April 25, 2023

मियाँ ! शायरी ख़ुद असरदार होगी

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

 अस्वस्थ्य होने के कारण काफ़ी दिन से कोई पोस्ट साझा नहीं कर सका।आज एक पुरानी ग़ज़ल में कई संशोधन करके उसे नया रूप दिया है।आपकी प्रतिक्रिया हेतु यहां प्रस्तुत कर रहा हूं

ग़ज़ल--- ओंकार सिंह विवेक
©️
ज़रा  भी   अगर  फ़िक्र  में  धार  होगी,
मियाँ!शायरी   ख़ुद   असरदार   होगी।

सफ़र  का  सभी   लुत्फ़  जाता  रहेगा,
रह-ए-ज़िंदगी   ग़र   न   दुश्वार   होगी।

भले   ही   परेशान  हो  जाए  वो  कुछ,
मगर  हार  सच  को  न  स्वीकार होगी।
©️
मिलेंगे  नहीं   फ़स्ल  के   दाम  वाजिब,
किसानों पे  मौसम  की  भी मार होगी।

ख़ुशी से  भी है  रूबरू  होना  लाज़िम,
अगर  ज़िंदगी  ग़म  से  दो-चार  होगी।

जो   होगा   फ़रेबी, दग़ाबाज़   जितना,
सियासत में  उतनी  ही  जयकार होगी।

'विवेक' अपना ग़म ख़ुद उठाना पड़ेगा,
ये  दुनिया  न  हरगिज़  मददगार होगी।
            --  ©️ ओंकार सिंह विवेक 

April 20, 2023

साहित्यिक सरगर्मियां

दोस्तो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏


आज केवल कुछ साहित्यिक सरगर्मियां ही आपके साथ साझा करने का मन है





April 17, 2023

कई दिन बाद

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

रचनाकर्म में मैंने यह अनुभव किया है कि कभी-कभी शारदे की कृपा होती है तो अचानक ही बहुत सार्थक सृजन हो जाता है और कभी-कभी तमाम प्रयासों के बाद भी कई-कई दिन तक अच्छा सृजन नहीं हो पाता।साहित्यकार इन्हीं सब अनुभवों से गुज़रते हुए अपनी लेखनी को धार देने का प्रयत्न करता रहता है।कई साल पहले मुझसे एक ग़ज़ल हुई थी जिसके कई शेर मुझे भी बहुत पसंद हैं क्योंकि वे मेरे दिल के बहुत नज़दीक हैं।इस ग़ज़ल को मंचों और सोशल मीडिया तथा मेरे यूट्यूब चैनल पर साहित्य प्रेमियों ने बहुत पसंद किया।

उस ग़ज़ल को आपकी अदालत में प्रस्तुत कर रहा हूं। प्रतिक्रिया से अवश्य ही अवगत कराएं :
ग़ज़ल : ओंकार सिंह विवेक
 (सर्वाधिकार सुरक्षित) 
हँसते - हँसते   तय    रस्ते   पथरीले    करने   हैं,
 हमको    बाधाओं   के    तेवर    ढीले  करने  हैं।

 कैसे   कह  दूँ  बोझ   नहीं  अब  ज़िम्मेदारी  का,
 बेटी  के  भी  हाथ   अभी   तो   पीले   करने  हैं।

 ये   जो   बैठ  गए   हो  यादों   का  बक्सा  लेकर,
 क्या  फिर  तुमको  अपने   नैना   गीले  करने  हैं।
 
 फ़िक्र नहीं  है  आज  किसी  को  रूह सजाने की,
 सबको  एक  ही  धुन  है ,जिस्म सजीले करने हैं।

 होते   हैं  तो  हो  जाएँ   लोगों   के   दिल  घायल,
 उनको   तो   शब्दों   के   तीर   नुकीले  करने  हैं।
 
 तुम तो ख़ुद ही  मुँह  की  खाकर लौटे  हो हज़रत,
 कहते   थे   दुश्मन   के   तेवर   ढीले   करने   हैं।

जैसे  भी  संभव   हो  पाए , प्यार   की  धरती  से,
ध्वस्त  हमें  मिलकर   नफ़रत  के  टीले  करने  हैं।
           --- ओंकार सिंह विवेक 
               (सर्वाधिकार सुरक्षित)
      (एक साहित्यिक समारोह में सम्मान प्राप्त करते हुए)
                                  

