July 25, 2019

पुस्तक : स्पंदन (कृतिकार : अशोक विश्नोई -- समीक्षक : ओंकार सिंह विवेक)

पुस्तक समीक्षा

काव्य कृति: स्पंदन  (गद्य कविता-संग्रह )  
कृतिकार-अशोक विश्नोई
प्रकाशक - विश्व पुस्तक प्रकाशन, नई दिल्ली
प्रकाशन वर्ष -- 2018
पृष्ठ --       128   मूल्य रुo150/-
समीक्षक-ओंकार सिंह 'विवेक'

श्री अशोक विश्नोई जी से मैं एम आई टी , मुरादाबाद में आयोजित अखिल भारतीय साहित्य परिषद के एक कार्यक्रम में जनवरी,2019 में पहली बार रूबरू हुआ।उस समय विश्नोई जी कार्यक्रम के आयोजकों में से एक थे।उस कर्यक्रम में उनसे मिलकर मैं उनकी सह्रदयता,विनम्रता  और  मेज़बानी से  बहुत प्रभावित हुआ। यूँ तो इससे पूर्व से ही मैं श्री मनोज रस्तोगी द्वारा  संचालित  व्हाट्सएप्प  ग्रुप "साहित्यिक मुरादाबाद"  में विश्नोई  जी  की  रचनाओं  के  द्वारा  उनके विचारों से अवगत होता रहा हूँ परंतु पहली  बार  व्यक्तिगत  संपर्क उनसे उक्त कार्यक्रम में ही हुआ था। अवसर  मिला है तो यहाँ  विश्नोई जी की विनोदप्रियता का भी मैं उल्लेख करता चलूँ ।इसी वर्ष जून में मुझे एक फोन कॉल आई। दूसरी  और से बोल  रहे सज्जन का नम्बर मेरे फोन में सुरक्षित नहीं था । जब मैंने फोन उठाया तो उस तरफ से आवाज़ आई  कि कौन बोल रहा है।मैंने कहा कि आप कौन  साहब  बोल रहे हैं। उधर  से आवाज़ आई कि क्या आप ओंकार सिंह विवेक जी बोल रहे हैं।मैंने  कहा  जी हाँ बोल रहा हूँ पर आप कौन बोल रहे हैँ।इस पर उधर से आवाज़ आयी कि  मैं आपका छोटा भाई  अशोक विश्नोई  बोल रहा हूँ।यह सुनकर  मैं अपनी  हँसी न रोक  सका क्योंकि श्री अशोक विश्नोई  जी  लगभग  मेरे  पिताजी की आयु के ही होंगे।उनकी इस विनोदप्रियता ने मुझे अंदर तक गुदगुदा दिया । जीवन के चंद पलों को हल्का-फुल्का  बनाये  रखने  के  लिये  ऐसी विनोदप्रियता कितनी ज़रूरी है  यह  मैंने विश्नोई जी से सीखा।दरअस्ल  यह  वार्तालाप  तब हुआ जब उन्होंने मुझे मुरादाबाद के  युवा कवि श्री प्रवीण कुमार राही  की  प्रथम  काव्य  कृति "अंजुमन"के विमोचन के अवसर पर विशिष्ट अतिथि  के रूप में निमंत्रण हेतु फोन किया था।

आदरणीय विश्नोई जी के साथ अपने इन व्यक्तिगत  अनुभवों को  साझा  करने  के उपरांत मैं उनकी रचना धर्मिता की ओर आता हूँ। श्री अशोक  विश्नोई   जी   के  गद्य   कविता  संग्रह "स्पंदन"को पढ़ने का सौभाग्य  मुझे  प्राप्त  हुआ अतः उनकी रचनाओं का रसास्वादन करने के उपरांत  इस  कृति पर कुछ कहना तो बनता ही है।

"स्पंदन"में संकलित रचनाओं  में पारिवारिक,सामाजिक और राजनैतिक विसंगतियों  पर  व्यंग्य बाण चलाते  हुए जहाँ एक ओर विश्नोई जी ने  समाज  को आईना दिखाया है वहीं दूसरी ओर  जीवन  के हर क्षेत्र में दिखाई देने वाले विरोधाभासों पर आक्रोश व्यक्त करते हुए उचित मार्ग दिखाने की  भी कोशिश की है।एक सह्रदय कवि को सभ्यता और संस्कृति का निरन्तर पतन कितना कचोटता है,देखिये-
               क्या
              आप भी वही देख रहे हैं
               जो मैं देख रहा हूँ
 
