January 22, 2022

झूठ पर झूठ वो बोलता रह गया

बार-बार चिंतन को विवश करती और ह्रदय को झकझोरने
वाली कड़वी सच्चाइयां सृजन का आधार बनती ही हैं।और फिर बने भीं क्यों नहीं,यह भाव ही तो अहसास कराता है कि हमारे अंदर की संवेदनशीलता जीवित है।
तो लीजिए साथियो ऐसे ही कुछ भावों के सुमन  पिरोकर फिर ग़ज़ल की माला में आपके सम्मुख रख रहा हूँ प्रतिक्रिया की उम्मीद के साथ🙏🙏

ग़ज़ल--©️ओंकार सिंह विवेक

©️
झूठ  पर   झूठ  वो   बोलता  रह  गया,
देखकर  मैं   ये   हैरान-सा   रह   गया।  
   
अर्ज़  हाकिम  ने लेकिन  सुनी  ही नहीं,
एक  मज़लूम   हक़  माँगता  रह  गया।
      
जीते  जी  उसके, बेटों  ने  बाँटा  मकां,
बाप अफ़सोस करता हुआ  रह   गया।
©️
जाने  वाले  ने  मुड़कर  न  देखा  ज़रा,
दुख  हमें  बस इसी बात का  रह गया।

नाम  से  उनके चिट्ठी  तो  इरसाल  की,
पर लिफ़ाफ़े  पे  लिखना पता रह गया।

हाल  यूँ  तो  कहा  उनसे दिल  का बहुत,
क्या करें फिर भी कुछ अनकहा रह गया।
©️
वो   हिक़ारत   दिखाता   रहा, और  मैं,
"शब्द  ही  प्यार  के  बोलता  रह  गया"

देखकर  हाथ  में  उनके  आरी 'विवेक',
डर  के  मारे  शजर  काँपता  रह गया।
            --- ©️ओंकार सिंह विवेक

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