कुंडलिया
---ओंकार सिंह विवेक
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देते हैं सबको यहाँ,प्राणवायु का दान,
फिर भी वृक्षों की मनुज,लेता है नित जान।
लेता है नित जान, गई मति उसकी मारी,
जो वृक्षों पर आज,चलाता पल-पल आरी।
कहता सत्य विवेक,वृक्ष हैं कब कुछ लेते,
वे तो छाया-वायु,,फूल-फल सबको देते।
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---ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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