February 28, 2021

गूगल-ज्ञानी

ग़ज़ल---ओंकार सिंह विवेक

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कब  सुनते    हैं   कोई   कहानी   अपनी   दादी - नानी  से,
अब   तो  बस   चिपके  रहते   हैं  बच्चे   गूगल - ज्ञानी  से।
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आख़िर   कोई   बताए   मीठे  पानी  की   ये   सब   नदियाँ,
क्यों    मिलने   जाती   हैं   इक  सागर  के  खारे   पानी  से?
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उल्टे   और   लुभाता   है    उसको   बच्चों    का   भोलापन,
माँ   नाराज़    नहीं    होती    है   बच्चों   की    नादानी    से।
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ख़ुद ही सोचो कौन भला फिर मुश्किल को मुश्किल कहता,
जो   मुश्किल  हल  हो  जाया  करती   इतनी   आसानी  से।
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जो    ये   रहबर   सोचें    थोड़ा   देश - समाज    के  बारे  में,
 फ़ुर्सत  ही  कब    है  इनको  आपस  की   खींचातानी   से।
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 फिर   तुझको   आबाद   करेंगी   मीठी - मीठी  कुछ  यादें,
 इतना   भी    मायूस   न   हो  दिल  तू  वक़्ती   वीरानी  से।
🌹                                             ----ओंकार सिंह विवेक

February 27, 2021

"अभिनंदन ऋतुराज" - संगीत के बहाने

जीवन में संगीत के महत्व को लेकर अक्सर शोध होते रहे हैं।अनेक बार पुस्तकों और अखबारों में पढ़ा है कि सृजनात्मक संगीत को सुनकर  अमुक व्यक्ति का असाध्य रोग जाता रहा।लोग जब काम के बोझ से मानसिक थकावट महसूस करते हैं तो कुछ देर अपनी पसंद के गीत और संगीत को सुनकर फिर से तरोताज़ा महसूस करने लगते हैं। कहा जाता है कि सृष्टि और प्रकृति की हर चीज़ में एक लय विद्यमान है, जो हम सब महसूस भी करते हैं।हमारा हंसना-रोना या नदी और झरनों का बहना सभी में एक लय और रवानी मौजूद है। मनपसंद संगीत या गायन सुनकर मानव के जीवन में एक नई ऊर्जा और स्फूर्ति का संचार हो जाता है।

अभी हाल ही में मुझे आकाशवाणी रामपुर(उ0प्र0) की ओर से आयोजित  "अभिनंदन ऋतुराज वसंत" संगीत संध्या में आमन्त्रण पर जाने का अवसर मिला तो अनायास ही वहाँ संगीत का आनंद लेने के पश्चात व्यक्ति के जीवन में संगीत की महत्ता को लेकर कुछ  लिखने की सूझी सो इसी बहाने मैंने आप लोगों से बातचीत का अवसर  तलाश  लिया।उस बहुत ही सफल कार्यक्रम की कुछ यादें आप लोगों के साथ साझा कर रहा हूँ।
दिनाँक  25-02-21 को आकाशवाणी रामपुर द्वारा आयोजित संगीत संध्या 'अभिनंदन ऋतुराज' में एक श्रोता के रूप में उपस्थित होना मेरे लिए एक सुखद अनुभूति से कम नहीं रहा।
दीप प्रज्जवलन के पश्चात कार्यक्रम का शुभारंभ संगीत कलाकार रुचि शुक्ला की सरस्वती वंदना के साथ हुआ।तत्पश्चात सुविख्यात शास्त्रीय गायक श्री अवधेश गोस्वामी ने राग वसंत पर आधारित उप-शास्त्रीय गायन की प्रस्तुति दी।रामपुर-सहसवान घराने के सितारवादक जनाब मुज्तबा हुसैन ने सितार पर राग वसंत के तार छेड़े।नैना कपूर और साथियों ने रति और कामदेव की प्रणय गाथा को भाव नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया।आकाशवाणी और दूरदर्शन की प्रख्यात कलाकार श्रीमती शुभा चटर्जी के गीत और भजन की प्रस्तुति को सभी ने सराहा।संगीत संध्या में मोरिस मैसी ने तबले पर,जोगिंदर कुमार ने सिंथेसाइज़र पर और विनीता जोशी ने तानपूरे पर संगत की।कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण खटीमा से आये आदिवासी जनजाति थारू के लोक कलाकारों की प्रस्तुति रही।शिक्षा राणा और साथियों द्वारा आदिवासी संस्कृति की बहुत ही जीवंत झलक मंच पर प्रस्तुत की गई जिसको सभी ने बहुत  सराहा।
देर रात तक इस शानदार संगीत कार्यक्रम का रसिक श्रोताओं ने आनंद लिया।आकाशवाणी रामपुर को इस सुंदर और सफल कार्यक्रम के आयोजन पर हार्दिक बधाई!!!!
     ----ओंकार सिंह विवेक

