रित अतिथिगण तथा प्रमुख साहित्यकार उपस्थित रहे।कार्यक्रम का संचालन संस्था के अध्यक्ष श्री अशोक विश्नोई जी तथा महासचिव श्री शिशुपाल मधुकर जी द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।कार्यक्रम के संयोजन में उत्साही युवा साहित्यकारों प्रिय राजीव प्रखर जी और दुष्यंत बाबा जी का विशेष सहयोग रहा।
संस्था द्वारा मुझ अकिंचन की लेखनी को प्रोत्साहन प्रतिसाद प्रदान करने हेतु हार्दिक आभार प्रकट करते हुए मैं संस्था की उत्तरोत्तर प्रगति की कामना करता हूं।
प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/समीक्षक/कॉन्टेंट राइटर/ब्लॉगर
(ब्लॉगर की गोपनीय पॉलिसी के तहत सर्वाधिकार सुरक्षित)

November 18, 2022

कहानी दो साहित्य-साधकों की

मित्रो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏
घर के ड्रॉइंग रूम में क़रीने से कई अलमारियों में सजी किताबें, दर्जनों मोमेंटोज़, ट्रॉफियां और सम्मान पत्र तथा दीवारों पर सुंदर पेंटिंग्स देखकर सचमुच लगा की यह वास्तव में अदीबों का ही घर है और मुझे प्रसंगवश प्रसिद्ध ग़ज़लकार श्री दीक्षित दनकौरी जी का यह शेर याद आ गया :
              ख़ुलूस-ओ-मुहब्बत की ख़ुश्बू से तर है,
              चले  आइए   ये  अदीबों  का   घर  है।
                          --- दीक्षित दनकौरी 
साथियो यह ऐसे ही एक साहित्यकार दंपती के घर का चित्रण है जिससे हाल ही में मुझे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जी हां, मैं बात कर रहा हूं डॉo किश्वर सुल्ताना जी और उनके पति डॉo ज़हीर अली सिद्दीक़ी जी की  जो बिना किसी प्रसिद्धि की लालसा लिए नि:स्वार्थ भाव से हिंदी और उर्दू दोनों ही भाषाओं को अपने सर्जन से समृद्ध कर रहे हैं। 
       (डॉo ज़हीर अली सिद्दीक़ी जी तथा उनकी धर्मपत्नी 
         डॉo किश्वर सुल्ताना जी)
डॉक्टर किश्वर सुल्ताना साहिबा हिंदी भाषा की अवकाश प्राप्त प्रोफेसर, शोधकर्ता और लेखिका हैं। आपने हिंदी में प्रथम श्रेणी में एमoएo और डीoलिटo तक शिक्षा ग्रहण की है।आपका हिंदी तथा उर्दू भाषाओं के साथ ही अरबी और अंग्रेज़ी भाषाओं पर भी अच्छा अधिकार है।आपने रूसी भाषा का भी विधिवत अध्ययन किया है और आप एक अच्छी चित्रकार भी हैं। बहुमुखी प्रतिभा की धनी आदरणीया किश्वर सुल्ताना जी की पचास से भी अधिक वार्ताएं/परिचर्चाएं आकाशवाणी और दूरदर्शन से प्रसारित हो चुकी हैं।आपने अपने विषय से संबंधित पच्चीस से अधिक सेमिनारों में भाग लिया है।आपके आलोचनात्मक तथा समीक्षात्मक आलेख/लेख राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं। प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत पर आपने बहुत काम किया है और उनका सानिध्य भी आपको प्राप्त रहा।
हिंदी साहित्य में योगदान के लिए आपको हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग, उत्तर प्रदेश हिंदी सेवी संस्थान तथा मौलाना मोहम्मद अली जौहर एकेडमी दिल्ली सहित तमाम अन्य सरकारी तथा ग़ैर सरकारी संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है।
ऊपर मैंने आदरणीया किश्वर सुल्ताना जी के चित्रकारी के हुनर का ज़िक्र किया है सो उनकी कुछ ख़ूबसूरत चित्रकारी का नमूना भी देखिए:
पेंटिंग्स १: मीरा की भक्ति को दर्शाया गया है
           ५: मुग़ल शहज़ादा सलीम और अनारकली
            ४: भारतीय नारी शृंगार करते हुए 
चित्रकारी को देखकर यह सहज ही अनुमान हो जाता है कि डाक्टर साहिबा जितनी अच्छी साहित्यकार हैं उतनी ही अच्छी चित्रकार भी हैं।आपके चित्रों में भारतीय संस्कृति और इतिहास की सुंदर झलक मिलती है।
श्रीमती किश्वर सुल्ताना जी ने हिंदुस्तान की आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लेने वाले श्री मुहम्मद अली जौहर तथा शौकत अली जौहर जी की माता बी अम्मा पर "बी अम्मा" शीर्षक से ही एक किताब लिखी है जो उन्होंने मुझे भेंट भी की।इस किताब को पढ़कर बाद में इस पर कुछ लिखने का प्रयास करूंगा।
डॉक्टर ज़हीर अली सिद्दीक़ी साहब ने उर्दू और इतिहास विषयों में स्नातकोत्तर तथा लखनऊ विश्वविद्यालय से पी एच डी तक शिक्षा ग्रहण की है।आपने आई जी डी मुंबई से चित्रकला में भी कोर्स किया है।आपकी "मौलाना मोहम्मद अली और जंगे आज़ादी" (रामपुर रज़ा लाइब्रेरी द्वारा प्रकाशित) तथा उर्दू अकादमी लखनऊ द्वारा पुरस्कृत "दस्तावेज़ाते रुहेलखंड" सहित कई किताबें हैं। आपके आलोचनात्मक/समीक्षात्मक लेख राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।आपको उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी सहित तमाम अन्य सरकारी और ग़ैर सरकारी संस्थाओं से अदबी ख़िदमात के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है।आपकी तीस से अधिक वार्ताओं और परिचर्चाओं का आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से प्रसारण हो चुका है।
आज कुछ लोग जहाँ भाषा और धर्म के नाम पर समाज को बांटने की कुचेष्टा कर रहे हैं वहीं यह जोड़ा हिंदी और उर्दू भाषाओं से समान स्नेह रखते हुए अपनी साहित्यिक सेवाओं से समरसता का संदेश देने में लगा हुआ है। हमें ऐसे अदीबों से सीख लेनी चाहिए।
आप दोनों से मिलकर काफ़ी देर साहित्यिक विषयों और साहित्यकारों पर चर्चा हुई।इस उम्र में भी इस दंपती में ग़ज़ब की ऊर्जा और साहित्य को लेकर कुछ करने का जज़्बा देखकर मुझे बहुत प्रेरणा मिली।आपकी सादादिली और आत्मीयता दिल को छू गई। मैं आप दोनों के उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु होने की कामना करता हूं।
मैंने आप दोनों को अपने पहले ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" की प्रति भेंट करके आशीर्वाद लिया।डाक्टर ज़हीर साहब ने कहा कि मैं आपकी किताब की समीक्षा ज़रूर लिखूंगा।इस कार्य हेतु मैंने अग्रिम धन्यवाद ज्ञापित करते हुए दंपती से विदा ली।
     (श्रीमती और श्री सिद्दीक़ी साहब को अपनी पुस्तक
       "दर्द का अहसास" की प्रति भेंट करते हुए मैं)

