December 30, 2022

श्रीमती हीराबेन जी के देवलोक गमन पर भारत विकास परिषद रामपुर की श्रद्धांजलि सभा




        श्रद्धांजलि सभा
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प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की  मां श्रीमती हीराबेन का निधन शुक्रवार प्रात:अहमदाबाद के अस्पताल में हो गया। श्रीमती हीराबेन की उम्र लगभग 100 साल थी। उनकी बुधवार को तबीयत बिगड़ने पर अहमदाबाद के यूएन मेहता अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
आज दिनांक ३० दिसंबर,२०२२ को भारत विकास परिषद मुख्य शाखा रामपुर की और से संस्था के कोषाध्यक्ष श्री संजीव अग्रवाल के प्रतिष्ठान पर देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी जी की माता श्रीमती हीराबेन जी के देवलोक गमन पर एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया।
परिषद के सदस्यों द्वारा दिवंगत के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करके शोक संवेदना प्रकट की गई।अपनी शोक संवेदना प्रकट करते हुए परिषद के अध्यक्ष श्री रविंद्र गुप्ता जी ने कहा की श्रीमती हीराबेन सादगी की प्रतिमूर्ति थीं। श्री गुप्ता ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री जी ने जिस सादगी और शालीनता के साथ अपनी माता जी के अंतिम संस्कार की रस्मों को पूरा किया है उससे सबको प्रेरणा लेनी चाहिए। सभा में अन्य वक्ताओं ने भी  प्रधानमंत्री जी के शोक संतप्त परिवार को यह असीम दुख सहने की शक्ति प्रदान करने की ईश्वर से कामना की। अंत में दिवंगत की आत्मा की शांति के लिए मौन धारण किया गया। 

सभा में अध्यक्ष श्री रविंद्र गुप्ता, माधव गुप्ता सरंक्षक, आलोक अग्रवाल एडवोकेट, सचिव, संजीव अग्रवाल कोषाध्यक्ष, अशोक अग्रवाल, ओंकार सिंह विवेक, मीडिया प्रभारी श्री विकास पाण्डेय इत्यादि उपस्थित रहे।
   (श्रीमती हीरबेन जी का चित्र : गूगल से साभार)
    --- ओंकार सिंह विवेक 

काव्य धारा की एक अनौपचारिक पारिवारिक काव्य गोष्ठी

मित्रो नमस्कार 🙏🙏🌹🌹
दिनांक 25 दिसंबर, 2022 को आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्यधारा रामपुर ,उत्तर प्रदेश की उत्तराखंड प्रांतीय शाखा रुद्रपुर द्वारा श्री रामेश्वर सिंह जी (काव्यधारा की सक्रिय सदस्य श्रीमती रीता सिंह जी के पिताश्री) के निवास डायनामिक कॉलोनी रुद्रपुर पर तुलसी जयंती एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी की जयंती के उपलक्ष में संस्था-संस्थापक श्री जितेंद्र कमल आनंद जी की अध्यक्षता में काव्य गोष्ठी आयोजित की गयी। कार्यक्रम का शुभारंभ कार्यक्रम अध्यक्ष श्री जितेंद्र कमल आनन्द, मुख्य अतिथि श्री रामेश्वर सिंह,विशिष्ट अतिथि द्वय श्री सुबोध शर्मा व श्री राम रतन यादव द्वारा मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन कर किया गया। 
तत्पश्चात हल्द्वानी से आई कवयित्री  डाॅ गीता मिश्रा 'गीत' ने मां सरस्वती वंदना प्रस्तुत कर काव्य गोष्ठी का शुभारंभ किया। इस अवसर पर भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय जी व भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया।काव्य गोष्ठी में उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के विभिन्न जनपदों से रचनाकार उपस्थित हुए । सभी रचनाकारों ने भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई, पंडित मदन मोहन मालवीय, गुरु गोविंद सिंह व माँ तुलसी जयंती पर अपनी शानदार रचनाएं प्रस्तुत कीं। इस अवसर पर कार्यक्रम संयोजक रामेश्वर सिंह एवं श्रीमती दया सिंह जी और कवि सुबोध कुमार शर्मा एवं विवेक बदल बाजपुरी तथा डॉ उमाशंकर साहिल 'कानपुरी ' को शॉल ओढ़ाकर व प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया । 
खटीमा से आये कवि रामरतन यादव "रतन" ने रचना पाठ करते हुए कहा:
सरहद पे कभी देश की टिकने नहीं देंगे ,
दुश्मन को  कहीं  राह  भी ,मिलने नहीं देंगे।
माँ भारती के बेटों से  बचके न जाएगा, 
मारेंगे खोज-खोज के ,छिपने नहीं देंगे।

गीता मिश्रा गीत जी, हल्द्वानी ने कहा :
धीर रख मन भटक मत,तू गह चरण श्रीराम के।
 शुद्ध कर आत्मा स्वयं,तब जा शरण श्री धाम के।

चन्दौसी से डाॅ रीता सिंह जी ने  कहा--
हरा भरा है उपवन मेरा ,जहाँ हँसता है नित सवेरा ।

रामपुर से आए ग़ज़लकार ओंकार सिंह विवेक ने स्मृतिशेष श्री अटल बिहारी जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए ये दोहे प्रस्तुत किए :

नैतिक मूल्यों का किया, सदा मान-सम्मान।
दिया अटल जी ने नहीं,ओछा कभी बयान।।

चलकर पथ पर सत्य के, किया जगत में नाम।
अटल बिहारी आपको, शत-शत बार प्रणाम।।
संस्था-अध्यक्ष श्री जितेंद्र कमल आनंद जी ने हिंदी के प्रति अपने उद्गार कुछ यों व्यक्त किए :
संस्कृति अपनी हिंदी से है, हिंदी से पहचान है।
हिंदी का फहराता झण्डा, प्यारा हिंदुस्तान है।
इस अवसर पर रामपुर से रामकिशोर वर्मा,रागिनी गर्ग, रश्मि चौधरी, राजवीर सिंह राज, सुरेंद्र अश्क, लालकुआँ से सत्यपाल सिंह सजग, उमाशंकर साहिल , गदरपुर से सुबोध कुमार शर्मा शेरकोटी जी , बाजपुर से विवेक बादल बाजपुरी, सुशील कुमार ,मुक्ता चंदेल ,हेमेंद्र कुमार ,याशिका ,राकेश ,सरिता, पुष्प चौहान, मनस्वी ,कृष्ण दत्त शर्मा, जोगिंदर सिंह, नीलम आदि उपस्थित रहे। अंत में संस्था अध्यक्ष श्री जितेंद्र कमल आनंद जी ने उपस्थित कवियों का आभार व्यक्त किया। काव्य गोष्ठी का कुशल संचालन सुश्री पुष्पा जोशी प्राकाम्या जी ने  किया।
 गोष्ठी के आयोजकों डॉक्टर रीता सिंह जी और उनके पिता श्री रामेश्वर सिंह जी और अन्य परिजनों ने बहुत ही आत्मीय भाव से मेहमानों की आवभगत करते हुए सुरुचिपूर्ण जलपान और दोपहर का भोजन कराया।उनके परिजनों से मिलकर किसी को यह नहीं लगा की हम इस परिवार के लोगों से पहली बार मिल रहे हैं। काफ़ी देर तक एक-दूसरे से अनौपचारिक माहौल में बातचीत होती रही। लोगों  ने जिस उत्साह और धैर्य से कवियों को सुना उससे मानव जीवन और कविता के अंतर्संबंधों  की गहराई का पता चलता है।
इस अवसर पर मुझे अपने प्रथम ग़ज़ल संग्रह "दर्द का एहसास" की कुछ प्रतियां भी आदरणीया डॉक्टर रीता सिंह जी के परिजनों को भेंट करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
   ---- ओंकार सिंह विवेक 

December 28, 2022

टैगोर काव्य गोष्ठी : ग़ज़ल पर चर्चा

नमस्कार मित्रो 🙏🙏

(आयोजक श्री रवि प्रकाश जी के साथ ग़ज़ल विधा पर चर्चा करते हुए कुछ चित्र)


(नीचे चित्र में:टैगोर काव्य गोष्ठी में रचना पाठ करते हुए कविगण)