February 23, 2021

मेल-मिलाप कराने का माहौल बनाते हैं


ग़ज़ल***ओंकार सिंह विवेक

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 मेल - मिलाप   कराने   का   माहौल   बनाते हैं,
 आओ चलकर  दोनों  पक्षों   को   समझाते  हैं।
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ज़ेहन  में  आने  लगती  हैं  फिर  से  वो  ही बातें,
कोशिश करके  अक्सर  जिनसे  ध्यान हटाते हैं।
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उन लोगों  के  दम  से   ही  जीवित  है  मानवता,
जो औरों  के  ग़म  को  अपना  ग़म  बतलाते हैं।
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मंदिर-सा  पावन   भी  कहते  हैं  वो  संसद  को,
और उसकी गरिमा  को  भी  हर  रोज़  घटाते हैं।
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यह   कैसी   तहज़ीब  हुई   है   दौरे   हाज़िर की,
माता  और  पिता  को   बच्चे   बोझ   बताते  हैं।
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फ़िक्र  नहीं  करते   कोई  जाइज़-नाजाइज़  की,
कुछ  व्यापारी  बस  मनमाना  लाभ  कमाते  हैं।
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                                -----ओंकार सिंह विवेक


      

February 22, 2021

अपनी हिंदी और ऋतुराज वसंत के बहाने

चौपाई छंद:वसंत ऋतु
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मुस्काई   फूलों   की     डाली।
झूमी   गेहूँ   की    हर  बाली।।
धरती  का  क्या  रूप सँवारा।
हे   वसंत ! आभार  तुम्हारा।। 
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सरसों  झूम- झूम  कर गाती।
खेतों  को  नव  राग सुनाती।।
भौंरे     फूलों    पर    मँडराते।
उनको  मादक  गान सुनाते।।
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मधुऋतु  हर्षित  होकर बोली।
आने   वाली   है  अब  होली।।
ढोल , मँजीरे  ,  झांझ  बजेंगे।
नाच-गान   के   सदन  सजेंगे।
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चिंतन     होता     रहे    घनेरा।
बढ़ता  रहे  ज्ञान   नित   मेरा।।
हंसवाहिनी    दया    दिखाओ।
आकर जिह्वा पर बस जाओ।।
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              --ओंकार सिंह विवेक        
  
चित्र:गूगल से साभार

गीत: अपनी हिंदी
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                   ---- ओंकार सिंह विवेक
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दुनिया में  भारत  के  गौरव,मान और सम्मान की,
आओ बात करें हम अपनी, हिंदी के यशगान की।
जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी------------2
🌷
राष्ट्र संघ  से  बड़े  मंच  पर,अपना सीना तानकर,
हिंदी  में भाषण  देना  है ,यह ही मन में ठानकर।
रक्षा  अटल बिहारी  जी  ने, की हिंदी के मान की
आओ बात करें---------------
जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी-----------2
🌷
परिचित  होने  को अलबेले, अनुपम हिंदुस्तान से,
आज  विदेशी  भी  हिंदी को,सीख रहे हैं शान से।
सचमुच है यह बात हमारे, लिए बड़े अभिमान की
आओ बात करें-----------------
जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी-----------2
🌷
आज  नहीं  हिंदी का उनको , मूलभूत भी ज्ञान है,
अँगरेज़ी की शिक्षा पर ही ,बस बच्चों का ध्यान है।
क्या यह बात नहीं है अपनी,भाषा के अपमान की
आओ बात करें-------------------
जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी------------2
🌷
अपने  ही  घर  में  हिंदी यों, कभी  नहीं  लाचार हो,
इसको अँगरेज़ी पर शासन, करने का अधिकार हो।
बच  पाएगी  तभी  विरासत, सूर  और रसखान की
आओ बात करें---------------------
जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी---- ------2
🌷
          ------ओंकार सिंह विवेक

      (चित्र गूूूगल से साभार)