 ---- ओंकार सिंह विवेक 

November 17, 2022

जनता में क्यों अब इतनी बेदारी है

मशहूर शायर मुहतरम ओमप्रकाश नूर साहब की मेहरबानी से प्रतिष्ठित पत्रिका/अख़बार सदीनामा में प्रकाशित हुई अपनी एक और ग़ज़ल आप सब के साथ साझा कर रहा हूं :

ग़ज़ल***ओंकार सिंह विवेक
  दिनांक: 14.11.2022
   ©️
🗯️
 इसको  लेकर   ही   उनको   दुश्वारी   है,
 जनता  में  क्यों  अब  इतनी  बेदारी  है।
 🗯️
 समझेंगे    क्या    दर्द   किराएदारों   का,
 पास  रहा जिनके   बँगला  सरकारी  है।
 🗯️
कोई  सुधार  हुआ कब उसकी हालत में ,
 जनता   तो    बेचारी    थी ,  बेचारी   है।
 🗯️
 शकुनि  बिछाए  बैठा  है   चौसर  देखो,
 आज  महाभारत   की  फिर  तैयारी है।
 🗯️
  नाम   कमाएँगे   भरपूर   सियासत   में,
  नस-नस में इनकी जितनी मक्कारी है।
  🗯️
  औरों-सा बनकर  पहचान  कहाँ  होती,
  अपने -से   हैं   तो   पहचान  हमारी है।
  🗯️
  दुख का ही अधिकार नहीं केवल इस पर,
  जीवन  में   सुख   की  भी  हिस्सेदारी  है।
                 ---- ©️ओंकार सिंह विवेक

  (वर्ष २०१९ में स्वर्ण मंदिर अमृतसर में परिवार के साथ)

November 16, 2022

टैगोर काव्य गोष्ठी के आयोजन की दूसरी कड़ी

मित्रो नमस्कार 🙏🙏

मैंने कुछ माह पूर्व अपनी एक ब्लॉग पोस्ट में रामपुर के व्यवसाई और वरिष्ठ साहित्यकार श्री रवि प्रकाश अग्रवाल जी द्वारा राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय पीपल टोला रामपुर - उoप्र० में टैगोर काव्य गोष्ठियां प्रारंभ किए जाने का चर्चा किया था।
उस योजना को मूर्त रूप देते हुए आज दिनांक १५ नवंबर,२०२२ को इस कड़ी में श्री रवि प्रकाश अग्रवाल जी द्वारा एक शानदार कवि गोष्ठी का आयोजन कराया गया।बहुत ही अनुशासित ढंग से सीमित समयावधि में यह कार्यक्रम संपन्न हुआ।
कार्यक्रम का शुभारंभ वरिष्ठ कवि शिवकुमार चंदन जी द्वारा प्रस्तुत 'सरस्वती-वंदना' से हुआ।  इसके पश्चात चंदन जी ने अपना सुप्रसिद्ध गीत पढ़ा :
जैसी छवि होगी दीखेगी, 
दर्पण का कुछ दोष नहीं है। 

   (ऊपर के चित्र में बाएं से काव्य पाठ करते हुए वरिष्ठ कवि श्री चंदन जी तथा मंच पर मेज़बान श्री रवि प्रकाश जी, मैं तथा कार्यक्रम की सह अध्यक्ष श्रीमती नीलम गुप्ता जी)