April 12, 2023

जीत ही लेंगे बाज़ी वो हारी हुई

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

हाल ही में रामपुर (उत्तर प्रदेश) की साहित्यिक संस्था काव्यधारा की उत्तराखंड इकाई की अध्यक्ष आदरणीया गीता मिश्रा गीत जी के आमंत्रण पर हल्द्वानी जाना हुआ। गीत जी और उनकी टीम के कुशल संयोजन में बहुत भव्य कवि सम्मेलन और साहित्यकार सम्मान समारोह संपन्न हुआ।कार्यक्रम में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के काव्यकारों को सम्मानित किया गया तथा कवियों द्वारा समसामयिक विषयों को लेकर अपनी प्रभावशाली प्रस्तुतियां दी गईं।इस कार्यक्रम की एक विशेषता यह भी रही कि इसमें पड़ोसी मित्र देश नेपाल से आए दो कवियों हरीश जोशी जी और लक्ष्मी प्रसाद भट्ट जी ने भी काव्य पाठ किया।दोनों मेहमान कवियों को संस्था द्वारा सम्मानित भी किया गया।
                        (कार्यक्रम में मेरी प्रस्तुति)
इस कार्यक्रम पर विस्तार से मैं अगली पोस्ट में लिखूंगा।अभी इन मेहमान कवियों के बारे में कुछ बात करना चाहता हूं।नेपाली कवि मित्रों के व्यवहार में बहुत ही आत्मीयता थी। काफ़ी देर तक इन लोगों से हिंदी और नेपाली साहित्य को लेकर चर्चा हुई।मुझे यह कहने में ज़रा भी संकोच नहीं हो रहा है  कि उन लोगों का नेपाली भाषा में काव्य पाठ तो उच्च स्तरीय था ही वे लोग हिंदी भी हमसे कहीं अधिक अच्छी बोल रहे थे।

                   (काव्य पाठ करते हुए नेपाली कवि  )
दोनों नेपाली कवियों ने हिंदी और नेपाली दोनों ही भाषाओं में काव्य पाठ किया।नेपाली भाषा में किए गए काव्य पाठ का उन्होंने हिंदी अनुवाद भी प्रस्तुत किया।सभी उनकी प्रस्तुति और हिंदी के प्रति इतना अनुराग देखकर बहुत प्रसन्न हुए।उनमें से एक कवि मित्र ने बांसुरी बजाकर नेपाली भाषा के गीत की मधुर धुन भी प्रस्तुत की तथा बाद में उस गीत का सुमधुर पाठ भी किया।
मैंने अपने ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" की प्रतियां भी इन मेहमान साहित्यकारों को भेंट कीं।

इस साहित्यिक आयोजन वृतांत के साथ मेरी नई ग़ज़ल का भी आनंद लीजिए :
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
  दिनांक 12.04.2023
©️
सूचना  क्या  इलक्शन   की  जारी  हुई,
धुर  विरोधी  दलों   में   भी   यारी  हुई।

दीन-दुनिया से बिल्कुल ही अनजान थे,
घर  से  निकले तो कुछ जानकारी हुई।

आज  निर्धन  हुआ  और   निर्धन  यहाँ,
जेब   धनवान   की    और   भारी  हुई।
  
मुझ पे होगा भी  कैसे  बला  का  असर,
माँ   ने    मेरी   नज़र   है   उतारी   हुई।
©️
ये  अलग  बात,   गतिरोध   टूटा   नहीं,
बात    उनसे    निरंतर    हमारी     हुई।

रात की नींद और चैन दिन  का  छिना,
सर  पे  बनिए  की  इतनी  उधारी हुई।

हौसला  देखकर  लग  रहा  है 'विवेक',
जीत   ही   लेंगे  बाज़ी   वो  हारी  हुई।
©️ ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)





April 6, 2023

टूटा जब छप्पर होता है

प्रणाम मित्रो 🙏🙏

अचानक कोई वस्तु/घटना या चित्र मन को प्रभावित करता है तो कल्पना अनायास ही उड़ान भरने लगती है और कविता का जन्म हो जाता है।कुछ दिनों पहले नगर में एक झुग्गी बस्ती की तरफ़ से गुज़रना हुआ तो बड़ा मार्मिक दृश्य दिखाई दिया।किसी झुग्गी पर फटी हुई पन्नी पड़ी हुई थी,किसी पर टाट पड़ा हुआ था और किसी झुग्गी पर छत के नाम पर टूटा हुआ छप्पर पड़ा था।इन झुग्गियों में रहने वाले कैसे जीवन गुज़ारते होंगे यह समझते देर न लगी।टूटे छप्पर की छत ने जब मन को उद्वेलित किया तो एक शेर हो गया। काफ़ी दिन तक यह शेर तनहा ही रहा फिर धीरे-धीरे और कई विषयों पर शेर हुए और आख़िरकार ग़ज़ल मुकम्मल हुई जो आपकी प्रतिक्रिया हेतु प्रस्तुत है :

नई ग़ज़ल 
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हां,  जीवन   नश्वर   होता   है,
मौत का फिर भी डर होता है।

शेर   नहीं   होते   हफ़्तों  तक,
ऐसा   भी   अक्सर  होता  है।

बारिश  लगती   है  दुश्मन-सी,
टूटा   जब   छप्पर   होता   है।

उनका  लहजा  बस  यूँ  समझें,
जैसे   इक   नश्तर    होता   है।

जो   घर   के    आदाब  चलेंगे,
दफ़्तर   कोई    घर   होता   है।

'कोरोना'  के  डर  से  अब  तो,
घर   में   ही   दफ़्तर  होता  है।

देख लिया अब सबने,क्या-क्या-
संसद    के    अंदर    होता   है।
    --- ©️ओंकार सिंह विवेक