टैगोर काव्य गोष्ठियों की श्रृंखला में आज बुधवार दिनांक २८ दिसंबर,२०२२ को एक और गोष्ठी राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय (टैगोर स्कूल) पीपल टोला, निकट मिस्टन गंज, रामपुर उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में आयोजित की गई । कार्यक्रम में कविवर शिव कुमार चंदन, अनमोल रागिनी चुनमुन, श्रीमती नीलम गुप्ता, रवि प्रकाश , ओंकार सिंह विवेक तथा डॉक्टर अब्दुल रऊफ़ ख़ान ने काव्य-पाठ किया । 
आज के कार्यक्रम के मुख्य आकर्षणों में "गजल और हिंदी ग़ज़ल" के संबंध में श्री रवि प्रकाश द्वारा लिया गया मेरा(ओंकार सिंह विवेक )साक्षात्कार भी रहा। कार्यक्रम में मैंने न केवल हिंदी ग़ज़ल शीर्षक से अपनी कुछ चुनी हुई ग़ज़लें प्रस्तुत कीं अपितु यह भी स्पष्ट किया कि अब ग़ज़ल अप्रचलित अरबी-फा़रसी भाषा के शब्दों के दायरे से बाहर निकलकर आम बोलचाल की हिंदी भाषा के एक नए युग में प्रवेश कर रही है। कार्यक्रम में ग़ज़ल के उद्भव और विकास तथा वर्तमान हिंदी ग़ज़ल के कथ्य-स्वरूप तथा संभावनाओं आदि पर काफ़ी अच्छा विमर्श हुआ।
हिंदी ग़ज़ल में दुष्यंत कुमार और अदम गोंडवी जी से लेकर आज के हिंदी ग़ज़लकारों अंसार कंबरी,कमलेश भट्ट,चंद्रसेन विराट,हरेराम समीप और अशोक रावत जी जैसे तमाम अन्य  ग़ज़लकारों के सक्रिय योगदान को लेकर काफ़ी बातें हुईं। ग़ज़ल की कई बहरों की हिंदी सनातनी छंदों से समानता पर काफ़ी रोचक विमर्श हुआ। नए साहित्यकारों और आमंत्रित सुधी श्रोताओं को यह जानकर प्रसन्नता हुई कि हिंदी का गीतिका छंद और फ़ाइलातुन और फ़ाइलुन अरकान से बनी ग़ज़ल की एक बहर एक समान ही हैं। इससे दो भाषाओं के काव्य के अंतर्संबंधों का पता चलता है। निष्कर्ष रूप में हिंदी ग़ज़ल के भविष्य को लेकर सभी साहित्यकार एक सुर में आशान्वित नज़र आए।
         कार्यक्रम में अवकाश प्राप्त भौतिक विज्ञान प्रवक्ता आनंद प्रकाश अग्रवाल, सत्संग-प्रेमी विनोद कुमार अग्रवाल तथा सहकारी युग प्रेस के स्वामी विवेक गुप्ता आदि उपस्थित रहे।
अंत में श्री रविप्रकाश जी द्वारा सभी को को सुरुचिपूर्ण जलपान कराया गया और अगली गोष्ठी में मिलने का वादा करते हुए गोष्ठी के समापन की घोषणा की गई।
प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक 

December 23, 2022

वाह रे ! सर्दी

प्रणाम मित्रो 🙏🙏🌹🌹

इन दिनों की कड़क सर्दी में कल रात हमारी कॉलोनी के पास चौराहे का दृश्य :
कल शाम थोड़ा अंधेरा घिरने पर अपनी कॉलोनी से बाहर चौराहे की तरफ़ गर्म कपड़ों से लदे जब घूमने निकले तो कुछ ऐसा👍 नज़ारा दखाई दिया।
आजकल ठंड अपने शबाब पर है। धुंध और कोहरे में दुर्घटनाएं भी हो रही हैं।सभी साथियों से अनुरोध है कि पर्याप्त गर्म कपड़े पहनें और अपनी सेहत का ध्यान रखें।यों तो यह मौसम स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम माना जाता है परंतु घूमना-फिरना और व्यायाम आदि की गतिविधियां कम हो जाने के कारण कुछ शारीरिक परेशानियां बढ़ने का भी अंदेशा रहता है। सांस और ह्रदय संबंधी रोगियों को इस मौसम में ख़ास तौर पर ध्यान रखने की ज़रूरत होती है क्योंकि तापमान अप्रत्याशित रूप से कम हो जाने के कारण ख़ून गाढ़ा होने लगता है जो ह्रदय संबंधी परेशानियों के बढ़ने का कारण बनता है।
लीजिए मौसम के अनुरूप कुछ दोहों का लुत्फ़ उठाइए:

सर्दी के दोहे
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(सर्वाधिकार सुरक्षित)

थोड़ा-सा  साहस   जुटा , किए   एक-दो  वार।
कुहरा  लेकिन  अंत   में , गया  सूर्य  से  हार।।

सर्द   हवा   ने   दे   दिया , जाड़े   का   पैग़ाम।
मिल  जाएगा  कुछ  दिनों,कूलर  को  आराम।।

हाड़   कँपाती   ठंड   में,  खींचेंगे   सब  कान।
गीजर अपने स्वास्थ्य का,रखना थोड़ा ध्यान।।

मूँगफली   कहने   लगी , सुन   ले   ए  बादाम।
करती हूँ  कम  दाम  में,तुझ-सा  ही  मैं काम।।
           --- ओंकार सिंह विवेक
              (सर्वाधिकार सुरक्षित)


December 22, 2022

टैगोर काव्य गोष्ठियों की श्रृंखला में एक और शानदार गोष्ठी संपन्न

नमस्कार मित्रो 🌹🌹🙏🙏

बुधवार दिनांक २१ दिसंबर,२०२२ को वरिष्ठ साहित्यकार श्री रवि प्रकाश जी द्वारा राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय (टैगोर स्कूल), पीपल टोला में शुरू की गई टैगोर काव्य गोष्ठी श्रृंखला की एक और शानदार गोष्ठी संपन्न हुई।

धीरे-धीरे इस आयोजन श्रृंखला से सृजनात्मक साहित्य में रुचि रखने वाले बहुत से लोग जुड़ते जा रहे हैं जो इस बात को दर्शाता है कि अच्छे साहित्य के पठन-पाठन और श्रवण में आज भी लोगों की रुचि कम नहीं हुई है।यह एक अच्छा संकेत है।

इस बार की काव्य गोष्ठी में कविगण रामकिशोर वर्मा, ओंकार सिंह विवेक, अनमोल रागिनी चुनमुन तथा रश्मि चौधरी ने अपने काव्य पाठ के माध्यम से सामाजिक सरोकारों और मानवीय संवेदनाओं का जो चित्रण किया उसने आमंत्रित श्रोताओं को बार-बार तालियां बजाने के लिए प्रेरित किया।
इससे कवियों का उत्साहवर्धन हुआ। ऐसे दृश्य कविता और जीवन के अंतर्संबंध को रेखांकित करते हैं।

ऊपर चित्र में : कार्यक्रम संचालक श्रीमती नीलम गुप्ता

काव्य पाठ करते हुए कवयित्री अनमोल रागिनी चुनमुन ने कहा :

सब झूठे रिश्ते हैं,
घाव करें गहरे-
पग-पग पर रिसते हैं।

रहना कब आजीवन,
देह किराए की-
क्षणभंगुर है जीवन।

कवयित्री रश्मि चौधरी ने अपने उद्गार कुछ यों व्यक्त किए :

सपने हकीकत में ढलने लगे
पांव से छाले निकलने लगे

काव्य पाठ करते हुए रचनाकार रामकिशोर वर्मा जी ने कहा :

जैसे को तैसा करें, तब होगा कल्याण ।
रावण या फिर कंस पर, बरसे यों ही बाण ।।
  
मेरे द्वारा भी अपनी नई ग़ज़ल के कुछ अशआर और गंगा मां पर कुछ दोहे प्रस्तुत किए गए :
मुंह पर तो कितना रस घोला जाता है,
पीछे जाने क्या-क्या बोला जाता है।

होता था पहले मेयार कभी इनका,
अब रिश्तों को धन से तोला जाता है।

काव्य पाठ करते हुए कविगण:


अवसर के कुछ और छाया चित्र :
श्री रवि प्रकाश जी की अनुपस्थिति में आज की काव्य गोष्ठी का सफल संचालन भाजपा नेत्री श्रीमती नीलम विवेक गुप्ता जी द्वारा किया गया।
इस अवसर पर टैगोर स्कूल की हेड मिस्ट्रेस कुमारी श्रीजा गुप्ता, श्रीमती पारुल अग्रवाल, ज्ञानेश गुप्ता, विवेक गुप्ता आदि उपस्थित रहे। 

