मुन्शी प्रेमचंद को समर्पित कुछ दोहे-
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लिखकर सदा समाज का,सीधा सच्चा हाल,
मुन्शी जी की लेखनी,करती रही कमाल।
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'हल्कू' 'बुधिया' से सरल, 'होरी' से लाचार,
इस समाज में आज भी,जीवित हैं किरदार।
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पढ़ते हैं हम जब कभी, 'ग़बन'और 'गोदान',
आ जाता है सामने, असली हिन्दुस्तान।
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किये अदब के वासते, बड़े बड़े सब काम,
मुन्शी जी हम आपको, करते आज प्रणाम।
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-----ओंकार सिंह विवेक
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लिखकर सदा समाज का,सीधा सच्चा हाल,
मुन्शी जी की लेखनी,करती रही कमाल।
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'हल्कू' 'बुधिया' से सरल, 'होरी' से लाचार,
इस समाज में आज भी,जीवित हैं किरदार।
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पढ़ते हैं हम जब कभी, 'ग़बन'और 'गोदान',
आ जाता है सामने, असली हिन्दुस्तान।
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किये अदब के वासते, बड़े बड़े सब काम,
मुन्शी जी हम आपको, करते आज प्रणाम।
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-----ओंकार सिंह विवेक