April 3, 2023

अखिल भारतीय काव्यधारा की मासिक काव्य गोष्ठी


काव्यधारा की मासिक काव्य गोष्ठी
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कविता जीवन से जुड़ी हुई चीज़ है।कविता और जीवन के अंतर्संबंध को इसी बात से समझा जा सकता है कि कविता में भी लय होती है और जीवन में भी।कविता युगों-युगों से समाज के यथार्थ का चित्रण करके उसे दिशा देने का काम करती आ रही है। हम सभी जानते हैं कि भारत को अंग्रेज़ों से आज़ाद कराने में भी कवियों और पत्रकारों के क्रांतिकारी विचारों का बहुत बड़ा योगदान रहा। क्रांतिकारी ख़बरों और कविताओं को पढ़कर लोगों के दिल में देशप्रेम का जो जज़्बा जगा उसने अंग्रेज़ों की सत्ता को उखाड़ फेंकने में अहम रोल अदा किया।आज भी क़लमकार कविता के माध्यम से अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार समाज को जागृत करने का काम निरंतर कर रहे है। अनवरत ऑनलाइन तथा ऑफलाइन  साहित्यिक आयोजन हो रहे हैं जो अच्छा संकेत है।
रामपुर (उत्तर प्रदेश) की साहित्यिक संस्था काव्यधारा एक ऐसी ही संस्था है जो निरंतर अपने साहित्यिक आयोजनों से साहित्य और समाज की सेवा द्वारा मातृभाषा हिंदी को समृद्ध करती आ रही है।
रविवार दिनांक २ अप्रैल,२०२३ को संस्था के अध्यक्ष जितेन्द्र कमल आनंद जी के आवास पर संस्था की मासिक काव्य गोष्ठी आयोजित की गई जिसमें कवियों ने समसामयिक विषयों पर अपनी मौलिक रचनाओं का पाठ करके श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।कार्यक्रम में कई नए रचनाकारों ने भी प्रस्तुति देकर अपने अंदर विद्यमान साहित्यिक क्षमताओं का परिचय दिया।
कवयित्री संध्या निगम "भूषण "के सौजन्य से आयोजित काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता संस्था के संस्थापक अध्यक्ष जितेंद्र कमल आनंद ने की। कार्यक्रम में ओंकार सिंह विवेक मुख्य अतिथि तथा रश्मि चौधरी विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे।संध्या निगम भूषण ने सरस्वती वंदना से गोष्ठी का शुभारंभ किया--
  लगा लो चरणों में ध्यान अपना, 
‌  वो‌ मात वीणा बजा रही है। 

ग़ज़लकार ओंकार सिंह विवेक ने कहा--
   मुस्काते हैं असली भाव छुपाकर चेहरे के,
   उन लोगों  का हँसना-मुस्काना बेमानी है।
   
   कवि राम किशोर वर्मा ने कहा--
यू- टयूब जब खोलिए, तब सुनियेगा‌ आप। 
किसने कैसा क्या लिखा, किसका कैसा भाव।।

‌शिव प्रकाश सक्सेना कड़क ने कहा--
  कैसी ऋतु आई है तात! 
  कभी जाड़ा तो कभी बरसात!! 

शायर अश्क रामपुरी ने अपने विचार कुछ यों अभिव्यक्त किए --
ख़लाओं में बिखरने लग गए हैं,
मेरे ग़म अब  सँवरने लग गए हैं।
  
 अध्यक्ष जितेंद्र कमल आनंद ने  गीतिका सुनाई--
  प्रभु की चाहत से यह चंदन जैसा मन हो जायेगा,
जितना चाहो उतना खर्चो, ऐसा धन हो जायेगा।
  इन रचनाकारों के अतिरिक्त कवयित्री रश्मि चौधरी व प्रियंका सक्सेना, राम प्रसाद आदि ने भी अपनी रचनाओं से श्रोताओं को आत्मविभोर किया। 
अंत में अध्यक्ष जितेंद्र कमल आनंद ने सभी का हार्दिक आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन कवि रामकिशोर वर्मा द्वारा किया गया।
इस कार्यक्रम की स्थानीय समाचार पत्रों द्वारा अच्छी कवरेज की गई।




अपनी ग़ज़ल के मतले के साथ इस ब्लॉग पोस्ट को समाप्त करता हूं :
  तीर  से  मतलब न  कुछ तलवार से,
  हमको मतलब है क़लम की धार से।
 --- ओंकार सिंह विवेक
ब्लॉग पर जाकर कमेंट्स के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएंगे तो हमें प्रसन्नता होगी 🌹🌹🙏🙏

ग़ज़ल कार/समीक्षक/कॉन्टेंट राइटर/ ब्लॉगर 

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