July 31, 2022

मुंशी प्रेमचंद जी की स्मृतियों को नमन

हिंदी और उर्दू साहित्य जगत में मुंशी प्रेमचंद जी की शख़्सियत किसी परिचय की मोहताज नहीं है।अपनी कहानियों और उपन्यासों में तत्कालीन समाज को लेकर मुंशी जी ने जो किरदार गढ़े वे आज के समाज में भी हमारे आस पास ही दिखाई देते हैं।इससे मुंशी जी की गहरी अंतर्दृष्टि का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।ईदगाह, कफ़न और नमक का दारोग़ा जैसी कहानियाँ हों या फिर ग़बन या गोदान जैसे उपन्यास,सभी में समाज की दशा का यथार्थ चित्रण मौजूद है। आज महानगरों के वातानुकूलित कमरों में बैठकर लिखने वाले कभी भी सर्वहारा वर्ग की समस्याओं और जद्दोजहद का वह चित्रण नहीं कर सकते जो एक ऐसे साहित्यकार द्वारा किया है सकता है जो उन परिस्थितियों से स्वयं दो चार हुआ हो।यही कारण है कि आज आभिजात्य वर्ग के साहित्यकार के लेखन में बनावट सी महसूस होती है।लेखन वही होता है जिसमें पाठक की संवेदना को झकझोरने की शक्ति विद्यमान हो और हर आम और ख़ास व्यक्ति अपने को उससे सीधे जुड़ा हुआ महसूस करने लगे।मुंशी जी के सृजन की यही ख़ूबी उन्हें साहित्य जगत में एक आला मुक़ाम दिलाती है। मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती पर उनकी स्मृतियों को शत शत नमन!!!!!!!🙏🙏💐🌷

मुंशी प्रेमचंद जी की स्मृति में कुछ दोहे
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               -----ओंकार सिंह विवेक
🌷
  लिखकर सदा समाज का, सीधा-सच्चा हाल।
  मुंशी  जी  की  लेखनी , करती  रही कमाल।।
  🌷
  पढ़ते  हैं हम जब कभी , 'ग़बन' और 'गोदान'।
  आ   जाता   है  सामने ,  असली  हिंदुस्तान।।
  🌷
  हल्कू, बुधिया   से  सरल ,  होरी   से  लाचार।
  हैं समाज  में आज  भी, कितने ही  किरदार।।
  🌷
  कवि-लेखक-शायर सभी,लेकर प्रभु का नाम।
  मुंशी  जी  की याद को,शत शत करें प्रणाम।।
  🌷
                         ----ओंकार सिंह विवेक
 (सर्वाधिकार सुरक्षित)
    चित्र गूगल से साभार              
चित्र गूगल से साभार 

July 28, 2022

दिल तो दर्पण है टूट जाएगा !!!!!!


शुभ प्रभात मित्रो 🙏🙏

दिल के हवाले से बहुत कुछ कहा और सुना जाता है।दिल का संदर्भ लेकर भिन्न - भिन्न अर्थों में सैकड़ों मुहावरे और कहावतें गढ़ी गई हैं।दिल लगाना,दिल से लगाना,बड़े दिल वाला,दिल में उतरना आदि आदि। कवियों और शायरों ने भी दिल के हवाले से अपनी रचनाओं में बहुत सुंदर- सुंदर चित्र उकेरे हैं। हमारे शरीर में इस छोटे से अंग का बहुत महत्व है।यदि दिल ने धड़कना बंद किया तो आदमी का काम तमाम समझो। इसीलिए डॉक्टर और हकीम कहते हैं कि अपने दिल का खयाल रखिए। ग़रज़ यह कि यदि दिल नहीं तो कुछ भी नहीं।जीवन इसी से चलता है दिल्लगी, दिलवरी,दिल के ऊपर मुहावरे और कविताएं तभी तक अच्छी लगती हैं जब तक दिल की सेहत दुरुस्त हो।अत: बेहद ज़रूरी है कि हम अपने दिल/ह्रदय के स्वास्थ्य का खयाल रखें।
हाल ही में एक साहित्यिक ग्रुप में ग़ज़ल कहने के लिए एक तरही मिसरा दिया गया था जिस पर मैंने भी ग़ज़ल कही थी जिसे आपके रसास्वादन के लिए यहां प्रस्तुत कर रहा हूं।संयोग से दिल को लेकर ही इस ग़ज़ल का मतला हो गया है जिसकी भूमिका बांधने के लिए शरीर के इस महत्वपूर्ण अंग पर भी आपसे बात करने का अवसर मिल गया।

मिसरा -- ग़म ही आख़िर में काम आएगा

  2   1    2   2 1   2  1  2 2 2
                                 
काफ़िया -- आएगा,जाएगा --- आदि

ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक

संग  नफ़रत  के  सह  न पाएगा,
दिल  तो  दर्पण  है  टूट जाएगा।     

टूटकर  मिलना   आपका  हमसे,
वक़्त-ए-रुख़्सत बहुत  रुलाएगा।     

दिल को हर पल ये आस रहती है,  
एक   दिन   वो    ज़रूर  आएगा।   

जब  कदूरत  दिलों  पे  हो  हावी,       
कौन   किसको   गले   लगाएगा?

राह  भटका  हुआ हो जो ख़ुद ही,  
क्या     हमें    रास्ता    दिखाएगा?

खींच लेगी ख़ुशी तो हाथ इक दिन,
"ग़म ही आख़िर में  काम आएगा।"

होगा  हासिल   फ़क़त  उसे  मंसब,
उनकी  हाँ  में  जो   हाँ  मिलाएगा।

और  कब  तक  'विवेक'  यूँ   इंसाँ, 
ज़ुल्म    जंगल-नदी    पे    ढाएगा।
                   ओंकार सिंह विवेक 

   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

संग - पत्थर

वक़्त-ए-रुख़्सत - जुदाई के समय 

कदूरत - दुर्भावना 

मंसब - पद,ओहदा

(चित्र गूगल से साभार)