        (काव्य पाठ करते हुए मैं ओंकार सिंह विवेक)
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मेरे द्वारा किए गए काव्य पाठ की कुछ पंक्तियाँ भी यहां प्रस्तुत हैं :
 झूठ को इस दौर में क्या झूठ बतलाने लगे,
हम तो कितनों के निशाने पर यहां आने लगे।

 घोर ॳंधियारों में से ही फूटती है रौशनी,
 आप क्यों नाकामियों से इतना घबराने लगे।

 कार्यक्रम में मेरे द्वारा प्रस्तुत दूसरी ग़ज़ल का मतला भी देखें :
 उनके हिस्से चुपड़ी रोटी, बिसलेरी का पानी है,
 और हमारी क़िस्मत,हमको रूखी-सूखी खानी है।
          
  (काव्य पाठ करते हुए मेज़बान श्री रवि प्रकाश अग्रवाल जी)
कार्यक्रम के मेज़बान और संचालक श्री रवि प्रकाश अग्रवाल जी ने समय और अनुशासन की महत्ता का बखान करते हुए यह मुक्तक प्रस्तुत किया :
समय है एक अनुशासन जिसे सूरज निभाता है,
समय पर रोज़ उगता है, समय पर डूब जाता है।
समय पर ही युवावस्था, बुढ़ापा देह में आते,
समय के साथ ही मंगल मरण लिखता विधाता है।

  (कार्यक्रम की सह अध्यक्ष श्रीमती नीलम गुप्ता जी का संबोधन)
कार्यक्रम की सह अध्यक्ष नगर पालिका परिषद रामपुर की पूर्व सदस्य श्रीमती नीलम गुप्ता जी  ने एक सुंदर कविता के माध्यम से हृदय के सुकोमल भावों को अभिव्यक्त करते हुए ऐसे कार्यक्रमों के निरंतर जारी रहने पर बल दिया।

     (काव्य पाठ करते हुए श्री सुरेन्द्र अश्क रामपुरी जी)
काव्य पाठ करते हुए श्री सुरेंद्र अश्क रामपुरी जी ने अपनी ग़ज़ल के माध्यम से राजनीति के वर्तमान परिवेश को चित्रित करने का सार्थक और प्रभावशाली प्रयास किया :-
तु ही रहबर तु ही रहज़न तु ही मुंसिफ तु ही क़ातिल,
 सियासत तेरे चेहरे पर कई चेहरे नजर आए।
अंत में मेज़बान श्री रवि प्रकाश अग्रवाल जी ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए अगले मंगलवार को  गोष्ठी में मिलने की बात के साथ कार्यक्रम समापन की घोषणा की।सभी ने जलपान के बाद मेज़बान रवि प्रकाश जी का आभार व्यक्त करते हुए विदा ली।

प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक 

              
                



November 13, 2022

आज कुछ यों भी

नमस्कार दोस्तो 🙏🙏🌹🌹

यों तो मैं मूलत: ग़ज़लकार हूं परंतु रस परिवर्तन के लिए 
यदा-कदा मुक्तक,दोहे, नवगीत और कुंडलिया आदि भी कह लेता हूं तो सोचा आप सुधी जनों के साथ ये दो कुंडलिया साझा करूं।अपनी प्रतिक्रिया से अवश्य अवगत कराएं:

कुंडलिया-१

देते   हैं   सबको  यहाँ,प्राणवायु   का    दान,
फिर भी वृक्षों  की मनुज,लेता है नित  जान।
लेता  है नित जान, गई  मति  उसकी   मारी,
जो  वृक्षों  पर आज,चलाता पल-पल आरी।
कहते  सत्य 'विवेक', वृक्ष हैं  कब कुछ  लेते,
वे  तो  छाया-वायु,,फूल-फल  सबको   देते।    

 कुंडलिया-२

खाया  जिस  घर  रात-दिन,नेता जी ने  माल,
नहीं  भा  रही  अब  वहाँ, उनको  रोटी-दाल।
उनको  रोटी-दाल , बही   नव   चिंतन  धारा,
छोड़   पुराने   मित्र , तलाशा   और   सहारा।
कहते  सत्य  विवेक,नया  फिर  ठौर  बनाया,
भूले  उसको  आज ,जहाँ  वर्षों  तक  खाया।
          ---ओंकार सिंह विवेक
        (श्रीमती जी के साथ फ़ुरसत  के पल)




November 12, 2022

नगर से गाँव ही अपना भला है

मित्रो शुभ प्रभात 🌹🌹🙏🙏
मेरी नीचे दी गई ताज़ा ग़ज़ल के बहाने आपसे फिर  ज्ञानवर्धक बातचीत करने का अवसर प्राप्त हुआ।
कल एक प्रतिष्ठित ग़ज़ल समूह में यह ग़ज़ल पोस्ट की थी। वैसे तो इस पर बहुत उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं किंतु एक बंधु ने ग़ज़ल के मतले में प्रयोग किए गए शब्द ताज़ा को लेकर कुछ यों भी टिप्पणी की :
"हवा स्त्रीलिंग होती है.... यहाँ जल साफ़ है, ताज़ी हवा है"
होना चाहिए।
मैंने अपनी अल्प जानकारी के अनुसार उन्हें विनम्रता पूर्वक यह उत्तर प्रेषित किया :
"मान्यवर मेरी नज़र में मैंने ठीक प्रयोग किया है।ताज़ा फ़ारसी भाषा का शब्द है और इसे इसी वर्तनी में प्रयुक्त किया जाना उचित है।"
जैसे --
आज की ताज़ा ख़बर लिखा जाता है
 ताज़ी ख़बर नहीं