सभ्यता असभ्यता में विलय होते हुए
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एक रचना में नेताओं के चरित्र के दोगलेपन को इशारों में रेखांकित किया है-
         शहर में दंगा हो गया
         लोग अपनी जान बचाने को
         इधर उधर भाग रहे थे
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        अफवाह है
       इस दंगे मे अमुक व्यक्ति का हाथ है
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      अगर ऐसा होता तो
      वह 'महिला कल्याण 'समिति
      के उदघाटन पर
      कबूतर नहीं उड़ा रहा होता-----
एक तरफ कवि जहाँ जीवन के हर क्षेत्र में  दिखाई दे रहे विरोधाभासों से  चिंतित  दिखाई देता है  वहीं दूसरी ओर
एक सकारात्मक और आशावादी दृष्टिकोण रखते हुए इस प्रकार भी अपने भाव व्यक्त करता है-

विश्वास जागता है
विचार पनपते हैं
क्षमता जागृत होती है
एक नया सपना-
जो छोड़ जाता है मीठी यादें
कुछ करने हेतु
फिर से-एक प्रयास------
 'स्पंदन' रूपी गुलदस्ते में सजी हर रचना के भावों से स्पष्ट है की कवि  समाज में मौजूद  विसंगतियों  से  विचलित है और नैतिकता तथा सद्चरित्रता का प्रबल पक्षधर है-
              सच्ची अनुभूति
              हाथों से
              किसी के बदन को
              स्पर्श करके नहीं
              किसी
              विवश लाचार की
              सेवा से होती है-------
 कवि  ने  अपनी  रचनाओं  में सामाजिक सरोकार, वर्तमान परिदृश्य  एवम  मानव जीवन के लगभग हर पहलू पर गहन दृष्टि डाली है।सभी रचनाएं भाव प्रधान हैं तथा इनकी  भाषा बहुत सहज एवम सरल है।रचनाओं में कई स्थानों पर मुहावरों का प्रयोग भी सुंदर बन पड़ा है।प्रयोग किये गये  कुछ  मुहावरे देखें--
 ज़ख़्मों पर नमक छिड़कना,चिकने घड़े,साहस बटोरना  तथा कंधे से कंधा मिलाकर चलना आदि।
स्वाभिमानी कवि ने अपनी ख़ास शैली में रचनाओं का  सृजन किया है जो हर ख़ासो-आम की समझ में  आने वाली है।  कुछ रचनाओं  में  'महाभारत'  के   प्रसंग   और   दृष्टांत  देकर  भी कुशलता से अपनी बात कही गयी है।

सार रूप में यह कहना  उचित  होगा कि इस संग्रह की प्रत्येक रचना कवि अशोक विश्नोई के गहन चिंतन और मनन का एक बड़ा सरमाया है।'स्पंदन' में अपने नाम के अनुरूप विचारों की हलचल  है, भावों  की  गहराई है तथा संवेदनाओं का ज्वार है।मुझे  आशा ही  नहीं वरन  पूर्ण विश्वास  है  की विश्नोई जी की यह काव्य कृति समाज को दिशा देने में कामयाब होगी।अंत में अपने दो दोहों के माध्यम से मैं कवि के प्रति आदर भाव प्रकट करते  हुए  उनके  शतायु  होने की कामना करता हूँ ताकि वह आगे  भी  इसी तरह  और अधिक श्रेष्ठ कृतियों का सृजन कर सकें-
रचनाओं में  हो रहे, मुखरित सच्चे बोल।
विश्नोई जी आपकी,पुस्तक है अनमोल।।

आशा के  अनुरूप ही, होगा  इसका मान।
दिलवाएगी आपको,यह पुस्तक पहचान।।

                                         --ओंकार सिंह विवेक
                                           कवि/स्वतंत्र लेखक,
                                         समीक्षक तथा ब्लॉगर
                                          सदस्य-एस.डब्ल्यू.ए.मुम्बई
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