ग़ज़ल---ओंकार सिंह विवेक
आप में ही आगे बढ़ने का ज़रा जज़्बा नहीं,
बेसबब कहते हो , कोई रासता देता नहीं।
बेसबब कहते हो , कोई रासता देता नहीं।
ख़्वाब तो बेताब थे आँखें सजाने के लिए,
मैं ही लेकिन दो घड़ी को चैन से सोया नहीं।
मैं ही लेकिन दो घड़ी को चैन से सोया नहीं।
हो गए क्यों लीक पर चलकर ही तुम भी मुत्मइन,
क्यों नए रस्ते बनाने का कभी सोचा नहीं।
क्यों नए रस्ते बनाने का कभी सोचा नहीं।
फ़र्क है गर कोई तो है आदमी की सोच का,
काम कोई भी कभी छोटा बड़ा होता नहीं।
काम कोई भी कभी छोटा बड़ा होता नहीं।
आज सब राज़ी हैं तो तुम यह भरम मत पालना,
तुमसे कल को भी यहाँ कोई ख़फ़ा होगा नहीं।
-----ओंकार सिंह विवेक
तुमसे कल को भी यहाँ कोई ख़फ़ा होगा नहीं।
-----ओंकार सिंह विवेक