यादें ताज़ा हो गईं लिखा जाता है
यादें ताज़ी हो गईं नहीं

एक शेर भी देखिए :
साँस लेने के लिए ताज़ा हवा भेजी है,
ज़िंदगी के लिए मासूम दुआ भेजी है।
हामिद सरोश
🙏🙏

एक अन्य शायर श्री गोविंद गुलशन जी ने भी इस बारे में उन्हें यह टिप्पणी प्रेषित की :
"अस्ल शब्द ताज़ा ही है"
सुबह का वक़्त है ताज़ा हवा है, 
चलो बाहर चलें कमरों में क्या है (डॉ. कुँअर बेचैन )

यह सब आप लोगों से साझा करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना ही है कि हमें आपस में जानकारी साझा करते रहना चाहिए क्योंकि ज्ञान बांटने से बढ़ता ही है घटता नहीं।

सादर 
 --- ओंकार सिंह विवेक
 (ग़ज़लकार,समीक्षक, कंटेंट राइटर,ब्लॉगर)
सभी अधिकार सुरक्षित 

November 10, 2022

जनसंवेदनाओं के कवि स्मृतिशेष रामलाल 'अनजाना'


जन संवेदनाओं को झकझोरते कवि रामलाल 'अनजाना'
******************************************
      ---- ओंकार सिंह विवेक

कविता समाज का दर्पण होती है। कविता समाज को उन चीज़ों के बारे में भी सोचने को विवश करती है जो समाज में नहीं हो रही होती हैं परंतु उन्हें होना चाहिए। कवि की जो अभिव्यक्ति श्रोता/पाठक को आह या वाह करने के लिए बाध्य कर दे वही सच्ची कविता होती है। स्मृति शेष आदरणीय रामलाल अनजाना का काव्य सृजन इन सब कसौटियों पर खरा उतरता दिखाई देता है।
स्मृति शेष रामलाल अनजाना जी के वर्ष-२००९ में प्रकाशित हुए काव्य संग्रह 'वक्त न रिश्तेदार किसी का' की कुछ रचनाओं को पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। यह काव्य संग्रह उन्होंने अपनी धर्मपत्नी उर्मिला जी को समर्पित किया है जो उनकी गहन संवेदनशीलता का परिचायक है। काव्य संग्रह की तमाम रचनाओं ने मर्म को छू लिया।सामाजिक विसंगतियों और विद्रूपताओं को लेकर कवि के ह्रदय में एक छटपटाहट और बैचेनी दिखाई देती है जो निरंतर उन्हें उनके कवि धर्म का एहसास कराती है।अपनी एक कविता में उन्होंने जगत कल्याण की कैसी सुंदर कामना की है ,देखिए :

मिट जाए आतंक धरा से,मानवता की अक्षय जय हो,
निर्भय जन जीवन मुस्काए,जो पल आए मंगलमय हो।

जिस चीज़ को सब आम नज़र से देखते हैं कवि उसे ख़ास नज़र से देखता है।यही दृष्टि उसे औरों से भिन्न बनाती है।आम आदमी के जीवन से जुड़ी तमाम चीज़ों को लेकर रामलाल अनजाना जी ने काव्य सृजन करते हुए हर आम और ख़ास आदमी के सुप्त चिंतन को जगाने का सार्थक प्रयास किया है।उनकी सभी रचनाएँ बहुत ही सहज और सरल भाषा में रची गई हैं जो आम आदमी से सीधा संवाद करती प्रतीत होती हैं। रचनाओं का भाव पक्ष बहुत प्रबल है।

रौशनी तो आज कहीं दूर को चली गई, ज़िंदगी से दूर हर दुर्गंध हो,प्यार पथ की रौशनी है, ज़हरीली कर दी पुरवाई और नज़रें नातेदार चुराते आदि शीर्षकों से सृजित की गईं उनकी तमाम रचनाएँ बार-बार पढ़ने का मन करता है। उनका अधिकांश सृजन सामाजिक सरोकारों की ज़बरदस्त पैरवी करता दिखाई देता है। कुछ और रचनाओं की चुनिंदा पंक्तियां देखिए जिनसे आपको उनके चिंतन की गहराई का अंदाज़ा होगा :

यह भी दिल काला है, वह भी दिल काला है,
दिल के हर कोने में मकड़ी का जाला है।
रौशनी तो आज कहीं दूर को चली गई,
अंधियारी रातों का रोज़ बोलबाला है।
(रौशनी तो आज कहीं दूर को चली गई)

आदमी में आदमी की गंध हो,
दुश्मनी की हर कहानी बंद हो।
हर तरफ़ फूले - फले इंसानियत,
ज़िंदगी से दूर हर दुर्गंध हो।
(ज़िंदगी से दूर हर दुर्गंध हो)

प्यार जीने की कला है,
प्यार में जीवन घुला है।
प्यार में डूबा उसी को,
जग मिला, जीवन मिला है।
(प्यार पथ की रौशनी है)

