July 31, 2023

पल्लव काव्य मंच की काव्य गोष्ठी दिनांक 30 जुलाई,2023)

प्रतिष्ठित साहित्यिक ग्रुप "पल्लव काव्य मंच" द्वारा दिनांक ३०/०७/२०२३ रविवार को गणेश धर्मशाला रामपुर में एक शानदार काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।उल्लेखनीय है कि पल्लव काव्य मंच काव्य साहित्य के माध्यम से निरंतर समाज सेवा करता आ रहा है।व्हाट्सएप ग्रुप और फेसबुक के माध्यम से भी मंच की साहित्यिक गतिविधियां जारी रहती हैं।वर्ष भर गोष्ठियों के अतिरिक्त मंच द्वारा वर्ष में एक बार एक भव्य कवि सम्मेलन एवं साहित्यकार सम्मान समारोह का आयोजन किया जाता है जिसमें स्थानीय तथा बाहर से आए साहित्यकारों को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए सम्मानित भी किया जाता है।
कवि गोष्ठी का शुभारंभ मां शारदे को पुष्प अर्पित करके अनमोल रागिनी गर्ग चुनमुन की सरस्वती वंदना से हुआ।
कवि राजवीर सिंह राज़ ने काव्य पाठ करते हुए अपनी अभिव्यक्ति दी :

जो ये खुशियों के मौसम हैं हसीं दिलकश नज़ारे हैं,
है सच ये हम   ने आँखों में   समंदर भी   उतारे हैं।

कभी तो हम भी देखेंगे झलक झिलमिल सितारों की,
ये  माना आज  कल  तेरी   नज़र  में  चाँद - तारे हैं।

प्रदीप राजपूत माहिर ने कहा :

होने को अब है उनसे जो उलफ़त नयी-नयी
आने को मेरे दिल! है इक आफ़त नयी-नयी 

वो  जो  सियह-निगाह  ज़रा  मुस्कुरा  दिया
लिखने लगा  है दिल  ये  इबारत  नयी-नयी 

ओंकार सिंह विवेक ने अपनी अभिव्यक्ति कुछ यों दी :

ख़ुद  में  जब  विश्वास  ज़रा  पैदा हो जाता है,
पर्वत  जैसा  ग़म  भी  राई-सा  हो  जाता  है।

कम कैसे समझें  हम उसको  एक  फ़रिश्ते से,
मुश्किल में जो आकर साथ खड़ा हो जाता है।

वरिष्ठ कवि शिवकुमार चंदन :

कच्चे घर थे गाँव में ,ठंडी  पेड़ों  की  छाँव  ,
हरियाली चहुँओर थी , मन को  भाते गाँव ।
मन को  भाते  गाँव ,सभी  आनंद  मनाते ,
रामायण   संगीत ,  कीर्तन   मन  हरषाते  ।
भरा प्रेम सदभाव , मीत मन के थे  सच्चे  ,
खेत - बगीचा बाग , गाँव  में घर  थे कच्चे ।

सुरेंद्र अश्क रामपुरी ने कुछ यों अपनी बात कही :
वो जो अम्नो अमां की बात करें
चल उसी रहनुमां की बात करें
जाम लेकर सियासियों ने कहा
आओ अपनी दुकां की बात करें

उपरोक्त कवियों के अलावा डॉक्टर प्रीति अग्रवाल, महाराज किशोर सक्सैना,आशीष पांडे,जितेंद्र नंदा तथा रामसागर शर्मा आदि ने भी अपनी धारदार समसामयिक रचनाओं से अंत तक श्रोताओं को बांधे रखा। कार्यक्रम की अध्यक्षता मंच के अध्यक्ष शिवकुमार चंदन तथा संचालन महासचिव प्रदीप राजपूत माहिर द्वारा किया गया।

प्रस्तुति : ओंकार सिंह विवेक 


July 30, 2023

नई ग़ज़ल (ब्लॉग पर 500 वीं पोस्ट)

मित्रो प्रतिक्रिया हेतु एक और ग़ज़ल आपकी अदालत में हाज़िर है 
🌹🌹🙏🙏
नई ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक
©️
ख़ुद  में  जब  विश्वास  ज़रा  पैदा हो जाता है,
पर्वत  जैसा  ग़म  भी  राई-सा  हो  जाता  है।