चित्र गूगल से साभार 


July 25, 2022

एक नशा ऐसा भी



         एक नशा ऐसा भी
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                 ---- ओंकार सिंह विवेक
यों तो नशा शब्द एक नकारात्मक भाव दर्शाता है।नशे का ज़िक्र आते ही मादक पदार्थों के सेवन आदि से संबंधित बातें सबके मस्तिष्क में आने लगती है और एक स्वत:स्फूर्त भाव या विचार मन में आता है कि हमें नशे से दूर रहना चाहिए। परंतु एक नशा ऐसा भी है जिसकी धुन/लत उस ख़ास नशे को करने वाले और समाज दोनों के लिए लाभकारी साबित होती है।जी हां, ठीक समझा आपने मैं साहित्य सृजन के नशे की बात कर रहा हूं।यदि साहित्य सृजन के साथ नशा शब्द को जोड़कर देखा जाए तो यहां इसका अर्थ होगा 'किसी चीज़ की ऐसी धुन/लत जो और सब कुछ भुला दे'। अत: हम यह कह सकते हैं कि साहित्य सृजन के नशे के संदर्भ में नशा शब्द एक सकारात्मक भाव प्रकट करता है।
अच्छे साहित्य-सृजन का नशा एक तरफ़ सृजनकार की मानसिक और बौद्धिक क्षमताओं को बढ़ाता है तो दूसरी तरफ़ समाज को भी सार्थक सन्देश के साथ राह दिखाने का कार्य करता है।
साहित्य सृजन का नशा रखने वाले कुछ साधकों का एक सफल आयोजन साहियिक संस्था अखिल भारतीय काव्य धारा रामपुर- उत्तर प्रदेश की उत्तराखंड इकाई के सौजन्य से रुद्रपुर उत्तराखंड में संपन्न हुआ जिसमें उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड के कई मूर्धन्य और उदीयमान काव्यकारों ने सहभागिता की।
कार्यक्रम के कुछ छाया चित्रों सहित चुनिंदा साहित्यकारों की रचनाओं की चंद पंक्तियां आपके रसास्वादन हेतु यहां प्रस्तुत कर रहा हूं : 
रामपुर से संस्था के संस्थापक श्री जितेन्द्र कमल आनंद जी ने सावन पर गीत प्रस्तुत करते हुए कहा --
घुमड़-घुमड़ घन छाये नभ के सावन में
सारंगों के नयन आज फिर भर आये ।

खटीमा-उत्तराखंड से कवि रतन यादव जी की सामाजिक समरसता का संदेश देती पंक्तियां :
देश अपना बहुत ही प्यारा है,
सारी दुनिया से भी तो न्यारा है।
सभी मिलजुल के साथ रहते यहांँ,
गंगा-जमुना की बहती धारा है ।।

रामपुर - उ०प्र० से ग़ज़लकार ओंकार सिंह 'विवक' ने कुछ यूं कहा ---

यक-ब-यक अपने लिए इतनी मुहब्बत देखकर,
लग रहा है डर हमें उनकी इनायत देखकर। 

एक दो की बात हो तो हम बताएं भी तुम्हें,
जाने कितनों के डिगे ईमान दौलत देखकर।


     बरेली - उत्तर परदेश के कवि डॉ० महेश मधुकर जी :
गांँव-नगर के द्वारे-द्वारे, सत की अलख जगाता चल ।
ढाई आखर की परिभाषा, जन-जन को बतलाता चल ।।
     लालकुआं - उत्तराखंड की  कवयित्री श्रीमती आशा शैली जी की अर्थदर्शी प्रस्तुति --
क्यों विधाता ने धरा पर,सृष्टि की रचना रची ।
क्यों रची फिर प्रीत, जिससे सृष्टि में हलचल मची ।।
     बरेली के वरिष्ठ कवि रणधीर प्रसाद गौड़ 'धीर' जी की सशक्त प्रस्तुति देखिए -
अध्यात्म एक आवश्यकता, अब अधिक जरूरी लगती है ।
अध्यात्म बिना इस भारत की, संस्कृति अधूरी लगती है ।।
 पंतनगर-उत्तराखंड के शायर के ० पी० सिंह 'विकल बहराईची' --
अश्क, तड़पन,बेवसी, तन्हाइयाँ
ज़िन्दगी इसके सिवा कुछ भी नहीं ।

रामपुर  की प्रतिभावान कवयित्री श्रीमती अनमोल रागिनी चुनमुन ने  सावन का स्वागत करते हुए कहा --
कंगन पायल गा रहे, कजरी गीत मल्हार ।
खुशियां लेकर आ गए, सावन के त्यौहार ।।
     
 रुद्रपुर -उ०खं० के वरिष्ठ शायर डॉ० उमाशंकर "साहिल कानपुरी" जी की यथार्थपूर्ण अभिव्यक्ति--
ज़ुदा न होगा कभी राम नाम साँसों से 
घुला है राम नाम हिन्द की फ़िज़ओं में ।
     रामपुर - उ०प्र० से वरिष्ठ साहित्यकार राम किशोर वर्मा जी ने देश के वर्तमान परिदृश्य पर कहा --
समय बहुत प्रतिकूल हुआ है, रास नहीं कुछ आ सकता ।
हवा हुई ज़हरीली अब तो, गीत नहीं मैं गा सकता ।।
  आगरा  - उ०प्र०) से वीर रस की कवयित्री श्रीमती अंशु छौंकर 'अवनि' ने कहा --
सोने की चिड़िया को षडयंत्रों से ना तोड़ देना 
एकजुट होकर इसे ऊँची सी उड़ान दो ।
 हल्द्वानी से उत्तराखंड इकाई रुद्रपुर की अध्यक्षा डॉ ० गीता मिश्रा 'गीत' जी ने सस्वर प्रस्तुति दी --
भैया! ॠतु सावन की आई
अम्बर पर बदली है छाई ।     
गदरपुर - उ०खं० के वरिष्ठ कवि श्री सुबोध कुमार शर्मा 'शेरकोटी' --
हुए जो देश के दुश्मन, उन्हें कैसे मिटाओगे ?
देशभक्ति तेरी कैसी, उन्हें कैसे बताओगे ?
 हल्द्वानी से समाज सेविका श्रीमती विद्या महतोलिया
 जी  --
ज़िन्दगी अब खूबसूरत लगने लगी है
क्योकि अब मेरी फितरत बदलने लगी है ।
  बरेली के गीतकार श्री उपमेन्द्र सक्सेना ने देशभक्तिपूर्ण प्रस्तुति दी--
आज़ादी की मर्यादा में, तन-मन खूब उछलता है ।
घर-घर फहरे आज तिरंगा, ऐसा भाव मचलता है ।।
 फिरोजाबाद - उ०प्र० के कवि डॉ ० संजीव सारस्वत 'तपन' जी  --
कल रात चढ़ते हुए एक पुल की सीढ़ियां ।
चिथड़ों में लिपटी देखीं आगे की पीढ़ियां ।।
कुछ इस तरह बिखरे थे इस देश के वारिस ।
पी करके फेंक दी हों किसी ने बीड़ियां ।।
 लालकुआं के कवि श्री सत्यपाल सिंह 'सजग' --
मेला मोकू भी घुमाय दे इस बार 
चलेंगे मोटरसाइकिल से ।
मेला घूम-घूम के सीखेंगे खेती की बातें
फसल चौगुनी होगी अच्छे होंगे दिन और रातें
खुशी से महकेगा घर-संसार ।
चलेंगे मोटरसाइकिल से ।   
हल्द्वानी से हश्रीमती बीना भट्ट बड़़शिलिया 'लक्ष्मी'  
सावन में प्रिय तुम! आ जाते इक बार ।
असीम प्रेम से भीगते, संग मेघ-मल्हार ।।
चपल होते आर्द्र नयन ये,
छंट जाता धुंध विषाद ।
 इनके अतिरिक्त सुश्री पुष्पा जोशी 'प्राकाम्य' ,शक्ति फार्म - उत्तराखंड, श्री चन्द्र भूषण तिवारी 'चन्द्र' ,प्रयागराज- उ०प्र० आदि ने भी अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं ।
     