दुनिया और समाज की दिल से फ़िक्र करने वाला एक सच्चा साहित्यकार ही ऐसी बातें कर सकता है जो ऊपर अपनी कविताओं में अनजाना जी ने कही हैं। अनजाना जी का काव्य सृजन नए रचनाकारों के लिए अथाह सागर में रास्ता दिखाते हुए एक लाइट हाउस की तरह है।

मैं स्मृति शेष अनजाना जी की लेखनी और स्मृतियों को शत-शत नमन करता हूं 🌹🌹🙏🙏

ओंकार सिंह विवेक
साहित्यकार
रामपुर- उoप्रo 







November 9, 2022

यादों के झरोखों से (कड़ी - ५)

मित्रो नमस्कार 🙏🙏🌹🌹


आज अचानक फोन की मैमरी में छुपे गूगल ने कुछ पुराने फोटो दिखाए जिसमें ताजमहल के सम्मुख ली गई श्रीमती जी और मेरी एक तस्वीर भी सामने आ गई।उन मधुर यादों को लेकर कुछ लिखने का मन हुआ जिसे आपके साथ साझा कर रहा हूं। प्रतिक्रिया से अवश्य ही अवगत कराएं।

मैंने अपने बैंक से २६ मार्च,२०१९ को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण थी।लगभग दो महीने तो पेंशन आदि के काग़ज़ात पूरा करने में लग गए। जब कुछ सुकून हुआ तो सोचा की अब दफ़्तर की भागदौड़ और तनाव आदि से मुक्ति मिल चुकी है अत: कहीं घूमने-फिरने का प्रोग्राम बनाया जाए। यों तो झुलसाने वाली गर्मी का जून का महीना बस पहाड़ों पर घूमने के लिए ही उपयुक्त होता है। परंतु पहाड़ों पर तो हम बहुत घूम चुके थे तो सोचा मथुरा,आगरा और फतेहपुर सीकरी जैसे धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के दर्शनीय स्थलों का रुख़ किया जाए। कार्यक्रम बनाने और  प्रोत्साहित करने में हमारे बेटे का बहुत बड़ा योगदान रहा।उसकी परीक्षाएं समाप्त हुई थीं सो वह भी घूमने को लेकर उत्साहित था। दोनों बेटियां तो इस ट्रिप में साथ नहीं जा पाईं थीं क्योंकि वे अपने-अपने 
काम के सिलसिले में गुड़गांव में प्रवास कर रही थीं।
इस ट्रिप के पहले चरण में हम लोगों ने मथुरा,वृंदावन और नंदगांव, गोवर्धन आदि का भ्रमण किया। इन सभी स्थलों पर कृष्ण की लीलाओं की सुवास सहज ही अनुभव की जा सकती है। जैसे-जैसे हम इन स्थानों का भ्रमण करते गए श्री कृष्ण जी का किताबों में पढ़ा हुआ सारा जीवन चरित्र हमारे सामने घूमता रहा।इन स्थानों पर निर्मित भव्य मंदिरों और यहां की धार्मिक आस्था ने बहुत प्रभावित किया। छोरी, छोरा और गैय्यन जैसे ब्रज भाषा के शब्द स्थानीय निवासियों के मुख से सुनकर ब्रज की बोली की मिठास से मन को एक ख़ास तरह की अनुभूति हुई। वृंदावन के प्रेम मंदिर को देखकर तो आंखें चौंधिया गईं।बहुत ही भव्य और सुंदर मंदिर है। आस्था और विश्वास के साथ ब्रज क्षेत्र के भ्रमण से मन को जो आनंद की अनुभूति हुई उसे शब्दों में बयान करना संभव नहीं है।

        (निधिवन में  पत्नी रेखा सैनी,पुत्र आदित्य सैनी तथा                गाइड के साथ मैं)
मथुरा, वृंदावन के सभी दर्शनीय स्थलों का विस्तार से वर्णन और चित्र आदि प्रस्तुत करना तो इस पोस्ट में संभव नहीं है। मेरा अनुरोध है कि असली आनंद उठाने के लिए आप इन धार्मिक स्थलों का स्वयं भ्रमण अवश्य करें। हां, निधिवन के बारे में थोड़ा अवश्य बताना चाहूंगा।भक्तों और स्थानीय लोगों का मानना है कि भगवान कृष्ण रात में गोपियों के साथ रासलीला करने के लिए यहां आज भी आते हैं।इस जगह की एक और दिलचस्प बात यह है कि जहां पेड़ की शाखाएं ऊपर की ओर बढ़ती हैं, वही यहां वे नीचे की ओर बढ़ती हैं। यहां के पेड़ छोटे हैं लेकिन एकदूसरे से काफी जुड़े हुए हैं। साथ ही यहां की तुलसी जोड़ियों में उगती हैं। ऐसा माना जाता है कि ये पौधे गोपियों में बदल जाते हैं और रात के समय दिव्य नृत्य में शामिल हो जाते हैं।इस विषय पर अधिक तर्क करना यों भी उचित नहीं है क्योंकि यह आस्था से जुड़ा विषय है।
ब्रज भूमि के दर्शन के बाद हमारा अगला पड़ाव आगरा था। आगरा का क़िला और इसके बाज़ार भी खूब घूमे और  घर के लिए पंछी पेठा भी खरीदा। पंछी पेठा तो आगरा का ऐसा ब्रांड बन गया है कि जिसको खरीदे बिना आगरा की ट्रिप पूरी ही नहीं होती।मैं तो पहले भी ताजमहल देख चुका था परंतु पत्नी और बेटा पहली बार यहां आए थे अत: उन्हें ताजमहल देखने की बहुत उत्सुकता थी। एक गाइड को लेकर हम लोग ताजमहल में प्रविष्ट हुए।बच्चों ने इसके बारे में जैसा सुना और पढ़ा था उससे कहीं अधिक भव्य और सुंदर पाया।लगभग दो घंटे ताजमहल में घूमते हुए हम लोग उसकी खूबसूरती को निहारते रहे। विश्व प्रसिद्ध ताजमहल के बारे में और अधिक क्या बताया जाए।इसके इतिहास,गौरव और महत्व को आप सब लोग भली भांति जानते हैं। वहां फोटोग्राफर से पत्नी के साथ जो तस्वीर खिंचवाई वो नीचे प्रस्तुत है।
बच्चों को हम दोनों की यह तस्वीर इतनी पसंद आई कि उन्होंने इसे फ्रेम करवाकर ड्राइंग रूम में लगवा रखा है।