प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक 
(सर्वाधिकार सुरक्षित) 

December 21, 2022

अतिथि साहित्यकारों के सम्मान में पल्लव काव्य मंच की गोष्ठी


अतिथि साहित्यकारों के सम्मान में पल्लव मंच की काव्य गोष्ठी
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पल्लव काव्य मंच रामपुर के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार श्री शिवकुमार चंदन जी का आज दोपहर १२ बजे फोन आया कि हमारे यहां बरेली के दो वरिष्ठ साहित्यकार आए हुए हैं यदि समय निकाल कर आप भी आ जाएं तो ठीक रहेगा,उनके सम्मान में एक गोष्ठी हो जाएगी। मैं उसी समय बाज़ार से लौटकर घर पहुँचा था।मैंने कहा कि ठीक है आता हूँ।दस मिनट बाद ही मैं श्री चंदन जी के निवास पर पहुँचा गया।चंदन जी मेहमान साहित्यकारों की आवभगत में लगे हुए थे।

दोनों साहित्यकारों से परिचय हुआ।बरेली के वरिष्ठ साहित्यकार बहुत अच्छे ग़ज़लकार श्री रामकुमार भारद्वाज अफ़रोज़ साहब और दूसरे वरिष्ठ साहित्यकार,जो अपने श्रेष्ठ यथार्थवादी मुक्तकों के लिए जाने जाते हैं, श्री रामप्रकाश सिंह ओज जी से मिलकर बहुत प्रसन्नता हुई।जलपान के बाद काफ़ी देर तक उनसे साहित्यिक विमर्श होता रहा। दोनों ही साहित्यकारों का ज़ोर इस बात पर था की महत्वपूर्ण यह नहीं है कि हम कितना साहित्य सृजन करते हैं वरन महत्वपूर्ण यह है कि हम अपने सृजन में क्या कहते हैं।अर्थात उनका ज़ोर सृजन की क्वांटिटी नहीं अपितु क्वालिटी पर था।नए लिखने वालों को उनकी इस बात को गांठ बाँधना चाहिए क्योंकि आजकल यही हो रहा है कि हम ठीक से पकाने पर ध्यान नहीं देते वरन धड़ाधड़ कच्चा-पक्का परोसने की जल्दी में रहते हैं। मैं उन अनुभवी वरिष्ठ साहित्यकारों की बात से पूर्णतय: सहमत था।
विमर्श के बाद मेहमान साहित्यकार श्री अफ़रोज़ साहब की अध्यक्षता और श्री चंदन जी के संचालन में एक काव्य गोष्ठी भी हुई।

गोष्ठी में मेहमान साहित्यकार श्री रामप्रकाश सिंह ओज जी ने रिश्तों की महत्ता को रेखांकित करता हुआ बहुत ही मार्मिक मुक्तक प्रस्तुत किया :

अपनी जननी-सा पवित्र कोई हो नहीं सकता,
ममता की खुशबू-सा इत्र कोई हो नहीं सकता।
वृद्धावस्था के पड़ाव पर महसूस हुआ हमें,
पत्नी से अच्छा कोई मित्र हो नहीं सकता।
             ---- रामप्रकाश सिंह ओज

अतिथि साहित्यकारों के आग्रह पर मैंने भी अपनी एक ताज़ा ग़ज़ल के कुछ शेर सुनाए:

      मुंह पर तो कितना रस घोला जाता है,
      पीछे जाने क्या-क्या बोला जाता है।

       होता था पहले मेयार कभी इनका,
       अब रिश्तों को धन से तोला जाता है।
                    ओंकार सिंह विवेक 

कार्यक्रम संचालक श्री शिवकुमार चंदन जी ने अपने दोहे कुछ यों प्रस्तुत किए :

जननी उर अंतर बसी,ममता नेह सुवास।
आंचल में खुशियां पलें, छा जाए मधुमास।।

मात तुम्हारी वंदना,करते बारंबार।
चंदन के दो पुष्प को,कर लो मां स्वीकार।।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामकुमार भारद्वाज अफ़रोज़ साहब ने हिंदी क़ाफ़ियों से सुसज्जित अपनी एक ग़ज़ल के बहुत ही अर्थदर्शी अशआर पेश किए :

राक्षस माना नहीं ख़ुद को कभी,
थी  बुराई  बस  यही लंकेश में।

शब्द शिल्पी हो गया अफ़रोज़ भी,
भावनाओं  से  मुखर  परिवेश में।
      रामकुमार भारद्वाज अफ़रोज़
 इस अवसर पर मैंने अतिथि साहित्यकारों को अपने प्रथम ग़ज़ल संग्रह ' दर्द का एहसास' और साझा काव्य संकलन
 'साधना के पथ पर' की प्रतियां भी भेंट कीं।
अंत में मेज़बान श्री शिव कुमार चंदन जी ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए गोष्ठी के समापन की घोषणा की।

प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/समीक्षक/कॉन्टेंट राइटर/ब्लॉगर




December 20, 2022

सदीनामा अख़बार में छपीं दो ग़ज़लों का आनंद लें

मित्रो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏


कलकत्ता से प्रकाशित होने वाले अख़बार/पत्रिका 'सदीनामा' के बारे में पहले भी मैं आपसे बात कर चुका हूं।इस प्रतिष्ठित अख़बार से प्रसिद्ध शायर आदरणीय श्री ओमप्रकाश नूर साहब संयोजक के रूप में जुड़े हुए हैं।आपकी मुहब्बतों के चलते अक्सर मेरी रचनाएँ/ग़ज़लें अक्सर इस अख़बार में छप जाया करती हैं।इसके लिए मैं अख़बार के संपादक मंडल और संयोजक आदरणीय श्री ओमप्रकाश नूर साहब का बेहद शुक्रगुज़ार हूं।
अख़बार में छपी मेरी दो नई ग़ज़लों का आनंद लीजिए :

December 19, 2022

नई ग़ज़ल


नमस्कार मित्रो 🌹🌹🙏🙏

कुछ दिन पहले कही गई ग़ज़ल में कुछ संशोधन करके नया रूप दिया है। प्रतिक्रिया हेतु आपकी अदालत में पेश है:

ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
  ©️
हमें   सच  से  क्या  रग़बत  हो गई  है,
ज़माने भर  को   दिक़्क़त  हो  गई  है।

कभी होती  थी  जन- सेवा का साधन ,
सियासत  अब   तिजारत  हो  गई  है।

यहाँ  लगता  है  कुछ  लोगों  की  जैसे,
उसूलों    से    अदावत    हो   गई   है।
 ©️
सहे   हैं    ज़ुल्म    इतने   आदमी   के,
नदी    की   पीर   पर्वत   हो   गई   है।

निकाला  करते  हैं  बस  नुक़्स  सबमें,
ये  कैसी उनकी आदत   हो   गई   है।

हसद   तेरी  मुबारक  तुझको  हासिद,
हमें  तो  तुझसे   उल्फ़त   हो  गई  है।

हुए   क्या   हम   रिटायर   नौकरी  से,
मियाँ! फ़ुरसत  ही  फ़ुरसत  हो गई है।
           ---   ©️ओंकार सिंह विवेक


December 16, 2022

शौर्य चक्र विजेता फौजी बलिदानी रंजीत सिंह


शौर्य चक्र विजेता फौजी बलिदानी रंजीत सिंह
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अप्रैल ,२०२२ में मैंने अपने ब्लॉग पर "नीयत नेकी की" शीर्षक से एक पोस्ट लिखी थी।उस पोस्ट में काशीपुर-उत्तराखंड निवासी ओज के कवि श्री अनिल सारस्वत जी के द्वारा किए जा रहे नेक काम की विस्तार से चर्चा की थी। ज्ञातव्य है कि श्री अनिल जी देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए किसी सैनिक के परिजनों से संपर्क करके उनके प्रति सम्मान प्रकट करते हैं।वह हर माह एक बलिदानी सैनिक के परिवार से मिलने का यह काम वर्षों से करते आ रहे हैं।२७ अप्रैल,२०२२ को जब वह ऐसे ही एक बलिदानी सैनिक रंजीत सिंह के परिजनों से मिलने गांव अलीपुरा ज़िला रामपुर गए थे तो मुझे भी उनके साथ जाने का अवसर मिला था।इन सब बातों का मैंने अपनी अप्रैल,२०२२ की एक पोस्ट में ज़िक्र भी किया था।आज मैं आपको बलिदानी सिपाही रंजीत सिंह के बारे में विस्तार से बताना चाहता हूं ताकि सब लोग उस वीर को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर सकें।