कार्यक्रम मैं १५ कवि-कवयित्रियों को सम्मान पत्र, प्रतीक चिन्ह और शॉल ओढ़ाकर सम्मानित भी किया गया ।
कार्यक्रम का संचालन सुश्री पुष्पा जोशी 'प्राकाम्य' तथा आभार ज्ञापित  डॉ ० गीता मिश्रा' गीत' द्वारा किया गया ।
           प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक 

July 21, 2022

फ़ुरसत के पल

शुभ प्रभात मित्रो 🙏🙏🌹🌹

घर में लगभग एक माह से अधिक पुताई तथा मरम्मत आदि का कार्य चला जिस कारण अत्यधिक भागदौड़ और व्यस्तता रही।इस व्यस्तता के चलते मेरी साहित्यिक गतिविधियां और अन्य रुचि के कार्यों यथा कंटेंट राइटिंग और ब्लॉगिंग आदि  में स्वाभाविक रूप से थोड़ी शिथिलता रही।आज ही पुताई आदि का कार्य समाप्त होने पर चैन की साँस ली तो आपसे संवाद और अपनी एक उपलब्धि साझा करने का लोभ संवरण न कर सका।
मैं काफ़ी समय से भारत सरकार के नागरिक केंद्रित प्लेटफार्म MyGov पर सक्रिय हूं।उस पर पिछले कई वर्ष से सभी तरह के टास्क और डिस्कशंस में हिस्सेदारी करता आ रहा हूं।इस प्लेटफॉर्म पर विभिन्न कार्यक्रमों में सहभागिता करने पर सदस्यों को निर्धारित नियमों के अंतर्गत badge points भी प्रदान किए जाते हैं। प्रतियोगिता के अंतर्गत  Enthusiast level -1से लेकर Change Maker
 level - 5 तक badges प्रदान किए जाते हैं।Change Maker level - 5  एक टॉप लेवल बैज होता है।
विभिन्न badges का विवरण उक्त प्लेटफॉर्म से साभार लेकर यहां साझा कर रहा हूं।

आप सब की दुआओं के चलते सौभाग्य से मुझे इस प्लेटफॉर्म पर एक लाख से अधिक badge points score करने पर टॉप लेवल badge जिसका नाम Change Maker है प्राप्त हुआ है।

इसके साथ ही मेरी एक ग़ज़ल का भी आनंद लीजिए :

 ग़ज़ल---ओंकार सिंह विवेक
©️
सुख का है क्या साधन जो अब पास नहीं,
जीवन  में  फिर  भी  पहले-सा  हास नहीं।

मुजरिम  भी   जब   उसमें   जाकर  बैठेंगे,
क्या  संसद  का  होगा फिर उपहास नहीं?

कर   लेते   हैं   ख़ूब  यक़ीं  अफ़वाहों  पर,
लोगों  को  सच  पर  होता  विश्वास  नहीं।
©️
दरिया   को   जो   अपनी    ख़ुद्दारी  बेचे,
मेरे  होठों  पर  हरगिज़   वो   प्यास नहीं।

उठ ही आना था फिर उनकी महफ़िल से,
रंग  हमें  जब  उसका  आया  रास  नहीं।

कोई  बदलता   है  दिन  मे   दस पोशाकें,
पास किसी   के साबुत एक लिबास नहीं।

ध्यान-भजन-पूजा-अर्चन  हैं  व्यर्थ सभी,
मन में  जब  तक  सच्चाई  का वास नहीं।
         --- ©️ओंकार सिंह विवेक



July 17, 2022

सावन सूखा

मित्रो यथायोग्य अभिवादन🌹🌹🙏🙏
आधी जुलाई भी बीत गई पर अभी तक सावन के बादल जैसे हमारा मुंह ही चिड़ा रहे हैं। देश के कुछ हिस्सों में बाढ़ का कहर टूट रहा है परंतु इधर हमारे इलाक़े (रामपुर - उ ०प्र ०) में तो भयानक उमस और सूखे जैसे हालात बने हुए हैं। साधनसंपन्न किसान तो धान की रोपाई ट्यूबवेल आदि से कर चुके हैं परंतु साधारण किसान तो आज भी बारिश की बाट ही जोह रहा है।अभी एक दिन पहले ही अखबार में पढ़ रहा था कि अब तक जितनी बारिश होनी चाहिए थी उसका केवल तीस से चालीस प्रतिशत ही बारिश हुई है। वास्तव में यह स्थिति बहुत चिंताजनक और विचारणीय है।इसके पीछे पर्यावरण असंतुलन और प्रकृति के स्वरूप से अनावश्यक छेड़ छाड़ जैसे अनेक कारण हैं जिन पर गंभीरता से विचार करते हुए मानव को प्रकृति के साथ तदनुसार आचरण करना होगा तभी हमारा अस्तित्व सुरक्षित रह पाएगा।
ईश्वर से यही प्रार्थना है कि जल्द ही रिमझिम बारिश की फुहारें धरती और समस्त जड़ चेतन की प्यास बुझाएं।

इसी के साथ  पेश है मेरी एक ग़ज़ल आपकी प्रतिक्रिया की अपेक्षा के साथ 
ग़ज़ल
*****
 --ओंकार सिंह विवेक
  
कुछ   मीठा  कुछ  खारापन है,
क्या-क्या स्वाद लिए जीवन है।

कैसे   आँख   मिलाकर   बोले,
साफ़  नहीं जब उसका मन है।

शिकवे   भी   उनसे  ही   होंगे,
जिनसे   थोड़ा  अपनापन   है।

धन-ही-धन  है  इक तबक़े पर,
इक  तबक़ा   बेहद  निर्धन  है।

सूखा  है  तो  बाढ़  कहीं   पर,
बरसा  यह   कैसा  सावन  है?

