April 23, 2019

हमने भी मतदान किया

जिस तरह हर  देश में  शासन को चलाने की एक निर्धारित  व्यवस्था होती है उसी प्रकार शासकों के चुनाव की भी विश्व के अलग-अलग देशों में अलग-अलग प्रणालियाँ होती हैं |अधिकांश प्रजातांत्रिक देशों में जनता द्वारा सीधे वोटिंग के द्वारा शासकों और जन प्रतिनिधियों का चुनाव किया जाता है|

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और यहाँ जनता द्वारा सीधे वोटिंग के माध्यम से जन प्रतिनिधियों और शासकों का चुनाव किया जाता है।यह एक पारदर्शी चुनाव पद्धति है तथा इस प्रणाली से सांसदों/विधायकों के चुनाव में एक-एक वोट अथवा मत का बहुत महत्त्व होता है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अच्छी तरह सोच समझकर अपने वोट के संवैधानिक अधिकार का आवश्यक रूप से इस्तेमाल करना चाहिए।इस दौर में नैतिक मूल्यों में निरंतर गिरावट देखने को मिल रही है। लोग मूल्यों और सिद्धांतों को ताक पर रखकर छल,कपट और अवसरवादी राजनीति करने में लगे हुए हैं।राजनीति की यह दशा देखकर इस बार मन में यह विचार आया कि ऐसे स्वार्थी और अवसरवादी लोगों को वोट देने से तो अच्छा है कि वोट दिया ही न जाये।परन्तु अगले ही पल एक जागरूक नागरिक होने के नाते अपने दायित्व का एहसास भी हुआ और मन ने यह कहा कि ऐसा करके भी तू किसका भला करेगा। देश और समाज की चिंता करने वाले अन्य लोग भी यदि तेरी तरह ही सोचकर वोट करने नहीं निकलेंगे तो इससे कोई अच्छा सन्देश नहीं जायेगा और एक बड़ा वर्ग जो देश और समाज की बेहतरी चाहता है अच्छे लोगों को अपने वोट से चुनकर संसद में भेजने से स्वयं को वंचित कर लेगा जो किसी भी दशा में अच्छा नहीं है।जब हमारे देश में जन प्रतिनिधियों  को चुनने की एक मात्र यही प्रक्रिया है तो फिर और कोई विकल्प भी नहीं रह जाता है।अत: अपने मत/वोट का उपयोग न करना कोई बुद्धिमत्ता पूर्ण कार्य नहीं होगा।
आम तौर पर लोगों का यह मानना है कि अब ऐसे अच्छे लोग हैं ही नहीं जिन्हें चुनकर संसद में भेजा जाये।अगर इस बात को मान भी लिया जाये तो भी हमारा यह दायित्व बनता है कि हम बुरे या ख़राब लोगों में से ही कुछ ऐसे लोगों को चुनना तय करें जो उन बुरे लोगों में से कुछ कम बुरे हैं क्योंकि इसके अलावा कोई और  चारा भी तो नहीं है।इन्हीं सब तथ्यों को सोचकर अनेक अंतर्द्वंदों से दो-चार होता हुआ मन इस नतीजे पर पहुँचा कि मतदान करना चाहिए और यदि सभी उम्मीदवार बुरे हैं तो उनमे से सबसे कम बुरे लोगों को चुनने के लिए हर आदमी को वोट करना चाहिए।यही सोचकर मैंने अपनी धर्म पत्नी के साथ प्रात: 7.30 बजे ही पोलिंग बूथ पर पहुँच कर अपने मत/वोट का प्रयोग करके लोकतंत्र के इस महापर्व में अपनी हिस्सेदारी और ज़िम्मेदारी पूरी की।धर्म पत्नी भी वोट देकर बहुत ख़ुश नज़र आयीं | शायद उन्हें भी संविधान द्वारा दिए गए अपने वोट देने के अधिकार का प्रयोग करके गर्व महसूस हो रहा था।होता भी क्यों नहीं , आख़िर हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के एक ज़िम्मेदार नागरिक के तौर पर अपने मताधिकार का प्रयोग करके जो आ रहे थे।

पोलिंग बूथ से बाहर निकलकर घर आते हुए रास्ते में  कवि मन में कुछ दोहों का सृजन हुआ --  
               
               रखने को  निज देश के,लोकतंत्र  का  मान।
               जाकर पहले  बूथ पर, करना  है  मतदान।।

               रखने को  निज  देश के, लोकतंत्र का मान।
               छोड़-छाड़कर काम सब,करना है मतदान।।

               रखने को  निज देश  के,लोकतंत्र का  मान।
               आओ  प्यारे  साथियो,कर  आएँ  मतदान।।

               रखने को निज देश के, लोकतंत्र का मान।
                घर-घर जाकर बोल दें,करना है मतदान।।

                रखने को निज देश के, लोकतंत्र का मान।
                हर वोटर का लक्ष्य हो,करना  है मतदान।।
                             ---- ©️ ओंकार सिंह विवेक

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