बलिदानी रंजीत सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के छोटे से जनपद रामपुर के सैदनगर ब्लॉक के अलीपुरा गांव में हुआ था।बलिदानी के पिता श्री सत्यपाल सिंह जी ने बताया कि रंजीत का शुरू से ही सपना था कि वह पढ़-लिखकर फौज में जाकर देश की सेवा करे।परिवार के लोग भी उसके जज़्बे को देखकर गर्व महसूस करते थे।यही कारण है की उसे सहर्ष फौज में भर्ती होने की अनुमति भी घर से मिल गई थी।उसने जाते ही फौज में कई वीरता के कारनामे अंजाम देकर अपने अफसरों का दिल जीत लिया था।बलिदानी रंजीत सिंह जब जम्मू कश्मीर के बारामूला में तैनात थे तो एक मिशन में उनकी आतंकवादियों से मुठभेड़ हुई थी।रंजीत सिंह ने इस मुठभेड़ में दुश्मनों से जमकर लोहा लिया और चार आतंकवादियों को मार गिराया तथा अंत में वीरगति को प्राप्त हुए। रंजीत सिंह की वीरता और पराक्रम को देखते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम साहब ने ११ अप्रैल,२००७ (रिपोर्ट : दैनिक जागरण १६ दिसंबर,२०२२ ) को उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया था। हमने गांव में उनका स्मारक भी देखा जिसमें बलिदानी की प्रतिमा भी लगी हुई है।
बलिदानी सिपाही रंजीत के पिता जी ने बताया कि सरकार ने उनके बेटे के नाम पर स्कूल और सड़क का नाम रखने की बात भी कही है जो बहुत अच्छी घोषणा है।यही एक बलिदानी के प्रति सम्मान और सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
आइए हम सब ऐसे वीर बलिदानी की स्मृतियों को शत-शत नमन करें 🌹🌹🙏🙏
अवसर के अनुरूप आज ये पुरानी तस्वीरें भी साझा करना प्रासंगिक होगा।ये उस समय की तस्वीरें हैं जब हम श्री अनिल सारस्वत जी के साथ गांव अलीपुरा गए थे।श्री अनिल जी ने बलिदानी रंजीत सिंह के पिता पिता के पांव छूकर उनके प्रति सम्मान प्रकट किया था, वे बहुत ही भावुक क्षण थे। 

प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक 

December 15, 2022

मानवता की पीड़ा आज हुई है बहुत घनी


     चित्र : गूगल से साभार 

नमस्कार मित्रो 🌹🌹🙏🙏

यों तो मैं मुख्यत: ग़ज़लें ही कहता हूं।लेकिन कभी-कभी दोहे,नवगीत और कुंडलिया आदि भी कह लेता हूं।नवगीत आज की बहुत लोकप्रिय विधा है। नूतन बिंबों और प्रतीकों के माध्यम से इसमें ह्रदय में सीधे उतरने वाले कथ्य पिरोकर साहित्यकार आम जन मानस के सामने रख रहे हैं,जिसे बहुत पसंद किया जा रहा है।
काफ़ी अरसे बात एक नवगीत सृजित हुआ है जो आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं। अपनी प्रतिक्रियाओं से अवश्य ही अवगत कराइए :

 एक नवगीत 
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©️
मानवता की पीड़ा,       
आज हुई है बहुत घनी। 

अमन-चैन को है यह,
कैसी मुश्किल ने घेरा।
भय-आतंक जमाकर,
बैठ गए अपना डेरा।
ख़बरें अख़बारों में,
मिलतीं पढ़ने ख़ून सनी।

मर्यादा के बंधन,
कोई कहाँ भला माने।
तोड़ रहे हैं सब ही,
रिश्तों के ताने-बाने।
भाई से भाई की,
अब रहती है नित्य ठनी।

हुए संगठित जबसे,
हिंसा,द्वेष,घृणा,छल-बल।
प्रेम-रीति पर भय के,
छाए रहते हैं बादल।
कैसे आख़िर जग में,
फिर समरसता रहे बनी।
        --- ©️ ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)


December 13, 2022

"अर्पण-एक साहित्यिक यात्रा" संस्था का पहला भव्य साहित्यिक आयोजन

मित्रो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था "अर्पण-एक साहित्यिक यात्रा" के सूत्राधार आदरणीया डॉक्टर अर्चना गुप्ता जी और डाक्टर पंकज दर्पण जी के स्नेह निमंत्रण पर संस्था के प्रथम साहित्यिक अनुष्ठान में सहभागिता का अवसर प्राप्त हुआ।मुरादाबाद के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज एम आई टी में आमंत्रित श्रोताओं तथा सम्मानित अतिथियों की उपस्थिति में बहुत ही व्यवस्थित और गरिमापूर्ण कार्यक्रम रहा।कार्यक्रम में मुरादाबाद के अतिरिक्त आस- पास के जनपदों तथा उत्तराखंड राज्य से भी कई वरिष्ठ साहित्यकारों ने सहभागिता की।कार्यक्रम में इंडोनेशिया से श्रीमती वैशाली रस्तोगी जी भी मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित रहीं।
कार्यक्रम में काव्य पाठ करने वाले साहित्यकारों को प्रतीक चिन्ह और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।
डॉक्टर अर्चना गुप्ता जी तथा डॉक्टर पंकज दर्पण जी ने संस्था के उद्देश्य और भावी योजनाओं पर प्रकाश डालते हुए साहित्यकारों से सद्भावना के साथ इस साहित्यिक यात्रा में जुड़ने का आह्वान किया।श्री दर्पण जी ने कहा कि राजनीति से दूर रहते हुए नि:स्वार्थ भाव से साहित्य साधना को महत्व देने वाले साहित्यकारों का इस यात्रा में स्वागत है। उन्होंने कहा कि सभी के सहयोग से संस्था को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक विस्तार देने की योजना है।सभी ने करतल ध्वनि से इस घोषणा का स्वागत किया।
जिस संस्था को श्री दीपक बाबू, सीoएo तथा आदरणीया अनीता गुप्ता जी जैसी विद्वान साहित्य और कला प्रेमी व्यक्तित्व संरक्षक के रूप में अपना आशीर्वाद प्रदान करने के लिए आगे आए हों उस संस्था का भविष्य निश्चित ही उज्ज्वल होगा। ऐसा मेरा मानना है।आशा है यह संस्था विवादों से परे रहकर समान विचारधारा के साहित्यकारों के पारस्परिक सहयोग से साहित्य के क्षेत्र में कुछ नया करेगी।
मैं मजरूह सुल्तानपुरी साहब के इस शेर के साथ संस्था की उत्तरोत्तर प्रगति की कामना करता हूं:

          मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल,मगर-
          लोग  साथ  आते गए और कारवां  बनता गया।
                                    --- मजरूह सुल्तानप







प्रतुत्तकर्ता : ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित )

December 10, 2022

यादों के झरोखों से (कड़ी - ६)

