एक पुरानी हिंदी फ़िल्म के गाने की दो पंक्तियाँ मुझे प्रसंगवश स्मरण हो आईं---
इंसान से इंसान का हो भाईचारा,
यही पैग़ाम हमारा,यही पैग़ाम हमारा।
कितनी नेक कामना की गई है इस गीत में।दुनिया और इंसानियत को बचाने के लिए यही कामना तो ज़रूरी है पर आज तो लगता है जैसे ये पंक्तियाँ हमारा मुँह चिढ़ा रही हैं।आज आदमी अपनी ज़िद और घमंड के चलते भाईचारे के स्थान पर विध्वंस का पैग़ाम देने पर तुला है।
आज रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के सही या ग़लत होने के इन दोनों ही देशों के अपने-अपने तर्क और तकनीकी कारण हो सकते हैं पर इंसानियत के पहलू की किसी को कोई फ़िक्र नहीं है। एक तरफ़ यूक्रेन का रूस की दादागिरी को न मानना ,नेटो देशों का सदस्य बनने की पहल करना जैसे उसके अपने निर्णय हैं तो दूसरी तरफ़ इन सबसे रूस अपने लिए सामरिक ख़तरे उभरते देख रहा है जो उसकी अपनी एक दलील है।रूस और यूक्रेन के अलावा नेटो देश,शेष यूरोपीय देश और अमेरिका भी इस त्रासदी के लिए कम ज़िम्मेदार नहीं हैं।प्रसंगवश फिर एक पुराने फिल्मी गाने की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं--
देख तेरे इंसान की हालत क्या हो गई भगवान,
कितना बदल गया इंसान, कितना बदल गया इंसान
कहीं पे लूट कहीं पे दंगा,
नाच रहा नर होकर नंगा।
जैसा कि मैंने ऊपर ज़िक्र किया है यदि गहराई से युद्ध की पृष्ठभूमि में जाएँ तो बहुत से सटीक तर्क इसके पक्ष और विपक्ष में सामने आएँगे पर मेरा मक़सद उन तर्कों की गहराई में जाना बिल्कुल भी नहीं है।
मेरा मकसद सिर्फ़ इतना है कि इंसानी बिरादरी मानवीय पहलूओं को ध्यान में रखते हुए इस समस्या का समाधान जल्दी से जल्दी निकाले ताकि निर्दोष लोगों की जानें न जाएँ।इतिहास गवाह है कि जंग से कभी किसी मसअले का स्थायी समाधान आज तक नहीं निकला।मुझे अपनी ही एक ग़ज़ल का शेर याद आया--
जंग से मसअले का हल होगा,
ये भरम पालना हिमाक़त है।
आइए यह उम्मीद करें कि देश/लोग अपनी नाहक़ ज़िदें,अतिवादी नज़रिए और घमंड छोड़ेंगे और निर्दोष तथा मासूम लोगों पर थोपी गई इस जंग को समाप्त कराने में अपनी-अपनी वांछित भूमिकाएं निभाएँगे।
विश्वशांति की कामना के साथ फिर से ऊपर कही गई पंक्तियों को दोहराते हुए अपनी बात ख़त्म करता हूँ--
इंसान का इंसान से हो भाईचारा,
यही पैग़ाम हमारा, यही पैग़ाम हमारा।
ओंकार सिंह विवेक🙏🙏💐🌷🌺💐
चित्र--गूगल से साभार
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