कल  निश्चित  ही  काम  बनेंगे,
आज भले ही कुछ अड़चन है।

दिल  का है  वह साफ़,भले ही,
लहजे  में  कुछ  कड़वापन  है।
          ओंकार सिंह विवेक
         (सर्वाधिकार सुरक्षित)
चित्र गूगल से साभार 





July 14, 2022

श्रीलंका : वर्तमान परिदृश्य

मित्रो सादर प्रणाम/नमस्कार 🌹🌹🙏🙏

आज श्रीलंका जैसे सुंदर द्वीपीय देश के बिगड़े हुए हालात कुछ सोचने को विवश करते हैं। एशियाई देशों में अपनी आर्थिक सुदृढ़ता के लिए जाना जाने वाला देश आज भुखमरी के कगार पर पहुंच गया है ।मंहगाई की वहां कोई सीमा नहीं रह गई है। अंतरराष्ट्रीय ऋण चुकाने के लिए न तो विदेशी मुद्रा भंडार बचा है और न ही  कोई संसाधन।एक परिवार के शासन की गलत नीतियों के चलते देश में अफरातफरी का माहौल है।इन हालात में जब जनता के सब्र का बांध टूट चुका है तो स्थितियां कब सामान्य होंगी कुछ कहा नहीं जा सकता।आम जनता सड़कों पर है, शासक वर्ग सत्ता पर अपना नियंत्रण खो चुका है।देश में इस समय बहुत ही अनिश्चय और अस्थिरता का माहौल बना हुआ है।जनता द्वारा राष्ट्रपति भवन पर कब्ज़ा कर लिया गया है।कुछ शासक देश छोड़कर भाग गए हैं और कुछ भागने की फिराक में हैं। देश में इमरजेंसी लगा दी गई है।
यह स्थिति किसी भी देश के लिए बहुत ही घातक होती है।भारत सहित तमाम अन्य देशों को भी इससे सीख लेने की ज़रूरत है।सत्ता में बने रहने के लिए देश और जनता की चिंता छोड़कर मनमाने फैसले लेना ,किसी एक ही देश पर आवश्यकता से अधिक आश्रित हो जाना और राजनीति में परिवारवाद को बढ़ावा देना कितना घातक सिद्ध हो सकता है यह आज श्रीलंका में देखा जा सकता है। निज स्वार्थ के चलते जनता से लोकलुभावन वादे करना और उनमें मुफ़्तखोरी की आदत डालना ,बिना अर्थव्यवस्था के गणित को समझे तमाम तरह की रियायतों की घोषणा करते जाना ही अंत में श्रीलंका की तबाही का कारण बना।

हम यही कामना करते हैं कि अपने पर्यटन उद्योग के लिए जाना जाने वाला ऐतिहासिक महत्व का यह सुंदर देश शीघ्र ही इस विपत्ति से बाहर आए और फले फूले।अंतरराष्ट्रीय समुदाय उसे इस स्थिति से निकलने के लिए हर संभव मदद करे।वैसे भारत सहित तमाम देश श्रीलंका की वर्तमान चिंता में शामिल होने के लिए आगे आए हैं जो बहुत अच्छी बात है।

एक कवि होने के नाते श्रीलंका के वर्तमान परिदृश्य पर एक कुंडलिया छंद का सृजन हो गया जो आप सब के रसास्वादन के लिए यहां प्रस्तुत कर रहा हूं : 
कुंडलिया 
 ********
+++++++++++++++++++++++++++
लंका नगरी  का सखे, मत  पूछो तुम हाल,          
थी सोने  की जो  कभी,हुई आज  कंगाल।  

हुई   आज  कंगाल, त्रस्त  है  जनता  सारी,
ग़लत नीतियां नित्य,पड़ीं शासन की भारी।

फिर से जग में  काश, बजाए अपना डंका,
हो   जाए  खुशहाल, द्वीप  सुंदर  श्रीलंका।
+++++++++++++++++++++++++++
                 ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
कल रात गुरुपूर्णिमा पर चांद भी अपने पूरे शबाब पर था। ग़ज़ब की रौशनी थी आसमान में जिसका सबने भरपूर आनंद लिया।रात तो में चांद की वो खूबसूरती कैमरे में क़ैद न कर सका परंतु सुबह पांच बजे घर की छत से चंद्रमा का टाटा, बाय बाय करते हुए जाना भी बहुत आनंदित कर गया।मोबाइल में उस छवि को उतारा है तो सोचा कि आपके साथ भी साझा करूं: 
यदि ज़ूम करके देखेंगे तो यह सफेद बिंदु बहुत विस्तृत रूप में आपके मन को लुभाएगा।
फिलहाल इतना ही ------
ओंकार सिंह विवेक 

July 12, 2022

लो आई बरसात!!! लो आई बरसात!!!

शुभ प्रभात मित्रो 🙏🙏🌹🌹

आज की ब्लॉग पोस्ट लिखने बैठा तो मूड तो कोई और चीज़ साझा करने का था आप सब के साथ परंतु अचानक ही रिमझिम बूंदों की फुहार ने तन के साथ मन को भी भिगो दिया।फिर क्या था सुहाने मौसम के साथ बदले हुए मूड में वर्षा ऋतु पर कहे गए अपने कुछ दोहे आपके साथ साझा करने का निश्चय किया।वर्षा के साथ मन को आनंदित करने और किसी अलग ही दुनिया में ले जाने वाली क्या-क्या बातें जुड़ी हुई हैं आप भली भांति परिचित हैं।कजरी गायन, हरियाली तीज ,सावन के झूले ,घेवर और फैनी का स्वाद, गांव में चौपाल पर आल्हा गाते लोग,पानी में काग़ज़ की नाव तैराते हुए बच्चे ,खेतों में खिले चेहरों के साथ धान लगाते किसान --- तन और मन को प्रफुल्लित करने वाली और भी तमाम बातें इस हसीन मौसम से वाबस्ता हैं जिनका फिर कभी किसी पोस्ट में विस्तार से ज़िक्र करूंगा।फिलहाल आप आज के मौसम का आनंद लेते हुए इन दोहों पर अपनी प्रतिक्रिया देंगे तो मुझे बेहद खुशी होगी --- 

🌷दोहे--पावस ऋतु🌷
---©️ओंकार सिंह विवेक

🌷
जब  से  है  आकाश  में,घिरी  घटा  घनघोर।
निर्धन  देखे  एकटक , टूटी छत  की  ओर।।
🌷
पुरवाई   के  साथ  में ,  आई   जब  बरसात।
फसलें  मुस्कानें   लगीं , हँसे  पेड़  के  पात।।
🌷
मेंढक   टर- टर  बोलते , भरे   तलैया- कूप।
सबके मन को भा रहा,पावस का यह रूप।।
🌷
खेतों  में  जल  देखकर , छोटे-बड़े  किसान।
आपस  में  चर्चा करें   , चलो  लगाएँ  धान।।
🌷
क्यों फिर इतराएँ नहीं ,पोखर-नदिया-ताल।
सावन ने जब कर दिया,इनको माला-माल।।
🌷
अच्छे   लगते   हैं  तभी , गीत  और  संगीत।
जब सावन में साथ हों , अपने मन के मीत।।
🌷
कभी-कभी वर्षा धरे , रूप बहुत  विकराल।
कोप दिखाकर बाढ़ का ,जीना करे मुहाल।।
🌷
वर्षा-जल  का  संचयन,करें  सभी  भरपूर।
होगा इससे देश में, जल-संकट कुछ  दूर ।।
🌷
  ------- ---©️//ओंकार सिंह विवेक
                           रामपुर-उ0प्र0
(गूगल की पॉलिसी के तहत सर्वाधिकार सुरक्षित)