मित्रो नमस्कार 🙏🙏🌹🌹

पुरानी एल्बम में आज कुछ दुर्लभ छाया चित्र हाथ लगे।इन्हें देखकर ख़ुशी और ग़म दोनों का ही एहसास हुआ। ख़ुशी इसलिए हुई की ख़ुद को बड़े-बड़े साहित्यकारों के साथ मंच साझा करते और रचना पाठ करते हुए देखा।दुख इसलिए हुआ की उनमें से कई अब हमारे बीच नहीं रहे। मैं उन सभी की स्मृतियों को शत-शत नमन करता हूं।
          (काव्य पाठ करते हए मैं ओंकार सिंह विवेक)
ऊपर प्रथमा बैंक के स्थापना दिवस २ अक्टूबर,२०१२ के अवसर पर मिड टाउन क्लब मुरादाबाद में आयोजित कराए गए मुशायरे/कवि सम्मेलन की तस्वीर है। प्रथमा बैंक में मैंने लगभग ३५ वर्ष सेवा करके मार्च,२०१९ में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति प्राप्त की थी।
तस्वीर में मंच पर उत्तर प्रदेश सरकार से यशभारती सम्मान प्राप्त प्रसिद्ध नवगीतकार दादा माहेश्वर तिवारी जी तथा अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शायर मुहतरम मंसूर उस्मानी साहब तशरीफ़ रखते हैं जिनकी  सदारत में मुझे भी कलाम पेश करने का मौक़ा मिला था। उन दिनों मैं प्रथमा बैंक के मुख्य कार्यालय मुरादाबाद में तैनात था। हमारे बैंक के अध्यक्ष महोदय भी कविता/शायरी में ख़ूब दिलचस्पी रखते थे।प्रत्येक वर्ष बैंक के स्थापना दिवस के अवसर पर साहित्य में रुचि रखने वाले हम कुछ बैंक कर्मचारी जिनमें मुख्य रूप से श्री एन यू खान साहब, क़मर भाई और मैं तथा कुछ अन्य वरिष्ठ साथी कवि सम्मेलन/मुशायरे का आयोजन करा लिया करते थे।उन कार्यक्रमों में मुरादाबाद और रामपुर के प्रसिद्ध कवि और साहित्यकारों को आमंत्रित करके अवसर को एक शानदार यादगार बना लिया जाता था।अब वे शानदार दिन बहुत याद आते हैं। 
 जो मूर्धन्य साहित्यकार ऊपर की तस्वीर में दिखाई दे रहे हैं उनकी रचनाधर्मिता से परिचय कराना तो बनता ही है। तो लीजिए दुनिया भर में अपने नवगीतों का लोहा मनवाने वाले दादा माहेश्वर तिवारी जी और शायरी के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने वाले शायर श्री मंसूर उस्मानी साहब की रचनाओं की कुछ पंक्तियां यहां प्रस्तुत कर रहा हूं :  
     सच पूछिये तो उनको भी हैं बेशुमार ग़म,
      जो सब से कह रहे हैं कि हम खैरियत से हैं।
               --- मंसूर उस्मानी
आज तक हम हैं किराए के मकानों में,
यह सचाई और खलती है थकानों में।
            रात हल्के पांव जाती है गुज़र ख़ामोश,
            स्वप्न हैं ऐसे कहीं दुबके हुए खरगोश।
नाम अपना हो भले शामिल महानों में।
           --- माहेश्वर तिवारी
उक्त कार्यक्रम में पढ़े गए मेरे भी कुछ शेर देखिए :
            वक्त के सांचे में ढल मत कर गिला सदमात से,
             ज़िंदगी प्यारी है तो लड़ गर्दिश-ए-हालात से। 

            बेसबब ही आपकी तारीफ़ जो करने लगें,
            फा़सला रक्खा करें कुछ आप उन हज़रात से।
                      --- ओंकार सिंह विवेक 
पुरानी एल्बम से लगभग बीस साल (सही वर्ष याद नहीं)पुराना ऊपर साझा किया गया एक और फोटो हाथ लगा।इसमें रामपुर जनपद की चार साहित्यिक विभूतियां मंच पर विराजमान हैं।
बाईं और से दाईं ओर को :
१. स्मृतिशेष साहित्यकार श्री हीरा लाल किरण जी को शॉल पहनाकर सम्मानित करते हुए मैं।
२. रामपुर के मशहूर उपन्यासकार स्मृतिशेष प्रोफेसर ईश्वर शरण सिंघल साहब।
३. रामपुर के मशहूर शायर और मेरे उस्ताद रहे स्मृतिशेष श्री शब्बीर अली ख़ान तरब ज़ियाई साहब।
४.रामपुर के प्रसिद्ध साहित्यकार स्मृतिशेष श्री जगदीश वियोगी जी।
स्मृतिशेष हीरा लाल किरण जी हिंदी साहित्य को समर्पित बहुत ही विनम्र और सादा स्वभाव के व्यक्ति थे।वे गुंजन साहित्यिक मंच भी चलाया करते थे।नए और पुराने साहित्यकारों को मंच से जोड़ना और निरंतर काव्य गोष्ठियां कराते रहना उनके जैसे सौम्य,विनम्र और धैर्यवान व्यक्ति के लिए ही संभव था।अपने जीवन काल में नए रचनाकारों को भी उन्होंने बहुत प्रोत्साहित किया।उनकी कुछ रचनाओं की पंक्तियां देखिए :
---प्रीत मन की वह लहर हूँ,बस गया इसमें नगर है।
      पथ नए खुलते दिखे हैं,जुड़ गया सारा शहर है।

---दर्पण में जब-जब मैंने, मन में रख अंतर देखा।
      जो चित्र बने थे उर में,उनकी उभरी थी रेखा।
            ---स्मृतिशेष हीरालाल किरण
स्मृतिशेष प्रोफेसर ईश्वर शरण सिंघल साहब एक जाने माने उपन्यासकार थे जिनका उपन्यास ' जीवन के मोड़' बहुत प्रसिद्ध हुआ। आप कुशल वक्ता और विचारक थे।आपके सुपुत्र डॉक्टर आलोक सिंघल साहब रामपुर जनपद ही नहीं वरन मंडल के जाने माने कार्डियोलॉजिस्ट हैं।
मरहूम हकीम शब्बीर अली खान तरब ज़ियाई साहब रामपुर के मशहूर शायर थे और अच्छे हकीम भी थे। मैंने आपसे ग़ज़ल की बहुत-सी बारीकियां सीखीं।आप दरबार-ए-अदब नाम की एक अदबी संस्था भी चलाते थे ।इस बज़्म की और से शहर में हर महीने तरही नशस्तें भी हुआ करती थीं। तरब साहब बहुत ही नेकदिल और खुद्दार इंसान थे।आपके कुछ अशआर मुझे याद आ रहे हैं:
          उसने जब लहजा बदलकर बात की,
          लुट गई दुनिया मेरे जज़्बात की।  

           ये भी क्या जो जी में आया कह दिया,
           तुक हुआ करती है कोई बात की।
                     --- तरब ज़ियाई
स्मृतिशेष श्री जगदीश वियोगी जी बहुत ही सहज और सरल व्यक्तित्व के धनी कवि थे।आपका कंठ भी बहुत अच्छा था।जब गोष्ठियों में तरन्नुम से कविता पाठ करते थे तो लोग मंत्र मुग्ध हो जाते थे। वियोगी जी की कुछ पंक्तियां देखिए :
             पीर ह्रदय की कंठ पार कर,
             आ पाई कब मुक्त स्वरों तक।
              सोच   रहा   कैसे   पहुंचेंगे,
               मेरे स्वर कंपित अधरों तक।
                   -- जगदीश शरण सक्सैना वियोगी
 इन पुरानी तस्वीरों को देखकर मन स्मृतियों के सागर में जैसे डूब-सा गया।
आप लोगों को यह प्रस्तुति कैसी लगी,टिप्पणियों के माध्यम से अवश्य अवगत कराएं।
       
प्रस्तुतकर्ता--- साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक
                     रामपुर-उत्तर प्रदेश 
                    (सर्वाधिकार सुरक्षित)

December 8, 2022

आज कुछ यों भी : बहारों का इशारा हो गया है

साथियो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏

मित्रो वर्ष ,२०२१ में मेरा पहला ग़ज़ल संग्रह " दर्द का एहसास" प्रकाशित हुआ था। उसमें एक बहुत ही हल्की- फुल्की ग़ज़ल थी मेरी जिसे प्रसंगवश आज यहां साझा कर रहा हूं:
ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक 
बहारों   का   इशारा   हो   गया  है,
बड़ा   सुंदर   नज़ारा   हो  गया  है।

वसाइल   तो   रहे   मेहदूद   अपने,
मगर  फिर  भी  गुज़ारा  हो गया है।

किया  है   खूं-पसीना  एक  जिसने,
बुलंदी   पर   सितारा  हो   गया  है।

तरफ़दारी ज़रा क्या कर दी सच की,
मुख़ालिफ़  जग ये  सारा हो गया है।

बहुत   बदले  हुए   हैं  इसके   तेवर,
ये  दिल  जबसे  तुम्हारा हो गया है।

ख़ुशी  है अब मुख़ालिफ़ भी,हमारी-
ग़ज़ल  सुनकर  हमारा  हो  गया है।
           --- ओंकार सिंह विवेक 
       (सर्वाधिकार सुरक्षित)
वसाइल -- संसाधन
मेहदूद -- सीमित
मुख़ालिफ़ -- विरोधी

