July 26, 2019

अच्छे लगते हैं

ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710

हाथों  में   चाकू औ पत्थर  अच्छे   लगते   हैं,
कुछ   लोगों  को  ऐसे  मंज़र अच्छे लगते  हैं।

झूठ यहाँ  जब बोल रहा है सबके सर चढ़कर,
हमको   सच्चे  बोल  लबों पर अच्छे लगते  हैं।

यूँ  तो  हर  मीठे  का  ठहरा अपना एक मज़ा,
पर  सावन  में  फैनी , घेवर  अच्छे  लगते  हैं।

चाँद-सितारे   कौन यहाँ ला पाया  है नभ  से,
फिर  भी  उनके  वादे अक्सर अच्छे लगते  हैं।

देते हैं हर पल ही   सबको  सीख  उड़ानों की,
तब ही तो ये चिड़ियों के  पर अच्छे  लगते  हैं।

हर मुश्किल से आँख मिलाना,ग़म से लड़ जाना,
जिसमें   भी   हों   ऐसे  तेवर  अच्छे  लगते   हैं।
---ओंकार सिंह 'विवेक'(सर्वाधिकार सुरक्षित)

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