कम कैसे समझें  हम उसको  एक  फ़रिश्ते से,
मुश्किल में जो आकर साथ खड़ा हो जाता है।

कहता है  काग़ज़   की कश्ती जल  में  तैराऊँ,
मन  मेरा  अक्सर  जैसे  बच्चा  हो  जाता  है।
©️
लोग भी कहते हैं और हमने भी महसूस किया,
चुप  रहने  पर  ग़ुस्सा  कुछ  ठंडा हो जाता है।

रहते हैं जब दूर नज़र से  कुछ दिन अपनों की,
ख़ूँ का  रिश्ता और अधिक  गहरा हो जाता है।

बात  नहीं  है  अपनेपन  की  कोई  पहले-सी,
अब तो बस रस्मन उनसे मिलना हो जाता है।

जब कोई अपना आ जाता है  ख़ैर-ख़बर लेने,
बोझ  ग़मों  का  सच मानो आधा हो जाता है।
       ----©️  ओंकार सिंह विवेक 


July 18, 2023

"कोई पत्थर नहीं हैं हम" : ग़ज़ल-संग्रह (ग़ज़लकार अशोक रावत)

नमस्कार दोस्तो 🌹🌹🙏🙏

आज हाज़िर है आगरा के वरिष्ठ ग़ज़लकार श्री अशोक रावत की के ग़ज़ल-संग्रह "कोई पत्थर नहीं हैं हम" की समीक्षा 

         पुस्तक : कोई पत्थर नहीं हैं हम (ग़ज़ल -संग्रह)  
     ग़ज़लकार : श्री अशोक रावत जी
       समीक्षक : ओंकार सिंह विवेक 
       प्रकाशक : किताबघर प्रकाशन,अंसारी रोड, दरियागंज
                    नई दिल्ली - 110002
प्रथम संस्करण : वर्ष 2018
               पृष्ठ : 118   मूल्य : रुo 180.00
आदरणीय अशोक रावत जी से मेरा परिचय 2015 में फेसबुक पर चल रहे उनके ग्रुप "ग़ज़लों की दुनिया" के माध्यम से हुआ। ग़ज़लों की दुनिया स्तरीय ग़ज़लों में रुचि रखने वाले ग़ज़लकारों तथा पाठकों का फेसबुक पर एक बड़ा प्लेटफॉर्म है।वर्तमान में इसकी सदस्य संख्या लगभग 58000 से अधिक है।इससे ही इस ग्रुप की लोकप्रियता का पता चलता है।श्री रावत जी व्यक्तिगत और साहित्यिक जीवन में अनुशासन को महत्व देने वाले व्यक्ति हैं।वह अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं करते।इसी सख़्त अनुशासन और सिद्धांतवादिता के साथ वह अपने इस ग्रुप को इतने समय से सफलता पूर्वक चला रहे हैं।मेरी ग़ज़लें भी अक्सर इस समूह में स्वीकृत होती रहती हैं।श्री रावत जी  ग़ज़ल के मानकों पर पूरी तरह खरी ग़ज़लों को ही ग्रुप में स्वीकृति प्रदान करते हैं इसलिए इस समूह का स्तर श्रेष्ठ बना हुआ है।
ग़ज़ल के क्षेत्र में अशोक रावत जी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं।अब तक उनके "थोड़ा सा ईमान","कोई पत्थर नहीं हैं हम", "मैं परिंदों की हिम्मत पे हैरान हूं","रौशनी के ठिकाने" और "क्या हुआ सवेरों को" आदि कई महत्वपूर्ण ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिन्हें प्रबुद्ध पाठकों और साहित्यकारों का भरपूर प्यार मिला है।
अशोक रावत जी की ग़ज़लों पर कोई समीक्षात्मक टिप्पणी करना सूरज को दिया दिखाने जैसा ही है।  ग़ज़ल में शिल्पगत सौंदर्य और कहन के साथ रावत जी कभी समझौता नहीं करते।यही कारण है कि रावत जी अपनी पुरानी ग़ज़लों में निरंतर संशोधन करते रहते हैं।इस बात में नए सीखने वालों के लिए एक बड़ा संदेश छुपा हुआ है।
संग्रह की पहली ग़ज़ल के दो अशआर ही रावत जी की शख्सियत का परिचय कराने के लिए काफ़ी है :