हमारी धर्म पत्नी को थोड़ा-बहुत गाने का शौक़ है।वह हारमोनियम भी बजा लेती हैं। कुछ मैंने उन्हें प्रेरित किया और कुछ उनका मूड बना दो उन्होंने साज़ पर मेरी इस ग़ज़ल को गाने का प्रयास किया जिसे बच्चों ने रिकॉर्ड/शूट करके यू ट्यूब पर अपलोड कर दिया।
आप लोगों से अनुरोध है कि नीचे दिए गए संकेत को क्लिक करके उसे देखकर अपनी प्रतिक्रिया से अवश्य अवगत कराएं और हमारा उत्साहवर्धन करें 🙏🙏

यदि चैनल को नि:शुल्क सब्सक्राइब करेंगे तो हमें हार्दिक प्रसन्नता होगी 🌹🌺🪴🌿🏵️🌼🌲🥀🍀💐🌳🌴☘️🌹🌺🪴🌿🏵️🌲🥀🍀💐🌳🌴☘️🏵️🌿🪴🥀🌹☘️🌴🌳

December 3, 2022

"आओ ख़ुशी तलाश करें" ग़ज़ल संग्रह (ग़ज़लकार : ओंकार सिंह ओंकार ---- समीक्षक : ओंकार सिंह विवेक)

नमस्कार दोस्तो 🌹🌹🙏🙏

आज मैं मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ साहित्यकार श्री ओंकार सिंह 'ओंकार' जी के ग़ज़ल-संग्रह "आओ ख़ुशी तलाश करें" की समीक्षा लेकर आपके सम्मुख उपस्थित हूं:

पुस्तक :     आओ ख़ुशी तलाश करें (ग़ज़ल-संग्रह)
ग़ज़लकार : श्री ओंकार सिंह 'ओंकार'
प्रकाशक :   गुंजन प्रकाशन मुरादाबाद-उत्तर प्रदेश
पृष्ठ संख्या : 142     मूल्य : रुपए 250/-
प्रकाशन वर्ष :2022
समीक्षक :     ओंकार सिंह 'विवेक' 

काव्य की विभिन्न विधाओं में श्रेष्ठ सृजन करके काव्यकार समाज को राह दिखाने का कार्य कर रहे हैं। यदि गीत का कोमल भाव लोगों के मर्म को छू रहा है तो दो पंक्तियों के दोहे की मारक क्षमता भी जनमानस का ध्यान खींच रही है।इसी तरह फ़ारसी,अरबी तथा उर्दू से होती हुई हिंदी में आई ग़ज़ल विधा का जादू भी आज लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। ऐसे समय में श्री ओंकार सिंह ओंकार जी का ग़ज़ल-संग्रह
"आओ ख़ुशी तलाश करें" हिंदी भाषा में ग़ज़ल को लेकर नई आशा जगाते हुए सामने आता है।
ओंकार सिंह जी के ग़ज़ल-संग्रह का शीर्षक 'आओ ख़ुशी तलाश करें' ही इस किताब के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न करता है। आज की दुखों से दो चार होती भागमभाग ज़िंदगी में हर आदमी को दो पल सुकून और ख़ुशी की तलाश है। ऐसे में कौन भला इस किताब को पढ़ना नहीं चाहेगा।
अपनी किताब के शीर्षक की सार्थकता को सिद्ध करते हुए ओंकार जी के ये दो अशआर देखिए :
          ग़मों के बीच में आओ ! ख़ुशी तलाश करें,
          अँधेरे चीर के हम रौशनी तलाश करें।

          दिल अपना शोर से दुनिया के आज ऊब गया,
          चलो जहां भी मिले ख़ामुशी तलाश करें।
ग़ज़ल में औरतों से गुफ्तगू तो बहुत हो चुकी।अब ग़ज़ल के माध्यम से मज़दूर के पसीने और जनसरोकार की बात भी होनी चाहिए जो हो भी रही है। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए ओंकार जी अपने एक शेर में कहते हैं :

            शेर हुस्न-ओ-इश्क़ पर तो कह चुके कितने,मगर -
            शायरो! कुछ और भी है शायरी के नाम पर।
यों तो ओंकार जी की शायरी में कहीं-कहीं रिवायती रंग भी मिलता है परंतु उनकी अधिकांश ग़ज़लें जदीदियत के रंग से ही सराबोर हैं।उनके अशआर में हमें प्रेम-सद्भाव,आम इंसान के अधिकार और नैतिक मूल्यों की ज़बरदस्त पैरोकारी देखने को मिलती है।कुछ अशआर देखें :

          प्रेम का संदेश लेकर आ रही मेरी ग़ज़ल,
          इसलिए सबके दिलों को भा रही मेरी ग़ज़ल।

          आओ सब ईद की ख़ुशियों को मना लें मिलकर,
           और दीवाली भी मिल-जुलके मना ली जाए।

            कर ले जनता की वकालत आज से 'ओंकार' तू,
             ये क़लम रुकने न पाए ज़ुल्म की तलवार से।

            छीनकर सुख दूसरों का अपना सुख चाहें नहीं,
             ऐसे सुख की कामनाओं का दमन करते चलें।
अक्सर देखने में आता है कि कुछ रचनाकर अपनी रचनाओं में कहीं-कहीं दार्शनिक होकर ऐसे भारी भरकम शब्दों का प्रयोग कर बैठते हैं जो आम आदमी की समझ से परे होते हैं। आम जन के लिए कही गई कविता में ऐसे प्रयोग उचित नहीं जान पड़ते।क्योंकि जब कविता आम आदमी की समझ में ही नहीं आएगी तो फिर उसका उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा। ओंकार जी के यहां ऐसा नहीं है।हम उन्हें आम आदमी का कवि/शायर कह सकते हैं क्योंकि उनका हर शेर आम आदमी से सीधा संवाद करता हुआ दिखाई देता है।
उनके कुछ शेर देखिए जिनमें आसान ज़ुबान और क़ाफ़ियों का कितनी ख़ूबसूरती से इस्तेमाल किया गया है :

          हम नई राहें बनाने का जतन करते चलें,
          जो भी वीराने मिलें उनको चमन करते चलें।

          नफ़रतों की आग से बस्ती बचाने के लिए,
          प्यार की बरसात से ज्वाला शमन करते चलें।
जन कल्याण की प्रबल भावना उनके इन शेरों में भी देखी जा सकती है:
           बस्ती-बस्ती हमें ज्ञान के दीप जलाने हैं,
            हर बस्ती से सभी अँधेरे दूर भगाने हैं।
      
            मिले सभी को सुख-सुविधा, सब शोषण मुक्त रहें,
              धरती पर मुस्कानों के अंबार लगाने हैं।
गद्य में तो  सीधे-सीधे बात कही जाती है परंतु कविता/शायरी में बिंबों और प्रतीकों के माध्यम से कही गई बात अधिक प्रभाव छोड़ती है। ओंकार जी ने फूल और भौंरा प्रतीकों का अपनी शायरी में ख़ूबसूरती के साथ जगह-जगह प्रयोग किया है :
          जिसमें हर रंग के फूलों की महक हो शामिल,
           ऐसे फूलों से ही महफ़िल ये सजा ली जाए।
          
           कभी 'ओंकार' गुलशन में हमारे देख तू आकर,
           ख़ुशी के फूल गुलशन में बहुत हमने खिलाए हैं।

           काश ! दिल की बगिया में भौंरा भी कोई होता,
           फूल-फूल खिल उठता,हर कली निखर जाती।
अपनी अधिकांश ग़ज़लों में ग़ज़लकार ने अपने तख़ल्लुस को बड़ी ख़ूबसूरती के साथ मक्तों में पिरोया है ।यह ग़ज़लकार की दक्षता का प्रमाण है।
जैसा कि मैंने पहले भी अर्ज़ किया है कि ओंकार जी की ग़ज़लें जदीदियत का आईनादार हैं परंतु उन्होंने ग़ज़ल में रिवायत का दामन भी नहीं छोड़ा है। उनकी ग़ज़ल का यह रिवायती शेर देखिए :
        इक नज़र भर देखना उनका शरारत से मुझे,
         इतना ही काफ़ी था मुझको गुदगुदाने के लिए।