February 20, 2021

दर्द का अहसास

मशहूर शायर डॉ0 कृष्णकुमार नाज़ द्वारा लिखी गई मेरे ग़ज़ल-संग्रह
"दर्द का अहसास" की भूमिका
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             दर्द का अहसास : संवेदनाओं का संकलन
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'औरतों से बातचीत'रही होगी कभी ग़ज़ल की परिभाषा।शायद उस वक़्त जब ग़ज़ल के पैरों में घुँघरू बँधे थे,जब उस पर ढोलक और मजीरों का क़ब्ज़ा था,जब ग़ज़ल नगरवधू की अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह कर रही थी,जब ग़ज़ल के ख़ूबसूरत जिस्म पर बादशाहों-नवाबों का क़ब्ज़ा था।लेकिन,आज स्थितियाँ बिल्कुल उलट गई हैं।आज की ग़ज़ल पहले वाली नगरवधू नहीं बल्कि कुलवधू है,जो साज-श्रृंगार भी करती है और अपने परिवार और समाज का ख़याल भी रखती है।आज की ग़ज़ल कहीं हाथों में खड़तालें लेकर मंदिरों में भजन -कीर्तन कर रही है तो कहीं झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का रूप धारणकर समाज के बदनीयत ठेकेदारों पर अपनी तलवार से प्रहार भी कर रही है।यानी समाज को रास्ता दिखाने वाली आज की ग़ज़ल 'अबला'नहीं'सबला'है और हर दृष्टि से सक्षम है।

प्रिय भाई ओंकार सिंह विवेक जी की पांडुलिपि मेरे सामने है और मैं उनके ख़ूबसूरत अशआर का आनंद ले रहा हूँ।विवेक जी ने जहाँ जदीदियत का दामन थाम रखा है वहीं उन्होंने रिवायत का भी साथ नहीं छोड़ा है।उनके अशआर में क़दम-क़दम पर जदीदियत की पहरेदारी मिल जाती है।यह आवश्यक भी है।आख़िर कब तक ग़ज़ल को निजता की भेंट चढ़ाते रहेंगे।समय बदलता है तो समस्याएँ बदलती हैं।नये-नये अवरोध व्यक्ति के सामने आकर खड़े जो जाते हैं।शायर की ज़िम्मेदारी है कि उन अवरोधों को रास्ते से हटाए और समाज को नये रास्ते और नयी दिशा दे।यह काम विवेक जी ने बड़ी ख़ूबी के साथ किया है।उनके यहाँ वैयक्तिकता भी है,देश भी है,समाज भी है और आम आदमी की उलझनें भी हैं।

वर्तमान में व्यक्ति जिस हवा में साँस ले रहा है उसमें प्राणदायिनी ऑक्सीज़न के साथ-साथ बड़ी मात्रा में कार्बनडाइऑक्साइड भी है जो उसे बार-बार यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि-
         सोचता हूँ अब हवा को क्या हुआ
         गुलसिताँ में ज़र्द हर पत्ता हुआ
         तंगहाली देखकर माँ-बाप की
         बेटी को यौवन लगा ढलता हुआ
ये शेर यूँ ही नहीं हो गए हैं।कवि की संवेदनशील दृष्टि ने बड़ी बारीकी के साथ हालात का परीक्षण किया है।मनुष्य यूँ तो एक सामाजिक प्राणी है इसलिए वह समाज से कभी विमुख नहीं हो सकता लेकिन कई बार ऐसी स्थितियाँ आ जाती हैं कि उसे 'अपनों जैसे दीखने वाले'लोगों पर भरोसा करना पड़ता है और आख़िरकार वह धोखा खा जाता है।विवेक जी ने इस बात को बड़ी बेबाकी के साथ इन शेरों में प्रस्तुत किया है-
                   भरोसा जिन पे करता जा रहा हूँ
                   मुसलसल उनसे धोखा खा रहा हूँ
                   उलझकर याद में माज़ी की हर पल
                   दुखी क्यों मन को करता जा रहा हूँ
मैं विवेक जी का क़ायल हूँ कि वह बहुत सोच-समझकर शेर कहते हैं।वह अपनी बात थोपते नहीं बल्कि सामने वाले को सोचने के लिए स्वतंत्र छोड़ देते हैं ।'दर्द का अहसास' के प्रकाशन के शुभ अवसर पर उन्हें बहुत-बहुत बधाइयाँ।माँ शारदे से कामना है कि वह इनकी ऊँचाइयों को और निरंतरता प्रदान करे।मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।

                            --डॉ0 कृष्णकुमार नाज़       (मुरादाबाद )                                    
विशेष: मैं डॉ0 कृष्णकुमार नाज़ साहब का ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ कि उन्होंने अपना क़ीमती वक़्त देकर पुस्तक की पांडुलिपि को पढ़कर इसका संपादन किया और सुंदर भूमिका लिखी।
    ----ओंकार सिंह विवेक
            रामपुर
डॉ0 कृष्णकुमार नाज़ साहब

ओंकार सिंह विवेक

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नमस्कार मित्रो 🌷🌷🙏🙏 हम जिस मिश्रित सोसाइटी में रहे हैं उसमें सांप्रदायिक सौहार्द और सद्भावना की बहुत ज़रूरत है। त्योहार वे चाहे किसी भी ...