      अंधेरे तो हमें सच बात भी कहने नहीं देते,
      उजालों के तसव्वुर हैं कि चुप रहने नहीं देते।

        कोई पत्थर नहीं हैं हम कि रोना ही न आता हो,
       मगर हम आंसुओं को आंख से बहने नहीं देते।

पहले शेर में नकारात्मक प्रभाव के दबाव के बावजूद व्यक्ति की सकारात्मक ऊर्जा किस प्रकार ज़ोर भरती है इसकी जीवंत बानगी देखी जा सकती है।इसी प्रकार दूसरे शेर में संवेदनशीलता और संयम तथा सहनशीलता की पराकाष्ठा देखी जा सकती है। यही सृजनात्मक कविता/शायरी कही जाती है।
रावत जी के दिल को छू लेने वाले कुछ और शेर देखें :

      चुनौती दे रहे हैं आजकल लालच उसूलों को,
      हमारे हौसले पर बोझ ये भारी न हो जाए।

       किसी को मश्वरा क्या दूं कि ऐसे जी कि वैसे जी,
      मेरी ख़ुद की समझ में जब ये जीवन भर नहीं आया।

पहले शेर में वर्तमान परिदृश्य में अनैतिक आचरण और लालच की प्रवृत्तियां लोगों को कैसे अपने सिद्धांतों से समझौता करने को मजबूर कर रही हैं,आदमी की इस विवशता और आशंका को किस खूबसूरती से उकेरा गया है।
इसी प्रकार दूसरे शेर में उलझनों भरी ज़िन्दगी में कोई भी  निर्णय लेना कितना कठिन होता है इसकी अभिव्यक्ति देखी जा सकती है।
सरल भाषा र्में की गई शायरी या कविता वो ही अच्छी कही जाती है जो पाठक/श्रोता को आग या वाह करने के लिए मजबूर कर दे। रावत जी की सभी ग़ज़लें इसका बेजोड़ नमूना पेश करती हैं।
आज आपसी संबंधों में आई खटास को रावत जी के ये अशआर बख़ूबी समझाते हैं :
   बड़े भाई के घर से आ रहा हूं,
  गया ही क्यों मैं अब पछता रहा हूं।

कोई दुश्मन नहीं है भाई है वो,
मैं अपने आप को समझा रहा हूं।

अगर दुश्मन रहे होते तो यूं हैरत नहीं होती,
कभी सोचा नहीं था दोस्त भी पत्थर उठा लेंगे।

लुंजपुंज व्यवस्था के प्रति आक्रोश और नैतिक मूल्यों के क्षरण पर रावत जी की चिंता देखिए :
और था वो वक्त, लफ़्ज़ों के मआनी और थे,
आजकल क़ानून कुछ है, कायदा कुछ और है।

न जाने क्यों सियासत को अंधेरे रास आते हैं,
कोई भी फ़ैसला दिन के उजालों में नहीं होता।

    बरसते हैं  ज़ुबां से फूल दिल में ख़ार होते हैं,
    भले इंसान के भी अब कई किरदार होते हैं।

संकल्प और इरादों की मज़बूती की वकालत करते इस शेर की गहराई को आसानी से समझा जा सकता है :

      अगर संकल्प मन में हो तो जंगल क्या है दलदल क्या,
       बिना संकल्प के कोई नया रस्ता नहीं बनता।

