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सत्ता के गलियारों में
ग़ज़ल----ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
रोज़ ख़बर छप जाया करती अपनी भी अख़बारों में,
पैठ बना लेते जो शासन- सत्ता के गलियारों में।
दख़्ल हुआ है नभ में जब से इस दुनिया के लोगों का,
इक बेचैनी सी रहती है सूरज - चाँद -सितारों में।
फुटपाथों पर चलने वालों का भी थोड़ा ध्यान रहे,
बेशक आप चलें सड़कों पर लंबी - लंबी कारों में।
क्या बतलाऊँ उसने भी रंज-ओ-ग़म के उपहार दिए,
गिनती करता रहता था जिसकी अपने ग़मख़्वारों में।
दर्द बयाँ करती है वो अब मज़लूमों-मज़दूरों का,
क़ैद नहीं है आज ग़ज़ल ऊँचे महलों-दरबारों में।
भोली जनता भूल गई,थे जितने शिकवे और गिले,
ऐसा उलझाया नेता ने लोकलुभावन नारों में।
----ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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