July 11, 2022

सुखनवरी

दोस्तो प्रणाम🙏🙏🌹🌹

अपनी तमाम पिछली ब्लॉग पोस्ट्स में मैं तरही ग़ज़ल/तरही नशिस्त/तरही मुशायरा आदि के बारे में विस्तार से चर्चा करता रहा हूं।इस पर अब और अधिक चर्चा न करते हुए आज सीधे-सीधे बिना किसी भूमिका के अपनी एक तरही ग़ज़ल आप सब के साथ साझा कर रहा हूं।आशा है आप प्रतिक्रियाओं से अवश्य ही अवगत कराएंगे ---

मिसरा-ए-तरह : वो चला तो गया याद आया बहुत
फ़ाइलुन   फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन

ग़ज़ल-- ©️ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
©️
फ़िक्र  के  पंछियों   को   उड़ाया  बहुत,
उसने  अपने सुख़न को सजाया बहुत।

हौसले   में   न   आई   ज़रा   भी  कमी,
मुश्किलों   ने   हमें   आज़माया   बहुत।

उसने रिश्तों का रक्खा नहीं कुछ भरम,
हमने अपनी  तरफ़  से  निभाया बहुत।
©️
लौ  दिये   ने  मुसलसल   सँभाले  रखी,
आँधियों   ने   अगरचे    डराया   बहुत।

हुस्न   कैसे   निखरता   नहीं   रात  का,
चाँद- तारों  ने  उसको  सजाया  बहुत।

मिट   गई   तीरगी   सारी  तनहाई   की,
उनकी  यादों से दिल जगमगाया बहुत।

शख़्सियत उसकी क्या हम बताएँ तुम्हें,
"वो चला  तो  गया  याद  आया  बहुत।"
               --- ©️ओंकार सिंह विवेक

फ़िक्र--चिंतन
सुख़न-- काव्य,कविता,शायरी
मुसलसल--निरंतर, लगातार
अगरचे--यद्यपि,हालाँकि
तीरगी-- अंधकार, अँधेरा

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मेरा सृजन










July 9, 2022

साहित्यिक मंच बज़्म ए अंदाज़ ए बयां का एक और शानदार आयोजन


दोस्तो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏
मैं ग़ज़ल संबंधी अपनी पिछली पोस्टों में भी ग़ज़ल कहने में तरही मिसरे के चलन और उसकी अहमियत के बारे में अक्सर लिखता रहा हूं।तरही मुशायरों के आयोजन में शायर विशेष की ग़ज़ल के किसी शेर का सानी मिसरा दे दिया जाता है और शायरों को उस पर ऊला मिसरा लगाकर गिरह का शेर मुकम्मल करना होता है तथा उसी बहर तथा रदीफ़, क़ाफियों में पूरी ग़ज़ल भी कहनी होती है।
प्रतिष्ठित साहित्यिक मंच बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयां द्वारा भी अपने पटल पर इसी प्रकार का एक आयोजन किया गया है जिसमें मेरी ग़ज़ल का एक मिसरा दिया गया है। मैं मंच के इस स्नेह के लिए हार्दिक आभार प्रकट करता हूं।
इस आयोजन की पूरी पोस्ट में हूबहू पटल से साभार लेकर यहां पोस्ट कर रहा हूं ताकि इस प्रकार के आयोजन और तरही मिसरे की रिवायत के बारे में विस्तार से जानकारी हो सके।
              ओंकार सिंह विवेक
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🌹बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयाँ 🌹
(अखिल भारतीय साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच)
के समस्त क़लमकारों को सादर प्रणाम,  आदाब,  सत श्रीअकाल
🍀🌹🍀🌹🍀🌹🍀 

    🌻🌻दि०:09/07/2022🌻🌻 

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बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयाँ में है अजब ही रौनक़,
ऐसी रौनक़ सरे-बाज़ार कहाँ मिलती है।।
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🌻🌻फ़िलबदीह  सं0-( 102 )🌻🌻 

👉दिनांक--  09- 07 - 2022 से दिनांक -- 10- 07 - 2022 तक
👉दिन-- शनिवार  व  रविवार    
           
           🌷बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयाँ  🌷

समूह स्वागत करता है आप सभी
मित्रों का ... 
स्वागतम् सुख़नवरो, स्वागतम् सुख़नवरो।
आइये   सुनाइये   शायरी   नयी-नयी॥ 

🌷 दोस्तो, आज आपके प्रिय "बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयाँ" की 102 वीं फ़िलबदीह है और इस मुबारक मौके पर हम आपके लिए लाए हैं एक बहुत ही ख़ूबसूरत दो दिवसीय कार्यक्रम जिसका नाम है -- 

        🌹फ़िलबदीह मुशायरा 🌹 

🌷  दोस्तो आज से शुरू होने वाले इस अज़ीमुशान दो दिवसीय ऑनलाइन तरही मुशायरे का ज़बरदस्त मिसर'अ रचा है हमारे देश के मशहूर व बेहतरीन शायर आ० ओंकार सिंह " विवेक " जी ने.... तो लीजिए दोस्तो हाज़िर है आज का लाजवाब मिसर'अ  👇👇 

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👇👇  इस फ़िलबदीह का ज़बरदस्त मिसर'अ है 

❤️❤️ कुछ आपसे भी घर को सँभाला नहीं गया ❤️❤️ 

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🌺 वज़्न : 221 - 2121 - 1221 - 212 

🌺 अरकान- म़फ़ऊलु फ़ाइलातु मुफ़ाईलु फ़ाइलुन  

🌺  बह्र का नाम :-़ बह्रे-मज़ारिअ  मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़ 

🌻🌻क़ाफ़िया : सँभाला ( आला  की बंदिश) 

