November 20, 2019

कुछ अपना अंदाज़

कुछ  दोहे
हर  पल  की  गंभीरता ,   कर   देगी   बीमार।
हँसी ठिठोली भी कभी, किया करो तुम यार।।

 उठते  हैं  उनके  लिए , सदा  दुआ  में  हाथ।
 जो  ख़ुशियाँ  हैं बाँटते, दीन  हीन  के साथ।।

अपनी  क्षमता  का किया , जब  पूरा उपयोग।
पहुँच  गए  तब  अर्श पर , यहाँ फ़र्श से लोग।।

मन  बहलाने  के  सभी,  साधन जिनके पास।
उनको  ही  देखा   गया, मन  से बड़ा उदास।।

यों  तो  सबसे  तेज़ थी ,  उसकी  ही  रफ़्तार।
मगर  संतुलन  के बिना, दौड़  गया वह हार।।

अनुशासन में बाँध ली, जिसने  मन की डोर।
उसे सफलता का मिला, बड़ा  सुहाना भोर।।
                      ---------ओंकार सिंह विवेक
                             (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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