रावत जी की ग़ज़लों का स्तर बताता है कि उन्होंने कहन और शिल्प पर कितनी मेहनत की है।हिंदी में  ग़ज़ल कहते समय एक बात जो मैंने रावत जी मे अन्य हिंदी ग़ज़लकारों से अलग महसूस की वो ये कि उन्होंने कहीं भी इज़ाफ़ी शब्दों का प्रयोग नहीं किया है। रावत जी हिंदी की मानक वर्तनी और इसके स्वरूप को लेकर कहीं भी हल्के नहीं पड़े हैं।
यदि मैं ये कहूं की स्वर्गीय दुष्यंत की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए रावत जी ग़ज़ल को जी रहे हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। रावत जी की ग़ज़लों में यों तो कहीं-कहीं रिवायती रंग भी है परंतु उनकी अधिकांश ग़ज़लें जदीदियत का ही आईनादार हैं। जदीदियत का कोई रंग ऐसा नहीं है जो रावत जी की ग़ज़लों में दिखाई न देता हो। रावत जी सामाजिक विसंगतियों/विद्रूपताओं और विरोधाभासों पर अपनी 
ग़ज़लों में केवल तंज़ ही नहीं करते हैं अपितु समस्याओं के समाधान भी प्रस्तुत करते हैं जो सच्ची और अच्छी कविता/शायरी की पहचान है।
मैं आदरणीय अशोक रावत जी के उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु होने की कामना करता हूं ताकि भविष्य में उनकी और भी अच्छी कृतियां हमें देखने मिलें।
  ----- ओंकार सिंह विवेक
                ग़ज़लकार 


         




July 17, 2023

रामपुर रज़ा लाइब्रेरी एवं म्यूज़ियम

मित्रो प्रणाम🌹🌹🙏🙏

आइए आज जानते हैं रामपुर(उत्तर प्रदेश) की विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक रज़ा लाइब्रेरी के बारे में।

रामपुर रज़ा लाइब्रेरी की स्थापना वर्ष 1774  ईसवी में रामपुर के पहले नवाब  फ़ैज़ुल्लाह  ख़ां द्वारा की गई थी।हाल ही में सरकार द्वारा लाइब्रेरी में उपलब्ध दुर्लभ कलाकृतियों और पेंटिंग्स आदि को देखते हुए इसका नाम बदलकर रामपुर रज़ा लाइब्रेरी एवं म्यूज़ियम कर दिया गया है

नवाबी दौर में लाइब्रेरी रियासत के अधीन ही रही।अधिकांश नवाब किताबों ,शायरी और पेंटिंग्स आदि में रुचि लेने वाले रहे जिसकी छाप आप लाइब्रेरी का भ्रमण करते समय महसूस कर सकते हैं। आज़ादी के बाद रज़ा लाइब्रेरी का नियंत्रण केंद्र सरकार के हाथ में आ गया।आजकल पुस्तकालय का संचालन भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय करता है।लाइब्रेरी नवाबों द्वारा शहर के बीच में बनवाए गए विशाल दुर्ग की भव्य इमारत में स्थित है।दुर्ग में प्रवेश करते ही हामिद मंज़िल में लाइब्रेरी की भव्य इमारत को देखकर आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे।

सरकार द्वारा लाइब्रेरी के कुशल प्रबंधन हेतु 12 सदस्यीय लाइब्रेरी बोर्ड का गठन किया गया है।उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बोर्ड के अध्यक्ष होते हैं।वर्तमान में प्रदेश की राज्यपाल आदरणीया आनंदी बेन पटेल जी लाइब्रेरी बोर्ड की अध्यक्ष हैं।पुस्तकालय के रखरखाव,संरक्षण-संवर्धन और विकास को लेकर समय-समय पर लाइब्रेरी बोर्ड की बैठकें आयोजित की जाती हैं।

पुस्तकालय में लगभग 60000 किताबें तथा 17000 दुर्लभ पांडुलिपियां हैं जो एक रिकॉर्ड है।लाइब्रेरी में किताबी  ख़ज़ाने के अलावा लगभग 5000 बहुमूल्य पेंटिंग्स भी हैं।लाइब्रेरी में बादशाह अकबर की पर्सनल अलबम भी देखी जा सकती है।लाइब्रेरी हॉल के म्यूज़ियम के फ़ानूसों में लगे हुए बल्ब नवाबी दौर के हैं जो अभी तक भी फ्यूज़ नहीं हुए हैं।लाइब्रेरी में साधारण और वी आई पी भ्रमणकारियों के अतिरिक्त देश और विदेश से वर्ष भर शोधार्थियों का आना-जाना लगा रहता है।
इस लाइब्रेरी में अन्य दुर्लभ पुस्तकों और पेंटिंग्स के अतिरिक्त दो ख़ास चीज़ें भ्रमणकारियोंं के आकर्षण का केंद्र रहती हैं।पहली चीज़ हज़रत अली के हाथ से हिरण की खाल पर लिखा हुआ चौदह सौ साल पुराना क़ुरआन तथा दूसरी चीज़ सुमेर चंद जैन साहब के हाथ से सोने के पानी से फ़ारसी में लिखी हुई लगभग तीन सौ साल पुरानी रामायण की प्रति।

