ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
चढ़ गया सबकी नज़र में,
बात है कुछ उस बशर में।
सच का हो कैसे गुज़ारा,
छल,कपट के इस नगर में।
पाँव के छाले न देखो ,
आप मंज़िल की डगर में।
हमसफ़र भी है ज़रुरी,
ज़िन्दगानी के सफ़र में।
रौशनी की कौन सुनता,
थे सभी तम के असर में।
है कहाँ कोई मुकम्मल,
कुछ कमी है हर बशर में।
---------ओंकार सिंह विवेक
चढ़ गया सबकी नज़र में,
बात है कुछ उस बशर में।
सच का हो कैसे गुज़ारा,
छल,कपट के इस नगर में।
पाँव के छाले न देखो ,
आप मंज़िल की डगर में।
हमसफ़र भी है ज़रुरी,
ज़िन्दगानी के सफ़र में।
रौशनी की कौन सुनता,
थे सभी तम के असर में।
है कहाँ कोई मुकम्मल,
कुछ कमी है हर बशर में।
---------ओंकार सिंह विवेक
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