यात्रा के अंतिम चरण मैं हम लोग आगरा से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ऐतिहासिक शहर फतेहपुर सीकरी पहुंचे। इसका निर्माण मुगल बादशाह अकबर ने करवाया था। सन 1573 ईसवी में यहीं से अकबर ने गुजरात को फतह करने के लिए प्रस्थान किया था।  गुजरात पर विजय पाकर लौटते समय उस ने सीकरी का नाम ‘फतेहपुर’ (विजय नगरी) रख दिया था। 
अकबर द्वारा बनवाई गई भव्य ऐतिहासिक इमारतें यहां का प्रमुख आकर्षण हैं।यहां के बुलंद दरवाज़े को इसके नाम के अनुरूप दुनिया का सबसे बड़ा प्रवेश द्वार कहा जाता है।

                      (बुलंद दरवाज़ा)

   (फतेहपुर सीकरी महल के सामने पत्नी तथा पुत्र के साथ)

फतेहपुर सीकरी के भव्य महलों और अन्य ऐतिहासिक भवनों का विस्तार से यहां वर्णन मैं इसलिए नहीं कर रहा ताकि  वहां घूमकर आने की आपकी इच्छा बनी रहे।इतना अवश्य कहूंगा कि यदि मैं ताजमहल को छोड़ दूं तो ऐतिहासिक दृष्टि से देखने में फतेहपुर सीकरी आपको आगरा से कहीं अधिक लुभाएगा।आप एक बार अवश्य ही इस स्थल के भ्रमण का कार्यक्रम बनाएं।
ख़्वाजा मीर दर्द के इस शेर के साथ अपनी बात ख़त्म करता हूं :
         सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ,
         ज़िंदगी  गर कुछ  रही  तो  ये जवानी फिर कहाँ।
                                          --- ख़्वाजा मीर दर्द

--- ओंकार सिंह विवेक 
(ग़ज़लकार, समीक्षक, कंटेंट राइटर तथा ब्लॉगर)
          








November 6, 2022

मगर इंसान फिर भी बे-ख़बर है

शुभ संध्या मित्रो 🙏🙏🌹🌹

इन दिनों मौसमी सर्दी और ज़ुकाम ने जकड़ रखा है। हमारे शहर रामपुर में आजकल डेंग्यू का प्रकोप भी अपने चरम पर है इसलिए और अधिक सावधानी बरत रहे हैं।बिस्तर में लेटे-लेटे अपनी एक काफ़ी पहले कही गई ग़ज़ल देखने लगा।पहले इसमें सिर्फ़ पांच शेर ही कहे थे ।दो और शेर ज़ेहन में आए और पुराने कुछ अशआर में आंशिक संशोधन भी किया। मैं अक्सर ही अपनी पुरानी ग़ज़लों को पढ़कर उनमें ज़रूरी संशोधन करता रहता हूं और नए अशआर भी जोड़ता रहता हूं।
तो लीजिए पेश है मेरी यह ग़ज़ल:
©️
सभी के काम पर उसकी नज़र है,
मगर इंसान फिर भी बे-ख़बर है।

जुदा पत्ते हुए जाते हैं सारे,
ये कैसा वक्त आया शाख़ पर है।

खटकता है वो कोठी की नज़र में,
बग़ल में एक जो छप्पर का घर है।
©️
सरे-बाज़ार ईमां बिक रहे हैं,
यही बस आज की ताज़ा ख़बर है।

यकीं जल्दी ही कर लेते हो सब पर,
कहीं धोखा न खाओ,इसका डर है।

इसे कैसे भला आसान कह दें,
मियां! ये ज़िंदगानी का सफ़र है।

कहानी में है जिसने जान डाली,
वही किरदार बेहद मुख्तसर है।
  ---  ©️ओंकार सिंह विवेक
(गूगल की कॉपीराइट पॉलिसी के तहत सभी अधिकार सुरक्षित)