🌻🌻रदीफ:- नहीं गया 

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क़वाफ़ी के उदाहरण-  
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पाला,टाला, निकाला, उजाला,काला,छाला,जाला,डाला, निवाला, ढाला, नाला (आर्तनाद), भाला, दुशाला, निराला , मसाला, रिसाला, दिवाला आदि
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नोट- आप सभी से गुज़ारिश है कि अलग-अलग शेर कहने के बाद कमेन्ट बाक्स में अपनी मुकम्मल ग़ज़ल अवश्य प्रेषित करें। 

👉 तीन बेहतरीन ग़ज़लों को ऑनलाइन सम्मान पत्र प्रदान किया जाएगा। 

👉 चयन में वहीं ग़ज़लें शामिल होंगी जिनमें तज़मीन (गिरह) के साथ कम से कम 7 शे'र अवश्य हों। 

👉 तज़मीन/गिरह केवल शेर में कहें, मतल'अ में नहीं कहना है। 

👉 चयन प्रक्रिया में अध्यक्ष,साहिब-ए-मिसर'अ तथा कार्यक्रम प्रभारी की ग़ज़ल शामिल नहीं की जाएगी। 

👉 बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयाँ कुटुम्ब एप पर भी उपलब्ध है।आप यहाँ के साथ वहाँ भी अपनी ग़ज़ल पोस्ट कर सकते हैं। सादर 

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👇👇इस बह्र पर गीत गुनगुनाने के लिए है 👇👇
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🌹🌹1.यूँ ज़िन्दगी की राह में मज़बूर हो गये 

🌹🌹2. मिलती है ज़िन्दगी में मुहब्बत कभी-कभी 

🌹🌹3. लग जा गले के फ़िर ये हसीं रात हो न हो 

🌹🌹4.मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया 

🌹🌹5. हम लाये हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के 

🌹🌹6. दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात-दिन
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🏵️🏵️  तो आइये दोस्तों हम सब अपनी अपनी बेहतरीन शायरी के माध्यम से चार चाँद लगाते हैं इस फ़िलबदीह के बज़्मे-मुशायरा में और एक दूसरे को पढ़कर हौसला अफ़ज़ाई भी करते रहें । 

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    यदि आप कोई सुझाव देना चाहते हैं तो चीफ़ एडमिन #अश्क_चिरैयाकोटी_जी चिरैयाकोटी के मैसेंजर पर प्रेषित कर सकते हैं।
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                    🌺धन्यवाद🌺
संस्थापक/राष्ट्रीय अध्यक्ष: आ० अश्क चिरैयाकोटी 

                              कार्यक्रम प्रभारी--
                          आ० प्रदीप राजपूत " माहिर " 

आयोजक- बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयाँ
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बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयां की वॉल से साभार
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प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक 

July 8, 2022

कहां मज़दूर अब तक घर गए हैं

साथियो नमस्कार🌹🌹🙏🙏

इधर कई दिनों से ब्लॉगिंग साइट पर आपसे संवाद नहीं हो पाया तो यों लगा जैसे दिनचर्या में कुछ न कुछ छूट रहा है। दरअस्ल इन दिनों घर में पुताई और मरम्मत कार्य के चलते सोशल मीडिया आदि पर सक्रियता थोड़ी कम ही रही।आज समय निकालकर आपसे मुखातिब हूं।
विचार तो मस्तिष्क में सतत् धमाचौकड़ी करते ही रहते हैं परंतु उन्हें कलात्मक काव्य रूप में अभिव्यक्त करने के लिए थोड़ा गंभीर होना पड़ता है।अच्छी कविता सृजन के लिए पर्याप्त समय चाहती है।यह ज़रूरी भी है क्योंकि कवि को यदि आम और ख़ास लोगों के दिलों पर राज करना है,लोगों के मुख से प्रशंसा या वाह वाह! सुननी है तो उसे कविता के रूप में कुछ अच्छा ही परोसना होगा।
मन में विभिन्न विषयों को लेकर जब विचार प्रबल हुए तो कविता/ग़ज़ल का प्रस्फुटन हुआ जो आपकी अदालत में हाज़िर है : 
ग़ज़ल-- ओंकार सिंह विवेक

ये  जो  शाखों  से  पत्ते  झर  गए  हैं,
ख़िज़ाँ  का ख़ैर  मक़दम  कर गए हैं।

कलेजा  मुँह को  आता है ये सुनकर,
वबा  से   लोग   इतने  मर   गए  हैं।

चमक आए न  फिर क्यों  ज़िंदगी में,
नए  जब   रंग  इसमें   भर   गए  हैं।

वो जब-जब आए हैं,लहजे से अपने-
चुभोकर   तंज़   के   नश्तर  गए  हैं।

डटे  हैं   भूखे-प्यासे  काम   पर  ही,
कहाँ  मज़दूर  अब  तक  घर गए हैं।

है इतना  दख्ल  नभ  में आदमी का,
उड़ानों   से    परिंदे    डर    गए  हैं।

अभी  कुछ  देर  पहले  ही तो हमसे,
अदू  के  हारकर   लश्कर   गए   हैं।
               ---ओंकार सिंह विवेक
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)



July 6, 2022

अनकहे शब्द


                  अनकहे शब्द
                  **********
                      ----ओंकार सिंह विवेक 
आजकल फेसबुक और व्हाट्सएप आदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर असंख्य साहित्यिक ग्रुप्स चल रहे हैं। यों तो ऐसी ऑनलाइन साहित्यिक गतिविधियां पहले से ही चली आ रही हैं परंतु कोरोना काल में ऑफलाइन कार्यक्रमों पर रोक लगने के बाद ऐसे पटलों/मंचों की संख्या तेज़ी से बढ़ी।इससे साहित्यकारों और समाज दोनों को फ़ायदा हुआ।जहाँ ऑनलाइन/सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से नए और पुराने साहित्यकारों को और अधिक एक्सपोज़र मिला वहीं समाज को भी सृजनात्मक साहित्य से रूबरू होने के अधिक अवसर प्राप्त हुए।

इस दौरान जो साहित्यिक मंच/पटल स्तरीय साहित्यिक सामग्री उपलब्ध कराने में असफल रहे वे सब जितनी तेज़ी से अस्तित्व में आए उतनी ही जल्दी बंद भी हो गए।कुछ साहित्यिक मंचों ने प्रारंभ से ही सृजन के कड़े मानकों और अनुशासन का पालन करते हुए साहित्यिक स्तर को बनाए रखा है।फेसबुक पर ऐसा ही एक अदबी ग्रुप है "अनकहे शब्द" जिसकी संस्थापक आदरणीया रेखा नायक रानो जी,प्रबंधक श्री मनोज बेताब जी और संरक्षक सीनियर उस्ताद शायर श्री मुख़्तार तिलहरी साहब हैं।ग्रुप के एडमिन/संचालन समूह में अन्य विद्वान और समर्पित साहित्यकारों के साथ बहुत ही मुख़लिस शायर श्री सईद अहमद तरब साहब भी हैं।

