ग़ज़ल- ओंकार सिंह विवेक
आप हर पल रौशनी के वार से ,
तीरगी करिये फ़ना संसार से ।
कितने ही राजा भिखारी हो गये,
कौन बच पाया समय की मार से।
टूटने दीजे न मन का हौसला,
हार हो जाती है मन की हार से।
अपना ही दुखड़ा सुनाने लग गये,
हाल कुछ पूछा नहीं बीमार से।
हो गये दिन जाने उनकी खैरियत
कोई तो आये ख़बर उस पार से।
हौसले से वे सभी तय हो गये,
रासते जो थे बड़े दुश्वार से।
-----------ओंकार सिंह विवेक
आप हर पल रौशनी के वार से ,
तीरगी करिये फ़ना संसार से ।
कितने ही राजा भिखारी हो गये,
कौन बच पाया समय की मार से।
टूटने दीजे न मन का हौसला,
हार हो जाती है मन की हार से।
अपना ही दुखड़ा सुनाने लग गये,
हाल कुछ पूछा नहीं बीमार से।
हो गये दिन जाने उनकी खैरियत
कोई तो आये ख़बर उस पार से।
हौसले से वे सभी तय हो गये,
रासते जो थे बड़े दुश्वार से।
-----------ओंकार सिंह विवेक
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