November 3, 2022

हिंदी काव्य में दोहे


दोहा हिंदी काव्य विधा की एक पुरातन लोकप्रिय विधा है।दो पंक्तियों में ही बहुत मारक और सटीक बात कहने के लिए हिंदी काव्य में दोहे से अच्छी शायद और कोई विधा हो ही नहीं सकती। दोहे के दो पदों में चार चरण होते हैं।पहले और तीसरे चरण को विषम तथा दूसरे और चौथे चरण को सम चरण कहते हैं।विषम चरणों में १३ तथा सम चरणों में ११ मात्राएं होती हैं।विषम चरण में १-२ पर तथा सम चरण में २-१ पर यति निर्धारित होती है।
अक्सर लोग कह देते हैं कि १३-११ मात्राओं की गणना का ध्यान रखते हुए आसानी से दोहा कहा जा सकता है परंतु यह इतना भी आसान नहीं है। निर्धारित मानकों का पालन करते हुए कम से कम शब्दों में पूरी संप्रेषणीयता के साथ काव्य-अभिव्यक्ति में बहुत अभ्यास की ज़रूरत होती है। गद्य की तरह सपाट बयानी करते हुए सिर्फ़ मात्राएं पूरी कर देने भर से दोहा प्रभावशाली नहीं हो सकता। इसके लिए कुछ कलात्मक और चमत्कारिक कौशल की आवश्यकता होती है।वाक्य विन्यास,शिल्प विधान और व्याकरण आदि का ध्यान रखते हुए चुस्त शब्द संयोजन के साथ मारक दोहा सृजन करने में पसीने छूट जाते हैं।

कबीर, रहीम,बिहारी जैसे प्रसिद्ध कवियों के दोहों को पढ़कर हम दोहों की मारक क्षमता का सहज ही अनुमान लगा सकते हैं।

बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ,
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ।
           कबीरदास 
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय,
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय।
           रहीमदास
सतसइया के दोहरे,ज्यों नावक के तीर,
देखन में छोटे लगैं, घाव करैं गम्भीर।
             बिहारी

इन दिनों ग़ज़लों के सर्जन के साथ मैंने अपने कुछ पहले कहे गए दोहों में संशोधन भी किया । संशोधित दोहे आपकी अदालत में प्रस्तुत कर रहा हूं :
कुछ दोहे 
*******  --ओंकार सिंह विवेक
©️
मिली  कँगूरों  को  भला,यों  ही  कब  पहचान,
दिया  नीव  की  ईंट  ने,पहले  निज  बलिदान।

कलाकार  पर  जब   रहा,प्रतिबंधों  का   भार,
कहाँ कला में आ सका,उसकी तनिक निखार।

महँगाई    को    देखकर, जेबें    हुईं     उदास,
पर्वों   का   जाता   रहा,अब   सारा   उल्लास।

भोजन   करके   सेठ   जी,गए  चैन   से   लेट,
नौकर   धोता    ही   रहा, बर्तन   ख़ाली   पेट।

चल  हिम्मत  को  बाँधकर,जल  में पाँव उतार,
ऐसे   तट   पर   बैठकर,नदी  न   होगी   पार।  
                        ©️ ---ओंकार सिंह विवेक

     (पत्नी तथा बच्चों के साथ वर्ष ,२०१९ में स्वर्ण मंदिर               अमृतसर में लिया गया फोटो)



November 1, 2022

हौसलो से उड़ान होती है


हौसलो से उड़ान होती है
 ******************
आज मैं विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए सफलता की सीढियां चढ़ रहे जिस व्यक्ति के बारे में आपसे बातचीत करने जा रहा हूं उसके हौसले और संघर्ष को देखकर मुझे दो मशहूर साहित्यकारों के ये शेर याद आ रहे हैं :

            मेरे   सीने  में   नहीं   तो  तेरे  सीने  में   सही,
            हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए। 
                                                      दुष्यंत कुमार
                                                      
             हज़ार    बर्क़    गिरे    लाख    आँधियाँ   उट्ठें,
             वो  फूल  खिलके  रहेंगे  जो  खिलने वाले हैं।
                                                साहिर लुधियानवी 

जी हां, मैं बात कर रहा हूं अंकुर मोटर्स के स्वामी सुनील सैनी के बारे में जिनकी संघर्ष-गाथा तमाम लोगों,ख़ासतौर से अभावों में जी रहे नौजवानों के लिए, एक प्रेरणा-पुंज कही जा सकती है।
     (अंकुर मोटर्स के मालिक सुनील सैनी और उनकी टीम) 

 रामपुर (उoप्रo)ज़िले की स्वार तहसील के एक छोटे से गांव सीतारामपुर से संबंध रखने वाले सुनील ने विपरीत आर्थिक परिस्थितियों के अभावग्रस्त जीवन और माता-पिता की विवशता को देखते हुए 12 वर्ष की उम्र में कुछ कर गुज़रने की ललक में जब घर छोड़ा तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