इस समूह से जुड़े हुए मुझे काफ़ी समय हो चुका है। इस मंच की नियमित रूप से आयोजित होने वाली ग़ज़ल प्रतियोगिता में अक्सर हिस्सेदारी करता रहता हूं।कई बार सम्मान पत्र भी प्राप्त हुए हैं जिसके लिए मैं मंच और ख़ास तौर पर विद्वान समीक्षक श्री मुख़्तार तिलहरी साहब का दिल की गहराइयों से शुक्रिया अदा करता हूं।
मुख़्तार तिलहरी साहब ने प्रतियोगिता में पुरस्कार हेतु ग़ज़लों के चयन के लिए जो उच्च मानक तय किए हैं वे नि:संदेह स्तरीय साहित्य सृजन की प्रेरणा देते हैं।अक्सर अपने वीडियोज़ के माध्यम से मुहतरम तिलहरी साहब ग़ज़ल के मीटर के साथ-साथ ऐब-ए- 
तनाफुर और तक़ाबुल-ए-रदीफ़ जैसे दोषों के प्रति बार-बार 
ग़ज़लकारों को आगाह करते हैं वह उनके स्तरीय साहित्य सृजन के प्रति अनुराग को दर्शाता है।आदरणीय मुख़्तार तिलहरी साहब जिस शिद्दत और जज़्बे से अपना अमूल्य समय इस काम के लिए निकालते हैं उसकी मिसाल मिलना नामुमकिन है। मैं उनकी 
सलाहियतों और अदबी जुनून को सलाम करता हूं।
मेरी दुआ है कि मुहतरम तिलहरी साहब दीर्घायु हों और यूं ही अदब की  ख़िदमत करते रहें।
"अनकहे शब्द" मंच की उत्तरोत्तर प्रगति की कामना के साथ पेश है मेरी वह ग़ज़ल जिसे मंच की ग़ज़ल प्रतियोगिता-93 में सम्मान हेतु चयनित किया गया था:

ग़ज़ल -----ओंकार सिंह विवेक 
🌹      
अगर  कुछ   सरगिरानी  दे  रही है,
ख़ुशी   भी  ज़िंदगानी  दे   रही  है।
🌹
चलो  मस्ती  करें , ख़ुशियाँ  मनाएँ,
सदा  ये   ऋतु   सुहानी  दे  रही है।
🌹
बुढ़ापे  की   है  दस्तक  होने वाली,
ख़बर  ढलती  जवानी  दे   रही  है।
🌹
गुज़र आराम  से  हो  पाये, इतना-
कहाँ  खेती-किसानी   दे   रही  है।
🌹
फलें-फूलें न क्यों नफ़रत की  बेलें,
सियासत  खाद-पानी   दे  रही है।
🌹
सदा  सच्चाई  के  रस्ते  पे  चलना,
सबक़ बच्चों  को  नानी  दे रही है।
🌹
तख़य्युल की है बस परवाज़ ये तो,
जो  ग़ज़लों  को  रवानी दे  रही है।  
 🌹   ---ओंकार सिंह विवेक
       (सर्वाधिकार सुरक्षित)
                





  


July 5, 2022

अखिल भारतीय काव्यधारा रामपुर -उ०प्र० का कवि सम्मेलन और साहित्यकार सम्मान समारोह

दिनाँक ३जून,२०२२ को अखिल भारतीय काव्यधारा साहित्यिक संस्था रामपुर उ ०प्र ०का एक और साहित्यिक अनुष्ठान संपन्न हुआ जिसमें मुझे भी सहभागिता का सुअवसर प्राप्त हुआ।
कार्यक्रम में अनेक वरिष्ठ और उदीयमान साहित्यकारों को सम्मानित करने के साथ ही भव्य कवि सम्मेलन का भी शानदार आयोजन किया गया।संस्था संस्थापक आदरणीय श्री जितेंद्र कमल आनंद जी के कुशल निर्देशन में संस्था यों ही अलख जगाती रहे।
उल्लेखनीय है कि यह साहित्यिक संस्था अपनी नि:स्वार्थ साहित्य सेवा के लिए अब राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुकी है। कोरोना काल में संस्था के ऑनलाइन कार्यक्रम निरंतर जारी रहे।अब स्थितियां सामान्य होने पर संस्था द्वारा ऑफलाइन कार्यक्रमों का सिलिसिला भी शुरू किया जा चुका है।संस्था के संस्थापक आदरणीय श्री जितेंद्र कमल आनंद जी अपनी संस्था के व्हाट्सएप और फेसबुक साहित्यिक मंचों पर उदीयमान साहित्यकारों को निरंतर साहित्य सृजन की बारीकियां सिखाने में व्यस्त रहते हैं।
मैं संस्था की उत्तरोत्तर प्रगति और श्री आनंद जी के दीर्घायु होने की कामना करता हूं।
पढ़िए कार्यक्रम में मेरे द्वारा प्रस्तुत की गई ग़ज़ल के कुछ 
अशआर : 
ग़ज़ल-- ओंकार सिंह विवेक
            
            अच्छे लोगों  में   जो  उठना-बैठना  हो  जाएगा,
            फिर  कुशादा  सोच  का भी दायरा  हो जाएगा।

            क्या पता था हिंदू-ओ-मुस्लिम की बढ़ती भीड़ में,
            एक   दिन   इंसान    ऐसे  लापता   हो   जाएगा।

           और बढ़ जाएगी फिर मंज़िल को पाने की ललक,
           जब कठिन  से  ये  कठिनतर  रास्ता  हो जाएगा।

            सुन रहे  हैं कब  से  उनको  बस  यही कहते हुए,
            मुफ़लिसी का मुल्क से अब ख़ातिमा हो जाएगा।

            कर  लिया करते  थे पहले शौक़िया  बस शायरी,
             क्या पता था इस क़दर इसका नशा हो जाएगा।
             
             आओ  सबका  दर्द  बाँटें,सबसे  रिश्ता जोड़ लें,
             इस तरह इंसानियत का हक़  अदा हो जाएगा।

             फिर ही जाएँगे यक़ीनन दश्त के भी दिन 'विवेक', 
             अब्र का  जिस रोज़ थोड़ा  दिल  बड़ा हो जाएगा।
                               --ओंकार सिंह विवेक
                                   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

July 3, 2022

पुस्तक : सत्य और मिथ्या की तुला में


                  पुस्तक समीक्षा
                  ************

कृति      : कविता संग्रह 'सत्य और मिथ्या की तुला में'
कृतिकार :  डॉ० शोभा स्वप्निल
समीक्षक : ओंकार सिंह विवेक