साहित्यिक गतिविधियों को जीवंत रखने के लिए लाइब्रेरी द्वारा कभी - कभी कवि सम्मेलनों और मुशायरों आदि का भी आयोजन कराया जाता है। मुझे इस बात पर गर्व महसूस होता है कि मैं भी कई बार लाइब्रेरी द्वारा आयोजित कराए गए राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों/मुशायरों में सहभागिता कर चुका हूं।भारतीय भाषाओं तथा सभ्यता और संस्कृति को लेकर व्याख्यानों का आयोजन भी यहां अक्सर होता रहता है।यहां मुग़ल बादशाह जहाँगीर की बेगम नूरजहां की शिकार के बाद बंदूक़ की नाल साफ़ करते हुए पेंटिंग भी है।
किताबों और दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण और सुरक्षा को लेकर लाइब्रेरी की प्रयोगशाला में निरंतर काम चलता रहता है। पुस्तकालय में विदेशी शोधार्थियों को आकर्षित करने के लिए अरबी और फ़ारसी साहित्य की दुर्लभतम किताबें मौजूद हैं।
लाइब्रेरी में दरबार हॉल और दस बड़े कक्ष हैं।राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी रामपुर आए थे ।उन्हें क़िले के गेस्ट हाउस में ठहराया गया था।लाइब्रेरी में गांधी जी से जुड़ी अनेक किताबें और फ़ोटो हैं।
अक्टूबर,2023 में इस लाइब्रेरी की स्थापना के 250 साल पूरे होने जा रहे हैं।इस अवसर को देखते हुए यहां वर्ष भर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।

(सभी चित्र गूगल से साभार)
प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/ब्लॉगर


July 10, 2023

हाला प्याला मधुशाला : एक पठनीय पुस्तक






शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏

आज जानिए रामपुर के वरिष्ठ साहित्यकार श्री जितेंद्र कमल आनंद जी की हाल ही में लोकार्पित हुई कृति "मधुशाला हाला प्याला" के बारे में।

                  शुभकामना संदेश
                    ************

रामपुर के वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय श्री जितेंद्र कमल आनंद जी की कृति 'मधुशाला हाला प्याला' की पांडुलिपि मेरे हाथ में है।
इस काव्य कृति में हिंदी के ताटक, शोकहर आदि कई छंदों में लिखी गई अध्यात्म,दर्शन और भक्ति से ओतप्रोत सभी रचनाएँ ह्रदय को छूती हैं।
श्री आनंद जी काव्य सर्जना में छंदबद्ध रचनाओं के प्रबल पक्षधर हैं।उनकी  पूर्व प्रकाशित काव्य कृतियां 'जय बाला जी', 
'हनुमत उपासना' तथा 'राजयोग महागीता (पदम पुनीता)' आदि भी मैंने पढ़ी हैं और उन पर चिंतन-मनन भी किया है।आनंद जी के रचनाकर्म में अध्यात्म,धर्म,भक्ति और दार्शनिक चिंतन का जो रंग देखने को मिलता है वह उन्हें अन्य काव्यकारों से अलग एक विशिष्ट श्रेणी में लाकर खड़ा करता है।

