May 16, 2024

नई ग़ज़ल!!! नई ग़ज़ल!!! नई ग़ज़ल!!!

असीम सुप्रभात मित्रो 🌷🌷🙏🙏

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मेरी ग़ज़ल प्रकाशित करने के लिए आज फिर "सदीनामा" अख़बार के संपादक मंडल का हृदय की असीम गहराइयों से आभार।
आज मेरी ग़ज़ल के साथ मुंबई,महाराष्ट्र के शायर जनाब ताज मुहम्मद सिद्दीक़ी साहब की भी बेहतरीन ग़ज़ल छपी हैं।इंसानियत और भाई चारे का पैग़ाम देती हुई जनाब ताज मुहम्मद सिद्दीक़ी साहब की उम्दा ग़ज़ल के लिए उन्हें भी बहुत-बहुत मुबारकबाद। यूं तो ताज मुहम्मद सिद्दीक़ी साहब की ग़ज़ल के सभी अशआर अच्छे हैं परंतु यह शे'र मुझे  ख़ास तौर पर बहुत अच्छा लगा :
  इलाही रहें मिलके हिन्दू व मुस्लिम,
  न झगड़े कभी ये अज़ां-आरती पर।
      -- ताज मुहम्मद सिद्दीक़ी 


ऊपर अख़बार में छपी मेरी नई तरही ग़ज़ल
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फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन 
©️ 
लोग   जब    सादगी   से   मिलते   हैं, 
हम भी फिर ख़ुश-दिली से मिलते  हैं।

आदमी    को     क़रीने    जीने     के,
'इल्म   की    रौशनी   से   मिलते  हैं।

ख़ैरियत   लेने   की   ग़रज़   से   नहीं,  
दोस्त  अब  काम  ही   से  मिलते  हैं।

आस   करते   हैं   जिनसे  नरमी  की,
उनके   लहजे    छुरी-से   मिलते   हैं।

राम   जाने    सियाह   दिल     लेकर,
लोग   कैसे   किसी   से   मिलते   हैं।
                 ©️ ओंकार सिंह विवेक

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