October 31, 2019

नेकियाँ


ग़ज़ल-ओंकार  सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
किसी  के  ग़म को  हमें अपना ग़म बनाने में,
बड़ा    सुकून   मिला   नेकियाँ   कमाने   में।

उसी  का  हाथ  था  मेरी  शिकस्त  के  पीछे,
लगा  रहा  में  जिसे  रात - दिन  जिताने  में।

शदीद  दर्द  -  घुटन  -  रंज   और   नाकामी,
इन्हीं   से   जूझना   हैं   ज़िन्दगी   चलाने  में।

नहीं  है  आज  किसी को  भी रूह की चिन्ता,
लगे  हैं  लोग  फ़क़त  जिस्म  को  सजाने  में।

किसी की छीन ली रोज़ी, किसी का हक़ मारा,
लगे   रहे   वो   मुसलसल   बदी   कमाने   में।

कभी  था  नाज़  हमें  जिन  हसीन रिश्तों  पर,
उन्हीं   को   तोड़   दिया  आज  आज़माने  में।
                       --------- ओंकार सिंह विवेक
                             (सर्वाधिकार सुरक्षित)

4 comments:

  1. हकीकत बयान की है आपने भैया।

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  2. Belated thanks Bhai.Whenever possible please spare time to read my creation

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