मुख्तसर ये कि ओंकार जी की शायरी नैतिक मूल्य/सांप्रदायिक सौहार्द/जनसरोकार/पर्यावरण-प्रकृति तथा देशप्रेम जैसे महत्वपूर्ण और ज्वलंत विषयों के आसपास रहते हुए हमारी संवेदनाओं को झकझोरती है। आपकी ग़ज़लों में जो फ़साहत और सलासत देखने को मिलती है वो नए ग़ज़ल कहने वालों के लिए एक प्रेरणा कही जा सकती है।ऐसे कवि/शायर के सृजन को बार-बार पढ़ने का मन करता है।
 ग़ज़ल विधा के बड़े उस्ताद और जानकार कुछ ग़ज़लों में तक़ाबुल-ए-रदीफ़/तनाफ़ुर या क़ाफ़ियों को लेकर अलग राय रख सकते हैं परंतु आसान ज़ुबान में कही गई श्री ओंकार जी की अधिकांश ग़ज़लें भाव और शिल्प की दृष्टि से प्रभावित करती हैं।
यों तो हर रचनाकार अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश करता है कि उसकी किताब में प्रूफ और पृष्ठ सेटिंग आदि की कमियां न रहें परंतु कुछ न कुछ त्रुटियां रह ही जाती हैं जो इस किताब में भी छूट गई हैं। इसे एक एक सामान्य बात कहा जा सकता है।
कुल मिलाकर ओंकार सिंह 'ओंकार' जी का यह ग़ज़ल-संग्रह हिंदी में सीधी और सरल ज़ुबान में कही गई ग़ज़लों की तलाश में रहने वाले पाठकों /साहित्य प्रेमियों को निश्चित ही पसंद आएगा।
मैं आदरणीय ओंकार जी के उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु होने की कामना करता हूं ताकि निकट भविष्य में उनके और भी श्रेष्ठ ग़ज़ल-संग्रह हमें पढ़ने को मिलें।
        --- ओंकार सिंह विवेक

December 2, 2022

"साधना के पथ पर" : काव्य संग्रह (समीक्षक : श्री रविप्रकाश)


मित्रो प्रणाम 🌹🌹🙏🙏

आज काव्य-संग्रह "साधना के पथ पर" की श्री रवि प्रकाश जी द्वारा की गई समीक्षा लेकर आपके सम्मुख उपस्थित हूं। यह मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है कि मेरी रचनाएँ भी इस संग्रह में प्रकाशित हुई हैं।
*पुस्तक समीक्षा* 
 *पुस्तक का नाम :* साधना के पथ पर (साहित्यिक रचनाएं) 
 *संकलन : अशोक विश्नोई एवं शिशुपाल 'मधुकर'* 
 *प्रकाशक :* सागर तरंग प्रकाशन, मुरादाबाद 244001           उत्तर प्रदेश 
  संपर्क 94581 49223 तथा 94122 37422 
  *प्रकाशन वर्ष :* 2022
  *समीक्षक : रवि प्रकाश* मोबाइल 99976 15451
            मुरादाबाद की साहित्य, कला एवं संस्कृति को समर्पित संस्था *संकेत* का जब रजत जयंती वर्ष 2022 में हुआ, तब उसने मुरादाबाद मंडल के पॉंच कवियों को "समृद्ध लेखनी सम्मान 2022" प्रदान किया। अच्छी बात यह रही कि केवल तात्कालिक रूप से सम्मानित करने मात्र से संस्था ने अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं की अपितु उन पांच सम्मानित रचनाकारों के रचनाकर्म को एक पुस्तक का रूप दिया और इस तरह न केवल अपने रजत जयंती वर्ष की स्मृतियों को सदा-सदा के लिए अक्षुण्ण बना लिया अपितु पाठकों तक यह संदेश भी पहुंचाया कि अच्छा रचना कर्म क्या होता है तथा जिस आधार पर पांच श्रेष्ठ रचनाकारों को समृद्ध लेखनी सम्मान 2022 प्रदान किया,उनकी रचनाएं किस कोटि की है 
       भूमिका में संस्था के अध्यक्ष अशोक विश्नोई तथा महासचिव शिशुपाल 'मधुकर' ने _'संकेत'_ की विचारधारा को व्यक्त करते हुए लिखा है कि "साहित्यिक ख़ेमेबाज़ी से दूर रहकर सभी नवोदित कवियों-साहित्यकारों को प्रोत्साहन देना, वरिष्ठ साहित्यकारों के ज्ञान व अनुभवों से समाज को अवगत कराने में _'संकेत'_ का भरसक प्रयास रहता है ।" इसमें संदेह नहीं कि प्रस्तुत पुस्तक इसी विचार-श्रंखला की एक कड़ी है । 
           जिन पांच रचनाकारों को 'समृद्ध लेखनी सम्मान 2022' से अलंकृत किया गया है, उनमें पहला नाम *डॉ. प्रेमवती उपाध्याय* का है। आपका जन्म 17 फरवरी 1947 को जिला रामपुर उत्तर प्रदेश के डोहरिया गांव में हुआ था । अंग्रेजी में एम. ए. तथा होम्योपैथिक चिकित्सा की उपाधि प्राप्त डॉक्टर प्रेमवती उपाध्याय ने विवाह के उपरांत मुरादाबाद को अपना कर्मक्षेत्र बना लिया । आपके कई गीत पुस्तक में संकलित किए गए हैं। इनमें आशावादी स्वर है तथा शुद्ध आचरण का आग्रह है । व्यक्ति को आत्मबल प्रदान करने वाला स्वर इन रचनाओं में देखा जा सकता है। लक्ष्य के प्रति समर्पित होकर ही व्यक्ति को गंतव्य की प्राप्ति होती है । आपने अपने गीतों में इसी भाव को व्यक्त किया है :

 *निश्चित हमें मिलेगी मंजिल, लक्ष्य साध लें अभी यहीं* 
 *जाना नहीं ढूंढने हम को, राह मिलेगी यहीं कहीं* 
 (प्रष्ठ 5) 
       कुछ गीतों में विलुप्त होते जा रहे मानवीय संबंधों का वर्णन है, तो कुछ में श्रृंगार-भाव अत्यंत शालीनता से प्रकट हुआ है :-

 *जब तुम आत्मसात हो जाते, बदला-बदला जग लगता है* 
(प्रष्ठ 7)
      गीतों में वैराग्य भाव भी है और सृष्टि का प्रतिपल बदलता परिदृश्य भी चित्रित हो रहा है :-

*तू समर्पित हुआ व्यर्थ जिनके लिए* 
*इन सहारों का कोई भरोसा नहीं* 
*राह में यह कहॉं छोड़ दें पालकी*
*इन कहारों का कोई भरोसा नहीं*
 (पृष्ठ 9)
            पुस्तक के दूसरे "समृद्ध लेखनी सम्मान 2022"  से अलंकृत रचनाकार *श्री श्रीकृष्ण शुक्ल*  हैं । आपका जन्म 30 अगस्त 1953 को मुरादाबाद में हुआ। भारतीय स्टेट बैंक के प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त होकर साहित्य और सहजयोग प्रवक्ता के रूप में सक्रिय हैं। आपके गीत, गजल, नवगीत और गीतिका पुस्तक में संग्रहित हैं । इन रचनाओं में जहां एक ओर मतदाताओं के लिए सार्थक प्रेरणा है, धन और यश-वैभव की निरर्थकता का संदेश है, द्वेष और ईर्ष्या आदि दुर्गुणों को समाप्त करने का आग्रह है, वहीं दूसरी ओर एक श्रंगार प्रधान रचना भी है। एक व्यंग रचना भी है- "रात स्वप्न में रावण आया"। इसमें कवि ने संसार में चारों तरफ विभिन्न रूपों में रावण को जीवित पाया है। सम्मानित कविवर लिखते हैं :-

*आज हर तरफ दिखता रावण* 
*आगे रावण पीछे रावण* 
*कहीं भ्रूण-हत्या करवाता* 
*कहीं रेप करवाता रावण* 
*इसको कोई हरा न पाया* 
*संकेतों में मात्र जलाया* 
(पृष्ठ 27)
                  पर्वतों के प्रति एक मनोहरी गीत पुस्तक में संचयित किया गया है ।‌ इसमें धरती पर पर्वतों के अस्तित्व के कारण जो सौंदर्य बिखरा हुआ है,  उसका सुमधुर वर्णन देखने में आता है। कवि ने लिखा है :-

 *हरि हर का आगार यहॉं है* 
 *और मोक्ष का द्वार यहॉं है* 
 *हिम शिखरों से कल-कल बहती* 
 *गंगा यमुना धार यहॉं है* 
 *इनमें ही कैलाश बसा है* 
 *इनमें ही केदार है* 
 *पर्वत हैं तो धरती का श्रृंगार है* 
 (प्रष्ठ 20)