         (सुनील सैनी अपनी धर्मपत्नी के साथ)
घर से निकलकर छोटी-मोटी मज़दूरी की,रंग फैक्ट्री और कोल्हू आदि पर काम किया,पेपर मिल में १२-१२ घंटे तक लेबर के रूप में काम किया। ग़रज़ यह कि घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए जो भी,जैसा भी काम मिला वो पूरी ज़िम्मेदारी के साथ किया।इस चुनौती का सामना करने में उन्हें पढ़ाई तक बीच में ही छोड़नी पड़ी।हर चीज़ को गहराई और गंभीरता से सीखने की ललक के कारण लेबर के काम से हटकर तमाम तरह के टेक्निकल काम भी सुनील ने जल्दी ही सीख लिए।इस हुनर ने उन्हें शीघ्र ही अपने मालिकों का विश्वासपात्र बना दिया। अदभुत कार्यक्षमता,लगन तथा औरों से हटकर कुछ करने की इच्छा ने सुनील की आगे की राहें बहुत आसान कर दीं। 
काशीपुर-उत्तराखंड और उसके आस-पास तमाम जगह ईमानदारी से कई तरह के काम करके सुनील ने धीरे-धीरे अपनी योग्यता और क्षमता का विकास किया तथा अपने दो बड़े भाईयों के साथ मिलकर स्वतंत्र रूप से शटरिंग ग्रीस तथा मोबिल आदि का काम शुरू कर दिया। साफ़ नीयत और ईमानदारी से अपना सौ प्रतिशत देते रहने के कारण उनका यह काम धीरे-धीरे चल निकला। इस कारण घर की आर्थिक स्थिति में भी थोड़ा सुधार आ गया।
भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए उत्तर प्रदेश से आकर अब उनका पूरा परिवार स्थाई रूप से उत्तराखंड राज्य के   लालकुआं के समीप हल्दूचौड़(बेरीपड़ाव) में बस गया है जहां उनका कारोबार फल-फूल रहा है।
प्रतिस्पर्धा के इस युग में निरंतर बढ़ रही चुनौतियों को देखते हुए अपने कारोबार को diversify करते हुए यहां सुनील ने लगभग ७ वर्ष पूर्व अंकुर मोटर्स के नाम से हल्द्वानी-बरेली रोड पर अपनी कार मरम्मत/सर्विस आदि की वर्कशॉप भी शुरू कर दी।

       (अंकुर मोटर्स में मरम्मत हेतु आई एक कार : मरम्मत से            पूर्व तथा मरम्मत के बाद के चित्र)   
अपनी उच्चकोटि की त्वरित पारदर्शी सेवाओं के कारण यह वर्कशॉप उत्तराखंड की श्रेष्ठ कार मरम्मत वर्कशॉप्स में गिनी जाने लगी है।आप आसानी से इसे गूगल पर भी सर्च कर सकते हैं।सुनील सैनी के पास 10 से 12 कुशल कर्मचारियों की एक टीम है।टीम के लोग अपने काम में बहुत ही दक्ष और मृदुभाषी हैं। दुर्घटनाओं में क्षतिग्रस्त हुई बहुत गंभीर हालत में आई कारों को भी इस वर्कशॉप से मैंने बिल्कुल फिट होकर जाते देखा है।ऊपर दिए गए चित्र से आप इस बात को भली भांति समझ सकते हैं।
आमतौर पर जब हम कार की सर्विस कराने जाते हैं तो यदि डेटिंग और पेंटिंग जैसा कोई काम होता है तो उसे अलग से कराने के लिए दूसरी जगह गाड़ी को भेजना पड़ता है जिसमें अधिक समय लगता है परंतु अंकुर मोटर्स में सारी सुविधाएं एक ही छत के नीचे उपलब्ध हो जाती हैं।यहां कार की सर्विस के साथ ही उसकी डेंटिंग/पेंटिंग की भी सुविधा है और ओरिजिनल स्पेयर पार्ट्स/एक्सेसरीज़ आदि भी मुनासिब दामों में उपलब्ध हैं जो किसी भी ग्राहक के लिए राहत की बात हो सकती है।

      (सुनील सैनी अपनी मोटर वर्कशॉप के कार्यालय में)

मैंने वर्कशॉप में अपनी गाड़ियां ठीक कराने आए कई ग्राहकों से भी बातचीत की।सभी ने अंकुर मोटर्स की अच्छी सेवाओं की जमकर तारीफ़ की।
मेरा अनुरोध है कि यदि आप अंकुर मोटर्स के आसपास की लोकेशंस में रहते हैं या उधर से गुज़रते हैं तो आवश्यकता पड़ने पर अपनी कार की सर्विस/मरम्मत आदि के लिए इस वर्कशॉप की सेवाएं अवश्य लें।
सुनील सैनी से मैंने जब उनके काम के सिलसिले में बात की तो उन्होंने कहा कि वह कम मार्जिन पर पूरी ईमानदारी के साथ अपने सम्मानित ग्राहकों को बेहतर सेवा प्रदान करने के उद्देश्य के साथ ही काम को आगे बढ़ाने में विश्वास रखते हैं।
अपने धंधे में ईमानदारी और उसूलों को महत्व देने वाले सुनील के पास आज अपनी मेहनत के दम पर मकान,गाड़ी और ज़रूरत की लगभग सभी चीज़ें उपलब्ध हैं।इसके लिए वह बार-बार अपने माता-पिता और ईश्वर का धन्यवाद करते हैं।उनका बड़ा बेटा आज गोवा यूनिवर्सिटी से समुद्र विज्ञान में उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहा है और छोटा बेटा बी बी ए कर रहा है तथा कारोबार में उनका हाथ बंटाता है।मैं सुनील सैनी जी के घर-परिवार और कारोबार में उत्तरोत्तर प्रगति की कामना करता हूं।
 --- ओंकार सिंह विवेक 



Featured Post

साहित्यिक सरगर्मियां

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏 साहित्यिक कार्यक्रमों में जल्दी-जल्दी हिस्सेदारी करते रहने का एक फ़ायदा यह होता है कि कुछ नए सृजन का ज़ेहन बना रहता ह...