कुछ दोहे
हर पल की गंभीरता , कर देगी बीमार।
हँसी ठिठोली भी कभी, किया करो तुम यार।।
उठते हैं उनके लिए , सदा दुआ में हाथ।
जो ख़ुशियाँ हैं बाँटते, दीन हीन के साथ।।
अपनी क्षमता का किया , जब पूरा उपयोग।
पहुँच गए तब अर्श पर , यहाँ फ़र्श से लोग।।
मन बहलाने के सभी, साधन जिनके पास।
उनको ही देखा गया, मन से बड़ा उदास।।
यों तो सबसे तेज़ थी , उसकी ही रफ़्तार।
मगर संतुलन के बिना, दौड़ गया वह हार।।
अनुशासन में बाँध ली, जिसने मन की डोर।
उसे सफलता का मिला, बड़ा सुहाना भोर।।
---------ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
हर पल की गंभीरता , कर देगी बीमार।
हँसी ठिठोली भी कभी, किया करो तुम यार।।
उठते हैं उनके लिए , सदा दुआ में हाथ।
जो ख़ुशियाँ हैं बाँटते, दीन हीन के साथ।।
अपनी क्षमता का किया , जब पूरा उपयोग।
पहुँच गए तब अर्श पर , यहाँ फ़र्श से लोग।।
मन बहलाने के सभी, साधन जिनके पास।
उनको ही देखा गया, मन से बड़ा उदास।।
यों तो सबसे तेज़ थी , उसकी ही रफ़्तार।
मगर संतुलन के बिना, दौड़ गया वह हार।।
अनुशासन में बाँध ली, जिसने मन की डोर।
उसे सफलता का मिला, बड़ा सुहाना भोर।।
---------ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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