चूंकि गुरु ही शिष्य को ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग दिखाता है अत: श्री आनंद जी ने 'मधुशाला हाला प्याला' का शुभारंभ भी 
'गुरुप्रणाम' से ही किया है:
      अखंड मंडल में जो व्याप्त हैं साकार हुए,
      प्रेम की जो मूर्ति हैं दिव्य जिनके नाम हैं।
      अज्ञान के तिमिरांध में हैं ज्ञान की श्लाका-से,
      दिव्य नेत्र के प्रदाता छवि के जो धाम हैं।
      सद विप्ररूपदाता ब्रह्म के समान हैं जो,
      पालक विष्णु समान शिव से निष्काम हैं।
      सच्चिदानंद स्वरुप उन पदम-चरणों में,
      ऐसे मेरे अपने सद्गुरु को प्रणाम है।
सदगुरु से कमल जी र्का आशय साधारण शिक्षा देने वाले गुरु से नहीं है।श्री आनंद जी के सद्गुरु वह हैं जो गुरु-शिष्य परंपरा के अनुसार बनाए गए शिष्य के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं जिससे उसे आत्म-ज्ञान के द्वारा ईश्वर की प्राप्ति होती है।
कवि ने मधुशाला, हाला और प्याला प्रतीकों के माध्यम से अपनी 
छंदबद्ध रचनाओं द्वारा अध्यात्म,धर्म,श्रद्धा और भक्ति का जो अनुपम संदेश दिया है वह ह्रदय में उतरता चला जाता है।आनंद जी गुरुवर द्वारा प्रदान की गई ज्ञान रूपी हाला के महत्व को रेखांकित करते हुए कहते हैं :

         ज्ञान-क्षुधा लगने पर पी लें,
         गुरुवर ने जो दी हाला।
         क्षुधा मिटेगी उसको पीकर,
         मंत्रों की जप ले माला।
         आत्म-तत्व को स्वीकार भी,
         तुमको करना ही होगा।
         श्रेष्ठ मनुजता जागृत होगी,
         पीकर यह मधुमय प्याला।
रचनाकर द्वारा सृजित उपर्युक्त पंक्तियों से पता चलता है कि 
आत्म-ज्ञान द्वारा स्वयं के कल्याण के लिए सद्गुरु की शरण में जाना कितना आवश्यक है।जब व्यक्ति को आत्म-ज्ञान प्राप्त हो जाता है तो वह भले-बुरे, हार-जीत के विचार से बहुत ऊपर उठ जाता है।यही 
स्वकल्याण  के लिए आदर्श स्थिति होती है।

भक्ति-सुधा से भरा प्याला व्यक्ति को पीने कैसे मिल सकता है यह समझने के लिए रचनाकर की इन पंक्तियों में छुपे मर्म तक पहुँचिए:

           कैसे प्रभु को पास बुलाऊँ,
           लोग सोचते रह जाते।
           कैसे रूठे ब्रह्म मनाऊँ,
           प्रभुवर के वे गुण गाते।
           करुणाकर कृपालु जब होते,
           मिल जाती मधुमय हाला।
           भक्ति-सुधा से भरा लबालब,
           मिल जाता मधुकर प्याला।
           
आदरणीय श्री जितेंद्र कमल आनंद जी की धर्म,अध्यात्म और 
भक्ति-भाव से ओतप्रोत रचनाओं को पढ़कर मन एक अलग लोक में विचरण करने लगता है।सच्ची भक्ति क्या है और उसकी परख कैसे की जाती है इसे जानने के लिए रचनाकर की इन पंक्तियों का अवलोकन कीजिए :
         भक्ति दृगों से नहीं ह्रदय से,
         देखी समझी जाती है।
         भक्ति विकल के पोंछे आँसू,
         भक्ति वही कहलाती है।
         भक्ति गीत है,भक्ति मीत है,
         प्रेम-पंथ है उजियाला।
         नीराजन है, आराधन है,
         भक्ति 'कमल' दीपक बाला।

कवि ने कितनी गहरी बात कही है कि भक्त की भक्ति आँखों से नहीं अपितु ह्रदय से देखी और समझी जाती है।

मुझे आशा है कि आदरणीय श्री जितेंद्र कमल आनंद जी की इस कृति के अध्ययन और मनन से सुह्रदयी पाठक अत्यंत आनंदित तथा लाभांवित होंगे। मैं आदरणीय आनंद जी के निरंतर स्वस्थ्य रहने और दीर्घायु होने की कामना करता है ताकि वह भविष्य में और अधिक श्रेष्ठ काव्य कृतियों के सृजन से हिंदी साहित्य को समृद्ध करते रहें।

-- ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/ब्लॉगर
रामपुर-उत्तर प्रदेश 



 

July 8, 2023

उत्तर प्रदेश साहित्य सभा की रामपुर इकाई का गठन तथा कवि गोष्ठी

शुभ संध्या मित्रो 🌹🌹🙏🙏

समाज सेवा के जो माध्यम हैं उनमें साहित्य सृजन भी एक प्रमुख माध्यम है।सृजनात्मक साहित्य के माध्यम से समाज को नई दिशा देने का कार्य साहित्यकार बंधु युगों से करते आ रहे हैं।देश में बोली,पढ़ी और समझी जाने वाली लगभग सभी भाषाओं में उच्च कोटि का साहित्य सृजन हो रहा है।कुछ साहित्यकार यदि व्यक्तिगत रूप से सक्रिय रहकर जनहितकारी साहित्य का सृजन कर रहे हैं तो बहुत से साहित्यकार साहित्यिक समूहों तथा संस्थाओं के द्वारा साहित्य साधना में निमग्न हैं। बहरहाल,माध्यम कोई भी हो हमें एक पावन संकल्प लेकर समाज सेवा के कार्य में लगे रहना चाहिए।
साहित्य सेवा के पावन कार्य में योगदान देने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश के कुछ मूर्धन्य साहित्यकारों, जिनमें सर्वेश अस्थाना, डॉo विष्णु सक्सैना,बलराम श्रीवास्तव,गिरधर खरे और डॉo सोनरूपा विशाल आदि जैसे ख्यातिप्राप्त नाम सम्मिलित हैं,ने प्रादेशिक स्तर पर "उत्तर प्रदेश साहित्य सभा" का गठन किया है।सभा के क्रियाकलापों को मूर्त रुप देने के लिए ज़िला स्तर पर भी सभा की इकाईयों के गठन का कार्य चल रहा है।इस क्रम में शनिवार दिनांक ८जुलाई,२०२३ को सभा के ज़िला रामपुर के संयोजक/प्रधान वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेंद्र अश्क रामपुरी के संयोजकत्व में उत्तर प्रदेश साहित्य सभा की स्थानीय इकाई का निम्नानुसार विधिवत गठन किया गया :
संरक्षक                       ताहिर फ़राज़ साहब
संयोजक /प्रधान           सुरेन्द्र अश्क रामपुरी जी
अध्यक्ष                        ओंकार सिंह विवेक जी
वरिष्ठ उपाध्यक्ष              फैसल मुमताज़ जी
उपाध्यक्ष                       प्रदीप राजपूत माहिर जी 
मंत्री/सचिव                    राजवीर सिंह राज़ जी
कोषाध्यक्ष                    अनमोल रागिनी चुनमुन जी
सह सचिव                     सुमित मीत जी
प्रचार सचिव                   नवीन पांडे जी
संगठन सचिव                 बलवीर सिंह जी
कार्यकारिणी सदस्य         रश्मि चौधरी जी तथा गौरव नायक जी


इस अवसर पर संरक्षक ताहिर फ़राज़ साहब की अध्यक्षता में आहूत की गई बैठक में सभा के पदाधिकारियों ने परिचय के उपरांत एक दूसरे का माल्यार्पण द्वारा स्वागत किया। सभा के पदाधिकारियों ने संस्था के प्रति अपनी निष्ठा और प्रतिबद्धता प्रदर्शित करते हुए अपने-अपने सुझाव भी प्रस्तुत किए। सभी इस बात पर एकमत थे कि किसी भी साहित्यिक अखाड़ेबाज़ी से दूर रहते हुए निस्वार्थ भाव से हमें संस्था की प्रगति और विस्तार के लिए कार्य करना चाहिए। संरक्षक ताहिर फ़राज़ साहब ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि संस्था की नियमावली से स्पष्ट है कि एक नेक काज के लिए इसका गठन किया गया है अत: साहित्यकार बंधुओं को अधिक से अधिक संख्या में इससे जुड़कर साहित्य/समाज सेवा में अपना योगदान सुनिश्चित करना चाहिए।
इस अवसर पर एक काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया गया।
गोष्ठी में अपनी रचना पढ़ते हुए संस्था के स्थानीय संरक्षक अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त शायर ताहिर फ़राज़ साहब ने कहा :

