March 5, 2022
लोकतंत्र और चुनाव
March 4, 2022
जो ठीक है वह ठीक है
March 3, 2022
विरोधाभासों,असंगतियों और विसंगतियों में घिरा आदमी और एक आस
March 2, 2022
रूस-यूक्रेन युद्ध : दिल बहुत दुखी है
March 1, 2022
खेतों की जो हरियाली है----
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मदमाता फागुन
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निर्धन की क्या दीवाली है
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सिन्फ़-ए-नाज़ुक
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काश!ऐसा न हो
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पानी रे पानी !!!!!(विश्व जल दिवस विशेष)
February 8, 2022
अब बहुत हुआ ऑनलाइन
February 7, 2022
आसमान से
मिसरा -- मुझको जमीं से लाग उन्हें आसमान से
शायर दाग देहलवी
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ग़ज़ल--©️ओंकार सिंह विवेक
©️
इंसां जो छेड़ करता रहा आसमान से,
डरते रहेंगे यूँ ही परिंदे उड़ान से।
कुछ हाल तो हो जाता है आँखों से भी बयां,
हर एक बात की नहीं जाती ज़ुबान से।
दुनिया को दर्स देता है जो मेल-जोल का,
रिश्ता हमारा है उसी हिन्दोस्तान से।
©️
सैलाब में घिरे रहे बस्ती के आम लोग,
उतरे न ख़ास लोग मदद को मचान से।
इच्छा रखें न फल की, सतत कर्म बस करें,
संदेश ये ही मिलता है 'गीता' के ज्ञान से।
भड़काके रात-दिन यूँ तअस्सुब की आग को,
खेला न जाए मुल्क के अम्न-ओ-अमान से।
मछली की आँख ख़्वाब में भेदी बहुत 'विवेक',
निकला न तीर सच में तो उनकी कमान से।
-- ©️ओंकार सिंह विवेक
चित्र--गूगल से साभार
February 6, 2022
हे!ऋतुराज वसंत जी बहुत-बहुत आभार
February 4, 2022
साहित्यकार स्मृतिशेष श्री हीरालाल "किरण"
February 1, 2022
जो मुददआ नहीं है उसे -----
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
©️
हम कैसे ठीक आपका ये मशवरा कहें,
जो मुददआ नहीं है उसे मुददआ कहें।
मालूम है कि होगा हवाओं से सामना,
फिर किस लिए चराग़ इसे मसअला कहें।
इंसां को प्यास हो गई इंसां के ख़ून की,
वहशत नहीं कहें तो इसे और क्या कहें।
©️
है रहज़नों से उनका यहाँ राबिता-रसूख़,
तुम फिर भी कह रहे हो उन्हें रहनुमा कहें।
वो सुब्ह तक इधर थे मगर शाम को उधर,
ऐसे अमल को सोचिए कैसे वफ़ा कहें।
इंसानियत का दर्स ही जब सबका अस्ल है,
फिर क्यों किसी भी धर्म को आख़िर बुरा कहें।
मिलती है दाद भी उन्हें फिर सामिईन की,
शेरो-सुख़न में अपने जो अक्सर नया कहें।
----©️ओंकार सिंह विवेक
January 31, 2022
संविधान का मान
January 28, 2022
जिसकी बनती हो बने----
January 26, 2022
लग रहा है डर हमें उनकी इनायत देखकर
January 23, 2022
फ़िक्र फूली-फली नहीं होती----तो
January 22, 2022
झूठ पर झूठ वो बोलता रह गया
ग़ज़ल--©️ओंकार सिंह विवेक
©️
झूठ पर झूठ वो बोलता रह गया,
देखकर मैं ये हैरान-सा रह गया।
अर्ज़ हाकिम ने लेकिन सुनी ही नहीं,
एक मज़लूम हक़ माँगता रह गया।
जीते जी उसके, बेटों ने बाँटा मकां,
बाप अफ़सोस करता हुआ रह गया।
©️
जाने वाले ने मुड़कर न देखा ज़रा,
दुख हमें बस इसी बात का रह गया।
नाम से उनके चिट्ठी तो इरसाल की,
पर लिफ़ाफ़े पे लिखना पता रह गया।
हाल यूँ तो कहा उनसे दिल का बहुत,
क्या करें फिर भी कुछ अनकहा रह गया।
©️
वो हिक़ारत दिखाता रहा, और मैं,
"शब्द ही प्यार के बोलता रह गया"
देखकर हाथ में उनके आरी 'विवेक',
डर के मारे शजर काँपता रह गया।
--- ©️ओंकार सिंह विवेक
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