August 29, 2021
August 23, 2021
सभी को हमसे दिक़्क़त हो गई है
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
©️
हमें सच से क्या रग़बत हो गई है,
सभी को हमसे दिक़्क़त हो गई है।
कभी होती थी जन सेवा का साधन ,
सियासत अब तिजारत हो गई है।
हमें लगता है कुछ लोगों की जैसे,
उसूलों से अदावत हो गई है।
©️
सहे हैं ज़ुल्म इतने आदमी के,
नदी की पीर पर्वत हो गई है।
निकाला करते हो बस नुक़्स सब में,
तुम्हारी कैसी आदत हो गई है।
हसद रखते हैं जो हमसे हमेशा,
हमें उनसे भी उल्फ़त हो गई है।
हुए क्या हम रिटायर नौकरी से,
मियाँ फ़ुरसत ही फ़ुरसत हो गई है।
--- ©️ओंकार सिंह विवेक
August 22, 2021
क्या बतलाएँ दिल को कैसा लगता है
August 1, 2021
हाँ, जीवन नश्वर होता है
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
©️
हाँ , जीवन नश्वर होता है,
मौत का फिर भी डर होता है।
शेर नहीं होते हफ़्तों तक,
ऐसा भी अक्सर होता है।
बारिश लगती है दुश्मन-सी ,
टूटा जब छप्पर होता है।
उनका लहजा ऐसा समझो ,
जैसे इक नश्तर होता है।
जो घर के आदाब चलेंगे,
दफ़्तर कोई घर होता है।
देख लियाअब हमने,क्या-क्या,
संसद के अंदर होता है।
-- ©️ ओंकार सिंह विवेक
Featured Post
साहित्यिक सरगर्मियां
प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏 साहित्यिक कार्यक्रमों में जल्दी-जल्दी हिस्सेदारी करते रहने का एक फ़ायदा यह होता है कि कुछ नए सृजन का ज़ेहन बना रहता ह...
-
बहुुुत कम लोग ऐसे होते हैैं जिनको अपनी रुचि के अनुुुसार जॉब मिलता है।अक्सर देेखने में आता है कि लोगो को अपनी रुचि से मेल न खाते...
-
शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏 संगठन में ही शक्ति निहित होती है यह बात हम बाल्यकाल से ही एक नीति कथा के माध्यम से जानते-पढ़ते और सीखते आ रहे हैं...
-
🌹🌼🍀🌲☘️🏵️🌴🥀🌿🌺🌳💐🌼🌹🍀🌲☘️🏵️🌴🥀🌿🌺🌳💐🌼🌹🍀🌲☘️🏵️🌴🥀🌿🌺🌳💐🌼🌹🍀 ३० अक्टूबर,२०२३ को रात लगभग आठ बजे भाई प्रदीप पचौरी जी का ...