आँखों में आँसुओं की जगह अब रहेगा कौन,
इस घर में तेरे बाद बता दे बसेगा कौन।
अब रात भीगती है चलो घर की राह लें,
लेकिन वहाँ भी अपने अलावा मिलेगा कौन।

सभा के सचिव/मंत्री राजवीर सिंह राज़ ने अपनी गज़ल कुछ यूं पेश की :
हमने दिल में रखा है तुझे,
फिर भी शिकवा रहा है तुझे।

 संयोजक सुरेंद्र अश्क रामपुरी ने सुनाया :
 
  हम अदब की पौध नन्ही कुछ हमें भी सींचिये,
  हम सुकूँ की छांव देंगे जब शजर हो जाएंगे। 
  
इसके बाद सभा के अध्यक्ष ग़ज़लकार ओंकार सिंह विवेक ने कुछ माहौल को बदला :

 मुँह पर तो कितना रस घोला जाता है,
  पीछे जाने क्या क्या बोला जाता है। 

सभा के उपाध्यक्ष ग़ज़लकार प्रदीप राजपूत माहिर ने कहा 

फ़िरकों की फ़िक्र है न क़बीलों का कुछ ख़याल,
दानिश्वरों से यार ये बच्चा ही ठीक है। 

कोषाध्यक्ष कवियत्री अनमोल रागिनी चुनमुन ने कहा : 
 नेह मिला आकाश से, बरसी प्रेम फुहार।
 धरा हरित हो झूमती, पा साजन का प्यार।।
 
कार्यकारिणी सदस्य रश्मि चौधरी दीक्षा ने कहा :
एक कहानी का सार लिखा है,
 तुमको अपना प्यार लिखा है।

अंत में संयोजक सुरेंद्र अश्क रामपुरी ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए शीघ्र ही अगले आयोजन की आशा के साथ कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की।
स्थानीय समाचार पत्रों द्वारा आयोजन की अच्छी कवरेज की गई।
प्रस्तुति :
ओंकार सिंह विवेक
(ग़ज़लकार/समीक्षक/कॉन्टेंट राइटर/ब्लॉगर)
अध्यक्ष
उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर(उoप्रo)























July 5, 2023

किसी मज़दूर की क़िस्मत में कब इतवार होता है

नई ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक 
@
अगर अच्छा बशर  का  आचरण-व्यवहार होता है,
उसे हासिल  जहाँ में  हर किसी का  प्यार होता है।

मसर्रत  के  गुलों  से  घर  मेरा   गुलज़ार  होता  है,
इकट्ठा जब  किसी  त्योहार  पर  परिवार  होता  है।

पड़ेगा  हाथ   बाँधे   ही  खड़े   होना   वहाँ   तुमको,
मेरे   भाई   सुनो!  दरबार   तो   दरबार   होता   है।

मेरी मानो  किसी को आप अपना हमसफ़र कर लो,
अकेले   ज़िंदगानी   का    सफ़र   दुश्वार   होता  है। 
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कसौटी पर खरा ख़बरों की जिनको कह नहीं सकते,
भरा  ऐसी   ही  ख़बरों  से  सदा  अख़बार  होता  है।
                                 
मुकर्रर  की   सदायें   गूँजने  लगती  हैं  महफ़िल  में,                   
सुख़नवर  का कोई भी  शेर  जब  दमदार  होता  है।

उसे  करना ही पड़ता है हर इक दिन  काम  हफ़्ते में,
किसी मज़दूर की क़िस्मत  में कब  इतवार  होता है।

अता सौग़ात कर देता है नाज़ुक दिल को ज़ख़्मों की,
मियाँ!लहजा  किसी  का  एकदम  तलवार  होता है।

हिमायत  वो  ही  करता  है  त'अस्सुब के अँधेरों की,
मुसलसल  ज़ेहन  से  जो  आदमी  बीमार  होता  है।
             @ओंकार सिंह विवेक 


(चित्र : गूगल से साभार) 

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