          तीसरे कवि *प्रेमचंद प्रेमी* हैं। आपका जन्म 25 जुलाई 1964 को ग्राम जैतरा, धामपुर, जिला बिजनौर में हुआ। आपके मुक्तक, गजल तथा अतुकान्त रचनाएं पुस्तक में दी गई हैं । आपकी उदार दृष्टि ने संसार में सबके लिए सुखद जीवन की मंगल कामना की है। इस दृष्टि से एक मुक्तक प्रस्तुत है :-

*सच्चा सुख और प्यार मिले*
*खुशियों का संसार मिले* 
*मेरे मन की यही कामना* 
*सबको ही उजियार मिले* 
( पृष्ठ 37 )
             *ओंकार सिंह विवेक* चौथे कवि हैं, जिनको संकेत संस्था ने "समृद्ध लेखनी सम्मान 2022" प्रदान किया है । आपका जन्म 1 जून 1965 को ग्राम भोट बक्काल, जिला रामपुर में हुआ। प्रथमा बैंक के प्रबंधक पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर आप प्रमुखता से गजल साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं । गजल के अतिरिक्त समीक्ष्य पुस्तक में आपके दो नवगीत तथा कुछ कुंडलियां और दोहे भी हैं । सभी रचनाएं उच्च कोटि की हैं। सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई आपकी लेखनी बहुत सादगी के साथ परिदृश्य को चित्रित कर देती है । कई बार बात बहुत धीमे से कही गई होती है, लेकिन चोट गहरा करती है । राजनीति, आर्थिक विषमता तथा सामाजिक कुरीतियों को आपने अपनी लेखनी का विषय बनाया है । गजल के मामले में जो प्रवाह आपकी कलम में है, वह अन्यत्र देखने में कम ही आता है । कुछ शेर इस दृष्टि से उद्धृत करने योग्य हैं :-

*कुछ मीठा कुछ खारापन है* 
*क्या-क्या स्वाद लिए जीवन है* 

 *कैसे ऑंख मिलाकर बोलें* 
 *साफ नहीं जब उनका मन है* 

 *शिकवे भी उनसे ही होंगे* 
 *जिनसे थोड़ा अपनापन है* 
(पृष्ठ 52)
          उपरोक्त पंक्तियों में जितनी सरलता से कवि की लेखनी प्रवाहमान हुई है, वह अपने आप में एक अनोखी उपलब्धि कहीं जाएगी । ऐसा लगता है जैसे भाव अपने आप शब्दों का आकार ले रहे हों। पाठक को कहीं कोई उलझन महसूस नहीं होती। नवगीत में भी कवि ने रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े प्रसंगों को उठाया है और सरलता से चित्रित कर दिया । यह सरलता ही कवि की लेखनी का प्राण है । देखिए :-

*छत पर आकर बैठ गई है अलसाई-सी धूप* 
 *सर्द हवा खिड़की से आकर* 
 *मचा रही है शोर* 
 *कॉंप रहा थर-थर कोहरे के,* 
 *डर से प्रतिपल भोर* 
 *दॉंत बजाते घूम रहे हैं* 
 *काका रामसरूप* 
( पृष्ठ 59 )
            "समृद्ध लेखनी सम्मान 2022" से अलंकृत पुस्तक की पांचवी और अंतिम रचनाकार *श्रीमती मीनाक्षी ठाकुर* का जन्म धामपुर, जिला बिजनौर में हुआ । आप सहायक अध्यापिका के रूप में कार्यरत हैं । आपका एक व्यंग लेख तथा कुछ गीत पुस्तक में दिए गए हैं । इनमें राजनीतिक दलों-नेताओं की पैंतरेबाजी और महंगाई के चित्र हैं, पुरानी परंपराओं के क्षरण पर वेदना का प्रकटीकरण है तथा जीवन में अश्रुओं को छिपा लेने की कला ही जीवन जीने की कला माना गया है । 
       पुस्तक में माता और पिता के संबंध में श्रीमती मीनाक्षी ठाकुर ने जो गीत लिखे हैं, वह बहुत मार्मिक हैं। मां के संबंध में आपने लिखा है :-

 *मॉं के हाथों-सा लगे* 
 *नर्म धूप का स्वाद* 
 *ख्वाबों के स्वेटर बुनें* 
 *झुर्री वाले हाथ* 
 *सर्दी में दुबका कहीं* 
 *अपनेपन का साथ* 
 *चिकने विंटर-क्रीम से* 
 *मतलब के संवाद* 
(प्रष्ठ 74 )
                मां का जो चित्र आपने खींचा है, वह कहीं न कहीं वास्तविकता का चित्रण कहा जा सकता है । आपने पिता के संबंध में एक गीत लिखा है ,जिसका शीर्षक है -"नहीं पिता के हिस्से आया"
           मॉं के संबंध में कवियों ने बहुत कुछ लिखा है, लेकिन पिता अक्सर अछूते रह जाते हैं । सातों दिन, चौबीसों घंटे निरंतर कार्य में लगे रहने वाले पिता की श्रमशीलता को आपने जितने पैनेपन के साथ आकार दिया है, वह देखते ही बनता है । पिता के हिस्से में कोई रविवार ही नहीं आया अर्थात कोई छुट्टी का दिन नहीं आया, इसी बात को लेकर आपने एक गीत लिखा है :-

 *नहीं पिता के हिस्से आया* 
 *कभी कोई इतवार*

 *राशन के थैले में लाता* 
 *हर संभव मुस्कानें* 
 *उसके अनुभव के सांचे में* 
 *ढलती हैं संतानें* 
*उसके दम से मॉं की बिंदी* *बिछिया, कंगना, हार* 
(पृष्ठ 68)
         इस तरह अस्सी पृष्ठ का यह रचनाकर्म सही मायने में समृद्ध लेखनी सम्मान 2022 को वास्तविक और स्थायित्व से भरा हुआ एक ऐसे सम्मान का स्वरूप दे रहा है, जो पाठकों को रचनाकारों से परिचित कराने का काम भी करेगा और उनके हृदय और मस्तिष्क को काव्य के रसास्वादन का लाभ भी पहुंचाएगा । सम्मान के अनूठे आयोजन के लिए संकेत-संस्था बधाई की पात्र है।
   ---- रवि प्रकाश
     (समीक्षक श्री रवि प्रकाश जी)

(प्रस्तुतकर्ता ओंकार सिंह विवेक)

December 1, 2022

दिसंबर का महीना

मित्रो शुभ प्रभात 🙏🙏🌹🌹

वर्ष,२०२२ भी जाने को है बस एक माह ही शेष बचा है।
समय कैसे पंख लगाकर उड़ रहा है यह तो हम और आप देख ही रहे हैं। इसलिए ज़रूरी है कि जो कुछ हम जीवन में जानना, देखना, सीखना और करना चाहते हैं उसे लक्ष्य निर्धारित करके शीघ्र अतिशीघ्र करने का प्रयास करते रहें। पता नहीं किस के पास कितना वक्त शेष बचा है। सबके लिए यही दुआ है कि आशावादी बने रहकर कुछ नया और श्रेष्ठ सृजन करते रहें।अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए मस्त,व्यस्त और स्वस्थ्य रहें।
इन दिनों मेरा भी अपने दूसरे ग़ज़ल-संग्रह का काम लगभग पूरा हो चुका है। सब कुछ योजनाबद्ध रूप से चलता रहा तो वर्ष,२०२३ में मेरी इस दूसरी पुस्तक का विमोचन भी हो ही जाएगा।आप सभी शुभचिंतकों के आशीर्वाद की अपेक्षा है।
लीजिए प्रस्तुत हैं मेरे कुछ दोहे :
दोहे 
***
©️
दादा  जी  होते  नहीं, कैसे  भला  निहाल।
नन्हें   पोते   ने    छुए, झुर्री   वाले   गाल।।

मन में जाग्रत हो गई,लक्ष्य प्राप्ति की चाह।
अब पथरीली राह की, होगी क्या परवाह।।

बतलाओ कब तक नहीं,याची हों हलकान।
झिड़क रहे हैं द्वार पर,उनको ड्योढ़ीबान ।।

शातिर   कुहरे  ने   यहाँ,खेला  ऐसा   खेल।
पड़ी काटनी सूर्य को,कई  दिनों तक जेल।।
©️ ओंकार सिंह विवेक

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