कविता की कोई निश्चित परिभाषा कर पाना बहुत कठिन कार्य है। बस इतना कहा जा सकता है कि आत्मा और मन की आवाज़ तथा संवेदनाओं का प्रस्फुटन ही कविता है।

कोरोना की भयानक त्रासदी के काल में कवयित्री डॉ० शोभा स्वप्निल जी ने जो देखा,भोगा और परखा,उसके उपरांत उनका जो मौलिक चिंतन प्रस्फुटित हुआ उसे उन्होंने अपनी अतुकांत कविताओं में ढालकर "सत्य और मिथ्या की तुला में" नामक कविता संग्रह में समाज के संमुख प्रस्तुत किया है।


श्रीमती शोभा स्वप्निल जी की साहित्यिक अभिरुचि को पल्लवित और पोषित करने में उनके पतिदेव श्री संतोष खंडेलवाल जी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। अत:यह पुस्तक शोभा जी ने खंडेलवाल जी को ही समर्पित की है। डाक्टर शोभा जी के ये भाव वंदनीय हैं।
यों तो इस काव्य संग्रह की अधिकांश कविताएं मैंने पूरी तन्मयता से पढ़ी हैं।समीक्षा में सबका उल्लेख करना तो संभव नहीं है परंतु कुछ कविताओं के चुनिंदा अंश मैं यहां अवश्य उद्धृत करना चाहूंगा :

"अंतर्यात्रा" शीर्षक से कही गई एक कविता की कुछ पंक्तियाँ देखिए :

   जी चाहता है/ दिन भर की उथल- पुथल/ प्रेम-नफ़रत-घृणा लोभ-लालच-लिप्सा के/ शोर से दूर भीतर झाँके/स्वयं को आँकें   और सुनें अंत: संगीत/जो कहता है शांति से जिएं/प्रेम कर प्रेम बांटें
इस अंतर्यात्रा कविता के अंत में प्रेम बांटें का जो भाव कवयित्री के मन में प्रस्फुटित होता है वही असली कविता है।
एक अन्य कविता "आशा का दीप" का एक अंश देखिए :

निराशा का घनघोर अंधेरा/ घेरे रहता है दिल को
फिर भी दूर बहुत/जलता है आशा का चिराग़

असफलता में सफलता तलाश लेना, निराशा में आशा का प्रकाश तलाश लेना ही कवि हृदय के सकारात्मक सोच को प्रकट करता है।ऐसा सर्जन ही समाज को दिशा देने में समर्थ हो सकता है। डॉक्टर शोभा स्वप्निल जी की एक कविता बहती हुई नदी से प्रेरणा लेकर सतत् कर्मरत रहने का संदेश देती है तो दूसरी कविता "किताब जीवन की" व्यक्ति के जीवन की जटिलता और उसके गतिमान रहने का जीवंत चित्रण प्रस्तुत करती है। अपनी एक कविता में स्वप्निल जी ने केदारनाथ त्रासदी पर बड़ी मार्मिक अभिव्यक्ति की है।इस कविता में मनुष्य को पर्यावरण से छेड़-छाड़ करने पर ऐसे ही परिणाम भुगतने की बार-बार चेतावनी दी गई है।कवयित्री ने 'खिड़की' और 'खो गई है मानवता' शीर्षकों की कविताओं में प्रतीकों के माध्यम से सुप्त मानवीय संवेदनाओं को जगाने का सफल प्रयास किया है।

कवयित्री ने 'जेब' शीर्षक की कविता में स्वार्थी रिश्तों की कैसे पोल खोल कर रख दी है,आप भी देखिए :

    जब जेब थी/तो सब क़रीब थे मेरे
    अब सिलाई उधड़ गई है/रिश्तों की
    संबंधों की भी/जबकि फटी तो केवल /जेब थी

पुस्तक की शीर्षक कविता "सत्य और मिथ्या की तुला पर" में संस्कृति और प्रकृति को माध्यम बनाकर कवयित्री ने मन के भावों का बहुत ही दार्शनिक विश्लेषण किया है।इस कविता में मन की ऊहापोह/ द्वन्द्व/दुविधा आदि का बड़ा सार्थक और जीवंत चित्रण देखने को मिलता है।इस कविता का कुछ अंश देखें : (दार्शनिक शैली के कारण यह कविता बार-बार पढ़ने का आग्रह करती हुई प्रतीत होती है)

  कई रातें बीतीं/कई दिन बीते/घंटे बीते
  घड़ियां और क्षण बीते/मेरा मन झूलता रहा
  सत्य और मिथ्या की तुला पर/पाप और पुण्य के प्रश्र पर
  ढूंढता हुआ/मूल्यांकन के स्रोत/संस्कृति को मानूं अथवा प्रकृति को

काव्य संकलन में कुल 65 कविताएं संकलित हैं। यों तो ये अतुकांत कविताएं हैं परंतु इनमें एक अल्हड़ नदी की तरह प्रवाह है जो एक कविता की पहली शर्त होती है।

डॉक्टर शोभा स्वप्निल जी की कविताओं को पढ़ने के बाद यह कहा जा सकता है कि उनकी हर कविता में एक सर्जक की दृष्टि विद्यमान है।कवयित्री में पूरी संवेदनशीलता के साथ अपने भावों को संप्रेषित करने की बेचैनी है।एक कवि का दायित्व होता है कि वह मुश्किल चीज़ों को भी सरल रूप में काव्यात्मक अभिव्यक्ति दे। स्वप्निल जी ऐसा करने में सफल रहीं हैं।उनकी सभी कविताएं अनुपम सौंदर्य बोध से सुवासित हैं। कविताओं की भाषा बहुत ही सरल और सहज है। संकलन की सभी कविताएं आप और हमसे संवाद करती हुई प्रतीत होती हैं।
पुस्तक की भूमिका के रूप में कवयित्री को डॉक्टर योगेंद्र नाथ शर्मा अरुण,सदस्य कार्यपरिषद महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा,गुजरात , प्रसिद्ध ग़ज़लकार श्री हस्तीमल हस्ती जी,मुंबई तथा प्रसिद्ध साहित्यकार आदरणीया नेहा वेद जी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है।पुस्तक के प्रकाशक न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन,इंद्रपुरी नई दिल्ली हैं।यह पुस्तक एमेजॉन तथा फिलिपकार्ट पर उपलब्ध है।सृजनात्मक साहित्य में रुचि रखने वाले सुधी पाठकों तथा साहित्यकारों से अनुरोध है कि इस पुस्तक को अवश्य ही मंगाकर पढ़ें।

दिनांक :02.07.2022          ओंकार सिंह विवेक
                           ग़ज़लकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/ब्लॉगर
                               रामपुर उ ०प्र ०
                                 oksrmp@gmail.com


    कृपया यह भी जानें

       

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